मंगलवार, 30 जनवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 30 Jan 2024

🔹 उन्नति के मार्ग किसी के लिए प्रतिबन्धित नहीं हैं। वे सबके लिए समान रूप से खुले हैं। परमात्मा के विधान में अन्याय अथवा पक्षपात की कोई गुंजाइश नहीं है। जो व्यक्ति अपने अंदर जितने अधिक गुण, जितनी अधिक क्षमता और जितनी अधिक योग्यता विकसित कर लेगा, उसी अनुपात में उतनी ही अधिक विभूतियों का अधिकारी बन जायेगा।

🔸असंख्यों बार यह परीक्षण हो चुके हैं कि दुष्टता किसी के लिए भी लाभदायक सिद्ध नहीं हुई। जिसने भी उसे अपनाया वह घाटे में रहा और वातावरण दूषित बना। अब यह परीक्षण आगे भी चलते रहने से कोई लाभ नहीं। हम अपना जीवन इसी पिसे को पीसने में-परखे को परखने में न गँवायें तो ही ठीक है। अनीति को अपनाकर सुख की आकाँक्षा पूर्ण करना किसी के लिए भी संभव नहीं हो सकता तो हमारे लिए ही अनहोनी बात संभव कैसे होगी?

🔹 इस संसार में अच्छाइयों की कमी नहीं। श्रेष्ठ और सज्जन व्यक्ति भी सर्वत्र भरे पड़े हैं, फिर हर व्यक्ति में कुछ अच्छाई तो होती ही है। यदि छिद्रान्वेषण छोड़कर हम गुण अन्वेषण करने का अपना स्वभाव बना लें, तो घृणा और द्वेष के स्थान पर हमें प्रसन्नता प्राप्त करने लायक भी बहुत कुछ इस संसार में मिल जायेगा।

🔸जो अपना सर्वस्व पूर्ण रूप से परमात्मा को सौंपकर उसके उद्देश्य में नियोजित हो जाता है-पूरी तरह से उसका बन जाता है, परमात्मा उसके जीवन का सारा दायित्व खुशी-खुशी अपने ऊपर ले लेता है और कभी भी विश्वासघात नहीं करता।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य 

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सोमवार, 29 जनवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 29 Jan 2024

🔸 साधना का तात्पर्य है, अपने आप के कुसंस्कारों, दोष- दुर्गुणें का परिशोधन, परिमार्जन और उसके स्थान पर सज्जनता, सदाशयता का संस्थापन। आमतौर से अपने दोष- दुर्गुण सूझ नहीं पड़ते। यह कार्य विवेक बुद्धि को अन्तर्मुखी होकर करना पड़ता है। आत्मनिरीक्षण, आत्म सुधार, आत्म निर्माण, आत्म विकास इन चार विषयों को कठोर समीक्षण- परीक्षण की दृष्टि से अपने आप को हर कसौटी पर परखना चाहिए। जो दोष दीख पड़े, उनके निराकरण के लिए प्रयत्न करना चाहिए।  

🔹 मस्तिष्क एक प्रत्यक्ष कल्प वृक्ष है, जीवन की सक्रियता एवं स्फूर्ति मस्तिष्क की क्रियाशीलता पर निर्भर है। व्यक्तित्व का सारा कलेवर यहीं विनिर्मित होता है। यही  वह पावर हाउस है, जहाँ से शरीरिक इन्द्रियाँ शक्ति प्राप्त करती हैं।। स्थूल गतिविधियाँ ही नहीं, विचारों व भावनाओं का नियंत्रण -नियमन भी यहीं से होता है।

🔸 हम शरीर और मन रूपी उपकरणों का प्रयोग जानें और उन्हीं प्रयोजनों में तत्पर रहें, जिनके लिये प्राणिजगत् का यह सर्वश्रेष्ठ शरीर, सुरदुर्लभ मानव जीवन उपलब्ध हुआ है। आत्मा वस्तुतः परमात्मा का पवित्र अंश है, वह श्रेष्ठतम उत्कृष्टताओं से परिपूर्ण है। वह सृष्टि को और सुन्दर सुसज्जित बना सके, उसका चिन्तन औरकर्त्तृत्व इसी दिशा में नियोजित रहना चाहिए। यही है आत्म बोध और आत्मिक जीवनक्रम।  
 
