बुधवार, 1 नवंबर 2017

👉 बस यही सोच

🔷 कार से उतरकर भागते हुए हॉस्पिटल में पहुंचे नोजवान बिजनेस मैन ने पूछा..

🔶 “डॉक्टर, अब कैसी हैं माँ?“ हाँफते हुए उसने पूछा।

🔷 “अब ठीक हैं। माइनर सा स्ट्रोक था। ये बुजुर्ग लोग उन्हें सही समय पर लें आये, वरना कुछ बुरा भी हो सकता था। “

🔶 डॉ ने पीछे बेंच पर बैठे दो बुजुर्गों की तरफ इशारा कर के जवाब दिया।

🔷 “रिसेप्शन से फॉर्म इत्यादि की फार्मैलिटी करनी है अब आपको।” डॉ ने जारी रखा।

🔶 “थैंक यू डॉ. साहेब, वो सब काम मेरी सेक्रेटरी कर रही हैं“ अब वो रिलैक्स था।

🔷 फिर वो उन बुजुर्गों की तरफ मुड़ा.. “थैंक्स अंकल, पर मैनें आप दोनों को नहीं पहचाना।“

🔶 “सही कह रहे हो बेटा, तुम नहीं पहचानोगे क्योंकि हम तुम्हारी माँ के वाट्सअप फ्रेंड हैं ।” एक ने बोला।

🔷 “क्या, वाट्सअप फ्रेंड ?” चिंता छोड़ , उसे अब, अचानक से अपनी माँ पर गुस्सा आया।

🔶 “60 + नॉम का  वाट्सप ग्रुप है हमारा।” “सिक्सटी प्लस नाम के इस ग्रुप में साठ साल व इससे ज्यादा उम्र के लोग जुड़े हुए हैं। इससे जुड़े हर मेम्बर को उसमे रोज एक मेसेज भेज कर अपनी उपस्थिति दर्ज करानी अनिवार्य होती है, साथ ही अपने आस पास के बुजुर्गों को इसमें जोड़ने की भी ज़िम्मेदारी दी जाती है।”

🔷 “महीने में एक दिन हम सब किसी पार्क में मिलने का भी प्रोग्राम बनाते हैं।”

🔶 “जिस किसी दिन कोई भी मेम्बर मैसेज नहीं भेजता है तो उसी दिन उससे लिंक लोगों द्वारा, उसके घर पर, उसके हाल चाल का पता लगाया जाता है।”

🔷 आज सुबह तुम्हारी माँ का मैसेज न आने पर हम 2 लोग उनके घर पहुंच गए..।

🔶 वह गम्भीरता से सुन रहा था। “पर माँ ने तो कभी नहीं बताया।" उसने धीरे से कहा।

🔷 “माँ से अंतिम बार तुमने कब बात की थी बेटा? क्या तुम्हें याद है ?” एक ने पूछा।

🔶 बिज़नेस में उलझा, तीस मिनट की दूरी पर बने माँ के घर जाने का समय निकालना कितना मुश्किल बना लिया था खुद उसने।

🔷 हाँ पिछली दीपावली को ही तो मिला था वह उनसे गिफ्ट देने के नाम पर।

🔶 बुजुर्ग बोले..  “बेटा, तुम सबकी दी हुई सुख सुविधाओं के बीच, अब कोई और माँ या बाप अकेले घर मे कंकाल न बन जाएं... बस यही सोच ये ग्रुप बनाया है हमने। वरना दीवारों से बात करने की तो हम सब की आदत पड़ चुकी है।”

🔷 उसके सर पर हाथ फेर कर दोनों बुज़ुर्ग अस्पताल से बाहर की ओर निकल पड़े। नवयुवक एकटक उनको जाते हुए देखता ही रह गया।

🙏अगर ये आपको कुछ सीख दे तो कृपया किसी और को भी भेजने में संकोच ना करे?

