शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

👉 मनन

मनन - मन से मन-न होने की आध्यात्मिक यात्रा है। यह ऐसी अनोखी प्रक्रिया है- जिसमें संलग्न होने- समर्पित होने पर मन का सम्पूर्णतया विसर्जन और विलय हो जाता है। इस सच पर कितना ही कोई अचरज क्यों न करे, फिर भी सच तो सच ही है। हालांकि इस अनूठे रहस्य से कम ही लोग परिचित हैं। जबकि मनन शब्द का चलन बहुतायत में होता है। अनेकों-अनेक बार इसका प्रयोग करते हैं। फिर भी इसके आध्यात्मिक रहस्य का स्पर्श विरले ही कर पाते हैं।
  
सामान्य सोच तो एक विचार को बार-बार सोचते रहने को मनन मान लेती है। जबकि आध्यात्मवेत्ता कहते हैं कि मन में उठती किसी विशेष विचार की गुनगुनाहट-गूँज अथवा ध्वनि-प्रतिध्वनि को मनन कहना ठीक नहीं है। यह तो एक गहरी आध्यात्मिक अनुभूति है- जो किसी सत्यान्वेषी साधक को तब होती है, जब वह किसी पवित्र विचार, पवित्र भाव अथवा पावन व्यक्तित्व या उसी दिव्य छवि को अपने में धारण करता है।
  
यदि पवित्र तत्त्वों-सत्यों को ठीक से धारण कर लिया गया है, तो मन में स्वतः ही धारणा घटित होने लगती है। मन कुछ उसी तरह मौन हो उसकी अनुभूति में डूबता है, जैसे कि कोई स्वाद लोलुप व्यक्ति स्वादिष्ट भोजन करते समय- मूक और मौन हो स्वाद के अनुभव में खो जाता है। उस समय उसके अन्दर की हल-चल थम जाती है। उसे अपने आस-पास होने वाली उथल-पुथल का भी ध्यान नहीं रहता।
  
कुछ ऐसी ही घटना तब घटित होती है- जब मन-मनन में डूबता है। जैसे-जैसे उसमें धारण किए गए पवित्र विचार, पवित्र भाव अथवा पावन व्यक्तित्व या उसकी दिव्य छवि की अनुभूति प्रगाढ़ होती है, वह विलीन होता जाता है। यह विलीनता इस कदर प्रगाढ़ होती है कि मन, उसमें संजोयी सारी संस्कार राशि, कर्म बीजों का ढेर, आदतें, प्रवृत्तियाँ सभी खो जाती हैं। यहाँ तक कि मन-मन-न में परिवर्तित हो जाता है। मन का यह परिवर्तन और रूपान्तरण ही तो मन-न है। जिसके परिणाम में अन्तस् में उज्ज्वल आत्म प्रकाश की धाराएँ फूट पड़ती हैं। यह ऐसा सच है जिसे जो करे - सो जाने।

✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 जीवन पथ के प्रदीप से पृष्ठ १७०

👉 QUERIES ABOUT GAYATRI YAGYA (Part 3)

Q.3. Is it necessary to perform Yagya daily?

Ans. Gayatri and Yagya constitute a pair. Gayatri has
been called righteous wisdom and Yagya as righteous act. Coordination of both gives wisdom to solve all problems. Yagya may be performed as and when it is convenient. It can suffice to utter Gayatri Mantra and offer ghee and sugar in fire. If it is sought to be more brief, the purpose of symbolic worship of Agnihotra can also be fulfilled if a Ghrit lamp is lighted, incense- stick is burnt and Gayatri Mantra is uttered. If even this brief ritual cannot be performed daily, it should be done once in a week or on any convenient day at least once in a month. Those who are not acquainted with the procedure, and facilitators and material resources are not available, can write to Shantikunj for performance of Yagya in requisite quantity. Yagya is performed daily in Shantikunj for two hours in three Yagyashala having nine Yagya Kunds each.  

Q.4. How many Kunds are required in a Yagya?

Ans. On a small scale, the members of the family may offer 2400 (cumulative) Ahutis in a Single Kund Yagya. If neighbours, relatives and friends also wish to participate, a five Kundiya Yagya may be organised and five thousand oblations offered.

Q.5. What type of Prasad is recommended during  Poornahuti?