🔹 जिस प्रकार भौतिक ऊर्जा अदृश्य होते हुए भी पंखे को गति, बल्ब में प्रकाश, हीटर में ताप जैसे विविध रूपों में हलचल करती दिखाई पड़ती है, उसी प्रकार वह परमसत्ता पवित्र हृदय से पुकारने पर भावनाओं के अनुरूप कभी स्नेहमयी माँ तो कभी पिता, कभी रक्षक के रूप में प्रकट होकर अपनी सत्ता का आभास कराती एवं अनुदान बरसाती रहती है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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रविवार, 28 जनवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 28 Jan 2024

🔹हम प्रथकतावादी न बनें। व्यक्तिगत बड़प्पन के फेर में न पड़ें। अपनी अलग से प्रतिभा चमकाने का झंझट मोल न लें। समूह के अंग बनकर रहें। सबकी उन्नति में अपनी उन्नति देखें और सबके सुख में अपना सुख खोजें। यह मानकर चलें कि उपलब्ध प्रतिभा, सम्पदा एवं गरिमा समाज का अनुदान है और उसका श्रेष्ठतम उपयोग समाज को सज्जनतापूर्वक लौटा देने में ही है।

🔸क्षमा न करना और प्रतिशोध लेने की इच्छा रखना दुःख और कष्टों के आधार हैं। जो व्यक्ति इन बुराइयों से बचने की अपेक्षा उन्हें अपने हृदय में पालते-बढ़ाते रहते हैं वे जीवन के सुख और आनंद से वंचित रह जाते हैं। वे आध्यात्मिक प्रकाश का लाभ नहीं ले पाते। जिसके हृदय में क्षमा नहीं, उसका हृदय कठोर हो जाता है। उसे दूसरों के प्रेम, मेलजोल, प्रतिष्ठा एवं आत्म-संतोष से वंचित रहना पड़ता है।

🔹दुष्कर्म करना हो तो उसे करने से पहले कितनी ही बार विचारों और उसे आज की अपेक्षा कल-परसों पर छोड़ो, किन्तु यदि कुछ शुभ करना हो तो पहली ही भावना तरंग को क्रियान्वित होने दो। कल वाले काम को आज ही निपटाने का प्रयत्न करो। पाप तो रोज ही अपना जाल लेकर हमारी घात में फिरता रहता है, पर पुण्य का तो कभी-कभी उदय होता है, उसे निराश लौटा दिया तो न जाने फिर कब आवे।

🔸दोष दिखाने वाले को अपना शुभ चिंतक मानकर उसका आभार मानने की अपेक्षा मनुष्य जब उलटे उस पर कु्रद्ध होता है, शत्रुता मानता और अपना अपमान अनुभव करता है, तो यह कहना चाहिए कि उसने सच्ची प्रगति की ओर चलने का अभी एक पैर उठाना भी नहीं सीखा।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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शनिवार, 27 जनवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 27 Jan 2024

★ भाग्यवाद एवं ईश्वर की इच्छा से सब कुछ होता है- जैसी मान्यताएँ विपत्ति में असंतुलित न होने एवं संपत्ति में अहंकारी न होने के लिए एक मानसिक उपचार मात्र हैं। हर समय इन मान्यताओं का उपयोग अध्यात्म की आड़ में करने से तो व्यक्ति कायर, अकर्मण्य एवं निरुत्साही हो जाता है।
 
□  प्रतिभा किसी पर आसमान से नहीं बरसती, वह अंदर से ही जागती है। उसे जगाने के लिए केवल मनुष्य होना पर्याप्त है। वह अन्य कोई प्रतिबन्ध नहीं मानती।  वह तमाम सवर्णों को छोड़कर रैदास और कबीर का वरण करती है, बलवानों, सुंदरों को छोड़कर गाँधी जैसे कमजोर शरीर और चाणक्य जैसे कुरूप को  प्राप्त होती है। उसके अनुशासन में जो आ जाता है, वह बिना भेदभाव के उसका वरण कर लेती है।
 
