बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

👉 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान (भाग ११२)

बिन इन्द्रिय जब अनुभूत होता है सत्य 
सच की सम्पूर्णता तो तभी सम्भव है, जब वह सम्पूर्ण अस्तित्व की अनन्तत्व के कण-कण में समाया हो। मनीषी वैज्ञानिक आइन्सटीन के इस सिद्घांत का दूसरा पहलू क्वाण्टम् सिद्घांत में हैं। इसका प्रवर्तन मैक्सप्लैंक एवं हाइजेनबर्ग आदि वैज्ञानिकों ने किया था। उनका कहना था कि पदार्थ का सच ज्यादा टिकाऊ नहीं है। उन्होंने बताया- पदार्थ एवं ऊर्जा निरन्तर एक-दूसरे में बदलते रहते हैं और जिस तरह से पदार्थ का सबसे छोटा कण परमाणु है, उसी तरह से ऊर्जा का सबसे छोटा पैकेट क्वाण्टा है। इस क्वाण्टा की स्थिति अनिश्चित है। इसमें वस्तु जैसा कुछ भी नहीं है। ऊपर इनमें परस्पर गहरा जुड़ाव है। यह जुड़ाव इतना अधिक है कि अभिन्न भी कहा जा सकता है। 
विज्ञान के इन दोंनों सिद्घांतों ने ज्ञान- के खोजियों के सामने एक बात बड़ी साफ कर दी है कि अनुभव यदि पदार्थ के, वस्तु के , व्यक्ति के अथवा स्थिति के हैं और यदि इन्हें इन्द्रियों के झरोखों से पाया गया है, तो कभी सम्पूर्ण नहीं हो सकते। इतना ही नहीं, इन्हें सन्देह एवं भ्रम से परे भी नहीं कहा जा सकता। इस तरह के अनुभव में तो कई दीवारें है, अनेकों पर्दे हैं। एक दीवार इन्द्रियों की- एक पर्दा स्नायु जाल का। फिर एक दीवार मस्तिष्क की। फिर एक पर्दा विचार तंत्र का। हम ही सोच लें—कितनी अपूर्णता होगी इस अनुभव में। 
परम पूज्य गुरूदेव कहते थे कि अनुभव वह,जिसमें कोई दीवार या पर्दा न हो। अब यह क्या बात है कि आँख का देखा कुछ और, और यदि किसी सूक्ष्मदर्शी या दूरदर्शी यंत्र से देखा तो और। कानों ने एक खबर सुनायी और बुद्घि ने कुछ अनुमान सुझाए, पर अन्तःकरण अनुभव से रीता रहा। चेतना वैसी ही कोरी व सूनी बनी रही। लेकिन जिसकी प्र्रज्ञा ऋतम्भरा से संपूरित हो गयी उसके साथ ऐसी कोई समस्या नहीं। निर्विकार समाधि की भाव दशा में अस्तित्व व्यापी चेतना की अनन्तता में सत्य अपने सम्पूर्ण रूप से प्रकाशित होता है। इसी अनुभव को पाकर सन्त कबीर बोल उठे-कहत कबीर मैं पूरा पाया अर्थात् मैने पूरा पा लिया। पूर्णिमा की चाँदनी से उद्भासित हो गया अन्तःकरण।

.... क्रमशः जारी
📖 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान पृष्ठ १९०
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या

👉 कैसे भूलें अपनी गलतियों को: स्वयं को माफ़ करने के 5 तरीके


कभी कभी हम कुछ ऐसा कर बैठते है या बोल देते हैं जिसके लिए हमें बाद में बेहद पश्चाताप होता है।
खासकर तब जब आपने किसी अपने का दिल दुखाया हो।

रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय,
टूटे से फिर  ना जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाय।

अपने आप को और अपनी गलतियों को माफ़ करने में कुछ बातें बेहद सहायक होती हैं।

◆ 1. दूसरों को दोष देना बंद करें:

अपने आप को माफ़ करने से पहले ये जान लेना जरुरी है कि आखिर आपने किया क्या था। आपके साथ हुयी घटना को विस्तार से लिख लें और अपने उन बातों  को भी लिखें जिससे उस घटना के घटने में मदद मिली हो। किसी और व्यक्ति या परिस्थितियों को दोष देने से बचें और सिर्फ अपने आप पर ध्यान केंद्रित करें। हो सकता है ऐसे करते समय आप असहज महसूस करें।

