गुरुवार, 16 मई 2024

👉 जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति भाग ३

👉 *जीवन का लक्ष्य भी निर्धारित करें *

🔹 जीवन-यापन और जीवन-लक्ष्य दो भिन्न बातें हैं। प्रायः सामान्य लोगों का लक्ष्य जीवन यापन ही रहता है। खाना-कमाना, ब्याह-शादी, लेन-देन, व्यवहार-व्यापार आदि साधारण जीवन क्रमों को पूरा करते हुए मृत्यु तक पहुंच जाना, बस, इसके अतिरिक्त उनका अन्य कोई लक्ष्य नहीं होता। एक जीविका का साधन जुटा लेना, एक परिवार बसा लेना और बच्चों का पालन-पोषण करते हुए शादी-ब्याह आदि कर देना मात्र ही साधारणतया लोगों ने जीवन-लक्ष्य मान लिया है।

🔸 वस्तुतः यह जीवन-यापन की साधारण प्रक्रिया मात्र है, जीवन-लक्ष्य नहीं। जीवन-लक्ष्य उस सुनिश्चित विचार को ही कहा जायेगा, जो संसार के साधारण कार्यक्रम से, कुछ अलग, कुछ ऊंचा हो और जिसे पूरा करने में कुछ अतिरिक्त पुरुषार्थ करना पड़े।

🔹 जीवन में कोई सुनिश्चित लक्ष्य, कुछ विशेष ध्येय धारण करके चलने वालों को असाधारण व्यक्तियों की कोटि में रक्खा जाता है। उनकी विशेषता तथा महानता केवल यही होती है कि परम्परा के साधारण जीवन के अभ्यस्त व्यक्तियों में से उनने कुछ आगे बढ़कर, कुछ असामान्यता ग्रहण की है। लोग उनको महान् इसलिए मान लेते हैं कि जहां सामान्य लोग समझी-बुझी तथा एक ही लीक पर चलती चली जा रही जीवन-गाड़ी में न जाने कितनी दुःख तकलीफें अनुभव करते हैं, तब उस व्यक्ति ने एक अन्य, अनजान एवं असामान्य मार्ग चुना है। इसका साहस एवं कष्ट-सहिष्णुता कुछ अधिक बढ़ी-चढ़ी है।



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🔸 जीवन-यापन की साधारण प्रक्रिया को भी यदि एक असामान्य दृष्टिकोण से लेकर चला जाय तो वह भी एक प्रकार का जीवन-लक्ष्य बन जाता है। इस साधारण प्रक्रिया का असाधारणत्व केवल यही हो सकता है कि जीवन इस प्रकार से बिताया जाये, जिसमें मनुष्य पतन के गर्त में न गिरकर एक आदर्श-जीवन बिताता हुआ उसकी परिसमाप्ति तक पहुंच जाये। जिसने जीवन की आहों, आंसुओं तथा विषादों से मुक्त करके हास, उल्लास, हर्ष, प्रमोद तथा उत्साह के साथ बिता लिया है, उसने भी मानो सफल जीवन-यापन का एक लक्ष्य ही प्राप्त कर लिया है। जिसने सन्तोषपूर्वक हंसते हुए जीवन-परिधि के बाहर पैर रक्खा है, उसका जीवन सफल ही माना जायेगा। इसके विपरीत जिसने जीवन-परिधि को रोते, बिलखते, तड़फते तथा तरसते हुए पार किया, मानो उसका जीवन घोर असफल ही हुआ।

जीवन की सफलता का प्रमाण जहां किसी के कार्य और कर्तृत्व से दिया करते हैं, वहां उसकी अन्तिम श्वास में सन्निहित शान्ति एवं सन्तोष की मात्रा भी उसका एक सुन्दर प्रमाण है।

.... क्रमशः जारी
📖 पुस्तक:- जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति, पृष्ठ ५
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 मनुष्य-जीवन का अमूल्य यात्रा-पथ, भाग २