👉 आज का सद्चिंतन 2 Nov 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 2 Nov 2017


👉 अपने ब्राह्मण एवं संत को जिन्दा कीजिए (भाग 11)

🔶 अगर आपने अपने आपको निचोड़ दिया तो हमारा एक काम जरूर करना और वह यह कि हमारे विचार-हमारी आग को लोगों तक पहुँचाना। हम लेखक नहीं हैं। हमारे लिखे शब्दों में से आग निकलती है। विचारों की आग, भावनाओं की-क्रान्ति की आग निकलती है। आज जनता भी प्यासी, हम भी प्यासे हैं। हमारी विचारधारा ही आग है। हम आग उगलते हैं। हम लेखक नहीं हैं। हमारे लेखनी में से निकलती है आग, मस्तिष्क में से निकलती है आग, हमारी आँखों में से निकलती है आग। हमारे विचारणा की आग, भावनाओं की आग, संवेदनाओं की आग को आप घर-घर पहुँचाइये। आप में से हर आदमी को लालबहादुर शास्त्री जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल होना चाहिए। गाँधी जी के आदेश पर वे खादी धकेल पर रखकर बेचने गये थे।
        
🔷 ईसाई मिशन की महिलाएँ भी घर-घर जाती हैं और यह कहती हैं कि हमारी एक पैसा की किताब जरूर खरीदिये। अगर अच्छी न लगे तो कल मैं वापस ले लूँगी। अरे यह किताब बेचना नहीं है बाबा, मेरे विचार को घर-घर पहुँचाना है। आप लोगों के जिम्मे हमारा एक सूत्रीय कार्यक्रम है। आप जाइये, अपने को निचोड़िये। आपका घर का खर्च यदि १००० रुपये है तो निचोड़िये इसको और उसमें से बचत को ज्ञानयज्ञ के लिए खर्च कीजिये। हमारी आग को बिखेर दीजिये, वातावरण को गरम कर दीजिये, उससे अज्ञानता को जला दीजिये। आप लोग जाइये और अपने आपको निचोड़िये। ज्ञानघट का पैसा खर्च कीजिये तो क्या हम अपनी बीबी को बेच दें? बच्चे को बेच दें? चुप कंजूस कहीं के ऊपर से कहते हैं हम गरीब हैं। आप गरीब नहीं कंजूस हैं।

🔶 हर आदमी के ऊपर हमारा आक्रोश है। हमें आग लग रही है और आप निचोड़ते नहीं हैं। इनसान का ईमान, व्यक्तित्व समाप्त हो रहा है। आज शक्तिपीठें, प्रज्ञापीठें जितनी बढ़ती जा रही हैं, उतना ही आदमी का अहंकार बढ़ता जा रहा है। आपस में लड़ाई-झगड़े बढ़ते जा रहे हैं। सब हविश के मालिक बनते जा रहे हैं। हम चाहते हैं कि अब पन्द्रह-बीस हजार में फूस के शक्तिपीठ, प्रज्ञापीठ बन जाते तो कम से कम लोगों का राग-द्वेष अहंकार तो नहीं बढ़ता। आज आप लोगों से एक ही निवेदन कि आप हमारी आग स्वयं बिखेरिए, नौकरी से नहीं, सेवा से। आप जाइये एवं हमारा साहित्य पढ़िए तथा लोगों को पढ़ाइए और हम क्या कहना चाहते थे।

हम दो ही बात आपसे कहना चाहते हैं- पहली हमारी आग को घर-घर पहुँचाइये, दूसरी ब्राह्मण एवं सन्त को जिन्दा कीजिये ताकि हमारा प्याऊ एवं अस्पताल चल सके, ताकि लोगों को-अपने बच्चों को खिला सकें तथा उन्हें जिन्दा रख सकें तथा मरी हुई संस्कृति को जिन्दा कर सकें। आप ११ माला जप करते हैं-आपको बहुत-बहुत धन्यवाद। यह जादूगरी नहीं है। किसी माला में कोई जादू नहीं है। मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि मनोकामना की मालाएँ, जादूगरी की माला में आग लगा दीजिये, आप मनोकामना की माला, जादूगरी की माला, आज्ञाचक्र जाग्रत करने की माला को पानी में बहा दीजिये।

