गुरुवार, 20 अगस्त 2020

👉 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान (भाग ८)

मन मिटे तो मिले चित्तवृत्ति योग का सत्

योग की इस सच्चाई को बताने के लिए गुरुदेव यदा-कदा एक कथा सुनाया करते थे। वह कहते थे कि वाराणसी में रहने वाले महान् सन्त तैलंग स्वामी के पास एक किसी बड़ी रियासत के राजा गए और उन राजा ने तैलंग स्वामी से कहा, महाराज, मेरा मन बहुत बेचैन है, बहुत अशान्त-परेशान है। आप महान् सन्त हैं, मुझे बताएँ कि मैं क्या करूँ, जिससे कि मेरा मन शान्त हो जाय।
  
तैलंग स्वामी वैसे तो बड़े कोमल स्वभाव के थे, पर कभी-कभी उनका रुख बड़ा अक्खड़ हो जाता। उस दिन भी उन्होंने बड़े अक्खड़पने से कहा, कुछ भी मत करो। पहले अपना मन मेरे पास लाओ। उस राजा को कुछ भी समझ में नहीं आया। उसने कहा, महाराज आप क्या कह रहे हैं? मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा। तैलंग स्वामी ने उसकी बातों की अनसुनी करके उससे कहा, ऐसा करो, सुबह चार बजे मेरे पास यहाँ कोई नहीं होता, तब आना और अकेले आना। और ध्यान रखना, अपना मन भी अपने साथ लेते आना, भूलना मत।
  
वह राजा सारी रात सो नहीं पाया। कई बार उसने सोचा कि वह उनके पास नहीं जाएगा। बार-बार वह अपने आप से कहता- इन स्वामी जी को लोग बेकार इतना बड़ा ज्ञानी मानते हैं, यह तो बहकी-बहकी बातें करते हैं। आखिर क्या मतलब है उनका यह कहने से भूलना नहीं, अपना मन भी अपने साथ लेकर आ जाना।
  
उस राजा को उस रोज ऊहापोह भारी रही। परन्तु चाहकर भी वह उस भेंट को रद्द न कर सके। तैलंग स्वामी थे ही इतने मोहक एवं चुम्बकीय। राजा को रात भर यही लगता रहा कि कोई अद्भुत चुम्बक उन्हें अपनी ओर खींच रहा है। चार बजने से कुछ पहले ही वह बिस्तर से उठ बैठा और कहने लगा, मैं उनके पास जाऊँगा जरूर। वे थोड़ी सी बहकी हुई बातें करते हैं, तो क्या हुआ, पर उनकी आँखें कहती हैं कि उनके पास कुछ अवश्य है।
  
ऐसे ही सोच-विचार करते हुए वह तैलंग स्वामी के पास पहुँच गया। पहुँचते ही उन्होंने कहा, आ गए तुम, कहाँ है तुम्हारा मन? राजा बोला, आप भी कैसी बातें करते हैं स्वामी जी! मेरा मन भला और कहाँ होगा, वह तो मुझमें ही है।
  
तैलंग स्वामी बोले, अच्छा तो पहले तो इस बात का निर्णय हो गया कि तुम्हारा मन तुममे ही है। तो अब दूसरी बात मेरी कही हुई करो, अब आँखें बन्द करके खोजो जरा कि मन कहाँ है? तुम उसे ढूँढ लो कि वह कहाँ है, तो फिर उसी क्षण मुझे बता देना। मैं उसे शान्त कर दूँगा।
  
