बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

👉 रिक्शे वाला:-

🔶 एक बार एक अमीर आदमी कहीं जा रहा होता है तो उसकी कार ख़राब हो जाती है। उसका कहीं पहुँचना बहुत जरुरी होता है। उसको दूर एक पेड़ के नीचे एक रिक्शा दिखाई देता है। वो उस रिक्शा वाले पास जाता है। वहा जाकर देखता है कि रिक्शा वाले ने अपने पैर हैंडल के ऊपर रखे होते है। पीठ उसकी अपनी सीट पर होती है और सिर जहा सवारी बैठती है उस सीट पर होती है ।

🔷 और वो मज़े से लेट कर गाना गुन-गुना रहा होता है। वो अमीर व्यक्ति रिक्शा वाले को ऐसे बैठे हुए देख कर बहुत हैरान होता है कि एक व्यक्ति ऐसे बेआराम जगह में कैसे रह सकता है, कैसे खुश रह सकता है। कैसे गुन-गुना सकता है।

🔶 वो उसको चलने के लिए बोलता है। रिक्शा वाला झट से उठता है और उसे 20 रूपए देने के लिए बोलता है। रास्ते में वो रिक्शा वाला वही गाना गुन-गुनाते हुए मज़े से रिक्शा खींचता है। वो अमीर व्यक्ति एक बार फिर हैरान कि एक व्यक्ति 20 रूपए लेकर इतना खुश कैसे हो सकता है। इतने मज़े से कैसे गुन-गुना सकता है। वो थोडा इर्ष्यापूर्ण  हो जाता है और रिक्शा वाले को समझने के लिए उसको अपने बंगले में रात को खाने के लिए बुला लेता है। रिक्शा वाला उसके बुलावे को स्वीकार कर देता है।

🔷 वो अपने हर नौकर को बोल देता है कि इस रिक्शा वाले को सबसे अच्छे खाने की सुविधा दी जाए। अलग अलग तरह के खाने की सेवा हो जाती है। सूप्स, आइस क्रीम, गुलाब जामुन सब्जियां यानि हर चीज वहाँ मौजूद थी।

🔶 वो रिक्शा वाला खाना शुरू कर देता है, कोई प्रतिक्रिया, कोई घबराहट बयान नहीं करता। बस वही गाना गुन-गुनाते हुए मजे से वो खाना खाता है। सभी लोगो को ऐसे लगता है जैसे रिक्शा वाला ऐसा खाना पहली बार नहीं खा रहा है। पहले भी कई बार खा चुका है। वो अमीर आदमी एक बार फिर हैरान एक बार फिर इर्ष्यापूर्ण कि कोई आम आदमी इतने ज्यादा तरह के व्यंजन देख के भी कोई हैरानी वाली प्रतिक्रिया क्यों नहीं देता और वैसे कैसे गुन-गुना रहा है जैसे रिक्शे में गुन-गुना रहा था।

🔷 यह सब कुछ देखकर अमीर आदमी की इर्ष्या और बढती है। अब वह रिक्शे वाले को अपने बंगले में कुछ दिन रुकने के लिए बोलता है। रिक्शा वाला हाँ कर देता है।

🔶 उसको बहुत ज्यादा इज्जत दी जाती है। कोई उसको जूते पहना रहा होता है, तो कोई कोट। एक बेल बजाने से तीन-तीन नौकर सामने आ जाते है। एक बड़ी साइज़ की टेलीविज़न स्क्रीन पर उसको प्रोग्राम दिखाए जाते है। और एयर-कंडीशन कमरे में सोने के लिए बोला जाता है।

🔷 अमीर आदमी नोट करता है कि वो रिक्शा वाला इतना कुछ देख कर भी कुछ प्रतिक्रिया नहीं दे रहा। वो वैसे ही साधारण चल रहा है। जैसे वो रिक्शा में था वैसे ही है। वैसे ही गाना गुन-गुना रहा है जैसे वो रिक्शा में गुन-गुना रहा था।

🔶 अमीर आदमी के इर्ष्या बढ़ती चली जाती है और वह सोचता है कि अब तो हद ही हो गई। इसको तो कोई हैरानी नहीं हो रही, इसको कोई फरक ही नहीं पढ़ रहा। ये वैसे ही खुश है, कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दे रहा।

