सोमवार, 31 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 31 July 2023

जो काम अपने हाथ में लो उसी में सबके हित का भाव ढूँढते रहो। जहाँ भी दूसरे की भलाई की आवश्यकता समझ में आये अपना कंधा लगाकर सहयोग और सहानुभूति प्रकट करो। संसार आपकी भलाई भूल नहीं सकेगा। सभी आपको आदर की, प्यार की दृष्टि से देखेंगे। आप अपने हृदय में विश्वात्मा को स्थापित करके तो देखिए।
 
अच्छाई से बुराई की ओर पलायन का प्रमुख कारण है आज की अर्थ प्रधान मनोवृत्ति। हम हर काम पैसे के बल पर करना चाहते हैं। पैसा कमाना चाहते हैं तो पैसे के बल पर, धर्म करना चाहते हैं तो पैसे के बल पर, स्वस्थ रहना चाहते हैं तो पैसे के बल पर, सुख-शान्ति, सम्मान भी चाहते हैं तो पैसे के बल पर-मानो पैसा एक ऐसा वरदान है, जिसके मिलते ही हमारी सारी कामनाएँपूर्ण हो जाएँगी, परन्तु हम यह कभी नहीं सोचते कि जिनके पास असंख्य धन है, क्या उन्हें यह सब कुछ प्राप्त है? क्या उनकी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो गई हैं? क्या वे अपने जीवन में पूरी तरह से सुखी और संतुष्ट हैं?

जो भूतकाल में कहा गया वह पूर्ण सत्य था, उसमें हेर-फेर की गुंजायश नहीं, ऐसा दुराग्रह हमें सत्य के नवीनतम प्रकाश से वंचित कर देगा और दकियानूसों, कूप मंडूक बनकर रह जायेंगे। सत्य किसी सीमा बंधन में बँधा हुआ नहीं है। मनुष्य सर्वांगपूणर्् नहीं है और न उसके मस्तिष्क की परिधि ही इतनी बड़ी है कि इस विशाल विश्व में संव्याप्त सत्य की समस्त किरणों का एक ही समय अंतिम रूप से अवगाहन कर सके।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 जीवन मे दुःखो के लिए कौन जिम्मेदार है?

 👉🏻 ना भगवान,
 👉🏻 ना गृह-नक्षत्र,
 👉🏻 ना भाग्य,
 👉🏻 ना रिश्तेदार,
 👉🏻 ना पडोसी,
 👉🏻 ना सरकार,

जिम्मेदार आप स्वयं है।

1) आपका सरदर्द, फालतू विचार का परिणाम।

2) पेट दर्द, गलत खाने का परिणाम।

3) आपका कर्ज, जरूरत से ज्यादा खर्चे का परिणाम।

4) आपका दुर्बल /मोटा /बीमार शरीर, गलत जीवन शैली का परिणाम।

5) आपके कोर्ट केस, आप के अहंकार का परिणाम।

6) आपके फालतू विवाद, ज्यादा व् व्यर्थ बोलने का परिणाम।

उपरोक्त कारणों के अलावा सैकड़ों कारण है और बेवजह दोषारोपण दूसरों पर करते रहते हैं इसमें ईश्वर दोषी नहीं है।

अगर हम इन कष्टों के कारणों पर बारिकी से विचार करें तो पाएंगे की कहीं न कहीं हमारी मूर्खताएं ही इनके पीछे है।

आपका जीवन प्रकाशमय हो तथा शुभ हो।

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शनिवार, 29 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 29 July 2023

मनुष्य का वास्तविक हित इस बात में नहीं कि उसे धन, मान, स्त्री, पुत्र आदि के सुख-साधन मिल जाय, वरन् इसमें है कि उसकी अंतरात्मा सद्गुणों की विभूतियों से संपन्न होककर अपना ही नहीं असंख्यों का कल्याण करता हुआ पूर्णता के परम लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थ हो। हम अपने स्वजनों के सच्चे हितैषी और सच्चे हितवादी बन कर रहेंगे। उन्हें वासना और तृष्णा की कीचड़ में बिलखते हुए और पेट-प्रजनन के जाल-जंजाल में फड़फड़ाता हुआ न छोड़ेंगे।

शिक्षा, उपदेश, मार्गदर्शन करने के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं। सद्गुरु कितने ही रूप में हमारे काय-कलेवर में विराजमान है और अपना प्रशिक्षण निरन्तर जारी रख रहे हैं। उचित और अनुचित का भेद करने वाला परामर्श अपना परमात्मा निरन्तर देता रहता है। सत्कर्म करते हुए आत्म-संतोष, दुष्कर्म करते हुए आत्म-धिक्कार की जो भावना उठती रहती है उसे ईश्वरीय प्रशिक्षण अंतरात्मा का उपदेश कहा जा सकता है।

