रविवार, 20 मई 2018

👉 स्वर्ग का मार्ग:-

🔶 महात्मा बुद्ध के समय की बात है। उन दिनों मृत्यु के पश्चात आत्मा को स्वर्ग में प्रवेश कराने के लिए कुछ विशेष कर्मकांड कराये जाते थे। होता ये था कि एक घड़े में कुछ छोटे-छोटे पत्थर डाल दिए जाते और पूजा-हवन इत्यादि करने के बाद उस पर किसी धातु से चोट की जाती, अगर घड़ा फूट जाता और पत्थर निकल जाते तो उसे इस बात का संकेत समझा जाता कि आत्मा अपने पाप से मुक्त हो गयी है और उसे स्वर्ग में स्थान मिल गया है।

🔷 चूँकि घड़ा मिटटी का होता था इसलिए इस प्रक्रिया में हमेशा ही घड़ा फूट जाता और आत्मा स्वर्ग को प्राप्त हो जाती और ऐसा कराने के बदले में पंडित खूब दान-दक्षिणा लेते।

🔶 अपने पिता की मृत्यु के बाद एक युवक ने सोचा क्यों न आत्मा-शुद्धि के लिए महात्मा बुद्ध की मदद ली जाए, वे अवश्य ही आत्मा को स्वर्ग दिलाने का कोई और बेहतर और निश्चित रास्ता जानते होंगे। इसी सोच के साथ वो महात्मा बुद्ध के समक्ष पहुंचा।

🔷 उसने कहा, “हे महात्मन! मेरे पिता जी नहीं रहे, कृपया आप कोई ऐसा उपाय बताएं कि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी आत्मा को स्वर्ग में ही स्थान मिले।”

🔶 बुद्ध बोले, “ठीक है, जैसा मैं कहता हूँ वैसा करना…तुम उन पंडितों से दो घड़े लेकर आना। एक में पत्थर और दूसरे में घी भर देना। दोनों घड़ों को नदी पर लेकर जाना और उन्हें इतना डुबोना कि बस उनका उपारी भाग ही दिखे। उसके बाद पंडितों ने जो मन्त्र तुम्हे सिखाये हैं उन्हें जोर-जोर से बोलना और अंत में धातु से बनी हथौड़ी से उनपर नीचे से चोट करना। और ये सब करने के बाद मुझे बताना कि क्या देखा?”

🔷 युवक बहुत खुश था उसे लगा कि बुद्ध द्वारा बताई गयी इस प्रक्रिया से निश्चित ही उसके पिता के सब पाप काट जायेंगे और उनकी आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होगी।

🔶 अगले दिन युवक ने ठीक वैसा ही किया और सब करने के बाद वह बुद्ध के समक्ष उपस्थित हुआ।

🔷 बुद्ध ने पूछा , “आओ पुत्र, बताओ तुमने क्या देखा?”

🔶 युवक बोला, “मैंने आपके कहे अनुसार पत्थर और घी से भरे घड़ों को पानी में डाल कर चोट की। जैसे ही मैंने पत्थर वाले घड़े पर प्रहार किया घड़ा टूट गया और पत्थर पानी में डूब गए। उसके बाद मैंने घी वाले घड़े पर वार किया, वह घड़ा भी तत्काल फूट गया और घी नदी के बहाव की दिशा में बहने लगा।”

🔷 बुद्ध बोले, “ठीक है! अब जाओ और उन पंडितों से कहो कि कोई ऐसी पूजा, यज्ञ, इत्यादि करें कि वे पत्थर पानी के ऊपर तैरने लगें और घी नदी की सतह पर जाकर बैठ जाए।”

🔶 युवक हैरान होते हुए बोला, “ आप कैसी बात करते हैं? पंडित चाहे कितनी भी पूजा करे लें पत्थर कभी पानी पे नहीं तैर सकता और घी कभी नदी की सतह पर जाकर नहीं बैठ सकता!”

🔷 बुद्ध बोले, “ बिलकुल सही, और ठीक ऐसा ही तुम्हारे पिताजी के साथ है। उन्होंने अपने जीवन में जो भी अच्छे कर्म किये हैं वो उन्हें स्वर्ग की तरफ उठाएंगे और जो भी बुरे कर्म किये हैं वे उन्हें नरक की और खीचेंगे। और तुम चाहे जितनी भी पूजा करा लो, कर्मकाण्ड करा लो, तुम उनके कर्मफल को रत्ती भर भी नहीं बदल सकते।”

🔶 युवक बुद्ध की बात समझ चुका था कि मृत्यु के पश्चात स्वर्ग जाने का सिर्फ एक ही मार्ग है और वो है जीवित रहते हुए अच्छे कर्म करना।

