शनिवार, 15 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 15 July 2023

भारत का नारी समाज संकोच, भय छोड़कर महिला उत्कर्ष के अभियान में सम्मिलित हो यही युग की पुकार है। त्याग, बलिदान की तो उसमें कमी नहीं। लोभ, मोह छोड़ने की बात कहने को-कष्ट सहने के लिए तैयार होने का उद्बोधन करने की तो आवश्यकता प्रतीत नहीं होती, यह गुण तो उसमें प्रकृति प्रदत्त और जन्मजात है। उद्बोधन केवल संकोच और झिझक छोड़ने का करना है।

सफलता प्राप्त कर लेना ही काफी नहीं, उससे आत्म संतोष और जनकल्याण एवं स्वस्थ परम्परा का अभिवर्धन होना चाहिए। सही तरीके से प्राप्त की हुई सफलता ही वास्तविक सफलता है। यदि किसी ने कोई उन्नति या उपलब्धि अनुपयुक्त रीति से प्राप्त की है तो उससे अनेकों को वैसा ही करने की इच्छा उत्पन्न होगी और समाज में एक ऐसी प्रथा चल पड़ेगी जो हर किसी के लिए अहितकर परिणाम ही उत्पन्न करती रहे।

ऐसी नारियों की कमी नहीं हैं, जो सुयोग्य हैं अथवा सुयोग्य बनने के लायक जिनके पास समय, सुविधाएँ हैं। यदि पुरुष सहयोग करें तो निश्चय ही वे और भी अधिक योग्य बन सकती हैं। जो आज अशिक्षित, अयोग्य हैं उन्हें भी कल प्रशिक्षित एवं सुयोग्य बनाया जा सकता है। विवेकवान् व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वे अपने घर-परिवार की कई महिलाओं में से जिनके पास मनेाबल और अवकाश हो उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 दाम्पत्य-जीवन को सफल बनाने वाले कुछ स्वर्ण-सूत्र (भाग 5)

किन्तु नियम है कि ताली एक हाथ से कभी नहीं बजती। आदान के अभाव में प्रदान सम्भव नहीं होता। पति के साथ पत्नी को भी ऐसे कारण उपस्थित नहीं करना चाहिये, जिससे पति का उसकी ओर से मन फिरने की सम्भावना हो जाय।

सबसे पहले तो उसे पति की उचित सेवा में न तो प्रमाद करना चाहिये और न अरुचि ही। पति को जो कुछ पसन्द है खाने की वस्तुओं में उनका समावेश करते रहना चाहिये। दिन भर के परिश्रम के बाद रुचि कर भोजन और पत्नी की आवभगत उसको पूरी तरह ताजा कर देने के लिए पर्याप्त है। पति के आने पर जो पत्नियाँ उसकी सेवा स्वागत भूल कर अपनी गाथा लेकर बैठ जाती हैं या तत्काल बाजार का काम बतलाने लगती हैं, वे उसकी अनुकूलता कभी प्राप्त नहीं कर सकतीं।

खरीद फरोख्त के समय पति की आवश्यकताओं को प्राथमिकता दीजिये और सदैव यह ध्यान रखना चाहिये कि उसके कपड़े ज्यादा पुराने, फटे अथवा कम नहीं होने चाहिये। खाने-पीने की वस्तुओं में प्रयत्न करिए कि पति को अधिक न सही पुरुषोचित भाग तो मिलना ही चाहिये। पौष्टिक पदार्थों के उपयोग में पति की बराबरी करने का प्रयत्न न कीजिये और न अपने ऊपर इस स्पर्धा से अधिक खर्च करिये कि जब वह इतना व्यय करते हैं तो मैं क्यों न करूं। अपने वस्त्रों का स्तर यथा-सम्भव उतना ही रखिये जितना कि पति का हो।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जुलाई 1968 पृष्ठ 27

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...