🌹 क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

👉 जिज्ञासु के लक्षण-श्रद्धा और नम्रता

🔷 एक बार राजा जातश्रुति के राजमहल की छत पर हंस आकर बैठे और आपस में बात करने लगे। एक हंस ने कहा जिसके राजमहल पर हम बैठे है, वह बड़ा धर्मात्मा और दानी है। इसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई है। इस पर दूसरे हंस ने कहा- गाड़ीवान रैक्य की तुलना में यह न तो ज्ञानी है और न दानी।

🔶 इस वार्ता को जातश्रुति सुन रहे थे। उन्हें गाड़ीवान रैक्य से भेंट करने की इच्छा हुई। उनने चारों दिशाओं में दूत भेजे। पर वे निराश होकर लौटे। उनने कहा-राजन् हमने सभी नगर, मन्दिर, मठ ढूँढ़ डाले पर वे कही नहीं मिले। तब राजा ने विचार किया ब्रह्मज्ञानी पुरुषों का विषयी लोगों के बीच रहना कैसे हो सकता है। अवश्य ही वे कही साधना के उपयुक्त एकान्त स्थान में होंगे वही उन्हें तलाश कराना चाहिए।

🔷 अब की बार दूत फिर भेजे गये तो वे एक निर्जन प्रदेश में अपनी गाड़ी के नीचे बैठे मिल गये। यही उनका घर था। राजा उनके पास बहुत धन, आभूषण, गाऐं, रथ आदि लेकर पहुँचा। उसका विचार था कि रैक्य इस वैभव को देखकर प्रसन्न होंगे और मुझे ब्रह्मज्ञान का उपदेश देंगे। पर परिणाम वैसा नहीं हुआ। रैक्य ने कहा- अरे शूद्र! यह धन वैभव तू मेरे लिए व्यर्थ ही लाया है। इन्हें अपने पास ही रख।” ऋषि को क्रुद्ध देखकर राजा निराश वापिस लौट आया और सोचता रहा कि किस वस्तु से उन्हें प्रसन्न करूँ। सोचते-सोचते उसे सूझा कि विनय और श्रद्धा से ही सत्पुरूष प्रसन्न होते है। तब वह हाथ में समिधाएं लेकर, राजसी ठाठ-बाठ छोड़कर एक विनीत जिज्ञासु के रूप में उनके पास पहुँचा। रैक्य ने राजा में जिज्ञासु के लक्षण देखे तो वे गदगद हो उठे। उनने जातश्रुति को हृदय से लगा लिया और प्रेम पूर्वक ब्रह्म विद्या का उपदेश दिया।

📖 अखण्ड ज्योति जून 1961

👉 अध्यात्म की शक्ति विज्ञान से बड़ी

🔷 परिस्थितियाँ आज भी विषम हैं। वैभव और विनाश के झूले में झूल रही मानव जाति को उबारने के लिये आस्थाओं के मर्मस्थल तक पहुँचना होगा और मानवी गरिमा को उभारने, दूरदर्शी विवेकशीलता को जगाने वाला प्रचण्ड पुरुषार्थ करना होगा। साधन इस कार्य में कोई योगदान दे सकते हैं, यह सोचना भ्रांतिपूर्ण है। दुर्बल आस्था अन्तराल को तत्त्वदर्शन और साधना प्रयोग के उर्वरक की आवश्यकता है। अध्यात्म वेत्ता इस मरुस्थल की देखभाल करने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेते व समय-समय पर संव्याप्त भ्रान्तियों से मानवता को उबारते हैं। अध्यात्म की शक्ति विज्ञान से भी बड़ी है।

🔶 अध्यात्म ही व्यक्ति के अन्तराल में विकृतियों के माहौल से लड़ सकने- निरस्त कर पाने में सक्षम तत्वों की प्रतिष्ठापना कर पाता है। हमने व्यक्तियों में पवित्रता व प्रखरता का समावेश करने के लिए मनीषा को ही अपना माध्यम बनाया एवं उज्ज्वल भविष्य का सपना देखा है।

