मंगलवार, 4 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 4 July 2023

युग निर्माण परिवार के सदस्यों की दृष्टि अनौचित्य के प्रति अत्यन्त कड़ी रहनी चाहिए। जहाँ भी वह पनपे, सिर उठाये वहीं उसके असहयोग एवं विरोध प्रदर्शन से लेकर दबाव देने तक की प्रतिक्रिया उठ खड़ी होनी चाहिए। अनौचित्य के प्रति हममें से प्रत्येक में प्रचण्ड रोष एवं आक्रोश भरा रहना चाहिए। इतनी जागरूकता के बिना दुष्प्रवृत्तियाँ रूक नहीं सकेंगी। छिपाने, समझौता कर लेने से सामयिक निन्दा से तो बचा जा सकता है, पर इससे सड़न का विष भीतर ही भीतर पनपता रहेगा और पूरे अंग को गलाकर नष्ट कर देगा।

हमारा युग निर्माण परिवार बढ़ेगा। उसमें अवांछनीय घटनाएँ भी होती रहेंगी, इतने बड़े समुदाय में एक भी अपूर्ण, अपवित्र व्यक्ति न तो पैदा होगा और न प्रवेश कर सकेगा इसकी अपेक्षा नहीं की जा सकती, पर वह दृष्टि जीवन्त रहनी चाहिए कि श्रद्धा के साथ विवेक कायम रखा जाय। औचित्य का समर्थन करते हुए अनौचित्य की संभावना को नजरअंदाज न किया जाय। अति श्रद्धा और अति विश्वास भी इस जमाने में जोखिम भरा है। इसलिए नीति समर्थक और अनीति निरोधक दृष्टि सदा पैनी रखी जाय और सड़न पनपने से पहले  उसकी रोकथाम कर दी जाय।

सैनिकों द्वारा लड़े जाने वाले गोला-बारूद वाले युद्ध को हम रोकना चाहते हैं, पर इस प्रकार के विश्वव्यापी युद्ध के पक्ष में हैं, जो जन-जन द्वारा पग-पग पर अज्ञान और अनाचार के-कुत्साओं और कुंठाओं के विरुद्ध अतीव शौर्य और साहस के साथ लड़ा जाये। हमारा विश्वास है कि यही संसार का अंतिम युद्ध होगा। तब जिओ और जीने दो और सादा जीवन-उच्च विचार जैसे उच्च आदर्शों के अनुरूप नई दुनिया का नवनिर्माण संभव हो सकेगा।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 परिस्थितियों के अनुकूल बनिये। (भाग 1)

हमारे एक मित्र की ऐसी आदत है कि जब तक सब कुछ चीजें यथास्थान न हो, सफाई, शान्ति, और उचित वातावरण न हो, तब तक वे कुछ भी नहीं कर पाते। घर पर आते ही चीजों को इधर-उधर यथा स्थान न पाकर वे बिगड़ उठते हैं, उनकी मानसिक शान्ति विचलित हो उठती है।
 
इस प्रकार के आदर्शवादी संसार में कम नहीं हैं। वे चाहते हैं कि संसार में उच्चता, पवित्रता, स्वच्छता, शुद्धता एवं शान्ति प्राप्त हो। इनके अभाव में प्रायः क्रुद्ध हुए रहते हैं। उनका मन क्रोध से भरा रहता है। वे परिस्थितियों को दोष देते हैं। कहते हैं “क्या करें, हमें तो अवकाश ही नहीं मिलता। कार्य करें, तो किस प्रकार करें। कभी कुछ हमें उलझाये ही रहता है।” परिस्थितियों की अनुकूलता की ही प्रतीक्षा में से व्यक्ति दिन सप्ताह और वर्ष बरबाद कर रहे हैं।

परिस्थितियों की अनुकूलता की प्रतिज्ञा करते-2 मूल उद्देश्य दूर पड़ा रह जाता है। हमें जीवन में जो कष्ट है, जो हमारा लक्ष्य है, उसे हम परिस्थिति के प्रपंच में पड़ कर विस्मृत कर रहे हैं।

हमने अपनी मनः स्थिति ऐसी संवेदनशील बना ली है कि सूक्ष्म सी बात से ही हम विचलित हो उठते हैं। आदर्श परिस्थितियाँ इस व्यस्त संसार में दुष्प्राय हैं। कुछ न कुछ कमी, कुछ अड़चन, मामूली बीमारियाँ, मौसम का परिवर्तन, भाग्य की करवटें सदा चलती रहेंगी। समय के साथ परिस्थितियाँ बदलती जायेंगी। संभव है वे आपके विपक्ष में हों या आपको प्रतीत हो कि महान संकट आने वाला है, फिर भी हमें अपने मूल उद्देश्य को दृष्टि से दूर नहीं करना चाहिए।

.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति मई 1949 पृष्ठ 16

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...