👉 जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति

🔹 मनुष्य इन बुराइयों से बचता रहे इसके लिये उसे हर घड़ी अपना लक्ष्य अपना उद्देश्य सामने रखना चाहिए। यात्रा में गड़बड़ी तब फैलती है जब अपना मूल-लक्ष्य भुला दिया जाता है। मनुष्य जीवन में जो अधिकार एवं विशेषताएं प्राप्त हैं वह किसी विशेष प्रयोजन के लिये हैं। इतनी सहूलियत अन्य प्राणियों को नहीं मिली। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसको सुन्दर शरीर, विचार, विवेक, भाषा आदि के बहुमूल्य उपहार मिले हैं, इनकी सार्थकता तब है जब मनुष्य इनका सही उपयोग कर ले। मनुष्य देह जैसे अलभ्य अवसर प्राप्त करके भी यदि वह अपने पारमार्थिक लक्ष्य को पूरा नहीं करता तो उसे अन्य प्राणियों की ही कोटि का समझा जाना चाहिए। जन्म-जन्मान्तरों की थकान मिटाने के लिये यह बहुमूल्य अवसर है जब मनुष्य अपने प्राप्त ज्ञान और साधनों का उपभोग कर ईश्वर-प्राप्ति की चरम शान्ति-दायिनी स्थिति को प्राप्त कर सकता है। जिन्हें साधन-निष्ठा की इतनी शक्ति नहीं मिल या जो कठिन तपश्चर्याओं के मार्ग पर नहीं जाना चाहते वे इस जीवन में उत्तम संस्कार, सद्भावनायें और श्रद्धा भक्ति तो पैदाकर ही सकते हैं ताकि अगले जीवन में परिस्थितियों की अनुकूलता और भी बढ़ जाय और धीरे-धीरे अपने जीवन लक्ष्य की ओर बढ़ने का कार्यक्रम चालू रख सके।

🔸 पर इस अभागे इन्सान को क्या कहें जो आत्म-स्वरूप को भूलकर उसे वासना ‘शरीर’ को ही सजाने में आनन्द ले रहा है। मनुष्य यह देखते हुये भी कि शरीर नाशवान है और अन्य जीवधारियों के समान इसे भी किसी न किसी दिन धूल में मिल जाना है फिर भी वह शारीरिक सुखों की मृगतृष्णा में इस तरह पागल हो रहा है कि उसको आप अपने सही स्वरूप तक का ज्ञान नहीं है। शारीरिक सुखों के सम्पादन में ही वह जीवन का अधिकांश भाग नष्ट कर देता है। जब तक शक्ति और यौवन रहता है तब तक उसकी यह समझदारी की आंख खुलती तक नहीं, बाद में जब संस्कार की जड़ें गहरी जम जाती हैं और शरीर में शिथिलता आ जाती है तब फिर समझ आने से भी क्या बनता है। चतुरता तो तब है जब अवसर रहते मनुष्य सद्गुणों का संचय करके इस योग्य बन जाय कि यह यात्रा सन्तोषपूर्वक पूरी करके लौटने में कोई बाधा शेष न रहे।

🔹 हमारा सहज धर्म यह है कि हम इस जीवन में प्रकाश की अर्चना करें और उसी की ओर अग्रसर हों। इसमें कुछ देर लगे पर जब भी उसे एक नया जीवन मिले हम प्रकाश की ओर ही गतिमान बने रहें। मनुष्य का दृढ़ निश्चय उसके साथ बना रहना चाहिए। हमारा विवेक कुतुबनुमा की सुई की भांति ठीक जीवन-लक्ष्य की ओर लगा रहना चाहिए ताकि हम अपनी इस यात्रा में भूले भटके नहीं।


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🔸 इस जीवन में काम, क्रोध, लोभ तथा मोह आदि के मल विक्षेप आत्म-पवित्रता को मलिन करते रहते हैं। इस पवित्रा को ब्रह्मचर्य, श्रद्धा, श्रम और प्रेम के दिव्य गुणों द्वारा दूर करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए। मार्ग, इसमें सन्देह नहीं, कठिनाइयों और जटिलताओं से ग्रस्त हैं। पर यदि सच्चाई, श्रद्धा, भक्ति एवं आत्म समर्पण के द्वारा ईश्वर के सतोगुणी प्रकाश की ओर बढ़ते रहें तो यह कठिनाइयां मनुष्य को कुछ बिगाड़ नहीं सकती।

.... क्रमशः जारी
📖 पुस्तक:- जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति, पृष्ठ ५
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 मन जीता तो जग जीता

🔸 जैसे शत्रु से युद्ध करते समय इस बात का ध्यान रखना होता है कि न जाने कब आक्रमण हो जाय, कब किस ओर से किस रूप में शत्रु प्रकट हो जाए, उसी प्रकार मन रूपी शत्रु के प्रत्येक कार्य पर तीव्र दृष्टि रखना उचित है। जहाँ मन तुम्हें अपने वश में करके उल्टा सीधा कराना चाहें वहीं उसके व्यापार में हस्तक्षेप करना चाहिये।