■ 2. माफ़ी मांगने में संकोच न करें:

कुछ इस तरह हमने अपनी जिंदगी आसान कर ली ,
कुछ को माफ़ कर दिया और कुछ से माफ़ी  मांग ली।


हालाँकि माफ़ी मांगना इतना आसान नहीं होता लेकिन अगर आप किसी से माफ़ी मांगने के लिए पहल करते हैं तो ये दर्शाता है कि आपसे गलती हुयी थी और आप उसके लिए शर्मिन्दा हैं, और इस तरह आप वैसी गलतियों को दोहराने से बच जाते हैं।

3. नाकारात्मक विचारों को उत्पन्न होते ही त्याग दें:

कभी कभी माफ़ किये जाने पर भी हम अपने आप को माफ़ नहीं कर पाते।  स्वयं को माफ़ करना एक बार में ही संभव नहीं है, यह धीरे-धीरे समय के साथ परिपक्व होता है। इसलिए जब भी आपके मन में नाकारात्मक विचार आये गहरी सांस लेकर उसे उसी समय निकल दें और अपना ध्यान कहीं और लगायें, या इस तरह की कोई प्रक्रिया जिसे आप पसंद करते हों अपनाएँ।

4. शर्म के मरे छुपने की वजाय सामने आईये:

अपनी किसी भयंकर गलती के बाद शर्म से छुप जाना बिलकुल भी अच्छा नहीं है। अपनी गलती के बाद हम अपने दोस्त से नजरें मिलाने में झिझकते है क्यूंकि हमें डर होता है की कहीं वह मुझे पिछली बात को याद न करा दे, लेकिन जैसे ही हम उनसे मिलने की हिम्मत जुटाते है  महसूस होगा कि हमारा डर गलत था।

5. अपनी गलतियों के लिए आभारी बने:

अपनी गलतियों के प्रति आभारी होना आपको बिलकुल विचित्र लगेगा खासकर वैसी गलतियां जिनसे आपको शर्मिंदगी महसूस हुयी हो या दुःख पहुंचा हो लेकिन अगर आप गौर से एनालाइज करेंगे तो पाएंगे कि ऐसी की गयी गलतियों ने आपको कितना मजबूत और सुदृढ़ किया है।  आप ये देख पाएंगे कि इन्ही गलतियों की वजह से ही आप अधिक बुद्धिमान, मजबूत और विचारशील हो पाये हैं।  

👉 स्वर्ण जयंती मना रहा है



शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।
धर्मतंत्र का स्वर्ण  गान यह, सारे जग को सुना रहा है।।

गुरुवर ने निज कर कमलों से, शांतिकुंज निर्माण किया।
विश्वामित्र की तपस्थली में, ऋषियों का आह्वान किया।।
महा पुरश्चरणों से माँ ने, तपः क्षेत्र  विकसाया था ।
प्राणों का प्रत्यावर्तन करके, आश्रम दिव्य बनाया था।।
बीजारोपण वर्ष  इकहतर, से तरु बन लहलहा रहा है ।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।1

कल्प और चान्द्रायण से ही, साधकों को बल दिया है।
साधना से  सिद्धि पा, हर समस्या का हल दिया है ।।
देव कन्याओं के तप ने, वातावरण बनाया  था।
युग शक्ति ही नारी शक्ति है, माताजी ने तपाया था।।
सिद्धियों की दिव्य प्रभा अब,अम्बर तक झिलमिला रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।2

वानप्रस्थ से ज्ञान क्रांति का,सतत अभियान चलाया था।
महिला जाग्रति शंख बजाकर, ब्रह्मवादिनी बनाया था।।
वैज्ञानिक अध्यात्मवाद को, ब्रह्मवर्चस निर्मित किया।
धर्म के शाश्वत स्वरुप को, जनहित में प्रस्तुत किया।।
शक्तिपीठ हैं शक्तिकेंद्र अब, दीप्त हो जगमगा रहा है ।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।3

सूक्ष्मीकरण साध गुरुवर ने, वीरभद्र उत्पन्न किये ।
पांच शरीर से एक साथ में, असंभव सम्पन्न किये।।
गुरुवर के हीरक जयंती पर,यज्ञ अभियान चलाया था।
राष्ट्रीय एकता यज्ञों से, भारत को श्रेष्ट बनाया  था।।
मत्स्यावतार अपनी काया को, हरपल हरक्षण बढ़ा रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।4

