शनिवार, 22 अप्रैल 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 22 April 2023

दूसरों की अच्छाइयों को खोजने, उनको देख-देखकर प्रसन्न होने और उनकी सराहना करने का स्वभाव यदि अपने अंदर विकसित कर लिया जाये तो आज दोष दर्शन के कारण जो संसार, जो वस्तु और जो व्यक्ति हमें काँटे की तरह चुभते हैं वे फूल की तरह प्यारे लगने लगें। जिस दिन यह दुनिया हमें प्यारी लगने लगेगी, इसमें दोष-दुर्गुण कम दिखाई देंगे, उस दिन हमारे हृदय से द्वेष एवं घृणा का भाव निकल जायेगा और हम हर दिशा और हर वातावरण में प्रसन्न रहने लगेंगे। दुःख-क्लेश और क्षोभ-रोष का कोई कारण ही शेष न रह जाएगा।

अपने व्यक्तित्व को सीमित करने का नाम स्वार्थ और विकसित करने का नाम परमार्थ है। सीमित प्राण दुर्बल होता है, पर जैसे-जैसे उसका अहम् विस्तृत होता जाता है, वैसे ही आंतरिक बलिष्ठता बढ़ती चली जाती है। प्राण शक्ति का विस्तार सुख-दुःख की अपनी छोटी परिधि में केन्द्रित कर लेने से रूक जाता है, पर यदि उसे असीम बनाया जाय और स्वार्थ को परमार्थ में परिणत कर दिया जाय तो इसका प्रभाव यश, सम्मान, सहयोग के रूप में बाहर से तो मिलता ही है, भीतर की स्थिति भी द्रुत गति से परिष्कृत होती है।

हम जितने ही कुशल विचार शिल्पी होंगे, हमारी आत्मा का निर्माण उतना ही सुन्दर और स्थायी होगा। अपनी आत्मा का साक्षात्कार भी हम विचारों के द्वारा ही कर सकते हैं। विचारों के आदर्श में ही आत्मा का रूप प्रतिबिम्बित होता है और विचार चक्षुओं से ही उसके दर्शन किये जा सकते हैं। विचार जितने उज्ज्वल और पवित्र होंगे, आत्मा का प्रतिबिम्ब उतना ही स्वच्छ और स्पष्ट दृष्टिगोचर होगा।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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