‘‘मैं यह काम करूँगा और करके ही रहूँगा चाहे जो कुछ हो’’-ऐसी बलवती इच्छा को जिसकी ज्योति अहर्निश कभी मंद न हो दृढ़ इच्छा शक्ति कहते हैं। बहुत से लोग ठीक से निश्चय नहीं कर पाते कि वे क्या करें। उनका मन हजार दिशाओं में दौड़ता है। वे दृढ़ इच्छा शक्ति के चमत्कार को क्या समझ सकते हैं? इस शक्ति के अंतर्गत दृढ़ निश्चय, आत्म विश्वास, कार्य करने की अनवरत चेष्टा और अध्यवसाय आदि गुण आ जाते हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 गृहस्थ में ईश्वर प्राप्ति

एक बार एक राजा ने अपने मंत्री से पूछा कि “क्या गृहस्थ में रहकर भी ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है?” मंत्री ने उत्तर दिया- हाँ, श्रीमान् ऐसा हो सकता है। राजा ने पूछा कि यह किस प्रकार संभव है? मंत्री ने उत्तर दिया कि इसका ठीक ठीक उत्तर एक महात्मा जी दे सकते हैं जो यहाँ से गोदावरी नदी के पास एक घने वन में रहते हैं।

राज अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए दूसरे दिन मंत्री को साथ लेकर उन महात्मा से मिलने चल दिया। कुछ दूर चलकर मंत्री ने कहा- महाराज, ऐसा नियम है कि जो उन महात्मा से मिलने जाता है, वह रास्ते में चलते हुए कीड़े-मकोड़ो को बचाता चलता है। यदि एक भी कीड़ा पाँव से कुचल जाए तो महात्मा जी श्राप दे देते हैं। राजा ने मंत्री की बात स्वीकार कर ली और खूब ध्यानपूर्वक आगे की जमीन देख देखकर पैर रखने लगे। इस प्रकार चलते हुए वे महात्मा जी के पास जा पहुँचे।

महात्मा ने दोनों को सत्कारपूर्वक बिठाया और राजा से पूछा कि आपने रास्ते में क्या-क्या देखा मुझे बताइए। राजा ने कहा- भगवन् मैं तो आपके श्राप के डर से रास्ते के कीड़े-मकोड़ो को देखता आया हूँ। इसलिए मेरा ध्यान दूसरी ओर गया ही नहीं, रास्ते के दृश्यों के बारे में मुझे कुछ भी मालूम नहीं है।

इस पर महात्मा ने हँसते हुए कहा- राजन् यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। मेरे श्राप से डरते हुए तुम आये उसी प्रकार ईश्वर के दण्ड से डरना चाहिए, कीड़ों को बचाते हुए चले, उसी प्रकार दुष्कर्मों से बचते हुए चलना चाहिए। रास्ते में अनेक दृश्यों के होते हुए भी वे दिखाई न पड़े। जिस सावधानी से तुम मेरे पास आये हो, उसी से जीवन क्रम चलाओ तो गृहस्थ में रहते हुए भी ईश्वर को प्राप्त कर सकते हो। राजा ठीक उत्तर पाकर संतोषपूर्वक लौट आये।

📖 अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1943 पृष्ठ 12

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शुक्रवार, 28 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 28 July 2023

आपका सुख और मधुरता दूसरों को सुख और मधुरता देने पर जुड़ी हुई हैं। अच्छे पड़ोसियों, साथियों, मित्रों और नागरिकों में ही आत्मीयता बढ़ सकती है। अतः जितना ही आप दूसरों को स्नेह देंगे, उनके विषय, कठिनाइयों और उलझनों को सुलझाने में दिलचस्पी लेंगे उतना ही आपकी आत्मीयता का दायरा बढ़ता जायेगा। आपका जीवन सरस हो जाएगा।

हमें दूसरों के मुँह से अपनी प्रशंसा सुनने के लिए उत्सुक नहीं रहना चाहिए और न किसी के द्वारा व्यक्त की गई निन्दा से दुःख मानना चाहिए। अपने बारे में अपनी राय कायम करना ही ठीक है, क्योंकि उसी में वास्तविकता होती है। अपने बारे में जितना हम स्वयं जानते हैं उतना औरकौन जान सकता है? किसी के मन की बात किसी दूसरे को क्या पता है? कोई किसी की पूरी बातें जानने के लिए समय कहाँ से लाएँ? वस्तुतः जिनकी परिस्थिति ही सही बात जानने की नहीं है, उनकी राय को महत्त्व देना बेकार है।

लोगों के हाथों अपनी प्रसन्नता-अप्रसन्नता बेच नहीं देनी चाहिए। कोई प्रशंसा करे तो हम प्रसन्न हों और निन्दा करने लगे तो दुःखी हो चलें? यह तो पूरी पराधीनता हुई। हमें इस संबंध में पूर्णतया अपने ही ऊपर निर्भर रहना चाहिए और निष्पक्ष होकर अपनी समीक्षा आप करने की हिम्मत इकट्ठी करनी चाहिए। निन्दा से दुःख लगता हो तो अपनी नजर में अपने कामों को ऐसे घटिया स्तर का साबित न होने दें जिसकी निन्दा करनी पड़े। यदि प्रशंसा चाहते हैं तो अपने कार्यों को प्रशंसनीय बनायें।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 प्रेम ही सर्वोपरि है