महाप्रयाण कर स्थूल देह को, पंचतत्व में लीन किया ।
सबकी आँखों से ओझल हो, गुरुवर ने ग़मगीन किया।।
ब्रह्म्वेदी यज्ञों से गुरु ने, सोया राष्ट्र जगाया है।
सूक्ष्म रूप में गुरु चेतना, शांतिकुंज में समाया है।।
शांतिकुंज का कोना कोना, गुरु-गान गुनगुना रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।5

श्रद्धांजलि देकर शिष्यों ने, अपना फर्ज  निभाया है ।
देश धर्म संस्कृति रक्षा को, माटी ले शपथ उठाया है।।
अश्वमेधों का दौर चल पड़ा, धर्म तंत्र  मजबूत  हुआ।
दिग्दिगंत तक धर्म ध्वजा ले, क्रांति का अग्रदूत गया ।।
देव संस्कृति का परचम अब, अपने जलवे दिखा रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।6

माताजी के महा प्रयाण से, पुत्रों ने दुःख पाया था ।
स्नेह सलिला जीजी ने हम, सबको गले लगाया था।।
गुरु अभियानों को श्रधेय ने, गति देकर आश्वस्त किया।
जन मानस के अंध तमस को, प्रखर-ज्ञान से ध्वस्त किया।।
अखंड ज्योति के दिव्य ज्ञान से, अज्ञानता को मिटा रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।7

पूर्णाहुति कर महाकुम्भ सा, जन सैलाब जुटाया था।
धरती के कोने कोने तक, धर्म ध्वजा फहराया था।।
चेतना केन्द्रों की स्थापना, का संकल्प जगाया था।
गंगा को निर्मल करने का, जन अभियान चलाया था।।
प्रौढ़ शांतिकुंज स्वर्ण रश्मियों, से देखो जगमगा रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है ।।8

कन्या कौशल शिविरों से, नारी सम्मान जगाया है।
‘दीया’ जलाकर युवा मनों में, नव विश्वास जगाया है।।
गाँव गाँव में नशा निवारण, का अभियान चलाया है।
स्वस्थ शरीर स्वच्छ मन सबका, सभ्य समाज बनाया है।।
पर्यावरण  को शुद्ध  कराने, वृक्षारोपण करा रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।9

संस्कारों की परिपाटी को, फिर से जीवनदान मिला।
तीर्थ क्षेत्र में संस्कारों को पुनः उचित स्थान मिला।।
शिक्षा,स्वास्थ्य, साधना जैसे, क्रांति का आगाज हुआ।
सप्त क्रांतियों की धूम मची, अश्वमेधों का प्रयाज हुआ।।
नवल विश्व के नव समाज में, नवीन चेतना जगा रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।10

भाषांतर कर शांतिकुंज से, साहित्य का विस्तार किया ।
हर भाषा में  हर लोगों तक, गुरु का श्रेष्ठ विचार दिया ।।       
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, युग निर्माण का नारा है।
अखिल विश्व में दिग्दिगंत तक शांतिकुंज अति प्यारा है।।  
लक्ष एक से कोटि कोटि तक अपना परिकर बढ़ा रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है ।11

विश्व विद्यालय गुरुवर के, सपनों का विद्यालय  है।
देव संस्कृति जग में फैले, मानवता का आलय है।।
तकनीकों का प्रयोग हम, जन हित में ही करते है।
प्राचीन विद्या का प्रसार हम, तकनीकों  से करते हैं।।
एकहतर की छोटी बगिया, कोटि-कोटि फूल खिला रहा है।

शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है ।।12
संकट की घड़ियाँ है बीती, नया सूर्य अब चमक रहा है।
स्वर्णमयी आभा है इसकी, शांतिकुंज अब दमक रहा है ।।
स्वर्ण जयंती संग महाकुम्भ का, दिव्य संयोग सुहाना है।
धरती पर ही स्वर्ग सृजन में, जन-जन को लग जाना है।।
घर घर गंगा जल पहुचाकर, कुम्भ घरों में मना रहा है।
शांतिकुंज अब स्थापना के, स्वर्ण जयंती मना रहा है।।13      

उमेश यादव

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...