रविवार, 17 दिसंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 17 Dec 2023

🔶 किसी एक समुदाय के विचार किसी दूसरे समुदाय के विरुद्ध हो सकते हैं। किसी एक वर्ग का आहार -विहार दूसरे वर्ग के विपरीत पड़ सकता है। एक की भावनायें, मान्यतायें आदि दूसरे से टकरा सकती हैं। इसी विविधता, विभिन्नता और बहुलता के कारण कदम-कदम पर संर्घर्ष पैदा होने लगा है। एक विचार धारा के लोग दूसरे की विचारधारा की आलोचना करते हैं निन्दा करते हैं। हर मनुष्य अपने ही विचारों, विश्वासों एवं मान्यताओं के प्रति भावुक होता है। वह उनके विरोध में कुछ सुनना पसन्द नहीं करता। किन्तु उसे सुनना ही पड़ता है।

🔷 तृष्णा भयानक अजगर के समान है। जब यह किसी मनुष्य में अनियन्त्रित हो जाती है तो सम्पूर्ण संसार को निगल जाने की इच्छा किया करती है। अपनी इस अनुचित इच्छा से प्रेरित होकर जब वह अग्रसर होता है तब भयानक संघर्ष, विरोध एवं वैर में फँसकर चोट खाता और तड़पता है। स्वार्थ से ईर्ष्या, द्वेष, लोभ आदि मानसिक विकृतियों का जन्म होता है जो स्वयं ही किसी अन्य साधन के बिना मनुष्य को जलाकर भस्म कर डालने के लिये पर्याप्त होती हैं।

🔶 परिवर्तन संसार का अनिवार्य नियम है, किन्तु इसकी गति इतनी मन्थर होती है कि नित्यप्रति होने वाला परिवर्तन दृष्टिगोचर नहीं होता है। यदि यह धीरे-धीरे होने वाला परिवर्तन क्रम ठीक से दिखाई देता रहे तो उसी अनुपात से मनुष्य अपनी मान्यताएं भी बदलता चले। स्थूल एवं स्पष्ट रूप से दृश्यमान होने में परिवर्तन एक लम्बा समय लेता है। तब तक मनुष्य की मान्यतायें उसके मस्तिष्क में गहरी जड़ पकड़ लेती हैं और तब अपनी उन चिर संगिनियों को उखाड़ फेंकने में एक मोह, एक ममता और एक पीड़ा-सी होने लगती है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 उपासना का महत्व

ईश्वर उपासना को दैनिक जीवन में से बिल्कुल हटा देना किसी भी प्रकार से उपयुक्त नहीं। मन न लगने पर किसी न किसी प्रकार आदत में इसे सम्मिलित करने के लिए साधना का कुछ न कुछ अभ्यास नित्य ही करते रहना चाहिए।

आत्म-शक्ति जब कभी जिस किसी को प्राप्त हुई है तब उसमें आस्तिकता और उपासना का कोई न कोई अंश जरूर रहा है। भले ही हम बिस्तर से उठते और सोते समय पन्द्रह-पन्द्रह मिनट तक ही सर्वव्यापक, निष्पक्ष, न्यायकारी, विचार और कार्यों के अनुरूप प्रसन्न एवं अप्रसन्न होने वाले परमात्मा का ध्यान और स्मरण किया करें, पर किसी न किसी रूप में दैनिक उपासना तो किया करें।

इसमें प्रश्न फुरसत का नहीं, अभिरुचि का है। थोड़ी अभिरुचि इधर बढ़ते ही इस मार्ग में आनन्द आने लगता है और फुरसत भी मिलने लगती है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (५.९)


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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...