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 21 May 2018


👉 आज का सद्चिंतन 21 May 2018


👉 सफलता की कुँजी

🔶 डरो मत। श्रद्धा करो। दुःख और आपत्ति की छाया से घिरने पर भी मत डरो। तुम अविनाशी परमात्मा के पुत्र हो। वह दिव्य अखंड ज्योति तुम्हारे अंधकार को नष्ट कर देगी। धीर बनो। तुम्हारे भीतर वह शक्ति है जो तुम्हें प्रत्येक परिस्थिति का मालिक बना देगी। उच्च विचारों का आवाहन करो। हृदय को वीर, हाथ को बलवान और इच्छा को अचल बनाओ। सत् चित् और आनंद की प्राप्ति के लिए अपनी शक्ति में श्रद्धा करो। सब में जीवन और स्फूर्ति का संचार करो। धैर्य आशा और दृढ़ निश्चय को धारण करो। जिम्मेदारियों को सिर पर लोगे, बल और साहस दिखाओगे तो निश्चय ही तुम्हें सफलता प्राप्त होगी।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति अगस्त 1940 पृष्ठ 1
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1940/August/v1

👉 कृपा कर क्रोध मत कीजिए (भाग 2)

🔶 क्रोध का स्वभाव है कि यदि वह क्षणभर के लिए रोक दिया जाय, तो वह सब समय के लिए रुक जाता है। विलियम जेम्स का कथन है कि क्रोध आने पर दस तक गिनती कहो तो क्रोध विलीन हो जाता है। क्रोध की अवस्था में हम कभी−कभी बालक जैसा व्यवहार करने लगते हैं−पीछे ऐसे व्यवहार पर ही आत्म ग्लानि होने लगती है, अथवा उन पर हँसी आती है। ऐसा एक बार होने पर कई बार ऐसा ही हम करते रहते हैं। यही जीवन का भारी रहस्य है। बड़े−बड़े विद्वान् जब क्रुद्ध होते हैं, तब अपना सिर आप ही फोड़ने लगते हैं। अपना ही नुकसान करने से उन्हें सन्तोष होता है। इस प्रकार बराबर क्रोध प्रदर्शन करने से उनका स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है, तो कितने ही लोग समय से पूर्व ही काल−कवलित हो जाते हैं। इन सब बातों को जान कर भी क्रोध रोके नहीं रुकता। फिर रोकने का उपाय क्या है?

🔷 अभिमान की कमी और प्रेम की वृद्धि क्रोध को रोकती है। जिन्हें बातों से अभिमान की वृद्धि होती है, उन्हें त्यागना चाहिए। चापलूसी की बातें सुनने से अभिमान की वृद्धि होती है। अभिमान की वृद्धि मानसिक शक्ति के ह्रास का सूचक है। जिस प्रकार विद्युत−शक्ति के रखने के लिए इन्स्यूलेटर की जरूरत पड़ती है उसी प्रकार मानसिक शक्ति को कायम रखने के लिये इन्स्यूलेटर की जरूरत है। अतएव जिस व्यक्ति को अपनी मानसिक शक्ति कायम रखना है, उसे जान बूझकर प्रतिदिन अपने साथियों से थोड़ी देर के लिए अलग हो जाना चाहिए। उसे सब समय समाज में न रहना चाहिए।

🔶 समाज के लोगों में उनकी सेवा करने के लिए तथा अपने प्रेम−प्रदर्शन भर के लिए आना चाहिए, पीछे उसे अपने आप में चला जाना चाहिए। जो मनुष्य किसी भारी विचार में लगा रहता है वह सामाजिक कार्यों में उतना ही भाग लेता है, जितना कि अति आवश्यक है। ऐसा करने से वह अपनी मानसिक शक्ति का ह्रास नहीं होने देता। उसके ध्वंसात्मक संवेग पहल से ही निर्बल हो जाते हैं, और अगर वे किसी समय उत्तेजित भी हुए तो वह उन्हें सरलता से काबू में कर लेता है।
📖 अखण्ड ज्योति, अप्रैल 1955 पृष्ठ 6
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1955/April/v1.6

👉 Awakening Divinity in Man (Part 7)

Meaning and Purpose of Worship
🔶 Why do we worship the divine?  To condition and remind our minds of our divine origin. True worship of God means only one thing –the cultivation of nobility in thoughts, motives, speech and action. If you think that by worshiping a particular God you will gain material success or fulfill a specific desire–– then it is a wrong delusion. Worshiping God with sincerity results in enhancement of virtues like generosity, compassion and warmth in your psyche.

🔷 It brings about a positive change in the attitude of the devotee towards life. If you have not performed worship in its true sense, then you are likely to be lost in a maze of lifeless mechanical rituals. You should worship in such a way that you also get the gifts of grace bestowed on true devotees present and past. Your virtues, character, actions, behavior, thoughts and sentiments must improve as a result of worship. This is what shows the activation of divinity in life. If you attain this state, great opportunities will knock at your door.