◆ अपव्ययी अपनी ही बुरी आदतों से अपनी संपत्ति गँवा बैठता है और फिर दर-दर का भिखारी बना ठोकरें खाता फिरता है। व्यसनी अपना सारा समय निरर्थक के शौक पूरे करने में बर्बाद करता रहता है। जिस बहुमूल्य समय में वह कुछ कहने लायक काम कर सकता था, वह तो व्यसन पूरे करने में ही चला जाता है।

◇ गुण्डागर्दी और बदमाशी इसलिए सफल होती रही हैं क्योंकि उनके प्रतिरोध में कोई तन कर नहीं खड़ा होता, अन्यथा संसार में दुष्टता की तुलना में सज्जनता का अनुपात कहीं अधिक है, पर सज्जनों की कायरता अपने ऊपर मुसीबत आने पर ही कुछ करने की बात सोचती है। यह ऐसी दुष्प्रवृत्ति है, जिससे सज्जनता पर भी कायरता का कलंक लगता है।

□  ईश्वर विश्वास का अर्थ है- एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करना, जो सर्वव्यापी है और कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है। यदि यह विश्वास कोई सच्चे मन से कर ले तो उसकी विवेक बुद्धि कुकर्म करने की दिशा में एक कदम भी न बढ़ने देगी।

✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 26 Jan 2024

◆ शरीर, मन और बुद्धि तीनों में ही काम शक्ति क्रियाशील है। शौर्य, साहस पराक्रम, जीवट, उत्साह और उमंग उसकी ही विभिन्न भौतिक विशेषताएँ हैं। उत्कृष्ट विचारणाएँ उदात्त भाव सम्वेदनाएँ काम की आध्यात्मिक विशेषताएँ हैं। संयम और ऊर्ध्वगमन की साधना द्वार, काम, का रूपान्तरण होता है। रूपान्तरण का अर्थ है- सम्पूर्ण व्यक्तित्व में उल्लास का समावेश हो जाना।    

★ मानसिक क्षमता, चारित्रिक दृढ़ता ,संवेदनाएँ, उत्कृष्ट चिन्तन एवं आदर्श कार्यों को करने का जीवट आदि विषय स्थूल मस्तिष्क के नहीं हैं। चेतना की परिधि में आने  वाली इन विशिष्टताओं का विशद अध्ययन परामनोवैज्ञानिक कर रहे है इन सबके निष्कर्ष यही हैं कि प्रसुप्त शक्तियों का जागरण एवं मानसिक क्षमताओं का पूर्ण उपयोग ही जीवन की समस्त सफलताओं का मूल है। यही जीवन है।

□  प्राकृतिक जीवन जीते हुए सादा, स्वच्छ और सरल जीवन क्रम अपनाते हुए आसानी से शतायु हुआ जा सकता है तथा स्वस्थ और प्रसन्न रहा जा सकता है।    
 
■  पाप और अधर्म की दुष्प्रवृत्तियों से जो समय रहते सावधान हो गया, वही सच्चा साधक, सच्चा अध्यात्मवादी कहा जा सकता है। मोह- माया के क्षुद्र जीवन से ऊपर उठने के लिए सदाचार आवश्यक है, जो केवल अपरिपक्व, अस्थिर, क्षुद्र और छोटी- छोटी बातों में ही जीवन गवाँते रहते हैं, उन्हें अज्ञानी ही माना जायेगा।  

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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गुरुवार, 25 जनवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 25 Jan 2024