🔷 हमने अपने भावी जीवनक्रम के लिए जो महत्वपूर्ण निर्धारण किए हैं, उनमें सर्वोपरि है लोक चिन्तन को सही दिशा देने हेतु एक ऐसा विचार प्रवाह खड़ा करना जो किसी भी स्थिति में अवांछनीयताओं को टिकने ही न दे। आज जन समुदाय के मन-मस्तिष्क में जो दुर्मति घुस पड़ी है, उसी की परिणति ऐसी परिस्थितियों के रूप में नजर आती है जिन्हें जटिल, भयावह समझा जा रहा है। ऐसे वातावरण को बदलने के लिए व्यास की तरह, बुद्ध, गाँधी, कार्लमार्क्स की तरह, मार्टिन लूथर, अरविन्द, महर्षि रमण की तरह भूमिका निभाने वाले मुनि व ऋषि के युग्म की आवश्यकता है, जो प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रयासों द्वारा विचार क्रान्ति का प्रयोजन पूरा कर सके। यह पुरुषार्थ अन्तःक्षेत्र की प्रचण्ड तप साधना द्वारा ही सम्भव हो सकता है। इसका प्रत्यक्ष रूप युग मनीषा का हो सकता है जो अपनी लेखनी शक्ति द्वारा उस उत्कृष्ट स्तर का साहित्य रच सके जिसे युगान्तरकारी कहा जा सकता है। अखण्ड-ज्योति के माध्यम से जो संकल्प हमने आज से सैंतालीस वर्ष पूर्व लिया था, उसे अनवरत निभाते रहने का हमारा नैतिक दायित्व है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति- फरवरी 1984 पृष्ठ 21
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1984/July/v1.21

👉 हमारी वसीयत और विरासत (भाग 151)

🌹  ‘‘विनाश नहीं सृजन’’ हमारा भविष्य कथन

🔷 पत्रकारों और राजनीतिज्ञों के क्षेत्रों में इस बार एक अत्यधिक चिंता यह संव्याप्त है कि इन दिनों जैसा संकट मनुष्य जाति के सामने है, वैसा मानवी उत्पत्ति के समय से कभी भी नहीं आया। शान्ति परिषद आदि अनेक संस्थाएँ इस बात के लिए प्रयत्नशील हैं कि महाविनाश का जो संकट सिर पर छाया हुआ है, वह किसी प्रकार टले। छुट-पुट लड़ाइयाँ तो विभिन्न क्षेत्रों में होती ही रहती हैं। शीतयुद्ध किसी भी दिन महाविनाश के रूप में विकसित हो सकता है, यह अनुमान हर कोई लगा सकता है।

🔶 भूतकाल में भी देवासुर संग्राम होते रहे हैं, पर जन-जीवन के सर्वनाश की प्रत्यक्ष सम्भावना का, सर्व सम्मत ऐसा अवसर इससे पूर्व कभी भी नहीं आया।

🔷 इन संकटों को ऋषि-कल्प सूक्ष्मधारी आत्माएँ भली प्रकार देख और समझ रही हैं। ऐसे अवसरों में वे मौन नहीं रह सकतीं। ऋषियों के तप, स्वर्ग, मुक्ति एवं सिद्धि प्राप्त करने के लिए नहीं होते। उपलब्धियाँ तो आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश करने वाले स्थूल शरीरधारी भी प्राप्त कर लेते हैं। यह महामानवों को प्राप्त होने वाली विभूतियाँ हैं। ऋषियों को भगवान् का कार्य संभालना पड़ता है और वे उसी प्रयास को लक्ष्य मानकर संलग्न रहते हैं।