ईश्वरीय ज्ञान और नि:स्वार्थ प्रेम के अनुभव से घृणा का भाव नष्ट हो जाता है, तमाम बुराइयाँ रफूचक्कर हो जाती हैं और वह मनुष्य उस दिव्य दृष्टि को प्राप्त कर लेता है, जिसमें प्रेम, न्याय और उपकार ही सर्वोपरि दिखाई पड़ती हैं।

अपने मस्तिष्क को दृढ़ निश्चय तथा उदार भावों की खान बनाइए, अपने हृदय में पवित्रता और उदारता की योग्यता लाइए, अपनी जीभ को चुप रहने तथा सत्य और पवित्र भाषण के लिए तैयार कीजिए। पवित्रता और शक्ति प्राप्त करने का यही मार्ग है और अंत में अनंत प्रेम भी इसी तरह प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार जीवन बिताने से आप दूसरों पर विश्वास जमा सकेंगे, उनको अपने अनुकूल बनाने की आवश्यकता न होगी। बिना विवाद के आप उनको सिखा सकेंगे, बिना अभिलाषा तथा चेष्टा के ही बुद्धिमान लोग आपके पास पहुँच जाएँगे, लोगों के हृदय को अनायास ही आप अपने वश में कर लेंगे। प्रेम के सबल विचार, कार्य और भाषण व्यर्थ नहीं जाते।

इस बात को भलीप्रकार जान लीजिए कि प्रेम विश्वव्यापी है, सर्वप्रधान है और हमारी हरएक जरूरत को पूरा करने की शक्ति रखता है। बुराईयों को छोड़ना, अंत:करण की अशांति को दूर भगाता है। नि:स्वार्थ प्रेम में ही शांति है, प्रसन्नता है, अमरता है और पवित्रता है।

📖 अखण्ड ज्योति -अक्टूबर 1943

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बुधवार, 26 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 26 July 2023

चलते रहो-चलते रहो, इसका तात्पर्य विस्तृत है। इसका एक अर्थ यह भी है कि कुछ न कुछ कार्य करते रहो। आलस्य में निष्क्रिय जीवन व्यतीत न करो। एक कार्य के पश्चात् दूसरा कोई नवीन कार्य आरंभ करो। मानसिक कार्य के पश्चात् शारीरिक, शारीरिक श्रम के पश्चात् मानसिक कार्य-यह क्रम रखने से मनुष्य निरन्तर कार्यशीलता का जीवन व्यतीत कर सकता है। आलसी व्यक्ति परिवार तथा समाज का शत्रु है।

सुसंस्कार किसी पूजा-पाठ या कर्मकाण्ड से नहीं जम सकते। कथा-कीर्तन से लेकर तीर्थयात्रा तक के क्रिया-कृत्यों से भी वह प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। योगाभ्यास और तप-साधना की शारीरिक, मानसिक कसरतें भी उस आवश्यकता की पूर्ति नहीं करतीं। इन समस्त आचरणों का मूल उद्देश्य एक ही है-उच्च स्तरीय आस्थाओं, आकाँक्षाओं, आदर्शों की अंतःकरण में इतनी सघन स्थापना जिसकी प्रेरणा से अपनी गतिविधियाँ केवल श्रेष्ठ सत्कर्मों की दिशा में ही गतिशील रह सकें।

खेद का विषय है कि हम नित्य प्रति के जीवन में विचार शक्ति का बड़ा अपव्यय करते हैं। जितनी शक्ति फिजूद बर्बाद होती है उसके थोड़े से भाग को यदि उचित रीति से इस्तेमाल करें तो स्वभाव तथा आदतें आसानी से बदली जा सकती है। जिस समय विचारधारा नीचे से ऊपर को चढ़ती है तो मनुष्य स्वयं अपना मित्र बन जाता है। जब विचारधारा ऊपर से नीचे को गिरती है तो वह अपने आप ही अपना शत्रु बन जाता है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 सम्पदा को रोकें नहीं

परमात्मा के अनन्त वैभव से विश्व में कमी किसी बात की नहीं। भगवान् आपके हैं और उसके राजकुमार के नाते सृष्टि की हर वस्तु पर आपका समग्र अधिकार है। उसमें से जब जिस चीज की जितनी आवश्यकता हो, उतनी लें और आवश्यकता निबटते ही अगली बात सोचें। संसार में सुखी और सम्पन्न रहने का यही तरीका है।  

बादल अपने, नदी अपनी, पहाड़ अपने और वन खाद्यान्न अपने। इनमें से जब जिसके साथ रहना हो, रहें। जिसका जितना उपयोग करना हो करें। कोई रोक- टोक नहीं है। नदी को रोक कर यदि अपना बनाना चाहेंगे और किसी दूसरे को पास न आने देंगे, उपयोग न करने देंगे, तो समस्या उत्पन्न होगी। एक जगह जमा किया हुआ पानी अमर्यादित होकर बाढ़ के रूप में उफनने लगेगा और आपके निजी खेत- खलिहानों को ही डुबो देगा।