■ राष्ट्रपिता का मन्तव्य हर स्त्री- पुरुष जिन्दा रहने के लिए शरीर श्रम करें। मनुष्य को अपनी बुद्धि की शक्ति का उपयोग आजीविका या उससे भी ज्यादा प्राप्त करने के लिए ही नहीं, बल्कि सेवा के लिए, परोपकार के लिए करना चाहिए। इस नियम का पालन सारी दुनिया करने लगे, तो सहज ही सब लोग बराबर हो जायें, कोई भूखों न मरे  और जगत् बहुत से पापों से बच जाय, इस नियम का पालन करने वाले पर इसका चमत्कारी असर होता है, क्योंकि उसे परम शान्ति मिलती है, उसकी सेवा शक्ति बढ़ती है  और उसकी तन्दुरुस्ती बढ़ती है। गीता का अध्ययन करने पर मैं इसी नियम को गीता के तीसरे अध्याय में यज्ञ के रूप में देखता हूँ। यज्ञ से बचा हुआ वही है, जो मेहनत करने के बाद मिलता है। अजीविका के लिए पर्याप्त श्रम को गीता ने यज्ञ कहा है।

□ मानवी चिन्तन, चरित्र और लोक परम्पराओं में घुसी हुई भ्रान्तियों एवं अवांछनीयताओं को विज्ञान और अध्यात्म का, सम्पदा और उत्कृष्टता का शक्ति और शालीनता का, बुद्धि और नीति निष्ठा का, समन्वय अपने युग का सबसे बड़ा चमत्कार समझा जायेगा। विज्ञान क्षेत्र पर छाई हुई मनीषा को यह युगधर्म निभाना ही चाहिए।

◆ अच्छे- बुरे वातावरण से अच्छी -बुरी परिस्थितियाँ जन्म लेती हैं और वातावरण का निर्माण पूरी तरह मनुष्य के हाथ में है, वह चाहे उसे स्वच्छ, स्वस्थ और सुन्दर बनाकर स्वर्गीय परिस्थितियों का आनन्द ले अथवा उसे विषाक्त बनाकर स्वयं अपना दम तोड़े।

◇ सादगी एक ऐसा नियम है जिसके सहारे हम अपने वैयक्तिक तथा सामाजिक जीवन की बहुत- सी समस्याओं सहज ही हल कर सकते हैं। सादगी जहाँ व्यक्तिगत जीवन में लाभकारी होती है, वहाँ सामाजिक जीवन में भी संघर्ष, रहन- सहन की असमानता कृत्रिम अभाव, महँगाई आदि को दूर करके वास्तविक समाजवाद की रचना करती है। इसलिए जीवन को सादा बनाइए, इससे आपका और समाज का बहुत बड़ा हित साधन होगा।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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बुधवार, 24 जनवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 24 Jan 2024

■ मानसिक शुद्धि, पवित्रता एवं एकाग्रता पर आधारित है, जिसका मन जितना पवित्र और शुद्ध होगा, उसके सकंल्प उतने ही बलवान् एवं प्रभावशाली होंगे। सन्त- महात्माओं के शाप, वरदान की चमत्कारी घटनाएँ उनकी मन की पवित्रता एवं एकाग्रता के ही परिणाम हैं। इस तथ्य से सारे विश्व के सभी धर्म शास्त्रों ने मन को पवित्र बनाने पर जोर दिया है।

□ हम सुख- भोगों पर दुखों का सहर्ष स्वागत करने के लिये तैयार रहें, सुविधायें प्राप्त करें ,पर कठिनाइयों से जूझने की हिम्मत भी रखें ।। समाज और साहचर्य में रहकर जीवन को शुद्ध और एकान्त में आत्म- चिंतन, आत्म- निरीक्षण की साधना भी चलती रहे, तो हम स्वस्थ और स्वाभाविक जीवन जीते हुये भी अपना जन्मउद्घेश्य पूरा कर सकते हैं, शाश्वत शान्ति प्राप्त कर सकते हैं।

◆ थोड़ी सी व्याकुल आराधना, जिसमें जीवात्मा अपनी स्थिति को भूल कर अपने आपको उनमें मिला दे, बस उसी प्रेम के भूखे हैं- भगवान्। स्वामी का सेवक से, राजा का प्रजा से, पिता का पुत्र से जो सम्बन्ध होता है, परमात्मा और मनुष्य का प्रेम भी वैसे ही आधार भूत और छल रहित होता है। जब मनुष्य अपने आपको उस परम पिता को ही अनन्य भाव से सौंप देता है, तो उसकी सारी कठिनाइयाँ दूर हो जाती हैं।