उस राजा ने तैलंग स्वामी का कहा मानकर आँखें बन्द कर ली और कोशिश करता गया देखने की और देखने की। जितना ही वह भीतर झाँकता गया, उतना ही उसे होश आता गया कि वहाँ कोई मन नहीं है, बस एक क्रिया मात्र है- सोचने की क्रिया, आशाओं, अभिलाषाओं, कामनाओं, कल्पनाओं की क्रिया। उसे समझ में आ गया कि मन कोई ऐसी चीज नहीं, जिसकी ओर ठीक से इशारा किया जा सके। लेकिन जिस क्षण उसने जाना कि मन कोई वस्तु नहीं, उसी क्षण उसे अपनी खोज का बेतुकापन भी खुलकर प्रकट हो गया। बात साफ हो गयी कि जब मन कुछ है ही नहीं, तो फिर इसके बारे में कुछ किया ही नहीं जा सकता। यदि यह केवल एक क्रिया है, तो बस उस क्रिया को क्रियान्वित न करो। यदि वह गति की भाँति चाल है, तो मत चलो।
  
यही सोचकर राजा ने अपनी आँखें खोल दी। तैलंग स्वामी मुस्कराने लगे और बोले—आ गयी बात समझ में! अब आगे से जब भी तुम महसूस करो कि तुम अशान्त हो, बस जरा भीतर झाँक लेना। यह झाँकना, यह अवलोकन ही मन की गति को थाम देता है। यदि तुम पूरी उत्कटता से झाँकों, तो तुम्हारी सारी ऊर्जा एक दृष्टि बन जाती है। सामान्य क्रम में वही ऊर्जा गति और सोच-विचार बनी रहती है।

.... क्रमशः जारी
📖 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान पृष्ठ १९
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या

👉 अच्छाई और बुराई

संसार में अच्छाई और बुराई दोनों आपके सामने हैं। हमको विचार करना है की हमें उनसे क्या सीखना है?

हमने अपने आस-पास, अपने मिलने जुलने वालों को ऐसी शिकायत करते हुए खूब सुना होगा, और हो सकता है हम भी अनेक बार लोगों से यह शिकायत करते होंगे, कि देखो साहब, चारों ओर वातावरण बहुत खराब हो गया है। देश और दुनियाँ बिगड़ रही है। बच्चे बिगड़ रहे हैं, जवान बिगड़ रहे हैं, स्त्रियाँ बिगड़ रही हैं, पुरुष बिगड़ रहे हैं। और तो और, बूढ़े तक बिगड़ रहे हैं। कहीं कोई सभ्यता नहीं दिखाई देती। चारों ओर झूठ छल कपट लूट झपट फैशन नंगापन कामुकता चोरी डकैती रिश्वतखोरी लूटमार हत्याएं अपहरण भ्रष्टाचार, बस यही दिखता है।
     
क्या संसार में केवल बुरा काम ही हो रहा है, या कुछ अच्छा काम भी होता है? यदि संसार में कुछ अच्छा काम भी होता है। कुछ अच्छे लोग भी हैं, जो सेवा परोपकार दान दया धर्मार्थ चिकित्सालय गौशाला अनाथालय फ्रीट्यूशन रोगियों की सेवा विकलांगों अनाथों की सेवा वेद विद्या का प्रचार आदि उत्तम कर्मों को करते हैं।  यदि ऐसे अच्छे काम भी संसार में होते हैं, तो हम या अन्य लोग, केवल बुरे कर्मों का ही रोना क्यों रोते रहते हैं? अच्छे कर्मों की चर्चा क्यों नहीं करते?
      
मनोविज्ञान की बात है कि व्यक्ति जैसा देखता सुनता विचार करता और बोलता है, उसका वैसा ही प्रभाव मन पर पड़ता है, और वैसा ही उसका जीवन बनता जाता है। यदि हम और आप बुराइयों की ही चर्चा करते और सुनते रहेंगे, बुरे ही दृश्य, फोटो और वीडियो में देखते रहेंगे, तो आपका जीवन भी वैसा ही अर्थात् बुरा बनेगा। यदि अच्छी बातें सोचेंगे, अच्छे आचरण करेंगे, अच्छे फोटो वीडियो देखेंगे, उन पर चिंतन करेंगे, और उन पर चर्चा करेंगे, तो आपका जीवन भी वैसा ही अर्थात् अच्छा बनता जाएगा।
         
अब दोनों रास्ते हमारे सामने हैं। यह हमारी इच्छा है, कि हम कौन सा रास्ता चुनते  हैं। बुराई की शिकायत न करें, वह तो सबको मालूम है, किसी से कुछ भी छिपा नहीं है। सारा दिन अखबार रेडियो  टेलीविजन कम्प्यूटर और मोबाइल फोन पर बुराई ही तो देखते हैं लोग। फिर उस पर क्या चर्चा करनी?
     