बहती हुई हवा कितनी ही सुरभित क्यों न हो, उसे आप अपने ही पेट में  भरना चाहेंगे, तो पेट फूलेगा, फटेगा, औचित्य इसी में है कि जितनी जगह फेफड़ों में हो उतनी ही श्वास में और बाकी हवा दूसरों के लिये छोड़ दें। मिल- बांटकर खाने की यह नीति ही सुखकर है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 विधाता के बहुमूल्य उपहार

एक सच्चे मित्र की तरह जीवन का हर प्रभात तुम्हारे लिए अभिनव उपहार लेकर आता है। वह चाहता है कि आप उसके उपहारों को उत्साहपूर्वक ग्रहण करें। उससे उज्ज्वल भविष्य का शृंगार करें। उसकी प्रतीक्षा रहती है कि कब नया दिन गया है, उसका महत्व समझें और आदर पूर्वक ग्रहण करें।    

किन्तु जो दिया गया है, उसका मूल्य नहीं समझा जाता और कूड़े करकट की तरह फेंक दिया जाता है, तो निराश होकर लौट जाता है। बार- बार अवज्ञा होने पर पुनः अपरिचित राही की तरह आता है और निराश होकर लौट जाता है।

ईश्वर ने मनुष्य को अपार सम्पदाओं से भरा- पूरा जीवन दिया है, पर वह पोटली बाँधकर नहीं, एक- एक खण्ड के रूप में गिन- गिन कर। नया खण्ड देने से पहले पुराने का  ब्यौरा पूछता है कि उसका क्या हुआ? जो उत्साह भरा ब्यौरा बताते हैं, वे नये मूल्यवान खण्ड पाते हैं। दानी मित्र तब बहुत निराश होता है, जब देखता है कि उसके पिछले अनुदान धूल में फेंक दिये गये।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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मंगलवार, 25 जुलाई 2023

👉 जो दीपक की तरह जलने को तैयार हों (अन्तिम भाग)

“गिरे हुओं को उठाना, पिछड़े हुओं को आगे बढ़ाना, भूले को राह बताना और जो अशान्त हो रहा है, उसे शान्तिदायक स्थान पर पहुँचा देना। यह वस्तुतः ईश्वर की सेवा ही है। जब हम दुःख और दरिद्र को देखकर व्यथित होते हैं और मलीनता को स्वच्छता में बदलने के लिए बढ़ते हैं तो समझना चाहिए यह कृत्य ईश्वर के लिए- उसकी प्रसन्नता के लिए ही किये जा रहे हैं। दूसरों की सेवा सहायता अपनी ही सेवा सहायता है।”

“प्रार्थना उसी की सार्थक है जो आत्मा को परमात्मा में घुला देने के लिए व्याकुलता लिए हुए हो। जो अपने को परमात्मा जैसा महान बनाने के लिए तड़पता है- जो प्रभु को जीवन के कण-कण में घुला लेने के लिए बेचैन है। जो उसी का होकर जीना चाहता है उसी को भक्त कहना चाहिए। दूसरे तो विदूषक हैं। लेने के लिए किया हुआ भजन वस्तुतः प्रभु प्रेम का निर्मम उपहास है। भक्ति में तो आत्म समर्पण के अतिरिक्त और कुछ होता ही नहीं। वहाँ देने की ही बात सूझती है लेने की इच्छा ही कहाँ रहती है?”

“ईश्वर का विश्वास, सत्कर्मों की कसौटी पर ही परखा जा सकता है। जो भगवान पर भरोसा करेगा वह उसके विधान और निर्देश को भी अंगीकार करेगा भक्ति और अवज्ञा का ताल-मेल बैठता कहाँ है?”

“हम अपने आपको प्यार करें ताकि ईश्वर से प्यार कर सकने योग्य बन सकें। हम अपने कर्त्तव्यों का पालन करें ताकि ईश्वर के निकट बैठ सकने की पात्रता प्राप्त कर सकें। जिसने अपने अन्तःकरण को प्यार से ओत-प्रोत कर लिया, जिसके चिन्तन और कर्तृत्व में प्यार बिखरा पड़ा है ईश्वर का प्यार केवल उसी को मिलेगा, जो दीपक की तरह जलकर प्रकाश उत्पन्न करने को तैयार है, प्रभु की ज्योति का अवतरण उसी पर होगा।” 

..... समाप्त
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति 1986 फरवरी पृष्ठ 2

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सोमवार, 24 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 24 July 2023

यों युग शिल्पियों की संख्या एक लाख के लगभग है, पर उनमें एक ही कमी है, संकल्प में सुनिश्चितता का-दृढ़ता का-अनवरतता का अभाव। अभी उत्साह उभरा तो उछलकर आकाश चूमने लगे और दूसरे दिन ठंडे हुए तो झाग की तरह बैठ गये। इस अस्थिरता में लक्ष्यवेध नहीं हो सकता। उसके लिए अर्जुन जैसी तन्मयता होनी चाहिए जो मछली की आंख भर ही देखें। इसके लिए एकलव्य जैसी निष्ठा होनी चाहिए, जो मिट्टी के पुतले को निष्णात अध्यापक बना ले।