🔷 अब अमीर आदमी पूछता है: आप खुश हैं ना? वो रिक्शा वाला कहते है: जी साहेब बिलकुल खुश हूँ। अमीर आदमी फिर पूछता है: आप आराम में  हैं ना? रिक्शा वाला कहता है: जी बिलकुल आरामदायक हूँ।

🔶 अब अमीर आदमी तय करता है कि इसको उसी रिक्शा पर वापस छोड़ दिया जाये। वहाँ जाकर ही इसको इन बेहतरीन चीजो का एहसास होगा। क्योंकि वहाँ जाकर ये इन सब बेहतरीन चीजो को याद करेगा।

🔷 अमीर आदमी अपने सेक्रेटरी को बोलता है की इसको कह दो कि आपने दिखावे के लिए कह दिया कि आप खुश हो, आप आरामदायक हो। लेकिन साहब समझ गये है कि आप खुश नहीं हो आराम में नहीं हो। इसलिए आपको उसी रिक्शा के पास छोड़ दिया जाएगा।”

🔶 सेक्रेटरी के ऐसा कहने पर रिक्शा वाला कहता है: ठीक है सर, जैसे आप चाहे, जब आप चाहे। उसे वापस उसी जगह पर छोड़ दिया जाता है जहाँ पर उसका रिक्शा था।  अब वो अमीर आदमी अपने गाड़ी के काले शीशे ऊँचे करके उसे देखता है।

🔷 रिक्शे वाले ने अपनी सीट उठाई बैग में से काला सा, गन्दा सा, मेला सा कपड़ा निकाला, रिक्शा को साफ़ किया, मज़े में बैठ गया और वही गाना गुन-गुनाने लगा। अमीर आदमी अपने सेक्रेटरी से पूछता है: “कि चक्कर क्या है। इसको कोई फरक ही नहीं पड रहा इतनी आरामदायक वाली, इतनी बेहतरीन जिंदगी को ठुकरा के वापस इस कठिन जिंदगी में आना और फिर वैसे ही खुश होना, वैसे ही गुन-गुनाना।”

🔶 फिर वो सेक्रेटरी उस अमीर आदमी को कहता है: “सर यह एक कामियाब इन्सान की पहचान है। एक कामियाब इन्सान वर्तमान में जीता है, उसको मनोरंजन (Enjoy) करता है और बढ़िया जिंदगी की उम्मीद में अपना वर्तमान खराब नहीं करता। अगर उससे भी बढ़िया जिंदगी मिल गई तो उसे भी वेलकम करता है उसको भी मनोरंजन (enjoy) करता है उसे भी भोगता है और उस वर्तमान को भी ख़राब नहीं करता। और अगर जिंदगी में दुबारा कोई बुरा दिन देखना पड़े तो वो भी उस वर्तमान को उतने ही ख़ुशी से, उतने ही आनंद से, उतने ही मज़े से, भोगता है मनोरंजन करता है और उसी में आनंद लेता है।”

🔷 बहनों और भाइयों, कामयाबी आपके ख़ुशी में छुपी है, और अच्छे दिनों की उम्मीद में अपने वर्तमान को ख़राब नहीं करें। और न ही कम अच्छे दिनों में ज्यादा अच्छे दिनों को याद करके अपने वर्तमान को ख़राब करना है।

👉 आज का सद्चिंतन 3 October 2018


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 3 October 2018


👉 परिवर्तन के महान् क्षण (भाग 19)

👉 त्रिधा भक्ति एवं उसकी अद्भुत सिद्धि 
 
🔶 युग साहित्य का सृजन इतनी बड़ी मात्रा में बन पड़ा। उसका इतनी भाषाओं में अनुवाद हुआ कि उस सारे संग्रह को किसी एक मनुष्य के शरीर जितना भारी तोला जा सकता है। इसी लेखन की हर पंक्ति ऐसी है जिसके सम्बन्ध में यही कहा जा सकता है कि किसी ने भारी खोज, गहन मन्थन एवं व्यक्तिगत अनुभव की छत्रछाया में ही लिखा है। सामान्य बुद्धि यही कह सकती है कि एक व्यक्ति कम से कम पाँच जन्मों में अथवा पाँच शरीर से ही इतना साहित्य-सृजन कर सकता है। इस प्रयास को भी यदि कोई चाहे तो सिद्ध स्तर का गिन सकता है।
  
