मंगलवार, 18 अप्रैल 2023

👉 क्रोध हमारा आन्तरिक शत्रु है (भाग 5)

क्रोध एक प्रकार का भूत है जिसके संचार होते ही मनुष्य आपे में नहीं रहता। उस पर किसी दूसरी सत्ता का प्रभाव हो जाता है। मन की निष्ठ वृत्तियाँ उस पर अपनी राक्षसी माया चढ़ा देती हैं, वह बेचारा इतना हत बुद्धि हो जाता है कि उसे यह ज्ञान ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है।

आधुनिक मनुष्य का आन्तरिक जीवन और मानसिक अवस्था अत्यन्त विक्षुब्ध है, दूसरों में वह अनिष्ट देखता है, उनसे हानि होने की कुकल्पना में डूबा रहता है, जीवन पर्यन्त इधर उधर लुढ़कता, ठुकराया जाता रहता है, शोक दुःख, चिंता, अविश्वास, उद्वेग, व्याकुलता आदि विकारों के वशीभूत होता रहता है। ये क्रोध जन्य मनोविकार अपना विष फैलाकर मनुष्य का जीवन विषैला बना रहे हैं। उसकी आध्यात्मिक शक्तियों का शोषण कर रहे हैं। साधना का सबसे बड़ा विघ्न क्रोध नाम का महाराक्षस ही है।

क्रोध शान्ति भंग करने वाला मनोविकार है। एक बार क्रोध आते ही मन को अवस्था विचलित हो उठती है, श्वासोच्छवास तीव्र हो उठता है, हृदय विक्षुब्ध हो उठता है। यह अवस्था आत्मिक विकास के विपरीत है। आत्मिक उन्नति के लिए शान्ति, प्रसन्नता, प्रेम और सद्भाव चाहिए।

🔶 जो व्यक्ति क्रोध के वश में है, वह एक ऐसे दैत्य के वश में है, जो न जाने कब मनुष्य को पतन के मार्ग में धकेल दे। क्रोध तथा आवेश के विचार आत्म बल का ह्रास करते हैं।

.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति मई 1950 पृष्ठ 17


All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 18 April 2023

विचार क्रान्ति-जिसका अर्थ है मनुष्य की आस्था के स्तर को निकृष्टता से विरत कर उत्कृष्टता की ओर अभिमुख करना, आज की यह सबसे बड़ी आवश्यकता है।  युग की यही पुकार है। संसार का उज्ज्वल भविष्य इसी प्रक्रिया द्वारा संभव है। इतने आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण प्रयोजन की पूर्ति के लिए हर प्रबुद्ध व्यक्ति को कुछ सोचना ही होगा, अन्यमनस्क बैठे रहने से तो हम अपनी आत्मा के सामने कर्त्तव्यघात के अपराधी ही ठहरेंगे।

यदि आप महत्त्वाकाँक्षी हैं, जीवन में उन्नति एवं विकास का कोई ऊँचा लक्ष्य पाना चाहते हैं, तो प्रगति पथ के इन तीन शत्रुओं-आवेश, असहनशीलता तथा अदूरदर्शिता को निकाल डालिये और प्रतिक्षण सावधान रह कर श्रेय पथ पर आगे बढ़िये। आपकी आकाँक्षाएँ सफल होंगी। आपका उद्योग, उद्यम तथा परिश्रम और पुरुषार्थ फल जाएगा।

प्रभु समदर्शी है। वह सबका पिता है। उसे अपने सभी पुत्र समान रूप से प्यारे हैं। वह किसी के बीच भेदभाव नहीं बरतता। सबको समान दृष्टि से देखता है और सब पर समान कृपा रखता है। उसे पक्षपाती कहना उसकी महिमा, गरिमा और उसके ऐश्वर्य के प्रति धृष्टता करना है। अपने सुख-दुःख और अच्छी-बुरी परिस्थितियों का कारण मनुष्य स्वयं है, परमात्मा अथवा अन्य कोई व्यक्ति, शक्ति अथवा वस्तु नहीं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...