परिजनो! अपनी आज की मनोदशा पर हमें विचार करना ही है। अपनी अब तक की गतिविधियों पर हमें शान्त चित्त से ध्यान देना है। क्या हमारे कदम सही दिशा में चल रहे हैं? यदि नहीं, तो क्या यह उचित न होगा कि हम ठहरें, रुकें, सोचें और यदि रास्ता भूल गये हैं, तो पीछे लौटकर सही रास्ता पर चलें। इस विचार मन्थन की वेला में आज हमें यही करना चाहिए—यही सामयिक चेतावनी और विवेकपूर्ण दूरदर्शिता का तकाजा है।

उपदेश तो बहुत पा चुके हो, किन्तु उसके अनुसार क्या तुम कार्य करते हो? अपने चरित्र का संशोधन करने में अभी भी क्या किसी अन्य की राह देख रहे हो? तुम तो अब श्रेष्ठ कार्य करने की योग्यता प्राप्त करो। विवेक बुद्धि की किसी प्रकार अब उपेक्षा न करो। अपने चरित्र का संशोधन करने में लापरवाही करोगे या प्रयत्न में ढिलाई करोगे तो उन्नति कैसे हो सकती है? अपने शुभ अवसरों को न खोकर जीवन रणक्षेत्र में प्रबल पराक्रम से निरन्तर अग्रसर होकर विजयी प्राप्त करने के लिए सदैव तत्पर रहना सीखो।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 शेखी मत बघारो

अभिमान और तुच्छता, आत्मप्रशंसा और शेखी के रूप में प्रकट होते हैं, जिससे आप का सामाजिक जीवन सबके लिए असह्य और अनाकर्षक बन जाता है। जनता आप की प्रशंसा कर सकती है, किंतु वह उसको के मुख से सुनना नहीं चाहती। यदि आप अपनी प्रशंसा न्याय और सत्य के अनुसार भी करते हों, तो भी जनता विरोधी हो जाती है और आप के दोषों को ही देखने लगती है। अपनी सफलता को ऐतिहासिक स्त्री- पुरुषों के कार्यों से तुलना करके नम्रता सीखो।   

ऊँट तभी तक अपने को ऊँचा समझता है, जब तक पहाड़ के नीचे नहीं आता। अपने से बड़े प्रसिद्ध पुरुषों से मिलते- जुलते रहने का उद्योग करो। इस प्रकार की मित्रता आप को अत्यंत प्रभावपूर्ण नम्रता की शिक्षा देगी। इस बात को स्मरण रखो कि अभिमान से आप बहुत कुछ खो देते हो। अभिमानी की बहुत से मनुष्य न प्रशंसा करते, न सहायता करते और न प्रेम करते हैं। अभिमान आप के व्यक्तिगत विकास को भी रोकता है।

यदि आप अपने को सबसे बड़ा समझने लगोगे तो आप अधिक बड़ा बनने का यत्न करना छोड़ दोगे। यदि आपने कोई कार्य ख्याति तथा विज्ञापन योग्य किया है, तो उसके विषय में स्वयं कुछ मत कहो। आप को पता लगेगा कि उसके विषय में दूसरे भी किसी न किसी प्रकार कुछ अवश्य जानते हैं। आप के गुण अधिक समय तक छिपे नहीं रहेंगे। आप को स्वयं उनकी घोषणा करने  की आवश्यकता नहीं है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति- अग. 1945 पृष्ठ 20

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👉 जो दीपक की तरह जलने को तैयार हों (भाग 1)

महाप्रभु ईसा अपने शिष्यों से कहते थे- “तुम मुझे प्रभु कहते हो- मुझे प्यार करते हो, मुझे श्रेष्ठ मानते हो और मेरे लिए सब कुछ समर्पण करना चाहते हो। सो ठीक है। परमार्थ बुद्धि से जो कुछ भी किया जाता है, जिस किसी के लिए भी किया जाता है वह लौटकर उस करने वाले के पास ही पहुँचता है। तुम्हारी यह आकाँक्षा वस्तुतः अपने आपको प्यार करने, श्रेष्ठ मानने और आत्मा के सामने आत्म समर्पण करने के रूप में ही विकसित होगी। दर्पण में सुन्दर छवि देखने की प्रसन्नता- वस्तुतः अपनी ही सुसज्जा की अभिव्यक्ति है।

दूसरों के सामने अपनी श्रेष्ठता प्रकट करना उसी के लिए सम्भव है जो भीतर से श्रेष्ठ है। प्रभु की राह पर बढ़ाया गया हर कदम अपनी आत्मिक प्रगति के लिए किया गया प्रयास ही है। जो कुछ औरों के लिए किया जाता है वस्तुतः वह अपने लिए किया हुआ कर्म ही है। दूसरों के साथ अन्याय करना अपने साथ ही अन्याय करना है। हम अपने अतिरिक्त और कोई को नहीं ठग सकते। दूसरों के प्रति असज्जनता बरतकर अपने आपके साथ ही दुष्ट दुर्व्यवहार किया जाता है।”

