मंगलवार, 29 जनवरी 2019

👉 आत्म निर्माण-जीवन का प्रथम सोपान (भाग 3)

दूसरों का आदर करना, सद्व्यवहार का अभ्यस्त होना, सज्जनोचित शिष्टाचार बरतना, मधुर वचन बोलना यह व्यक्तित्व की गरिमा बढ़ाने वाली साधना है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। उसे दूसरों के साथ मिल-जुल कर रहना पड़ता है। स्नेह सौहार्द का वातावरण तभी बना रह सकता है जब दूसरों के साथ शालीनता का व्यवहार किया जाय। अहंकारी व्यक्ति दूसरों को तुच्छ समझते है और कटु वचन एवं दुर्व्यवहार पर उतारू रहते हैं। उद्धत आतंकवादी उच्छृंखल आचरण करके कोई अपने अहंकार की पूर्ति होने की बात सोच सकता है, पर वस्तुतः वह हर किसी की दृष्टि में अपना सम्मान खोता है। स्तर गिराता है और घृणास्पद बनता है। उद्धत आचरण से सम्भव है सामने वाला चुप ही रहे, परन्तु उसका स्नेह सहयोग तो चला ही जाता है। इस प्रकार क्रोधी, अशिष्ट, उच्छृंखल व्यक्ति अपना नाम बढ़ाने की बात सोचता है, पर वस्तुतः उसे निरन्तर खोता चला जाता है। कुसमय में अपने को एकाकी अनुभव करता है। स्नेह सहयोग से वंचित होकर वह भूत बेताल की अशान्त अतृप्त मनःस्थिति में जा फँसता है।

ईर्ष्या, द्वेष, झूठ, छल, प्रपंच, दुरभिसन्धि, षड्यन्त्र, शोषण, अपहरण, आक्रमणों की आसुरी मनोवृत्ति अपना कर मनुष्य अपराधी आचरण ही करता हैं उसकी गतिविधियाँ ऐसी हो जाती हैं, जिससे मनुष्य सबकी आँखों में गिरता है यहाँ तक कि अपनी आँखों में भी। धन या पद पाने की अपेक्षा लोकश्रद्धा प्राप्त करना अधिक मूल्यवान है। दुष्ट-दुराचारी बनकर कोई यदि साधन सम्पन्न बन जाय तो यही कहा जाना चाहिए कि उसने खोया बहुत पाया कम। व्यसनी, व्यभिचारी, आलसी और प्रमादी, आतंकवादी, अत्याचारी, उस सुखद उपलब्धि से वंचित ही रहते है जिसे पाने के लिए यह कुमार्ग अपनाया। दुर्भावनाओं और दुष्प्रवृत्तियों का आश्रय लेकर मनुष्य दूसरों की जितनी हानि करता है उसकी तुलना में अपनी असंख्य गुनी हानि कर लेता है।

समय को नियमितता के बन्धनों में बाँधा जाना चाहिए। चौबीसों घण्टे की निर्धारित दिनचर्या बनानी चाहिए और उस पर तत्परतापूर्वक चलते जाना चाहिए। समय ही सबसे बड़ी सम्पदा है, उसका एक क्षण भी बर्बाद नहीं होना चाहिये। शरीर की क्षमता के अनुरूप श्रम किया जाय, काम का स्तर और सिलसिला बदलते ही रहा जाय ताकि थकान नहीं चढ़ेगी। हर काम में दिलचस्पी पैदा की जाय, उसे खेल समझते हुए पूरे मनोयोग के साथ करना चाहिए। यह आदत पड़ जाय तो दुर्बल शरीर वाला व्यक्ति भी बिना थके बहुत काम करता रह सकता है। आहार-विहार विवेकपूर्ण और क्रमबद्ध होने चाहिए। समयानुसार काम बदलने से विश्राम और विनोद का उद्देश्य पूरा हो सकता है। सामने प्रस्तुत कामों को दिलचस्पी और मनोयोग के साथ करने का अभ्यास करना मनोनिग्रह का सर्वोत्तम योगाभ्यास है। उस साधना में निष्णात व्यक्ति हाथों हाथ क्रिया कुशलता के अभिवर्धन और सफलताओं के वरण का उत्साहवर्द्धक लाभ प्राप्त करता है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
(गुरुदेव के बिना पानी पिए लिखे हुए फोल्डर-पत्रक से)

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