शनिवार, 27 मई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 27 May 2023

जो लोग पिछले जीवन में कुमार्गगामी रहे हैं, वे भूले हुए, पथ भ्रष्ट तो अवश्य हैं, पर इस गलत प्रक्रिया द्वारा भी उन्होंने अपनी चैतन्यता, बुद्धिमत्ता, जागरूकता और क्रियाशीलता को बढ़ाया है। यह बढ़ोत्तरी एक अच्छी पूँजी है। पथ-भ्रष्टता के कारण जो पाप उनसे बन पड़े हैं, वे नष्ट हो सकते हैं उनके लिए निराशा की कोई बात नहीं, केवल अपनी रुचि और क्रिया सत्कर्म की ओर मोड़ने भर की देर  है। यह परिवर्तन होते ही बड़ी तेजी से सीधे मार्ग पर प्रगति होने लगेगी।

प्रलोभनों को देखकर मत फिसलो। पाप का आकर्षण आरंभ में बड़ा लुभावना प्रतीत होता है, पर अंत में धोखे की टट्टी सिद्ध होता है। जो चंगुल में फँस गया उसे तरह-तरह की शारीरिक और मानसिक यातनाएँ सहनी पड़ती हैं। इसलिए प्रलोभनों में न फँसो। चाहे कितनी ही कठिनाई का सामना करना पड़े, पर कर्त्तव्य पर दृढ़ रहो। कर्त्तव्य पर दृढ़ रहने वाले मनुष्य ही सच्चे मनुष्य कहलाने के अधिकारी हैं।

मतभेदों की दीवारें गिराये बिना एकता, आत्मीयता, समता, ममता जैसे आदर्शों की दिशा में बढ़ सकना संभव नहीं हो सकता। विचारों की एकता जितनी अधिक होगी स्नेह, सद्भाव एवं सहकार का क्षेत्र उतना ही विस्तृत होगा। परस्पर खींचतान में नष्ट होने वाली शक्ति को यदि एकता में-एक दिशा में प्रयुक्त किया जा सके तो उसका सत्परिणाम देखते ही बनेगा।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 जिन्दगी जीनी हो तो इस तरह जिये (भाग 2)

दूसरों के दुःख दर्द में हिस्सा बटाना चाहिए पर वह उतना भावुकता पूर्ण न हो कि अपने साध नहीं नष्ट हो जाये और अपना अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाय। आमतौर से उदार व्यक्तियों को ऐसी ही ठगी का शिकार होना पड़ता है। दूसरों को उबारने के लिये किया गया दुस्साहस सराहनीय है पर वह इतना आवेश ग्रस्त न हो कि डूबने वाला तो बच न सके उलटे अपने को भी दूसरे बचाने वालों की ओर निहारना पड़े उदारता के साथ विवेक की नितान्त आवश्यकता है। मित्रता स्थापित करने के साथ वह सूक्ष्म बुद्धि भी सचेत रहनी चाहिए जिससे उचित और अनुचित का सही और गलत का वर्गीकरण किया जाता है।

भावुक आतुरता के साथ यदि उदारता को जोड़ दिया जाये तो उससे केवल धूर्त ही लाभान्वित होगे और उन्हें ढूँढ़ सकना संभव ही न होगा जो इस प्रयोग के लिये सर्वोत्तम हो सकते थे। जीवन का आनन्द मैत्री रहित नीरस और स्वार्थी व्यक्ति नहीं ले सकते इस तथ्य के साथ यह परिशिष्ट और जुड़ा रहना चाहिए कि सज्जनता के आवरण में छिपी हुई धूर्तता की परख की क्षमता भी उपार्जित की जाय। ऐसा न हो कि उदारता का कोई शोषण कर ले और फिर अपना मन सदा के लिये अश्रद्धालु बन जाये।

दूसरों के लिये हमें बहुत कुछ करना चाहिए यह ठीक है। पर यह भी कम सही नहीं कि हमें दूसरों से प्रतिदान की अधिक आशाएँ नहीं करनी चाहिए हर किसी को अपने ही पैरों पर खड़ा होना होता है और अपनी ही टाँगों से चलना पड़ता है। सवारियाँ भी समय समय पर मिलती है दूसरों का सहयोग भी प्राप्त होता है। पर वह इतना कम होता है कि उससे जीवन रथ को न तो दूरी तक खींचा जा सकता है और वह तेज चाल से चल सकता है। काम तो अपनी ही टाँगे आती है। खड़ा होने के लिए अपनी ही नस नाड़ियों माँसपेशियों और हड्डियों पर वजन पड़ता है। यदि वे चरमराने लगे तो फिर दूसरे आदमी कब तक कितनी दूर तक हमें खड़ा होने या चलने में सहायता कर सकेंगे?

जो भी योजना बनाये उसमें आत्म निर्भरता का ही प्रधान भाग रहना चाहिए। दूसरों की सहायता के आधार पर जो क्रिया-कलाप खड़े किये जाते हैं वे आमतौर पर अधूरे और असफल ही रहते हैं। दूसरों का सहयोग भी मिलता ही है पर वह आगे तब आता है जब अपनी पात्रता और प्राथमिकता सिद्ध कर दी जाय। ऐसा स्वावलम्बी लोग ही कर सकते हैं वे ऐसी व्यावहारिक गतिविधियाँ अपनाते हैं जो आज की परिस्थितियों, आज के साधनों से अपने बलबूते खड़ी की जा सकती हो। भले ही इस प्रकार का शुभारम्भ छोटे रूप में हो पर उसमें यह संभावना भरी पड़ी है कि उस छोटे काम में बरती गई तत्परता और सावधानी के आधार पर अपनी प्रामाणिकता सिद्ध की जा सके। यही से दूसरों का सहयोग द्वार खुलता है। भला कोई कैसे पसन्द करेगा कि किसी हवाई कल्पना की उड़ान में उड़ने वाले शेखचिल्ली के नीचे अपनी उँगली फँसा दे और अपनी कीमती सहायता को जोखिम में डालने का खतरा अंगीकार करे।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति- जनवरी 1973 पृष्ठ 34

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...