🔶 हमारे ऊपर जिन ऋषि का, दैवी सत्ता का अनुग्रह है, उनने सभी कार्य लोकमंगल के निमित्त कराए हैं। आरम्भिक २४ महापुरश्चरण भी इसी निमित्त कराए हैं कि आत्मिक समर्थता इस स्तर की प्राप्त हो सके, जिसके सहारे लोकमंगल के अतिमहत्त्वपूर्ण कार्यों को सम्पन्न करने में कठिनाई न पड़े।

🔷 विश्व के ऊपर छाए हुए संकटों को टालने के लिए उन्हें चिंता है। चिंता ही नहीं प्रयास भी किए हैं। इन्हीं प्रयासों में एक हमारे व्यक्तित्व को पवित्रता और प्रखरता से भर देना भी है। आध्यात्मिक सामर्थ्य इसी आधार पर विकसित होती है।

🌹 क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 अपने ब्राह्मण एवं संत को जिन्दा कीजिए (भाग 10)

🔶 आप अकेले चलें। हमारे गुरु अकेले चले हैं। हम अकेले चले हैं। आप भी अकेले चलिये। संगठन के फेर में मत पड़िये। आपको बोलना नहीं आता है। आप कहते हैं कि व्याख्यान सिखा दीजिये। आप हैं कौन? हमें बतलाइये। भाषण से क्या होगा? आप हमारी बात मानिये। आपको बोलना नहीं आता है तो हम क्या करें? आप पोस्टमैन का काम करिये। हम बोलना सिखा देंगे। लड़कियों को सिखा दिया था। महाराज जी हमें भी बोलना सिखा दीजिए। आप त्याग करके तो हमें बतलाइये। जवाहरलाल नेहरू एवं शास्त्री जी को गाँधी जी ने खादी बेचने को कहा था। वे घर-घर जाकर खादी बेचते थे। घर-घर धकेल गाड़ी लेकर जाते थे तथा लोगों से कहते थे कि आप खादी पहनिये तो क्या वे खादी बेचते थे? हाँ बेटे, खादी बेचते थे।
        
🔷 आप अपने आप को निचोड़िये। ये हमारा बेटा, यह हमारी पत्नी। देखना यही तुझे ऐसा मारेंगे कि तुझे याद रहेगा। हमारा बेटा, हमारी पत्नी-यही रटता रहेगा कि कुछ समाज के लिए, भगवान् के लिए भी करेगा। नहीं गुरुजी हम तो हनुमान चालीस पढ़ते हैं, गायत्री चालीसा पढ़ते हैं। अरे स्वार्थी कहीं का, तेरी तो अक्ल खराब हो गयी है। अहंकार बढ़ गया है। हमने आपमें से हर किसी को कहा है कि आप ब्राह्मण बनिये। नहीं गुरुजी, हमने तो चन्दा इकट्ठा कर लिया, तो हम क्या करेंगे इसका? आप आदमी तो बनें पहले। आप आदमी बनना सीखें। आप घटियापन छोड़िये, सुबह से शाम तक काम कीजिये। पात्रता बढ़ाइये।

🔶 ऋषियों ने अपने रक्त को एक घड़े में भरा था, जिससे सीताजी उत्पन्न हुई थीं। आपको भी संस्कृति की सीता की खोज करनी है। समाज के लिए, संस्कृति के लिए आप भी अपना समय, अपना पैसा निकालिये, अपना रक्त निकालिये। आप अपने आप को निचोड़िये तो सही। निचोड़ने के नाम पर अँगूठा दिखाते हैं, त्याग के नाम पर जीभ निकालते हैं। बकवास के नाम पर, घूमने के नाम पर बिना मतलब के आडम्बर बना रखे हैं। अपने आपको निचोड़िये। आप अपने को यदि निचोड़ेंगे तो फिर देख लेना आप क्या बन जाते हैं? हमने अपने आपको निचोड़ा तो देखिये क्या बन गये?