🔷 दूसरा कार्य है— नव सृजन में कुछ कारगर भूमिका निभा सकने योग्य साथी-सहयोगियों के विशालकाय परिकर का एकत्रीकरण। इन दिनों उन सभी की संख्या जो कुछ समय पूर्व पाँच लाख भर थी, अब बढ़कर पच्चीस लाख हो गई है। यह क्रम एक से पाँच, पाँच से पच्चीस, पच्चीस से एक सौ पच्चीस, वाली गुणन-प्रक्रिया के आधार पर द्रुतगति से आगे बढ़ रहा है और आश्वासन दे रहा है कि प्रगति रुकेगी नहीं, क्षेत्रों और देशों की परिधि लाँघते हुए विश्वभर में सज्जनों के संवर्धन की प्रक्रिया पूरी करेगी।
  
🔶 तीसरी सिद्धि है— दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध संघर्ष की असाधारण रणनीति वाली मोर्चा बन्दी। साथ ही सत्प्रवृत्ति संवर्धन के लिए हजारों प्रज्ञा केन्द्रों की स्थापना और उनकी गतिविधियों में नवसृजन की, सत्प्रवृत्ति संवर्धन की रचनात्मक प्रवृत्तियों की अनवरत अभिवृद्धि।
 
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 परिवर्तन के महान् क्षण पृष्ठ 22

👉 Lotus flower

🔶 The lotus is the most beautiful flower, whose petals open one by one. But it will only grow in the mud. In order to grow and gain wisdom, first you must have the mud --- the obstacles of life and its suffering. ... The mud speaks of the common ground that humans share, no matter what our stations in life. ... Whether we have it all or we have nothing, we are all faced with the same obstacles: sadness, loss, illness, dying and death. If we are to strive as human beings to gain more wisdom, more kindness and more compassion, we must have the intention to grow as a lot, open each petal one by one.

~ Goldie Hawn

👉 शबरी की महत्ता

🔶 शबरी यद्यपि जाति की भीलनी थी किन्तु उसके हृदय में भगवान की सच्ची भक्ति भरी हुई थी। बाहर से वह जितनी गन्दी दीख पड़ती थी, अन्दर से उसका अन्तःकरण उतना ही पवित्र और स्वच्छ था। वह जो कुछ करती भगवान के नाम पर करती भगवान् के दर्शनों की उसे बड़ी लालसा थी और उसे विश्वास भी था कि एक दिन उसे भगवान् के दर्शन अवश्य होंगे। शबरी जहाँ रहती थी उस वन में अनेक ऋषियों के आश्रम थे। उसकी उन ऋषियों की सेवा करने और उनसे भगवान की कथा सुनने की बड़ी इच्छा रहती थी। अनेक ऋषियों ने उसे नीच जाति की होने के कारण कथा सुनाना स्वीकार नहीं किया और श्वान की भाँति दुत्कार दिया। किन्तु इससे उसके हृदय में न कोई क्षोभ उत्पन्न हुआ और न निराशा। उसने ऋषियों की सेवा करने की एक युक्ति निकाल ली।

🔷 वह प्रतिदिन ऋषियों के आश्रम से सरिता तक का पथ बुहारकर कुश-कंटकों से रहित कर देती और उनके उपयोग के लिये जंगल से लकड़ियाँ काटकर आश्रम के सामने रख देती। शबरी का यह क्रम महीनों चलता रहा किन्तु किसी ऋषि को यह पता न चला कि उनकी यह परोक्ष सेवा करने वाला है कौन? इस गोपनीयता का कारण यह था कि शबरी आधी रात रहे ही जाकर अपना काम पूरा कर आया करती थी। जब यह कार्यक्रम बहुत समय तक अविरल रूप से चलता रहा तो ऋषियों को अपने परोक्ष सेवक का पता लगाने की अतीव जिज्ञासा हो उठी । निदान उन्होंने एक रात जागकर पता लगा ही लिया कि यह वही भीलनी है जिसे अनेक  बार दुत्कार कर द्वार से भगाया जा चुका था।

🔶 तपस्वियों ने अन्त्यज महिजा की सेवा स्वीकार करने में परम्पराओं पर आघात होते देखा और उसे उनके धर्म-कर्मों में किसी प्रकार भाग न लेने के लिये धमकाने लगे। मातंग ऋषि से यह न देखा गया। वे शबरी को अपनी कुटी के समीप ठहराने के लिये ले गये। भगवान राम जब वनवास गये तो उन्होंने मातंग ऋषि को सर्वोपरि मानकर उन्हें सबसे पहले छाती से लगाया और शबरी के झूठे बेर प्रेमपूर्वक चख-चखकर खाये।

