अरे! ईश के अंश, आत्म-विश्वास जगाओ रे।
होकर राजकुमार, न तुम कंगाल कहाओ रे॥1॥
दीन, हीन बनकर, क्यों अपना साहस खोते हो।
क्यों अशक्ति, अज्ञान, अभावों को ही रोते हो॥
जगा आत्म-विश्वास, दैन्य को दूर भगाओ रे।
होकर राजकुमार न तुम कंगाल कहाओ रे॥2॥
आत्म-बोध के बिना, सिंह-शावक सियार होता।
आत्म-बोध होने पर, वानर सिंधु पार होता॥
आत्म-शक्ति के धनी, न कायरता दिखलाओ रे।
होकर राजकुमार तुम कंगाल कहाओ रे॥3॥
जिसके बल पर नैपोलियन, आल्पस से टकराया।
जिसके बल पर ही प्रताप से, अकबर घबराया॥
उसके बल पर अपनी बिगड़ी बात बनाओ रे।
होकर राजकुमार तुम कंगाल कहाओ रे॥4॥
सेनापति के बिना, न सेना लड़ने पाती है।
सेनापति का आत्म-समर्पण, हार कहाती है॥
गिरा आत्मबल, जीती बाजी हार न जाओ रे।
होकर राजकुमार तुम कंगाल कहारे रे॥5॥
आज मनुजता, अनगिन साधन की अधिकारी है।
बिना आत्म-विश्वास, मनुजता किन्तु भिखारी है॥
अरे! आत्मबल की पारस मणि तनिक छुआओ रे।
होकर राजकुमार, न तुम कंगाल कहाओ रे॥6॥
अडिग आत्म-विश्वास, मनुज का रूप निखरेगा।
उसका संबल मनुज, धरा पर स्वर्ग उतारेगा॥
इसके बल पर जो भी चाहो, कर दिखलाओ रे।
होकर राजकुमार, न तुम कंगाल कहाओ रे॥7॥
होकर राजकुमार, न तुम कंगाल कहाओ रे॥1॥
दीन, हीन बनकर, क्यों अपना साहस खोते हो।
क्यों अशक्ति, अज्ञान, अभावों को ही रोते हो॥
जगा आत्म-विश्वास, दैन्य को दूर भगाओ रे।
होकर राजकुमार न तुम कंगाल कहाओ रे॥2॥
आत्म-बोध के बिना, सिंह-शावक सियार होता।
आत्म-बोध होने पर, वानर सिंधु पार होता॥
आत्म-शक्ति के धनी, न कायरता दिखलाओ रे।
होकर राजकुमार तुम कंगाल कहाओ रे॥3॥
जिसके बल पर नैपोलियन, आल्पस से टकराया।
जिसके बल पर ही प्रताप से, अकबर घबराया॥
उसके बल पर अपनी बिगड़ी बात बनाओ रे।
होकर राजकुमार तुम कंगाल कहाओ रे॥4॥
सेनापति के बिना, न सेना लड़ने पाती है।
सेनापति का आत्म-समर्पण, हार कहाती है॥
गिरा आत्मबल, जीती बाजी हार न जाओ रे।
होकर राजकुमार तुम कंगाल कहारे रे॥5॥
आज मनुजता, अनगिन साधन की अधिकारी है।
बिना आत्म-विश्वास, मनुजता किन्तु भिखारी है॥
अरे! आत्मबल की पारस मणि तनिक छुआओ रे।
होकर राजकुमार, न तुम कंगाल कहाओ रे॥6॥
अडिग आत्म-विश्वास, मनुज का रूप निखरेगा।
उसका संबल मनुज, धरा पर स्वर्ग उतारेगा॥
इसके बल पर जो भी चाहो, कर दिखलाओ रे।
होकर राजकुमार, न तुम कंगाल कहाओ रे॥7॥
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