🔹 मन बड़ा बलवान शत्रु है, इससे युद्ध करना भी अत्यन्त दुष्कर कृत्य है। इससे युद्ध काल में एक विचित्रता है। यदि युद्ध करने वाला दृढ़ता से युद्ध में संलग्न रहे, निज इच्छा शक्ति को मन के व्यापारों पर लगाये रहे तो युद्ध में संलग्न सैनिक की शक्ति अधिकाधिक बढ़ती है और एक दिन वह इस पर पूर्ण विजय प्राप्त कर लेता है। यदि तनिक भी इसकी चंचलता में बहक गए तो यह तोड़-फोड़ कर सब कुछ नष्ट-भ्रष्ट कर डालता है।

🔸 मन को दृढ़ निश्चय पर स्थिर रखने से मुमुक्षु की इच्छाशक्ति प्रबल होती है। मन का स्वभाव मनुष्य के अनुकूल बन जाने का है। उसे कार्य दीजिए। वह चुपचाप नहीं बैठना चाहता। यदि तुम उसे फूल-फूल पर विचरण करने वाली तितली बना दोगे तो यह तुम्हें न जाने कहाँ-कहाँ की खाक छनवायेगा। यदि तुम इसे उद्दण्ड रखोगे तो यह रात-दिन भटकता ही रहेगा पर यदि तुम इसे चिंतन योग्य पदार्थों में स्थिर रखने का प्रयत्न करोगे तो यह तुम्हारा सबसे बड़ा मित्र बन जायेगा।


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🔹 जब-जब तुम्हारे अन्तःकरण में वासना की प्रबल जंग उत्पन्न हो निश्चयात्मिक बुद्धि को जाग्रत करो। मन से थोड़ी देर के निमित्त पृथक होकर इसके व्यापारों पर तीव्र दृष्टि रक्खो। बस, विचार शृंखला टूट जायेगी और तुम इसके साथ चलायमान न होगे। मन के व्यापार के साथ निज आत्मा की समस्वरता न होने दो। इसी अभ्यास द्वारा यह आज्ञा देने वाला न रहकर सीधा साधा आज्ञाकारी अनुचर बन जायेगा-

मन लोभी, मन लालची, मन चंचल मन चौर।
मन के मत चलिए नहीं, पलक पलक मन और।

📖 अखण्ड ज्योति, मार्च 1945

👉 मनुष्य-जीवन का अमूल्य यात्रा-पथ, भाग १

🔹 मनुष्यता परमात्मा की अलौकिक कलाकृति है। वह विश्वम्भर परमात्मा देव की महान् रचना है। जीवात्मा अपनी यात्रा का अधिकांश भाग मनुष्य शरीर में ही पूरा करता है। अन्य योनियों से इसमें उसे सुविधायें भी अधिक मिली हुई होती हैं। यह जीवन अत्यन्त सुविधाजनक है। सारी सुविधायें और अनन्त शक्तियां यहां आकर केन्द्रित हो गई हैं ताकि मनुष्य को यह शिकायत न रहे कि परमात्मा ने उसे किसी प्रकार की सुविधा और सावधानी से वंचित रक्खा है। ऐसी अमूल्य मानव देह पाकर भी जो अन्धकार में ही डूबता उतरता रहे उसे भाग्यहीन न कहें तो और क्या कहा जा सकता है। आत्मज्ञान से विमुख होकर इस मनुष्य जीवन में भी जड़-योनियों की तरह काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि की कैद में पड़े रहना, सचमुच बड़े दुर्भाग्य की बात है। किन्तु इतना होने पर भी मनुष्य को दोष देने का जी नहीं करता। बुराई में नहीं, वह तो अपने स्वाभाविक रूप में सत्, चित् एवं आनन्दमय ही है। शिशु के रूप में वह बिलकुल अपनी इसी मूल-प्रकृति को लेकर जन्म लेता है किन्तु माता-पिता की असावधानी, हानिकारक शिक्षा, बुरी संगति, विषैले वातावरण तथा दुर्दशाग्रस्त समाज की लपेट में आकर वह अपने उद्देश्यों से भटक जाता है और तुच्छ प्राणी का सा अविवेकपूर्ण जीवन व्यतीत करने लग जाता है।