📖 अखण्ड ज्योति अप्रैल 1967 पृष्ठ 7
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1967/April/v1.7

👉 फैशन का कलंक धो डालिये (भाग 2)

🔶 ट्रांजिस्टर रेडियो तो आज के भारतीय नौजवानों का ‘बगल-बच्चा’ बन गया है। जिसे देखो, बैग की तरह लटकाये, झोले की तरह कन्धे पर डाले, पुस्तक की तरह हाथ में लिए अथवा किसी बड़े पूजा-पात्र की तरह दोनों हाथों में संभाले घूम रहा है, जब कि उनके पास उसका कोई उपयोग नहीं है। महज एक फैशन तथा दिखावा भर है। अन्य नागरिकों को तो छोड़ दीजिए न जाने कितने रिक्शे, तांगे वाले, ट्रांजिस्टर सेटों को अपने तांगों तथा रिक्शों में लटकाये दीखते हैं। इस प्रकार के बचकाने फैशन बनाने अथवा प्रदर्शनों में लोग कौन सा सौन्दर्य और कौन-सी विशेषता समझते हैं? उन्हें अपने तथा अपनी इन क्रियाओं के बीच असंगति का भी तो बोध होता नजर नहीं आता। वे यह बात तनिक भी तो अनुभव नहीं कर पाते कि उनका यह मूर्खतापूर्ण प्रदर्शन उनको उपहासास्पद बना देता है।

🔷 पहनावों तथा कपड़ों का फैशन तो आज पराकाष्ठा से भी आगे निकल गया है। कपड़ों की किस्मों की यदि आज सूची बनाई जाये तो वह एक बड़े पुराण से भी मोटा ग्रन्थ बन जायेगा और इससे भी मोटी वस्त्रों की सिलाई के प्रकारों की सूची बनेगी। आज शायद ही कोई ऐसा बदकिस्मत फूल अथवा फिल्म ऐक्टर-ऐक्ट्रैस हो। इतना ही नहीं साधु-सन्तों के रामनामी दुपट्टों की तरह अभिनेताओं के नामांकित कपड़े पहनने में लोग गौरव अनुभव करते हैं। फिल्मों के दृश्य तक आज नौजवानों के वस्त्रों पर अंकित देखे जा सकते हैं। जहां कभी अधिक से अधिक कपड़ों पर फूल-पत्तियां हंस, मयूरों अथवा पेड़ पौधों की छाप हुआ करती थी और जिनको भी भद्र लोग पसन्द नहीं करते थे, वहां आज अश्लील फिल्मों के अश्लील चित्र छपे दिखलाई देते हैं और नौजवान नागरिक उन्हें शौक से पहनते और शान समझते हैं। न जाने क्या हो गया है इस भारत को—भारत के नौजवान वर्ग को?

🔶 आज का भारतीय नौजवान यह क्यों नहीं सोच पाता कि उसका देश गरीब है, आज उसे उसकी फैशनपरस्ती की आवश्यकता नहीं है, उसे जरूरत है उसकी मेहनत, मशक्कत और परिश्रम-परिश्तिस की! उसे इस बात से आत्मग्लानि क्यों नहीं होती कि आज उसका अर्धनंगा भूखा राष्ट्र अन्य राष्ट्रों से अन्न की भीख मांग रहा है और वह इस प्रकार के फिजूलखर्च फैशन प्रदर्शन में अन्धा बना हुआ है! वह यह जानने समझने की कोशिश क्यों नहीं करता कि वह जिस देश का नागरिक है और जिसके उत्थान पतन का कुछ दायित्व उसके कन्धों पर भी है, उसकी औसत आय पांच-छः आना प्रति-दिन से अधिक नहीं है। आज उसके टूटी सड़कों और फूटे मकानों वाले देश में टेरालीन, डेकरौन और नाइलौन जैसे कपड़ों की क्या शोभा है? धूल उड़ाती गलियों और दुर्गन्धित बस्तियों के बीच उसके इन वस्त्रों की क्या संगति है?

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 भारतीय संस्कृति की रक्षा कीजिए पृष्ठ 110

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...