आलोचना से डरें नहीं- उसके लिये तैयार रहें। (भाग 3)
अपनी निष्पक्ष समीक्षा आप कर सकना यह मनुष्य का सबसे बड़ा साहस है। अपने दोषों को ढूँढ़ना, गिनना और समझना चाहिए। साथ ही यह प्रयत्न करना चाहिए कि उन दुर्गुणों को अपने व्यक्तित्व में से अलग कर दिया जाय। निर्दोष और निर्मल व्यक्तित्व विनिर्मित किया जाय। जिस प्रकार हम दूसरों के पाप और दुर्गुणों से चिढ़ते हैं और उनकी निन्दा करते हैं वैसी ही सख्ती हमें अपने साथ भी बरतनी चाहिए और यह चेष्टा करनी चाहिए कि निन्दा करने का कोई आधार ही शेष न रहे और अप्रिय आलोचना के वास्तविक कारणों का ही उन्मूलन हो जाय।
अपने आप से लड़ सकना शूरता का सबसे बड़ा प्रमाण है। दूसरों से लड़ सकने को तो निर्जीव तीर तलवार भी समर्थ हो सकते हैं पर अपने से लड़ने के लिए सच्ची बहादुरी की जरूरत पड़ती है।
हम अपनी आलोचना आप करें ताकि बाहर वालों को निन्दात्मक आलोचना करने का अवसर ही न मिले। हम प्रशंसा के योग्य रीति-नीति अपनायें ताकि हर दिशा से प्रशंसा के प्रमाण अपने आप बरसने लगें।
समाप्त
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति सितम्बर 1972 पृष्ठ 20
http://literature.awgp.org/magazine/AkhandjyotiHindi/1972/September.20
अपनी निष्पक्ष समीक्षा आप कर सकना यह मनुष्य का सबसे बड़ा साहस है। अपने दोषों को ढूँढ़ना, गिनना और समझना चाहिए। साथ ही यह प्रयत्न करना चाहिए कि उन दुर्गुणों को अपने व्यक्तित्व में से अलग कर दिया जाय। निर्दोष और निर्मल व्यक्तित्व विनिर्मित किया जाय। जिस प्रकार हम दूसरों के पाप और दुर्गुणों से चिढ़ते हैं और उनकी निन्दा करते हैं वैसी ही सख्ती हमें अपने साथ भी बरतनी चाहिए और यह चेष्टा करनी चाहिए कि निन्दा करने का कोई आधार ही शेष न रहे और अप्रिय आलोचना के वास्तविक कारणों का ही उन्मूलन हो जाय।
अपने आप से लड़ सकना शूरता का सबसे बड़ा प्रमाण है। दूसरों से लड़ सकने को तो निर्जीव तीर तलवार भी समर्थ हो सकते हैं पर अपने से लड़ने के लिए सच्ची बहादुरी की जरूरत पड़ती है।
हम अपनी आलोचना आप करें ताकि बाहर वालों को निन्दात्मक आलोचना करने का अवसर ही न मिले। हम प्रशंसा के योग्य रीति-नीति अपनायें ताकि हर दिशा से प्रशंसा के प्रमाण अपने आप बरसने लगें।
समाप्त
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति सितम्बर 1972 पृष्ठ 20
http://literature.awgp.org/magazine/AkhandjyotiHindi/1972/September.20
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