◇ समाज में जैसा भी आदर्श होगा, उसके अनुरूप ही प्रवृत्तियाँ पनपेंगी एवं गतिविधियाँ चल पड़ेगी। श्रेष्ठ आदर्शाों एवं सिद्धान्तों आभाव मेंं गतिविधियों में उत्कृष्टता का समावेश नहीं रहा। जिसके कारणों की गहराई में जाने पर एक ही तथ्य का पता लगता है, वह है बुद्धि द्वारा मानवी सम्वेदना की उपेक्षा किया जाना।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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मंगलवार, 23 जनवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 23 Jan 2024

■ कठिनाइयों से, प्रतिकूलताओं से घिरे होने पर भी जीवन का वास्तविक प्रयोजन समझने वाले व्यक्ति कभी निराश नहीं होते, वे हर प्रकार की परिस्थितियों में अपने लक्ष्य से ही प्रेरणा प्राप्त करते तथा श्रेष्ठता के पथ पर क्रमशः आगे बढ़ते जाते हैं।

□ श्रम की उपयोगिता निःसन्देह बहुत अधिक है। शारीरिक अङ्गो के परिचालन रक्त संचार में क्रिया- शीलता तथा पाचन संयत्रों को मजबूत बनाये रखने के लिये परिश्रम का बड़ा महत्त्व है। इसमें आलस्य करने से स्वास्थ्य गिरता है, शक्ति क्षीण होती है और स्फूर्ति चली जाती है। आलस्य और प्रमाद से शारीरिक शक्तियाँ शिथिल पड़ जाती हैं, मनोबन गिरता है और समाज का गौरव नष्ट हो जाता है। परिश्रम जीवन का प्रकाश है। जिससे मनुष्य सरलता पूर्वक अपनी विकास- यात्रा पूरी कर लेता है।

◆ धर्म मनोवैज्ञानिक दृष्टि से शरीर एवं मन को स्वस्थ बनाने का सशक्त माध्यम है। संयम नीति- मर्यादाओं के पालन एवं उच्चस्तरीय आदर्शों को अपनाने से मन स्वस्थ एवं प्रसन्न रहता है। फलस्वरूप उसका प्रभाव आरोग्य के रूप में दिखाई पड़ता है।

◇ मनुष्य अपनी उत्कृष्टता, योग्यता बढ़ाने के लिये प्रयत्नशील रहे। पराक्रम में कमी न आने दे। साथ ही यह भी ध्यान रखे कि सामाजिक परिस्थितियों तथा अदृश्य की  गतिविधियाँ भी उसे प्रभावित करती हैं। सच तो यह है कि अदृश्य की हलचलें, कर्म- दीपक की तरह ही पृथ्वी के वातावरण तथा प्राणियों की स्थिति पर छाई रहती है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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सोमवार, 22 जनवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 22 Jan 2024

★ सब लोग सुखी तो होना चाहते हैं, परंतु उसके लिए परिश्रम नहीं करना चाहते। यह तो न्याय की बात है, कि बिना कर्म किए फल मिलता नहीं। यदि आप उत्तम फल चाहते हैं तो पुरुषार्थ तो अवश्य ही करना होगा। यदि भोजन खाना है, तो रसोई में तो जाना ही होगा, वहां भोजन बनाने का परिश्रम तो करना ही होगा। तभी अच्छा भोजन प्राप्त हो सकेगा।  इसी तरह से जो लोग मन की शांति और सुख पूर्वक जीवन जीना चाहते हैं, तो उन्हें इसके लिए दो कार्य करने होंगे।

पहला -  प्रतिदिन सुबह शाम नियमित रूप से ईश्वर की उपासना करना। चाहे 15/ 20 मिनट ही करें, परंतु नियमित रूप से करें। इससे आपकी आत्मा की बैटरी चार्ज हो जाएगी। उसमें ईश्वरीय गुण न्याय दया सेवा परोपकार सच्चाई ईमानदारी आदि प्रविष्ट हो जाएंगे। फिर इन गुणों की सहायता से आप दिनभर दूसरे लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे।