यदि कुछ चर्चा करनी ही है, तो अच्छी घटनाओं की चर्चा करें। अच्छे कर्मों की चर्चा करें। स्वयं अच्छे बनें, और दूसरों को अच्छाई की ओर प्रेरित करें। तभी हमारा और आप का  जीवन अच्छा बनेगा, और यह संसार भी जीने लायक बना रहेगा।

👉 Awaken Your Indwelling Divinity

All sub-human life forms are born with specific instincts and usually live within its confines right till the end. The Creator has endowed only the human species with the faculty of freewill, based in the shadowy ego-self. Man has mostly used this freewill for exploitation of other life-forms and disturbance of the harmonies of Nature, instead of nurturing them, ignoring the nudgings of his soul, which is latent within him and is a spark of the Supreme Soul. All the potentialities and all the light of the individual soul are just reflections of the Supreme Soul.

All the divine powers exist within the Supreme Soul. When Agni Dev gets awakened hunger is felt, Varun Dev generates thirst for water. To each divine power, a direction and a task are well assigned. To ensure that these divine powers do not work at cross-purposes a proper control and balance is maintained by the Supreme Soul which has merged Itself into the creation in the form of individualized souls in the evolutionary process of consciousness.

It is thus that the fascinating, extraordinary human life came into existence in the universe. From then on till date man has been like a living laboratory, exercising his freewill for ill or good. Whenever he commits mistakes he gets punished, and when he performs good deeds he is rewarded and given greater responsibilities. Misdeeds result in sorrow, good deeds like benevolence and righteousness result in happiness. This is the principle of ‘Karma’ – ‘As you sow so shall you reap.’

🌹 ~Pandit Shriram Sharma Acharya

👉 सुख दुःख में समस्वरता

लाभ की तरह हानि का, संयोग की तरह वियोग का, दिन की तरह रात का आना बिलकुल स्वाभाविक है। कपड़े के ताने−बाने की तरह यह जीवन भी सुख और दुख, उतार और चढ़ाव के ताने−बाने से बुना हुआ है। यहाँ बुरा और भला सब कुछ है। बुरा इसलिए है कि उसमें सुधारने का प्रयत्न करते हुए हम अपने को अधिक पुरुषार्थी अधिक पुण्यवान बनावें, शुभ इसलिए है कि उसे देखकर हम प्रमुदित हों और उस उपलब्धि का वितरण दूसरों को भी करें। दोनों ही प्रकार की—भली और बुरी परिस्थितियों से हँसते−खेलते भी निपटा जा सकता है तो फिर रोते कलपते उनसे क्यों निपटें?

ताश खेलने में बाजी हार जाने पर, खेल खेलते हुए परास्त हो जाने पर, नाटक करते हुए आपत्तिग्रस्त हो जाने पर कौन रोता कलपता है? उस हानि को हलके मन से, उपेक्षा भाव से देखने पर उसका प्रभाव मन पर जरा−सी देर हलका−सा रहता है और फिर हम अपना आगे का काम स्वस्थ चित्त से करने लगते हैं। यदि हमारा मन विवेकी हो तो शोक, वियोग, हानि, कष्ट, परेशानी, दुर्व्यवहार आदि के अप्रिय प्रसंगों को हँसकर सहन कर सकते हैं, और फिर सन्तुलित मन को उन समस्याओं का हल खोजने में लगाकर आगत कठिनाई से पार होने का मार्ग भी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। मन की स्वच्छता से विवेक जागृत होता है, सोचने का सही तरीका अभ्यास में आता है और तब प्रायः सभी उलझी हुई समस्यायें शान्तिपूर्वक सुलझ जाती हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1962

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...