“दूसरों को प्रसन्न करना अपने आपको प्रसन्न करने का ही क्रिया-कलाप है। गेंद को उछालना अपनी माँस-पेशियों को बलिष्ठ बनाने के अतिरिक्त और क्या है? गेंद को उछालकर हम उस पर कोई एहसान नहीं करते। इसके बिना उसका कुछ हर्ज नहीं होगा। यदि खेलना बन्द कर दिया जाये तो उन क्रीड़ा उपकरणों की क्या क्षति हो सकती है? अपने को ही बलिष्ठता के आनन्द से वंचित रहना पड़ेगा।”

“ईश्वर रूठा हुआ नहीं है कि उसे मनाने की मनुहार करनी पड़े। रूठा तो अपना स्वभाव और कर्म है। मनाना उसी को चाहिए। अपने आपसे ही प्रार्थना करें कि कुचाल छोड़े। मन को मना लिया- आत्मा को उठा लिया तो समझना चाहिए ईश्वर की प्रार्थना सफल हो गई और उसका अनुग्रह उपलब्ध हो गया।”

.....शेष कल
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति 1986 फरवरी पृष्ठ 2

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कृत्रिम पैरों से एवरेस्ट पर फतह, अरुणिमा के हौसले को सलाम...

भारत सरकार ने ६६ वें गणतंत्र दिवस पर जिन लोगों के नामों की घोषणा पद्म पुरस्कारों के लिये की उनमें एक नाम अरुणिमा सिन्हा का भी है। उत्तरप्रदेश की अरुणिमा सिन्हा को "पद्मश्री" के लिये चुना गया। "पद्मश्री" भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाला चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। भारत रत्न, पद्मविभूषण और पद्मभूषण के बाद पद्म श्री ही सबसे बड़ा सम्मान है। किसी भी क्षेत्र में असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए पद्म सम्मान दिए जाते हैं। खेल-कूद के क्षेत्र में असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए अरुणिमा सिन्हा को "पद्म श्री" देने का ऐलान किया गया। अरुणिमा सिन्हा दुनिया के सबसे ऊँचे पर्वत शिखर एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने वाली दुनिया की पहली विकलांग महिला हैं। २१ मई, २०१३ की सुबह १०. ५५ मिनट पर अरुणिमा ने माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराकर २६ साल की उम्र में विश्व की पहली विकलांग पर्वतारोही बनने का गौरव हासिल किया। खेलकूद के क्षेत्र में जिस तरह अरुणिमा की कामयाबी असाधारण है उसी तरह उनकी ज़िंदगी भी असाधारण ही है।


अरूणिमा को कुछ बदमाशों ने चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया था। अरुणिमा ने इन बदमाशों को अपनी चेन छीनने नहीं दिया था जिससे नाराज़ बदमाशों से उन्हें चलती ट्रेन से बाहर फेंक दिया। इस हादसे में बुरी तरह ज़ख़्मी अरुणिमा की जान तो बच गयी थी लेकिन उन्हें ज़िंदा रखने ले लिए डाक्टरों को उनकी बायीं टांग काटनी पड़ी। अपना एक पैर गँवा देने के बावजूद राष्ट्रीय स्टार पर वॉलीबाल खेलने वाली अरुणिमा ने हार नहीं मानी और हमेशा अपना जोश बनाये रखा। 

भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह और देश के सबसे युवा पर्वतारोही अर्जुन वाजपेयी के बारे में पढ़कर अरुणिमा ने उनसे प्रेरणा ली। फिर माउंट एवरेस्ट पर फतह पाने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल से मदद और प्रशिक्षण लेकर एवरेस्ट पर विजय हासिल की।


अरुणिमा ने एवरेस्ट पर फतह करने से पहले ज़िंदगी में कई उतार चढ़ाव देखे। कई मुसीबतों का सामना किया । कई बार अपमान सहा । बदमाशों और शरारती तत्वों के गंदे और भद्दे आरोप सहे । मौत से भी संघर्ष किया। कई विपरीत परिस्थितियों का सामना किया । लेकिन, कभी हार नहीं मानी । कमज़ोरी को भी अपनी ताकत बनाया। मजबूत इच्छा-शक्ति, मेहनत, संघर्ष और हार न मानने वाले ज़ज़्बे से असाधारण कामयाबी हासिल की। दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर पहुँच कर अरुणिमा ने साबित किया कि हौसले बुलंद हो तो ऊंचाई मायने नहीं रखती, इंसान अपने दृढ़ संकल्प, तेज़ बुद्धि और मेहनत से बड़ी से बड़ी कामयाबी हासिल कर सकता है। अरुणिमा सिन्हा अपने संघर्ष और कामयाबी की वजह से दुनिया-भर में कई लोगों के लिए प्रेरणा बन गयी हैं। किसी महिला या युवती की ज़िंदगी की तरह साधारण नहीं अरुणिमा की ज़िंदगी की कई घटनाएं।