दूसरा कार्य है कि दूसरों के साथ इमानदारी और सच्चाई से व्यवहार करें। ऐसा करने से ईश्वर आपको अंदर से बहुत सुख शांति आनंद देगा। आपका व्यावहारिक जीवन भी सुखमय होगा।
 
□  और यदि आप ऐसा नहीं करते हैं , तो आपकी आत्मा की बैटरी चार्ज नहीं होगी। उसमें काम क्रोध लोभ ईर्ष्या द्वेष अभिमान आदि दोष भरे पड़े रहेंगे, जिनके कारण आप लोगों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर पाएंगे। इसका परिणाम यह होगा, कि मन में भी अशांति होगी और आपका व्यवहार भी बिगड़ जाएगा। आगे चलकर खिन्नता क्रोध पागलपन आदि मानसिक रोग लगेंगे। और शरीर में एसिडिटी हृदय रोग रक्तचाप मधुमेह आदि अनेक रोग भी उत्पन्न हो सकते हैं। यदि ऐसा ही जीवन रहा, तो अगला जन्म भी अच्छा नहीं मिलेगा। पशु पक्षी आदि योनियों में इन सब पाप कर्मों का दंड भोगना पड़ेगा।  इसलिए ऊपर बताए दो कार्य प्रतिदिन करें। अपने जीवन को अच्छा बनाएं और सुखी रहें। 


✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य


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रविवार, 21 जनवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 21 Jan 2024

■  शरीर से सत्कर्म करते हुए, मन में सद्भावनाओं की धारण करते हुए जो कुछ भी काम मनुष्य करता है वे सब आत्मसन्तोष उत्पन्न करते हैं। सफलता की प्रसन्नता क्षणिक है, पर सन्मार्ग पर कर्तव्य पालन का जो आत्म-सन्तोष है उसकी सुखानुभूति शाश्वत एवं चिरस्थायी होती है। गरीबी और असफलता के बीच भी सन्मार्ग व्यक्ति गर्व और गौरव अनुभव करता है।

◇ यदि आत्म-निरीक्षण करने में, अपने दोष ढूँढने में उत्साह न हो, जो कुछ हम करते या सोचते हैं सो सब ठीक है, ऐसा दुराग्रह हो तो फिर न तो अपनी गलतियाँ सूझ पडेगी और न उन्हें छोडनें को उत्साह होगा। वरन् साधारण व्यक्तियों की तरह अपनी बुरी आदतों का भी समर्थन करने के लिए दिमाग कुछ तर्क और कारण ढूँढता रहेगा जिससे दोषी होते हुए भी अपनी निर्दोषिता प्रमाणित की जा सके।  

★ प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में उन्नति के अनेक अवसर आते हैं, पर भाग्यवादी अपनी ओर से कुछ भी प्रयत्न नहीं करता। भाग्य के विपरीत होने का ही झूठ बहाना किया करता है। अपने को कमजोर मानने की वजह से वह दैनिक कार्य भी आधे मन से करता है। अवसर आते है और उसके पास से होकर चुपचाप निकल जाते हैं, पर वह उनका सदुपयोग नहीं कर पाता।

◇ चरित्र को उज्ज्वल रखने के लिए आवश्यक चिन्तन को ही तत्त्व-दर्शन कहते हैं। ईश्वर,कर्मफल, परलोक आदि का ढाँचा मनीषियों ने इसी प्रयोजन के लिए खडा किया है कि व्यक्ति का स्वभाव और व्यवहार शालीनता से सुसम्पन्न बना रहे। व्यक्ति की गरिमा इसी एक तथ्य पर निर्भर है कि वह कुत्साओं और कुण्ठाओं पर काबू पाने वाला आन्तरिक महाभारत अर्जुन की तरह निरन्तर लड़ता रहे।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य


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शनिवार, 20 जनवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 20 Jan 2024