🌹 क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

👉 Association Begets Blessings

🔶 As soon as the human consciousness gets connected with the God's treasure of greatness, blessings start flowing in spontaneously. Sudama was leading a life of scarcity although he had been Lord Krishna's classmate. However, Sudama really got associated with the greatness of Lord Krishna, when he surrendered his ego and visited him at Dwarika. And then Lord Krishna showered his material and spiritual blessings upon Sudama. Similarly, when Saint Kabir surrendered himself completely in the hands of God, he got back immense wisdom and spiritual enlightenment which made him famous.

🔷 When Vibhishana, who was Ravana's younger brother associated himself with Lord Ram, his fortune changed profoundly. Lord Ram immediately addressed him as the 'King of Lanka', and in due course he actually became the king of golden Lanka. All these instances point to a simple fact - a close association with greatness is a prerequisite for God's blessings.

📖 From Pragya Puran

👉 आत्मचिंतन के क्षण 1 Nov 2017

🔶 जो क्रियाशील है वह यदि आज बुरे कर्म करता है तो कल अच्छे कर्म भी कर सकता है किन्तु जिसके मन और शरीर को आलस्य ने घेर लिया है वह साँस लेता हुआ मुर्दा है। पृथ्वी का भार बढ़ाने के अतिरिक्त उसका और कोई प्रयोजन नहीं। उसके मन में अच्छे विचार उठ नहीं सकते। आलस्य का मुख पतन की ओर है जो उसे नीच योनियों में ले जाता है। जिसने आलस्य को अपनाया उसने अपने सबसे बड़े और अत्यन्त भयंकर शत्रु को घर में बसाया है। ऐसे व्यक्ति को सफलता कोसों दूर से नमस्कार करती है। आप अपने जीवन को नष्ट नहीं होने देना चाहते हैं तो उसे क्रियाशील रखें। स्फूर्ति, उत्साह, लगन और काम में लगे रहने की धुन हर समय अपने अन्दर होनी चाहिये।

🔷 अल्प में असन्तोष - यह अवगुण क्षुद्र हृदय का द्योतक है। हर स्थिति में संतुष्ट रहना यह मन का दैवी गुण है, मानसिक शान्ति के लिये इसकी आवश्यकता है। किन्तु यदि ये बात काम करने के बार में उतर आवे तो समझना चाहिये कि इसका कारण या तो आलस्य है या क्षुद्र हृदयता। एक पुस्तक पढ़कर, एक मिनट भजन करके, जरा सा परिश्रम करके, तुच्छ सी जन सेवा करके, कुछ ही पैसे कमाकर, जो संतुष्ट हो जाता है वह संतोषी नहीं अकर्मण्य है। मनुष्य के करने के लिए अपार काम पड़ा हुआ है। जितना अधिक हो सके, काम करना चाहिए और अपने उद्देश्य के अनुसार ऊँची से ऊँची सीढ़ी पर पहुँचने का प्रयत्न जारी रखना चाहिएं।

🔶 वासना - तरह-तरह के इन्द्रिय सुखों पर मन ललचाना और उनके सम्बन्ध में खयाली पुलाव पकाते रहना, मनुष्य जीवन की सार्थकता के बारे में एक बहुत बड़ा विघ्न है। इन्द्रियों के सुख अतृप्त हैं ज्यों-ज्यों उन्हें पूरा करते हैं त्यों-त्यों वह आग भड़कती है और साथ ही वह शरीर एवं मन को जलाती जाती है। सुस्वाद भोजन, शिश्नेन्द्रिय की परायणता तमाशे देखने की रुचि इनके प्रलोभन मन को अपना दास बना लेते हैं और दूसरे किसी महान कार्य की ओर जाने नहीं देते। यदि जाता है तो बार -बार उचट देते हैं जिसका मन बार-बार उचटता हो तो समझे कि इन्द्रियों के सुख उसे बार बार बहका रहे हैं। आपको किसी उपेक्षा की पूर्ति करनी है तो इन्द्रिय सुखों को फटकार दीजिये। क्योंकि वे जैसे-जैसे तृप्त किये जाते हैं वैसे ही वैसे उग्र रूप धारण करके आपको उल्टा खाते हैं और अन्त में अपने वश में करके नष्ट कर डालते हैं।

🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 आज का सद्चिंतन 1 Nov 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 1 Nov 2017

👉 यह समय चूकने का नहीं है ।

🔶 यह समय युग परिवर्तन जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य का है। इसे आदर्शवादी कठोर सैनिकों के लिये परीक्षा की घड़ी कहा जाये, तो इसमें कुछ भी अत्युक्ति नहीं समझी जानी चाहिये। पुराना कचरा हटता है और उसके स्थान पर नवीनता के उत्साह भरे सरंजाम जुटते हैं। यह महान् परिवर्तन की-महाक्रान्ति की वेला है।...यहाँ तो प्रसंग हथियारों से सुसज्जित सेना का चल रहा है। वे ही यदि समय की महत्ता, आवश्यकता को, न समझते हुए, जहाँ-तहाँ मटरगस्ती करते फिरें और समय पर हथियार न पाने के कारण समूची सेना को परास्त होना पड़े तो ऐसे व्यक्तियों पर तो हर किसी का रोष ही बरसेगा, जिनने-आपात स्थिति में भी प्रमाद बरता और अपना तथा अपने देश के गौरव को मटियामेट करके रख दिया।

🔷 जीवन्तों, जाग्रतों और प्राणवान् में से प्रत्येक को अनुभव करना चाहिये कि यह ऐसा विशेष समय है जैसा कि हजारों-लाखों वर्षों बाद कभी एक बार आता है। गाँधी के सत्याग्रही और बुद्ध के परिव्राजक बनने का श्रेय, समय निकल जाने पर अब कोई किसी भी मूल्य पर नहीं पा सकता। हनुमान और अर्जुन की भूमिका हेतु फिर से लालायित होने वाला कोई व्यक्ति कितने ही प्रयत्न करे, अब दुबारा वैसा अवसर हस्तगत नहीं कर सकता। समय की प्रतीक्षा तो की जा सकती है, पर समय किसी की भी प्रतीक्षा नहीं करता। भगीरथ, दधीचि और हरिश्चन्द्र जैसा सौभाग्य अब उनसे भी अधिक त्याग करने पर भी पाया नहीं जा सकता ।

🔶 समय बदल रहा है। प्रभातकाल का ब्रह्ममुहूर्त अभी है। अरुणोदय के दर्शन अभी हो सकते हैं। कुछ घण्टे ऐसे हैं उन्हें यदि प्रमाद में गँवा दिये जायें, तो अब वह गया समय लौटकर फिर किस प्रकार आ सकेगा? युग-परिवर्तन की वेला ऐतिहासिक, असाधारण अवधि है। इसमें जिनका जितना पुरुषार्थ होगा, वह उतना ही उच्च कोटि का शौर्य पदक पा सकेगा। समय निकल जाने पर, साँप निकल जाने पर लकीर को लाठियों से पीटना भर ही शेष रह जाता है।

🔷 इन दिनों मनुष्य का भाग्य और भविष्य नये सिरे से लिखा और गढ़ा जा रहा है। ऐसा विलक्षण समय कभी हजारों-लाखों वर्षों बाद आता है। इसे चूक जाने वाले सदा पछताते ही रहते हैं और जो उसका सदुपयोग कर लेते हैं, वे अपने आपको सदा-सर्वदा के लिये अजर-अमर बना लेते हैं। गोवर्धन एक बार ही उठाया गया था। समुद्र पर सेतु भी एक ही बार बना था। कोई यह सोचता रहे कि ऐसे समय तो बार-बार आते ही रहेंगे और हमारा जब भी मन करेगा, तभी उसका लाभ उठा लेंगे, तो ऐसा समझने वाले भूल ही कर रहे होंगे। इस भूल का परिमार्जन फिर कभी कदाचित् ही हो सके।

✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 प्रज्ञा अवतार की विस्तार प्रक्रिया

http://literature.awgp.org/book/Pragyavtar_Ki_Vistar_Prakriya/v1

http://literature.awgp.org

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...