🔶 Glance through the cultural history of India –– all the great names in it are of those who served the noble cause for the good of all and not of those who earned scholastic laurels. Have you heard of Mahamana Malviyaji? He was an ordinary person who became a great personage through sincere worship of divinity as he conceived it.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya

👉 भगवान कैसे दिखाई देंगे? (अन्तिम भाग)

🔶 भगवान श्रीकृष्ण का सच्चा भक्त अपने कृष्ण को समस्त संसार में देखता है जिस ओर उसकी दृष्टि जाती है, उधर ही उसे कृष्ण दिखाई देते हैं। उसे दिव्य योग के चक्षु और योग की दृष्टि प्राप्त हो गई है।

🔷 ऐसा सोचना कि तुम दुनिया से पृथक हो, भारी मूर्खता है। तुम दुनिया में हो और दुनिया तुम में है दुनिया के किसी प्राणी को कष्ट पहुँचाना तुम्हें अपने को ही कष्ट पहुँचाने के बराबर है। विश्व रंजन का हानि लाभ तुम्हारा ही हानि लाभ है। चन्द्रशेखर को प्रेम करना अपने को ही प्रेम करना है। दुई का भाव निकाल दो। दुई में मृत्यु है और एकत्व में असली जीवन है।

🔶 मित्रो! भगवान के दर्शन पाना बहुत कठिन नहीं है। उन प्रभु को प्रसन्न करना उतना अधिक कठिन नहीं है। वे सर्वव्यापी और घट-घट वासी हैं। वे तुम्हारे हृदय में निवास करते हैं। उन्हीं का सदैव चिन्तन करो। उनके साकार और सगुण रूप का ही ध्यान करो। नित्य ऐसी प्रार्थना करो-हे भगवान! मुझ पर दया करो। मेरी अन्तः दृष्टि खोल दो। मुझे दिव्य चक्षु प्रदान करो। मुझ पर ऐसी अनन्त दृष्टि कृपा कर दो कि मैं विश्व रूप दर्शन कर सकूँ। भक्त गण आपको पतित-पावन कह कर आपके गुणों का गान करते हैं। भक्तवत्सल! दीनदयाल!! मुझ पर भी दया करो। हे दयासागर! जिस प्रकार पक्षी अपने बालकों को अपने पंखों के भीतर छुपा कर रक्षा करते हैं, उसी प्रकार तुम भी मुझे अपनी चिर-शान्तिदायिनी शरण में लेकर मेरा उद्गार करो।

🔷 ऐसी प्रार्थना सच्चे हृदय से, प्रेम और निष्ठा से नित्य करने पर अवश्य ही तुम्हें भगवान के दर्शन होंगे। तब तुम सा भाग्यवान फिर कौन होगा?

✍🏻 श्री स्वामी शिवानन्दजी सरस्वती
📖 अखण्ड-ज्योति 1946 नवम्बर पृष्ठ 6
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1946/November/v1.6

👉 गुरुगीता (भाग 115)

👉 कष्टों में भी प्रसन्न रखती है- गुरूभक्ति

🔶 गुरूगीता के गायन से शिष्यों को मन चाहे वरदान मिलते हैं। लेकिन जो शिष्य है, उसके मन में केवल एक चाहत जगती है- अपने सद्गुरू से मिलन की चाहत। जिसे सांसारिक कामनाएँ ,वासनाएँ एवं लालसाएँ छूती हैं, समझो वह अभी शिष्य नहीं ।। हाँ, इतना जरूर है कि इस पाप पंक में फँसे हुए लोगों पर भी गुरू भक्त शिष्यों का दया आती है। दयावश वे इनकी मदद भी करते हैं। परन्तु सांसारिक कामनाओं के कीचड़ में वे कभी भी फँसना- उलझना नहीं चाहते हैं। यही वजह है कि कई बार ऐसे सांसारिक लोग इन सच्चे गुरूभक्तों को असफल मान लेते हैं। वे इनकी आध्यात्मिक विभूतियों को समझ ही नहीं पाते। उन्हें अनुमान ही नहीं हो पाता कि गुरूगीता का गायन करने वाले इन गुरूभक्त शिष्यों के आध्यात्मिक रहस्य क्या है और कितने हैं? यदि उनके जीवन में साधनाओं के साथ परेशानियाँ भी हैं तो इनके कारण क्या हैं?

🔷 गुरूगीता गाथा के पिछले क्रम में इस सत्य का सांकेतिक उल्लेख किया गया है। इसमें बताया गया है कि गुरूगीता की साधना सभी प्राणियों का सम्मोहन करने वाली है। इससे सभी प्राणियों को छुटकारा मिलता है। इससे सभी शत्रुओं एवं दुर्गुणों का स्तम्भन होता है, गुणों में बढ़ोत्तरी होती है। गुरूगीता की यह साधना दुरूकर्मों का नाश करके सत्कर्मों की सिद्धि देती है। इस साधना से सभी असाध्य कार्य साध्य होते हैं एवं नवग्रहों की पीड़ा दूर होती है। दुःस्वप्नों का फल नष्ट होता है, बन्ध्या स्त्री भी इस साधना से पुत्रवती बनती है। इस साधना के द्वारा स्त्रियाँ अपने सौभाग्य को चिरस्थायी बनाती हैं।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ प्रणव पंड्या
📖 गुरुगीता पृष्ठ 173

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...