★ इस दानशील देश में हमें पहले प्रकार के दान के लिए अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान के विस्तार के लिए साहसपूर्वक अग्रसर होना होगा! और यह ज्ञान-विस्तार भारत की सीमा में ही आबद्ध नहीं रहेगा, इसका विस्तार तो सारे संसार में करना होगा! और अभी तक यही होता भी रहा है! जो लोग कहते हैं कि भारत के विचार कभी भारत से बाहर नहीं गये, जो सोचते हैं कि मैं ही पहला सन्यासी हूँ जो भारत के बाहर धर्म-प्रचार करने गया, वे अपने देश के इतिहास को नहीं जानते! यह कई बार घटित हो चुका है! जब कभी भी संसार को इसकी आवश्यकता हुई, उसी समय इस निरन्तर बहनेवाले आध्यात्मिक ज्ञानश्रोत ने संसार को प्लावित कर दिया!
~ स्वामी विवेकानन्द

◆ श्रेष्ठ मनुष्यों की मित्रता पत्थर के समान सुदृढ़, मध्यम मनुष्यों की बालू के समान और निकृष्ट मनुष्यों की पानी की लकीर जैसी क्षणिक होती है। इसके विपरीत श्रेष्ठ जनों का बैर पानी की लकीर जैसा, मध्यमों का बालू जैसा और निकृष्ट जनों का बैर पत्थर जैसा होता है।
~ भर्तृहरि

◇ मेहन्दी स्त्रियों का श्रृंगार, जिसके हाथ में लग जाता है, उसे अपने रंग में रंग देता है। हमारे यहाँ ये परम्परा है, विवाहों पर, अन्य कई अवसरों पर, इस मेहन्दी को ऐसे किसी पात्र में रखा जाता है, कि महिलाओं में बाँटा जा सके, परन्तु क्या ज्ञात है कि मेहन्दी का रंग सबसे अधिक किन हाथों पर चढ़ता है? इस मेहन्दी का रंग सबसे अधिक उन हाथों पर चढ़ता है, जो सबसे अधिक इसको बाँटते हैं। प्रेम , प्रसन्नता, आनन्द , ये भी मेहन्दी की भाँति ही हैं, जितना दूसरों में बाँटोगे उतना स्वयं पर चढ़ेगा। तो यदि आप जीवन में प्रसनन्ता पाना चाहते हैं, तो प्रसन्नता को सबमें बाँटना सीखिये। जैसे ये हाथ मेहन्दी को सबमें बाँट रहे थे। अपना सुख, अपना वैभव, अपना प्रेम, सबमें बाँटते रहिये। आपके जीवन में कभी आपको इसकी कमी नहीं होगी।

■ मनके की माला आपने कई लोगों के पास देखी होगी, ये माला घुमाते जाते हैं, ईश्वर को स्मरण करते जाते हैं, और निकलते हर मोती के साथ एक पुण्य अर्जित करते हैं। परन्तु क्या यही सबके साथ होता है ? नहीं। आपने ये भी देखा होगा, कई लोग वर्षों तक इस माला को घुमाते जाते हैं, किन्तु फिर भी कुछ नहीं होता। वही क्रोध, वही अहंकार, वही लालच, वही बाधाएँ वैसी की वैसी रहती हैं। किन्तु सारा परिश्रम व्यर्थ गया। कभी सोचा है ऐसा क्यों होता है? ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि माला के मनके फेरते-फेरते कई लोग अक्सर एक मनका फिराना भूल ही जाते हैं। मनका मन। इसलिए अगली बार इस माला को फेरने से पूर्व सर्वप्रथम अपने मन को फेरना सीख लीजिये। जितने भी दुष्विचार हैं आपके मन में, निकाल फेंकिये, अंत कर दीजिये इन दुष्विचारों का। तभी आयेगी शांति, तभी मिलेगा संतोष, और तभी आयेगा प्रेम।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 19 Jan 2024