बहादुरी की अद्भुत मिसाल पेश करने वाली अरुणिमा का परिवार मूलतः बिहार से है। उनके पिता भारतीय सेना में थे। स्वाभाविक तौर पर उनके तबादले होते रहते थे। इन्हीं तबादलों के सिलसिले में उन्हें उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर आना पड़ा था। लेकिन, सुल्तानपुर में अरुणिमा के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। अरुणिमा के पिता का निधन हो गया। हँसते-खेलते परिवार में मातम छा गया।
 
 पिता की मृत्यु के समय अरुणिमा की उम्र महज़ साल थी। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और देखभाल की सारी ज़िम्मदेारी माँ पर आ पड़ी। माँ ने मुश्किलों से भरे इस दौर में हिम्मत नहीं हारी और मजबूत फैसले लिए। माँ अपने तीनों बच्चों- अरुणिमा, उसकी बड़ी बहन लक्ष्मी और छोटे भाई को लेकर सुल्तानपुर से अम्बेडकरनगर आ गयीं। अम्बेडकरनगर में माँ को स्वास्थ विभाग में नौकरी मिल गयी, जिसकी वजह से बच्चों का पालन-पोषण ठीक तरह से होने लगा। बहन और भाई के साथ अरुणिमा भी स्कूल जाने लगी। स्कूल में अरुणिमा का मन पढ़ाई में कम और खेल-कूद में ज्यादा लगने लगा था। दिनब दिन खेल-कूद में उसकी दिलचस्पी बढ़ती गयी। वो चैंपियन बनने का सपना देखने लगी।
   जान-पहचान के लोगों ने अरुणिमा के खेल-कूद पर आपत्ति जताई, लेकिन माँ और बड़ी बहन ने अरुणिमा को अपने मन की इच्छा के मुताबिक काम करने दिया। अरुणिमा को फुटबॉल, वॉलीबॉल और हॉकी खेलने में ज्यादा दिलचस्पी थी। जब कभी मौका मिलता वो मैदान चली जाती और खूब खेलती। अरुणिमा का मैदान में खेलना आस-पड़ोस के कुछ लड़कों को खूब अखरता। वो अरुणिमा पर तरह-तरह की टिपाणियां करते। अरुणिमा को छेड़ने की कोशिश करते। लेकिन, अरुणिमा शुरू से ही तेज़ थी और माँ के लालन-पालन की वजह से विद्रोही स्वभाव भी उसमें था। वो लड़कों को अपनी मन-मानी करने नहीं देती ।
     अरुणिमा ने इस दौरान कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और अपनी प्रतिभा से कईयों को प्रभावित किया। उसने खूब वॉलीबॉल-फुटबॉल खेला, कई पुरस्कार भी जीते। राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भी खेलना का मौका मिला।  इसी बीच अरुणिमा की बड़ी बहन की शादी हो गई। शादी के बाद भी बड़ी बहन ने अरुणिमा का काफी ख्याल रखा। बड़ी बहन की मदद और प्रोत्साहन की वजह से ही अरुणिमा ने खेल-कूद के साथ साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। उसके कानून की पढ़ाई की और एलएलबी की परीक्षा भी पास कर ली। घर-परिवार चलाने में माँ की मदद करने के मकसद ने अरुणिमा ने अब नौकरी करने की सोची। नौकरी के लिए उसने कई जगह अर्ज़ियाँ दाखिल कीं।
     इसी दौरान उसे केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल यानी सीआईएसएफ के दफ्तर से बुलावा आया। अफसरों से मिलने वो नॉएडा के लिए रवाना हो गयी। अरुणिमा पद्मावत एक्सप्रेस पर सवार हुई और एक जनरल डिब्बे में खिड़की के किनारे एक सीट पर बैठ गयी। कुछ ही दर बाद कुछ बदमाश लड़के अरुणिमा के पास आये और इनमें से एक ने अरुणिमा के गले में मौजूद चेन पर झपट्टा मारा। अरुणिमा को गुस्सा आ आया और वो लड़के पर झपट पड़ी। दूसरे बदमाश साथी उस लड़के की मदद के लिए आगे आये और अरुणिमा को दबोच लिया। लेकिन, अरुणिमा ने हार नहीं मानी और लड़कों से झूझती रही। लेकिन , उन बदमाश लड़कों ने अरुणिमा को हावी होने नहीं दिया। इतने में ही कुछ बदमाशों ने अरुणिमा को इतनी ज़ोर से लात मारी की कि वो चलती ट्रेन से बाहर गिर गयी। अरुणिमा का एक पाँव ट्रेन की चपेट में आ गया। और वो वहीं बेहोश हो गयी। रात-भर अरुणिमा ट्रेन की पटरियों के पास ही पड़ी रही। सुबह जब कुछ गाँव वालों ने उसे इस हालत में देखा तो वो उसे अस्पताल ले गए। जान बचाने के लिए डाक्टरों को अस्पताल में अरुणिमा की बायीं टांग काटनी पड़ी।