Ans. In the existing circumstances, it is advised to replace Brahmbhoj with Brahmadan, wherein instead of sweets, literature pertaining to Gayatri Sadhana is distributed as Prasad to the deserving participants.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Gayatri Sadhna truth and distortions Page 64

👉 वासन्ती हूक, उमंग और उल्लास यदि आ जाए जीवन में (भाग ५)

आज के दिन मेरे मन में एक ही विचार आता है कि यहाँ जो भी लोग आते हैं, उनको मेरे कीमती सौभाग्य का एक हिस्सा मिल जाता तो उनका नाम, यश अजर-अमर हो जाता। इतिहास के पन्नों पर उनका नाम रहता। अभी आपको जैसा घिनौना, मुसीबतों से भरा समस्याओं से भरा जीना पड़ता है, तब जीना न पड़े। आप अपनी समस्याओं का समाधान करने के साथ-साथ हजारों की समस्याओं का समाधान करने में समर्थ बनें। फिर आपको न कहना पड़े कि गुरुजी हमारी मुसीबत दूर कर दीजिए। फिर क्या करना पड़े? गुरुजी को ही आपके पास आना पड़े और कहना पड़े कि हमारी मुसीबत दूर कर सकते हो तो कर दीजिए। विवेकानन्द के पास रामकृष्ण परमहंस जाते थे और कहते थे कि हमारी मुसीबत दूर कर दीजिए और हमारे पास भी हमारा गुरु आया था यह कहने कि हमारी मुसीबत दूर कर दीजिए। उन्होंने कहा—हम चाहते हैं कि दुनिया का रूप बदल जाए, नक्शा बदल जाए, दुनिया का कायाकल्प हो जाए। तो आप खुद नहीं कर सकते नहीं, खुद नहीं कर सकते। जीभ माइक का काम नहीं कर सकती और माइक जीभ का काम नहीं कर सकता। जीभ और माइक दोनों के सम्पर्क से कितनी दूर तक आवाज फैलती है? हमारा गुरु जीभ है और हम माइक हैं, उनके विचारों को फैलाते हैं। हम चाहते हैं कि आप भी ‘लायक’ हो जाइए। अगर आपके भीतर ‘लायकी’ पैदा हो जाए तो मजा आ जाए। तब दोनों चीजें शक्तिपात और कुण्डलिनी जो भगवान के दोनों हाथों में रखी हुई हैं, आपको मिल जाएगी। शर्त केवल एक ही है कि अपने आपको ‘लायक’ बना लें, पात्र बना लें। यदि लायक नहीं बने तो मुश्किल पड़ जाएगी। कुण्डलिनी जागरण के लिए पात्रता और श्रद्धा का होना पहली शर्त है।

आज का दिन ऊँचे उद्देश्यों से भरा पड़ा है। हमारे जीवन का इतिहास पढ़ते हुए चले जाइए, हर कदम वसन्त पंचमी के दिन ही उठे हैं। हर वसन्त पंचमी पर हमारे भीतर एक हूक उठती है, एक उमंग उठती है। उस उमंग ने कुछ ऐसा काम नहीं कराया, जिससे हमारा व्यक्तिगत फायदा होता हो। समाज के लिए, लोकमंगल के लिए, धर्म और संस्कृति की सेवा के लिए ही हमने प्रत्येक वसन्त पंचमी पर कदम उठाए हैं। आज फिर इसी पर्व पर तीन कदम उठाते हैं। पहला कदम सारे विश्व में आस्तिकता का वातावरण बनाने का है। आस्तिकता के वातावरण का अर्थ है—नैतिकता, धार्मिकता, कर्तव्यपरायणता के वातावरण का विस्तार। ईश्वर की मान्यता के साथ बहुत सारी समस्याएँ जुड़ी हुई हैं। ईश्वर एक अंकुश है। उस अंकुश को हम स्वीकार करें, कर्मफल के सिद्धान्त को स्वीकार करें और अनुभव करें कि एक ऐसी सत्ता दुनिया में काम कर रही है जो सुपीरियर है, अच्छी है नेक है, पवित्र है। उसी का अंकुश है और उसी के साथ चलने में भलाई है। यह आस्तिकता का सिद्धान्त है। इसी को अग्रगामी बनाने के लिए हमने गायत्री माता के मन्दिर बनाए हैं। गायत्री माता का अर्थ है—विवेकशीलता, करुणा, पवित्रता, श्रद्धा। इन्हीं सब चीजों का विस्तार करने के लिए आपसे भी कहा गया है कि आप अपने घरों में, पड़ोस के घरों में गायत्री माता का एक चित्र अवश्य रखें। घर-परिवार में आस्तिकता का वातावरण बनाएँ।

यज्ञ और गायत्री की परम्परा को हम जिन्दा रखना चाहते हैं। इसके विस्तार के लिए चल पुस्तकालय चलाने से लेकर ढकेल गाड़ी—ज्ञानरथ चलाने के लिए दो घण्टे का समय प्रत्येक परिजन को निकालना चाहिए। यही दो घण्टे भगवान का भजन है। भगवान के भजन का अर्थ है—भगवान की विचारणा को व्यापक रूप में फैलाना। हमने यही सीखा है और चाहते हैं कि आपका भी कुछ समय गायत्री माता की पूजा में लगे। जैसे हमारे गुरुजी ने हमसे समय माँगा था और हमें निहाल किया था, वही बात आज आपसे भी कही जा रही है कि अपने समय का कुछ अंश आप हमें भी दीजिए आस्तिकता को फैलाने के लिए। पाने के लिए कुछ न कुछ तो देना ही पड़ता है। पाने की उम्मीद करते हैं तो त्याग करना भी सीखना होगा।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...