🌹 ‘‘हम बदलेंगे-युग बदलेगा’’, ‘‘हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा’’ इस तथ्य पर हमारा परिपूर्ण विश्वास है।
🔴 यह आवश्यकता हम लोगों को ही पूरी करनी होगी। दूसरों लोग इस मोर्चे से पीछे हट रहे हैं। उन्हें नेतागिरी यश, प्रशंसा और मान प्राप्त करने की ललक तो है, पर अपने को आदर्शवाद की प्रतीक प्रतिमा के रूप में प्रस्तुत करने का साहस नहीं हो रहा है। आज के अगणित तथाकथित लोकसेवी अवांछनीय लोकमान्यताओं के ही अनुगामी बने हुए हैं। धार्मिक क्षेत्र के अधिकांश नेता, संत-महंत जनता की रूढ़ियों, मूढ़ताओं और अंध-परम्पराओं का पोषण उनकी अवांछनीयताओं को समझते हुए भी करते रहते हैं। राजनैतिक नेता अपना चुनाव जीतने के लिए वोटरों की अनुचित माँगें पूरी करने के लिए भी सिर झुकाए रहते हैं।
🔵 इस स्थिति में पड़े हुए लोग जनमानस के परिष्कार जैसी लोकमंगल की मूलभूत आवश्यकता पूर्ण कर सकने में समर्थ नहीं हो सकते। इस प्रयोजन की पूर्ति वे करेंगे, जिनमें लोकरंजन की अपेक्षा लोकमंगल के लिए आगे बढ़ने का, निंदा, अपयश और विरोध सहने का साहस हो। स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने बंदूक की गोलियाँ खाई थीं। बौद्धिक पराधीनता के विरुद्ध छेड़े हुए अपने विचार क्रांति संग्राम में भाग लेने वाले सेनानियों को कम से कम गाली खाने के लिए तैयार रहना ही होगा, जो गाली खाने से डरेगा, वह अवांछनीयता के विरुद्ध आवाज कैसे उठा सकेगा?
🔴 अनुचित से लड़ कैसे सकेगा? इसलिए युग परिवर्तन के महान् अभियान का नेतृत्व कर सकने की आवश्यकता शर्त यह है कि इस क्षेत्र में कोई यश और मान पाने के लिए नहीं विरोध, निंदा और तिरस्कार पाने की हिम्मत लेकर आगे आए। नव निर्माण का सुधारात्मक अभियान गतिशील बनाने में मिलने वाले विरोध और तिरस्कार को सहने के लिए आगे कौन आए? इसके लिए प्रखर मनोबल और प्रचंड साहस की आवश्यकता होती है। इसे एक दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि मूर्धन्य स्तर के लोग भी साहस विहीन लुंज-पुंज दिखाई दे रहे हैं और शौर्य पराक्रम के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों से डरकर आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं।
🔵 आज सच्चे अध्यात्म को कल्पना लोक से उतार कर व्यावहारिक जीवन में उतारे जाने की नितांत आवश्यकता है। इसके बिना हम आत्मिक प्रगति न कर सकेंगे। अपना अनुकरणीय आदर्श उपस्थित न कर सकेंगे और यदि यह न किया जा सका, तो समाज के नव निर्माण का, धरती पर स्वर्ग के अवतरण का प्रयोजन पूरा न हो सकेगा। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपना समस्त साहस बटोर कर अपनी वासनाओं, तृष्णाओं, संकीर्णताओं और स्वार्थपरताओं से लड़ पड़ें। इन भव बंधनों को काट डालें और जीवन को ऐसा प्रकाशवान् बनाएँ, जिसकी आभा से वर्तमान युग का सारा अंधकार तिरोहित हो सके और उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएँ आलोकित हो उठें।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.102
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.18
🔴 यह आवश्यकता हम लोगों को ही पूरी करनी होगी। दूसरों लोग इस मोर्चे से पीछे हट रहे हैं। उन्हें नेतागिरी यश, प्रशंसा और मान प्राप्त करने की ललक तो है, पर अपने को आदर्शवाद की प्रतीक प्रतिमा के रूप में प्रस्तुत करने का साहस नहीं हो रहा है। आज के अगणित तथाकथित लोकसेवी अवांछनीय लोकमान्यताओं के ही अनुगामी बने हुए हैं। धार्मिक क्षेत्र के अधिकांश नेता, संत-महंत जनता की रूढ़ियों, मूढ़ताओं और अंध-परम्पराओं का पोषण उनकी अवांछनीयताओं को समझते हुए भी करते रहते हैं। राजनैतिक नेता अपना चुनाव जीतने के लिए वोटरों की अनुचित माँगें पूरी करने के लिए भी सिर झुकाए रहते हैं।
🔵 इस स्थिति में पड़े हुए लोग जनमानस के परिष्कार जैसी लोकमंगल की मूलभूत आवश्यकता पूर्ण कर सकने में समर्थ नहीं हो सकते। इस प्रयोजन की पूर्ति वे करेंगे, जिनमें लोकरंजन की अपेक्षा लोकमंगल के लिए आगे बढ़ने का, निंदा, अपयश और विरोध सहने का साहस हो। स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने बंदूक की गोलियाँ खाई थीं। बौद्धिक पराधीनता के विरुद्ध छेड़े हुए अपने विचार क्रांति संग्राम में भाग लेने वाले सेनानियों को कम से कम गाली खाने के लिए तैयार रहना ही होगा, जो गाली खाने से डरेगा, वह अवांछनीयता के विरुद्ध आवाज कैसे उठा सकेगा?
🔴 अनुचित से लड़ कैसे सकेगा? इसलिए युग परिवर्तन के महान् अभियान का नेतृत्व कर सकने की आवश्यकता शर्त यह है कि इस क्षेत्र में कोई यश और मान पाने के लिए नहीं विरोध, निंदा और तिरस्कार पाने की हिम्मत लेकर आगे आए। नव निर्माण का सुधारात्मक अभियान गतिशील बनाने में मिलने वाले विरोध और तिरस्कार को सहने के लिए आगे कौन आए? इसके लिए प्रखर मनोबल और प्रचंड साहस की आवश्यकता होती है। इसे एक दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि मूर्धन्य स्तर के लोग भी साहस विहीन लुंज-पुंज दिखाई दे रहे हैं और शौर्य पराक्रम के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों से डरकर आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं।
🔵 आज सच्चे अध्यात्म को कल्पना लोक से उतार कर व्यावहारिक जीवन में उतारे जाने की नितांत आवश्यकता है। इसके बिना हम आत्मिक प्रगति न कर सकेंगे। अपना अनुकरणीय आदर्श उपस्थित न कर सकेंगे और यदि यह न किया जा सका, तो समाज के नव निर्माण का, धरती पर स्वर्ग के अवतरण का प्रयोजन पूरा न हो सकेगा। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपना समस्त साहस बटोर कर अपनी वासनाओं, तृष्णाओं, संकीर्णताओं और स्वार्थपरताओं से लड़ पड़ें। इन भव बंधनों को काट डालें और जीवन को ऐसा प्रकाशवान् बनाएँ, जिसकी आभा से वर्तमान युग का सारा अंधकार तिरोहित हो सके और उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएँ आलोकित हो उठें।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.102
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.18