🔸 इसलिए निन्दा मनुष्य की नहीं दोषों की, दुर्गुणों की, की जानी चाहिए जो मनुष्य को प्रकाश से अन्धकार में ढकेल देते हैं। मनुष्य का जीवन तो सामाजिक जीवन के ढांचे में ढाले गये किसी उपकरण की तरह है जिसके अच्छे बुरे होने का श्रेय सामाजिक शिक्षा एवं तात्कालिक परिस्थितियों को ही देना उचित प्रतीत होता है। यदि मनुष्य को सदाचार युक्त एवं आदर्शों से प्रेरित देखना चाहते हों तो द्वेष, दुर्गुणों को मिटाकर सुन्दर प्रकाशयुक्त वातावरण पैदा करने का प्रयास करना चाहिये। अपनी महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए किसी वर्ग, व्यक्ति या समाज पर आत्म-हीनता का भार लादना उचित नहीं है। इससे मानवता कलंकित होती है। हम वह करें जिससे यह अज्ञान का पर्दा नष्ट हो और दिव्य-ज्ञान का प्रकाश चारों तरफ झिलमिलाने लगे।

🔹 सुविधाजनक यात्रा का सामान्य नियम यह है कि समय-समय पर यात्री अपना स्थान दूसरों के लिये छोड़ते जायें। उतरते-चढ़ते रहने की प्रतिक्रिया से ही कोई यात्रा विधिपूर्वक सम्पन्न हो सकती है। ऐसी ही व्यवस्था मनुष्य जीवन में भी होनी चाहिये। परमात्मा ने अपना यह नियम बना दिया है कि मनुष्य एक निश्चित समय तक ही इस वाहन का उपयोग करे और आगे के लिये उस स्थान को किसी दूसरे के लिये सुरक्षित छोड़ जाय। यह एक प्रकार की उसकी जिम्मेदारी है कि आगन्तुकों का भावी नागरिकों का निर्माण चतुराई और बुद्धिमत्ता के साथ करे। केवल अपने ही स्वार्थ का ध्यान न रखकर आने वाले यात्री के लिये इस प्रकार का वातावरण छोड़ जाय ताकि वह भी अपनी यात्रा सुविधा और समझदारी के साथ पूरी कर सके।

जीवन का उद्देश्य क्या है | Jeevan Ka Uddeshya Kya Hai | Dr Chinmay Pandya https://youtu.be/ESS7tLe3stM?si=l_avzJ45GjxZswiy

आदरणीय डॉ चिन्मय पंड्या जी प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए शांतिकुंज हरिद्वार के Youtube Channel Shantikunj Rishi Chintan को आज ही Subscribe करें। 




🔸 कर्तव्य की इतिश्री इतने से ही नहीं हो जाती। अपने साथ अनेकों दूसरे यात्री भी सफर तय कर रहे होते हैं। मानवता के नाते उन्हें भी आपकी तरह सुविधापूर्वक यात्रा करने का अधिकार मिला हुआ होता है। यदि आपको कुछ अधिक शक्ति और सामर्थ्य मिली है तो इसका यह मतलब नहीं कि आप औरों को बलपूर्वक सतायें उन्हें परेशान करें। खुद तो मौज मजा उड़ाते रहे और दूसरों को बैठने की सुविधा न दें। हमारे ऋषियों ने एक व्यवस्था स्थापित की थी कि प्रत्येक नागरिक उतनी ही वस्तु ग्रहण करे जितने से उसकी आवश्यकतायें पूरी हो जायें शेष भाग समाज के अन्य पीड़ित प्राणियों अभाव ग्रस्त लोगों को बांट दी जाये ताकि समाज में किसी तरह की गड़बड़ी न फैले। विषमता चाहे वह धन की हो चाहे जमीन-जायदाद की हो, हर अभाव ग्रस्त के मन में विद्रोह ही पैदा करेगी और उससे सामाजिक बुराइयां ही फैलेंगी। इसलिए न्यायनीति का परित्याग कभी नहीं होना चाहिए। सबके हित में ही अपना भी हित समझकर मनुष्य को मनुष्यता से विमुख नहीं होना चाहिये। इसी में शान्ति है सुख और सुव्यवस्था है।

.... क्रमशः जारी
📖 पुस्तक:- जीवन लक्ष्य और उसकी प्राप्ति, पृष्ठ ३
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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