बुधवार, 26 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 26 July 2023

चलते रहो-चलते रहो, इसका तात्पर्य विस्तृत है। इसका एक अर्थ यह भी है कि कुछ न कुछ कार्य करते रहो। आलस्य में निष्क्रिय जीवन व्यतीत न करो। एक कार्य के पश्चात् दूसरा कोई नवीन कार्य आरंभ करो। मानसिक कार्य के पश्चात् शारीरिक, शारीरिक श्रम के पश्चात् मानसिक कार्य-यह क्रम रखने से मनुष्य निरन्तर कार्यशीलता का जीवन व्यतीत कर सकता है। आलसी व्यक्ति परिवार तथा समाज का शत्रु है।

सुसंस्कार किसी पूजा-पाठ या कर्मकाण्ड से नहीं जम सकते। कथा-कीर्तन से लेकर तीर्थयात्रा तक के क्रिया-कृत्यों से भी वह प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। योगाभ्यास और तप-साधना की शारीरिक, मानसिक कसरतें भी उस आवश्यकता की पूर्ति नहीं करतीं। इन समस्त आचरणों का मूल उद्देश्य एक ही है-उच्च स्तरीय आस्थाओं, आकाँक्षाओं, आदर्शों की अंतःकरण में इतनी सघन स्थापना जिसकी प्रेरणा से अपनी गतिविधियाँ केवल श्रेष्ठ सत्कर्मों की दिशा में ही गतिशील रह सकें।

खेद का विषय है कि हम नित्य प्रति के जीवन में विचार शक्ति का बड़ा अपव्यय करते हैं। जितनी शक्ति फिजूद बर्बाद होती है उसके थोड़े से भाग को यदि उचित रीति से इस्तेमाल करें तो स्वभाव तथा आदतें आसानी से बदली जा सकती है। जिस समय विचारधारा नीचे से ऊपर को चढ़ती है तो मनुष्य स्वयं अपना मित्र बन जाता है। जब विचारधारा ऊपर से नीचे को गिरती है तो वह अपने आप ही अपना शत्रु बन जाता है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 सम्पदा को रोकें नहीं

परमात्मा के अनन्त वैभव से विश्व में कमी किसी बात की नहीं। भगवान् आपके हैं और उसके राजकुमार के नाते सृष्टि की हर वस्तु पर आपका समग्र अधिकार है। उसमें से जब जिस चीज की जितनी आवश्यकता हो, उतनी लें और आवश्यकता निबटते ही अगली बात सोचें। संसार में सुखी और सम्पन्न रहने का यही तरीका है।  

बादल अपने, नदी अपनी, पहाड़ अपने और वन खाद्यान्न अपने। इनमें से जब जिसके साथ रहना हो, रहें। जिसका जितना उपयोग करना हो करें। कोई रोक- टोक नहीं है। नदी को रोक कर यदि अपना बनाना चाहेंगे और किसी दूसरे को पास न आने देंगे, उपयोग न करने देंगे, तो समस्या उत्पन्न होगी। एक जगह जमा किया हुआ पानी अमर्यादित होकर बाढ़ के रूप में उफनने लगेगा और आपके निजी खेत- खलिहानों को ही डुबो देगा।

बहती हुई हवा कितनी ही सुरभित क्यों न हो, उसे आप अपने ही पेट में  भरना चाहेंगे, तो पेट फूलेगा, फटेगा, औचित्य इसी में है कि जितनी जगह फेफड़ों में हो उतनी ही श्वास में और बाकी हवा दूसरों के लिये छोड़ दें। मिल- बांटकर खाने की यह नीति ही सुखकर है।

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👉 विधाता के बहुमूल्य उपहार

एक सच्चे मित्र की तरह जीवन का हर प्रभात तुम्हारे लिए अभिनव उपहार लेकर आता है। वह चाहता है कि आप उसके उपहारों को उत्साहपूर्वक ग्रहण करें। उससे उज्ज्वल भविष्य का शृंगार करें। उसकी प्रतीक्षा रहती है कि कब नया दिन गया है, उसका महत्व समझें और आदर पूर्वक ग्रहण करें।    

किन्तु जो दिया गया है, उसका मूल्य नहीं समझा जाता और कूड़े करकट की तरह फेंक दिया जाता है, तो निराश होकर लौट जाता है। बार- बार अवज्ञा होने पर पुनः अपरिचित राही की तरह आता है और निराश होकर लौट जाता है।

ईश्वर ने मनुष्य को अपार सम्पदाओं से भरा- पूरा जीवन दिया है, पर वह पोटली बाँधकर नहीं, एक- एक खण्ड के रूप में गिन- गिन कर। नया खण्ड देने से पहले पुराने का  ब्यौरा पूछता है कि उसका क्या हुआ? जो उत्साह भरा ब्यौरा बताते हैं, वे नये मूल्यवान खण्ड पाते हैं। दानी मित्र तब बहुत निराश होता है, जब देखता है कि उसके पिछले अनुदान धूल में फेंक दिये गये।

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...