मंगलवार, 19 दिसंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 19 Dec 2023

जीवन में उदासी, खिन्नता एवं अप्रसन्नता के वास्तविक कारण बहुत कम ही होते हैं, अधिकाँश का कारण घबराहट से उत्पन्न भय ही होता है। मनुष्य नहीं जानता कि वह इससे अपनी शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों का कितना बड़ा भाग व्यर्थ गँवाता रहता है? जिन्होंने जीवन में बड़ी सफलताएं पाई हैं, उन सबके जीवन बड़े सुचारु, क्रमबद्ध और सुव्यवस्थित रहे हैं। जिनके जीवन में विश्रृंखलता होती है, उनके पास सदैव “समय कम होने” की शिकायत बनी रहती है फिर भी अन्त तक कुल मिलाकर एक-दो काम ही कर पाते हैं, पर जिन लोगों ने विधि-व्यवस्था से, धैर्य से चिन्ता-विमुक्त कार्य सँवारे उन्होंने असंख्य कार्य किये।

काम करते समय आपको जब भी निराशा, बोझ या घबराहट लगा करे, उस समय अपने आत्म-विश्वास को जगाने का प्रयत्न किया कीजिये। आध्यात्मिक चिन्तन किया कीजिये। आप यह सोचा करिये कि आप भी दूसरों की तरह एक बलवान् आत्मा हैं, आपके पास शक्तियों का अभाव नहीं है। अभी तक उनका प्रयोग नहीं किया है इसीलिये भय, संकोच या लज्जा आती है। पर अब आपने जान लिया है कि आपकी भी सामर्थ्य कम नहीं है। आप निर्धन परिवार के सदस्य नहीं, वरन् परमात्मा के वंश में उसकी उत्कृष्ट शक्तियाँ लेकर अवतरित हुए हैं फिर आपको घबराहट किस लिये होनी चाहिये?

जो लोग बुराई को धीरे-धीरे खतम करने की बात कहते हैं वे यथार्थतः पूर्ण निश्चय से परे होते हैं। उपरोक्त सिद्धान्त के अनुसार उनके संकल्प में अपवाद बना रहता है। धीरे-धीरे छोड़ेंगे—इसका अर्थ है चित्त अभी दुविधा की स्थिति में है वह छोड़ भी सकता है और नहीं भी। इस स्थिति के रहते हुये कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं मिल सकती। मन बहलाव या बाल-बुद्धि के लोगों को समझाने के लिये कोई ऐसा भले ही कह दे पर सच बात तो यही है कि आदतों का सुधार पूर्ण इच्छा से किया जाना चाहिये।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 सफलता के तीन सूत्र

किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए प्रायः तीन सूत्रों का अवलंबन लेना होता है।

1.  लक्ष्य का निर्धारण,
2. अभिरुचि का होना और
3. क्षमताओं का सदुपयोग।

जीवन लक्ष्य का निर्धारण :-

जिस तरह देशाटन के लिए नक्शा, और जहाज चालक को दिशा सूचक की आवश्यकता पड़ती है। उसी प्रकार मनुष्य जीवन में लक्ष्य का निर्धारण अति आवश्यक है। क्या बनना और क्या करना है यह बोध निरंतर बने रहने से उसी दिशा में प्रयास चलते हैं। एक कहावत है कि ‘जो नाविक अपनी यात्रा के अंतिम बंदरगाह को नहीं जानता उसके अनुकूल हवा कभी नहीं बहती’। अर्थात् समुद्री थपेड़ों के साथ वह निरुद्देश्य भटकता रहता है। लक्ष्य विहीन व्यक्ति की भी यही दुर्दशा होती है। अस्तु सर्वप्रथम आवश्यकता इस बात की है कि अपना एक निश्चित लक्ष्य निर्धारित किया जाये।

अभिरुचि का होना :-

 जो लक्ष्य चुना गया है उसके प्रति उत्साह और उमंग का जगाना – मनोयोग लगाना। लक्ष्य के प्रति उत्साह, उमंग न हो, मनोयोग न जुट सके तो सफलता सदा संदिग्ध बनी रहेगी। आधे अधूरे मन से, बेगार टालने जैसे काम पर किसी भी महत्वपूर्ण उपलब्धि की आशा नहीं की जा सकती। मनोविज्ञान का एक सिद्धांत है कि ‘उत्साह और उमंग’ शक्तियों का स्रोत है। इसके अभाव में मानसिक शक्तियाँ परिपूर्ण होते हुए भी किसी काम में प्रयुक्त नहीं हो पातीं।

क्षमताओं का सदुपयोग :-

 ‘समय’ उपलब्ध संपदाओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। शरीर, मन और मस्तिष्क की क्षमता का तथा समय रूपी सम्पदा का सही उपयोग असामान्य उपलब्धियों का कारण बनता है। निर्धारित लक्ष्य की दिशा में समय के एक-एक क्षण के सदुपयोग से चमत्कारी परिणाम निकलते हैं।

सफल और असफल व्यक्तियों की आरंभिक क्षमता, योग्यता और अन्य बाह्य परिस्थितियों की तुलना करने पर कोई विशेष अंतर नहीं दिखता। फिर भी दोनों की स्थिति में आसमान और धरती का अंतर आ जाता है। इसका एकमात्र कारण है कि एक ने अपनी क्षमताओं को एक सुनिश्चित लक्ष्य की ओर सुनियोजित किया, जबकि दूसरे के जीवन में लक्ष्यविहीनता और अस्त-व्यस्तता बनी रही।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

(जीवन देवता की साधना-अराधना (२) – ६.५५)


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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...