रविवार, 27 मार्च 2016

क्या है सभ्य होने का अर्थ ?


सभ्यता क्या है , उसकी पहचान क्या है, इन बातोँ पर मै अक्सर सोचा करता था। लोगो के मुख से जो सुनता था और नैतिक शिक्षा की किताबो मे जो बाते लिखी होती थी, मै उनसे न जाने क्यो सहमत नही हो पाता था, दरअसल, मुझे Civilized Man सभ्यता स्कूल मे बताया गया कि सभ्यता के लिए इंसान को टिप-टाप दिखना चाहिए। उसके नाखून कटे हो, कपङे बिल्कुल साफ सुथरे हो। लेकिन मै इस पर इत्तेफाक नही कर पाया।

कई बार खेलने के दौरान मेरी शर्ट गंदी हो जाती, तो टीचर कहते कि इतने गंदे कपङे पहने हो, सभ्यता बिल्कुल नही है। एक दिन मैने टीचर से पूछ ही लिया-क्या जीवन के लिए इस तरह की सभ्यता आवश्यक है? अगर कोई गरीब है, उसके कपङे फटे हुए है, तो क्या वह सभ्य नही है? मेरे ये सवाल सुनकर उन्होने मुझे बङे प्रेम से समझाया, देखो, कपङे फटे हो, तो कोई बात नही, कितु वे धुले हुए साफ-सुथरे और प्रेस किए हुए होने चाहिए। अध्यापक की यह बात भी मेरे गले नही नही उतरी। मैँ सोचने लगा, यह कैसी सभ्यता ? जिसके पास खाने को भी पैसे न हो, वह फटे कपङे सिलवाकर, धुलवाकर, और प्रेस करवा कर कैसे पहन सकता है ? अगर वह ऐसा नही कर सकता तो क्या वह असभ्य हो जायेगा ?

अपनी किताबो मे भी मुझे सभ्य होने की यही पहचान लिखी हुई मिली। घर के बङे लोग भी कहते- सभ्य लोग ऐसा नही करते, वैसा करते हैँ। इस तरह की हिदायते सुनने को मिलती, लेकिन एक दिन मेरी जिदगी मे एक घटना घट गई, जब मैने सभ्यता का अर्थ तो जाना ही, जीवन की मेरी दिशा ही बदल गई।

एक दिन जब मै अखबार पढ़ रहा था, तो मेरी नजर एक छोटी सी खबर पर टिक गई। उस खबर मे लिखा था कि किस तरह एक महिला का प्रसव सङक पर हुआ और किसी भी व्यक्ति ने उस महिला की मदद नही की। मै यह खबर पढ़ कर आश्चर्यचकित हो गया कि सभ्यता की चादर ओढ़े ये समाज इतना निष्ठुर कैसे हो सकता है? मेरे मन मे यह खयाल आया कि उस समय सभ्य लोग कहां थे, जिन्होने धुले हुए प्रेस किए हुए कपङे पहने थे? शायद वे अपने कपङे गंदे होने के डर से मदद नही कर सके होगे। शायद उनकी वह सभ्यता आङे आ गई होगी।उस खबर का मुझ पर इतना ज्यादा प्रभाव पङा कि मुझे यह समझ मे आ गया कि सभ्यता भीतर की चीज है, वह बाहरी आवरण नही। इस घटना के कारण ही मुझमे यह बदलाव आया कि जहां भी किसी की मदद करने का अवसर मिलता, वहां मै तत्परता से पहुंच जाता था। मैने कभी इस बात की चिँता नही की कि मेरे कपङे गंदे हो जाएंगे और मुझ पर असभ्य होने का टैग लग जाएगा। मै अंततःसमझ गया था कि सभ्य होने का अर्थ संवेदनशील होना है।

भान उदय

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

Sab hyena bahri Aswartantra ko nahi Kahte hai.yeh wo insani sanvedna shilta hai,Jo zDil se paida hoti hai aur sache Dil ki pukarte se labalab hoti hai.Isme insani farm samay a hua hota hai.mujhe chhoti si ghatna yaad aa gayi.Shravan mash me jawar wale log Shivaji ko Gangajal chad hate hai.aik Vaar Kai guru ke shishye isi kam me ja rahe the.aik donkey rashte me pays se tarap raha tha.sab Shivaji ko prasann Karne aik Taraf dekhkar age nikal Gaye,lekin aik ne us tarp te ass ko pani pilaya aur sahi se lot aya.Dusro ne guru ko uske vichar I ki shikayat ki aur episode bataya.tab guru ne samjhaya,ki vichar I tum ho,Jo sachi Insaniat ka Matlabi hi nahi samajh sake aur us shishye ko gale lagaya.

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