जैसे ही इस घटना की जानकारी मीडियावालों को हुई, ट्रेन की ये घटना अखबारों और न्यूज़ चैनलों की सुर्ख़ियों में आ गयी। मीडिया और महिला संगठनों के दबाव में सरकार को बेहतर इलाज के लिए अरुणिमा को लखनऊ के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराना पड़ा
          अस्पताल में इलाज के दौरान समय काटने के लिए अरुणिमा ने अखबारें पढ़ना शुरू किया । एक दिन जब वह अखबार पढ़ रही थी।उसकी नज़र एक खबर पर गयी। खबर थी कि नोएडा के रहने वाले 17 वर्षीय अर्जुन वाजपेयी ने देश के सबसे युवा पर्वतारोही बनने का कीर्तिमान हासिल किया है। इस खबर ने अरुणिमा के मन में एक नए विचार को जन्म दिया। खबर ने उसके मन में एक नया जोश भी भरा था। अरुणिमा के मन में विचार आया कि जब 17 साल का युवक माउंट एवरेस्ट पर विजय पा सकता है तो वह क्यों नहीं?
    उसे एक पल के लिए लगा कि उसकी विकलांगता अड़चन बन सकती हैं। लेकिन उसने ठान लिया कि वो किसी भी सूरतोहाल माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर की रहेगी। उसने अखबारों में क्रिकेटर युवराज सिंह के कैंसर से संघर्ष के बाद फिर मैदान में फिर से उतरने की खबर भी पढ़ी। उसका इरादा अब बुलंद हो गया।
      लेकिन, कृतिम टांग लगने के बावजूद कुछ दिनों तक अरुणिमा की मुश्किलें जारी रहीं। विकलांगता का प्रमाण पत्र होने बावजूद लोग अरुणिमा पर शक करते। एक बार तो रेलवे सुरक्षा बल के एक जवान ने अरुणिमा की कृतिम टांग खुलवाकर देखा कि वो विकलांग है या नहीं। ऐसे ही कई जगह अरुणिमा को अपमान सहने पड़े।
वैसे तो ट्रेन वाली घटना के बाद रेल मंत्री ममता बनर्जी ने नौकरी देने की घोषणा की थी, लेकिन रेल अधिकारियों ने इस घोषणा पर कोई कार्यवाही नहीं की और हर बार अरुणिमा को अपने दफ्तरों से निराश ही लौटाया । अरुणिमा कई कोशिशों के बावजूद रेल मंत्री से भी नहीं मिल पाई , लेकिन अरुणिमा ने हौसले बुलंद रखे और जो अस्पताल मैं फैसला लिया था उसे पूरा करने के लिए काम चालू कर दिया।
    अरुणिमा ने किसी तरह बछेंद्री पाल से संपर्क किया। बछेंद्री पाल माउंट एवरेस्ट पर फतह पाने वाली पहली भारतीय महिला थीं। बछेंद्री पाल से मिलने अरुणिमा जमशेदपुर गयीं। बछेंद्री पाल ने अरुणिमा को निराश नहीं किया। अरुणिमा को हर मुमकिन मदद दी और हमेशा प्रोत्साहित किया।
    अरुणिमा ने उत्तराखंड स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनरिंग (एनआइएम) से पर्वतारोहण का २८ दिन का प्रशिक्षण लिया।उसके बाद इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन यानी आइएमएफ ने उसे हिमालय पर चढ़ने की इजाजत दे दी। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद ३१ मार्च, २०१२ को अरुणिमा का मिशन एवरेस्ट शुरु हुआ। अरुणिमा के एवरेस्ट अभियान को टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन ने प्रायोजित किया । फाउंडेशन ने अभियान के आयोजन और मार्गदर्शन के लिए २०१२ में एशियन ट्रेकिंग कंपनी से संपर्क किया था।
    एशियन ट्रेकिंग कंपनी ने २०१२ के वसंत में अरुणिमा को नेपाल की आइलैंड चोटी पर प्रशिक्षण दिया। ५२ दिनों के पर्वतारोहण के बाद २१ मई, २०१३ की सुबह १०. ५५ मिनट पर अरुणिमा ने माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया और २६ साल की उम्र में विश्व की पहली विकलांग पर्वतारोही बनीं।
      कृत्रिम पैर के सहारे माउंट एवरेस्ट पर पहुँचने वाली अरुणिमा सिन्हा यहीं नहीं रुकना चाहती हैं। वो और भी बड़ी कामयाबियां हासिल करने का इरादा रखती हैं। उनकी इच्छा ये भी है कि वे शारीरिक रूप से विकलांग लोगों को कुछ इस तरह की मदद करें कि वे भी आसाधारण कामयाबियां हासिल करें और समाज में सम्मान से जियें।

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