आपको अपने पैसे से हर काम करने की छूट नहीं मिली है। सिनेमा वालों के विरुद्ध हमें पिकेटिंग करना पड़ेगा और धरना देना पड़ेगा, उनके कैमरों के सामने लेटना पड़ेगा और उनके काम को विफल करने के लिए यदि मौका हो तो हमें जो कुछ भी करना पड़ेगा वो हम करेंगे। संगीत, गायक और दूसरे लोग जो इस तरह के गीत गाते हैं जिससे फूहड़पन पैदा होता है उनके विरुद्ध सत्याग्रह पैदा करना पड़ेगा।
इस तरह के साहित्य लिखने वाले जिन्होंने समाज को जलील किया-बदनाम किया है, उनके दरवाजे पर भूख हड़ताल करके किसी को प्राण भी देना पड़े तो देना ही चाहिए। उनके कृतियों के प्रसंग कि इन्होंने लोगों को क्या क्या कहा और क्या-क्या समझाया, उसके कोटेशन उद्घृत करके सारे समाज में बाँटने पड़ेंगे और बताना पड़ेगा कि ये लोग ऐसे हैं जिन्होंने पैसे के लिए, अपनी कमाई के लिए-लोभ के लिए समाज को कितनी हानि पहुँचाई और कितने लोगों को खराब किया। इस तरीके से इनके भंडाफोड़ करने वाली बातों के विरुद्घ में हमें खड़ा होना ही चाहिए।
गुंडातत्व इसलिए जिंदा हैं कि वो समझते हैं कि हमारा कोई मुकाबला करने वाला नहीं है और हम चाहे जो काम कर करते हैं। इन गुंडा तत्वों को जब ये मालूम पड़ेगा कि समाज में से वो तत्व उठकर खड़े हो गये हैं जो हमारा मुकाबला करेंगे और हमारे गलत काम और उच्छृंखलता के विरुद्ध लोहा लेंगे, इस तरह की उनको जब जानकारी होगी तो उनके हौसले पस्त हो जायेंगे। गुंडा गर्दी आजकल इस लिए हावी होती जा रही है कि एक आदमी का नुकसान होता है तो दूसरा आदमी उसके बारे में आवाज नहीं उठाता। ये कहता है कि हम क्यों उस मुसीबत में फँसें, इससे तो और मुसीबतें आयेंगी।
लेकिन जिन लोगों ने अपना सिर हथेली पर रख लिया है, जिन्होंने मुसीबतों को ही आमंत्रण दिया है, जो मुसीबत के लिए ही उठकर खड़े हो गये हैं और जिन्होंने अपना जीवन और जान को ऐसी चुनौतियाँ स्वीकार करने के लिए ही समर्पित कर दिया है, ऐसी लोकसेना उठकर खड़ी हो जाये तो बात बन जाये। तब वे लोग जो अपने आप को अकेला अनुभव करते हैं, जो ये ख्याल करते हैं कि हम अकेले क्या कर सकते हैं, हमको कुचल दिया जायेगा और हमारे विरोधी बहुत हो जायेंगे, गुंडे हमको तंग करेंगे इसलिए वे मन मारकर चुप बैठ जाते हैं; उनके हौसले चौगुने और सौैगुने हो जायेंगे। तब अनीति का मुकाबला करने के लिए न केवल लोकवाहिनी सेना बल्कि असंख्य लोग उनके साथ में उठकर खड़े हो जायेंगे और एक ऐसी क्रांति उत्पन्न होगी जिसमें व्यक्ति-व्यक्ति के बीच, समाज-समाज के बीच, वर्ग-वर्ग के बीच और अवांछनीय-वांछनीय तत्वों के बीच जो विग्रह की आग सुलग रही है, उस आग को या तो इधर कर दिया जायेगा या उधर कर दिया जायेगा।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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