बुधवार, 2 दिसंबर 2020

👉 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान (भाग ७७)

करुणा कर सकती है—चंचल मन पर काबू
    
महर्षि के सूत्र का दूसरा आयाम है करुणा। करुणा दुःखी व्यक्ति के प्रति। फिर यह दुःखी कोई भी क्यों न हो। युगऋषि गुरुदेव का कहना था कि दुःखियों को प्रायः  व्यंग्य, अपमान व तिरस्कार का शिकार होना पड़ता है। न तो कोई उनकी सहायता के लिए तत्पर होता है और न कोई उनका हाथ थामता है। गुरुदेव कहते थे- जो प्रत्येक दुःखी में नारायण का दर्शन करता है, उसकी सेवा के लिए स्वयं को न्यौछावर करता है, वही सच्चा योग साधक है। ध्यान रहे सम्वेदना का एक ही अर्थ है। सम+वेदना यानि कि किसी की पीड़ा से हमें भी उतनी ही व्याकुलता होनी चाहिए जितनी कि उसकी है। पीड़ित के प्रति करुणा यही योगधर्म है। फिर वह पीड़ित कोई बुरा हो या भला। गुरुदेव कहा करते थे कि दुःखी सिर्फ दुःखी होता है, वह न भला होता है और न बुरा। वह न पापी होता है न पुण्यात्मा। वह तो सिर्फ नारायण होता है। उसके प्रति तो केवल सम्वेदनशील होकर सेवाधर्म निभाया जाना चाहिए।
    
महर्षि के सूत्र का तीसरा आयाम है- मुदिता। मुदिता सफल व्यक्ति के प्रति, पुण्यवान् के प्रति। हालांकि लोकचलन में सफल व्यक्ति केवल ईर्ष्या के पात्र बनते हैं। प्रत्यक्ष में भले ही कोई उन्हें बधाई देता रहे, प्रशंसा करता रहे, पर परोक्ष में उसे नीचा दिखाने वाले उपाय ही सोचे जाते हैं। गुरुदेव कहते थे किसी की सफलता पर हमें न केवल प्रसन्न होना चाहिए, बल्कि उससे प्रेरणा लेना चाहिए। जो जीवन की तह को जानते हैं, जीवन के मर्म से परिचित हैं, उन्हें मालूम है कि प्रत्येक सफलता केवल पुण्य का परिणाम होती है। पुण्य कर्मों के परिणाम ही व्यक्ति को सफल बनाते हैं। हालाँकि इन्हें हासिल करने के लिए व्यक्ति कभी-कभी दुष्कर्मों का भी सहारा लेता है। लेकिन सफलता कभी भी दुष्कर्मों का परिणाम  नहीं होती। इन दुष्कर्मों के कारण या तो सफलता अधूरी रह जाती है- या फिर कलंकित हो जाती है। इसलिए किसी की भी सफलता के पीछे छुपे उसके पुण्य कर्मों की ओर नजर डालकर हमें प्रसन्न होना चाहिए।
    
महर्षि के सूत्र का चौथा आयाम है- उपेक्षा। हमें उपेक्षा उनकी करनी चाहिए, जो यथार्थ में पापी हैं और कदम-कदम पर हमें नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते हैं। ऐसों के प्रति हमारे मन में न तो द्वेष रहे और न घृणा। इनसे हर पग पर हमको टकराने की भी कोई जरूरत नहीं। इनसे तो बस बचा जाना चाहिए। और इसका एक ही उपाय है-इनकी उपेक्षा। ये बेचारे हैं- इनके प्रति द्वेष भाव रखकर अपने मन को मलिन नहीं करना चाहिए। हाँ, जब परिस्थितियाँ विषमता से भरी हो और जीवन में ऐसे दुष्ट जनों की भरमार हो, तो ऐसे में इनकी उपेक्षा करके सारा ध्यान अपने तपबल बढ़ाने में लगाना चाहिए। यह तप ही हमें इन पापियों से बचाता है और इसी से जीवन की नयी राहें खुलती हैं।
    
और अन्त में इस सूत्र के उपसंहार क्रम में महर्षि कहते हैं कि व्यवहार के इन सभी चार तत्वों का अनुपालन करने से चित्त स्वच्छ हो जाता है, क्योंकि इस प्रक्रिया से अतीत में पड़ी मन की सभी गाँठें खुल जाती हैं और नयी ग्रन्थियों के होने की संभावना समाप्त हो जाती है। बस, अन्तस् का सविधि सम्पूर्ण परिष्कार ही इस व्यवहार साधना का मर्म है।

.... क्रमशः जारी
📖 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान पृष्ठ १३१
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या

👉 आत्म सुधार का मार्ग

आत्म संयम का कार्यक्रम संसार की सबसे बड़ी सेवा है। अपना आदर्श प्रस्तुत किये बिना हम दूसरों को अच्छाई की ओर एक कदम भी आगे बढ़ने की प्रेरणा नहीं दे सकते और न जिस गिरी हुई स्थिति में पड़े हुए हैं उससे ऊँचे उठ सकते हैं। इसलिए आत्मनिरीक्षण, आत्मसुधार और आत्मविकास के लिए विचार करने योजना बनाने और उस निर्धारित कार्यक्रम पर चलने का हमें नियमित प्रोग्राम बनाना चाहिए। अपने विचार और कार्यों का लेखा−जोखा रखने के लिए, डायरी में चार विभाग बना लेने चाहिए। 
(1) आज हमने साधना के लिए कितना समय लगाया और उपासना के लिए कितना समय लगाया और उपासना के कर्मकाण्ड के साथ−साथ जो भावनाऐं रखनी चाहिए वे कितनी श्रद्धा के साथ कितनी गहराई तक रखीं? 
(2) आज हमने स्वाध्याय की दृष्टि से कौन सी पुस्तकें के कितने पृष्ठ पढ़े और उन में प्राप्त हुई महत्वपूर्ण बातों पर कितनी देर मनन-चिन्तन किया? 
(3) आज हमने अपने दिन भर के विचारों और कार्यों की बड़ी समीक्षा करके उनमें क्या−क्या गुण-दोष पाये और कल उन दोषों को सुधारने एवं गुणों को बढ़ाने के लिए क्या निश्चय किया? 
(4) आज हमने दूसरों को क्या सेवा लाभ दिया? इन चारों बातों पर यदि नित्य बारीक नजर रखी जाय, इनके महत्व को सोचते-समझते रहा जाय और दैनिक जीवन में इनके लिए स्थान दिया जाता रहे तो एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति हो सकती है। ऐसी डायरी रखना और उसे नित्य लिखना प्रत्येक आत्म कल्याण के इच्छुक के लिए आवश्यक है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जून 1962 

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...