विदा होते समय बस एक यही आवाज सुनाई दे रही थी भा
ई साब आप परेशान ना हो मुक्ति को हम बहू नहीं बेटी बनाकर ले जा रहे हैं!
धीरे धीरे सुबह हुई और गाडी एक सजे हुए घर क सामने
जा रुकी और जोर से आवाज आई!
“जल्दी आओ बहू आ गयी”!! सजी हुई थाली लिए एक लड़की
दरवाजे पर थी! ये दीदी थी जो स्वागत क लिए
दरवाजे पर थी! और पूजा क बाद सबने एक साथ
कहा “बहू को कमरे में ले जाओ” मुक्ति को समझ
नहीं आया कुछ घंटो पहले तक तो मैं बेटी थी
फिर अब कोई बेटी क्यों नही बोल रहा!
बहू के घर से फोन हैं बात करा दो! फ़ोन पर माँ
थी “कैसी हो बेटा”
मुक्ति-“ठीक हू माँ- पापा कैसे हैं दीदी कैसी
हैं अभी तक रो रही ह क्या?”
माँ- “सब ठीक हैं तुम्हारा मन लगा?”
मुक्ति-“ हाँ माँ लग गया” माँ से कैसे कहती
बिलकुल मन नहीं लग रहा घर की बहुत याद आ
रही हैं
फ़ोन रखते हुए माँ ने कहा बेटा देखो बहुत अच्छे
लोग हैं बहू नहीं बेटी बनाकर रखेंगे बस तुम कोई
गलती मत करना !
मुक्ति और उसकी ननद विभा दोनों का
जन्मदिन एक ही महीने में आता था! मुक्ति बहुत
खुश थी साथ साथ जन्मदिन मना लेंगे और पहली
बार ससुराल में जन्मदिन मनाउंगी!
सुबह होते ही घर से सबका फोन आया मन बहुत
खुश था और पति के मुबारकबाद देने से दिन और
अच्छा हो गया था!
खैर शाम होते होते सब लोग एक साथ हुए और
बस केक कट कर दिया गया और सासु माँ ने एक
पचास का नोट दे दिया ! सासु माँ का दिया
ये नोट मुक्ति को बहुत अच्छा लगा ! जन्मदिन
न मन पाने का थोडा दुख हुआ पर फिर लगा
शायद ससुराल में ऐसे ही जन्मदिन मनता होगा !
अगले हफ्ते विभा दीदी का जन्मदिन आया
सुबह से ही सबके फ़ोन आने शुरू हो गये! सासु माँ
ने कहा मुक्ति आज खाना थोडा अच्छा
बनाना विभा का जन्मदिन हैं “जी माँ जी”
शाम होते ही मोहहले भर के लोगो का घर पर
खाने क लिए आगमन हुआ – सबने अच्छे से खाना
खाया!
सासु माँ ने विभा को 1000 का नोट देते हुए
कहा “बिटिया तुम्हारे कपडे अभी उधार रहे”
मुक्ति इस प्यार को देख कर बस मुस्कुरा ही
रही थी की पड़ोस की काकी ने पूछ लिया “
बहू तुम्हारा जन्मदिन कब आता हैं” मुक्ति बड़े
प्यार से बोली- “काकी अभी पिछले हफ्ते ही
गया हैं इसलिए हम दोनों ने साथ साथ मना
लिया क्यू विभा दीदी सही कहा ना”
विभा उसकी तरफ देख कर सिर्फ मुस्कुरा दी !
रसोई में खाना बनाते हुए मुक्ति को एक बात
आज ही समझ आई ! “बेटी बनाकर रखेंगे कह देने
भर से बहू बेटी नही बन जाती” और माँ की बात
याद आ गई
“बस बेटा तुम कोई गलती मत करना”
और आंखे न जाने कब नम हो गयी !!!!!!
पोती पौते सबको प्यारे है
पर बहू सबकी आंख मे खटकती है
क्या वो किसी की बेटी नही है
जो त्याग एक बहू करती है
वो भला कौन कर सकता है
जो सासु बहूऔ से चिढती है
वो भी सोचे की वो भी कभी बहू थी!!
बहू को बहू नही बेटी कहकर दैखे
बेटी कमी महसुस नही होगी!!
7 टिप्पणियां:
शत प्रतिशत सही कथा जो इस समाज के लिये आँखे खोलने वाला पर फिर भी हम जैसे मुर्ख इस पर अमल नहीं करते । सबसे निवेदन कम से कम अपने परिवार मै परिवर्तन लायें। जय गुरुदेव।
शत प्रतिशत सही कथा जो इस समाज के लिये आँखे खोलने वाला पर फिर भी हम जैसे मुर्ख इस पर अमल नहीं करते । सबसे निवेदन कम से कम अपने परिवार मै परिवर्तन लायें। जय गुरुदेव।
एकदम सत्य काश कि प्रत्येक परिवार इस सत्य को समझ पाता
एकदम सत्य काश कि प्रत्येक परिवार इस सत्य को समझ पाता
Kuch nahi hota sasural wale aisi posts par dhyan hi nahi dete ignore karke aage bad jate hain...ek ladki sasural mein aate hi sabko apna banane ki puri koshish karti hai par har din har pal use mehsus karaya jata h hai k wo is ghar ki bahu hai aur bahu hi ban kar rahe....beti maanna to door muh se beti bolne mein bhi dard hota hai
जिस दिन कथनी और करनी मे अन्तर खत्म हौ जायेगा सब समस्या खत्म हो जायेगी
wow ek dum dil ko chhoo gaya very nice story and impressive :) :)
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