◾  बुराइयों के प्रति लोगों में जिस तरह आकर्षण होता है, उसी तरह यदि ऐसा दृढ़ भाव हो जाय कि हमें अमुक शुभ कर्म अपने जीवन में पूरा करना ही है तो उस कार्य की सफलता असंदिग्ध हो जायगी। यदि सिनेमा न देखने का, बीड़ी, सिगरेट न पीने का, जुआ न खेलने का, मांस-मदिरा न सेवन करने का व्रत ठाना जाय और उस व्रत का दृढ़तापूर्वक पालन किया जाय तो इन दुर्गुणों के कारण मलिन होने वाले स्वभाव में स्वच्छता आयेगी

◾  जीवन एक संग्राम है। इसमें वही व्यक्ति विजय प्राप्त कर सकता है, जो या तो परिस्थिति के अनुकूल अपने को ढाल लेता है या जो अपने पुरुषार्थ के बल पर परिस्थिति को बदल देता है। हम इन दोनों में से किसी भी एक मार्ग को या समयानुसार दोनों मार्गों का उपयोग कर जीवन संग्राम में विजयी हो सकते हैं।

◾  शिष्टाचार हमारे आचरण और व्यवहार का एक नैतिक मापदण्ड है, जिस पर सभ्यता और संस्कृति का भवन निर्माण होता है। एक दूसरे के प्रति सद्भावना, सहानुभूति, सहयोग आदि शिष्टाचार के मूलाधार हैं। इन मूल भावनाओं से प्रेरित होकर दूसरों के प्रति नम्र, विनयशील, संयम, आदरपूर्ण उदार आचरण ही शिष्टाचार है।

◾  भाग्यवाद का नाम लेकर अपने जीवन में निराशा, निरुत्साह के लिए स्थान मत दीजिए। आपका गौरव निरन्तर आगे बढ़ते रहने में है। भगवान् का वरद् हस्त सदैव आपके मस्तक पर है। वह तो आपका पिता, अभिभावक, संरक्षक, पालक सभी कुछ है। उसकी निष्ठुरता आप पर भला क्यों होगी? क्या यह सच नहीं कि उसने आपको यह अमूल्य मनुष्य शरीर दिया, बुद्धि दी, विवेक दिया है। कुछ अपनी इन शक्तियों से भी काम लीजिए, देखिए आपका भाग्य बनता है या नहीं?

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

गुरुवार, 18 जनवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 18 Jan 2024

प्रलोभन एक तेज आँधी के समान है, जो मजबूत चरित्र को भी, यदि वह सतर्क न रहे, गिराने की शक्ति रखता है। जो व्यक्ति सदैव जागरूक रहता है, वह ही संसार के नाना प्रलोभनों, आकर्षणों, मिथ्या दम्भ, दिखावा, टीपटाप से मुक्त रह सकता है। यदि एक बार आप प्रलोभन और वासना के शिकार हुए तो वर्षों उसके प्रायश्चित करने में लग जावेंगे।

धर्म के लिए, धर्म के कारण कभी कोई झगड़ा नहीं होता। झगड़ों का कारण है-साम्प्रदायिकता। साम्प्रदायिकता का अर्थ है-संकीर्णता, अनुदारता, स्वार्थपरता, अहंकारिता। यह दूषित मनोवृत्ति जिस क्षेत्र में प्रविष्ट हो जाती है, वहीं समाज में भारी विद्वेष, घृणा, शोषण, उत्पीड़न, क्रूरता तथा अनाचार का बोलबाला कर देती है। द्वेष और ईर्ष्या की जननी मानवता की शत्रु इस राक्षसी का परित्याग करना ही उचित है।

जुआ का व्यसन हर तरह से हानिकारक और पतनकारी है। जो हारता है, वह तो तरह-तरह की आपत्तियों में फँस जाता ही है, पर जो जीतता है वह भी उसे मुफ्त का माल समझकर तरह-तरह की दुर्व्यसनों और खराब कामों में खर्च कर देता है। इससे उसकी आदत बिगड़ती है और बाद में अपनी कमाई को भी हानिकारक व्यसनों में खर्च करने लग जाता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य


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👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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