गुरुवार, 7 सितंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 7 Sep 2023

🔷 दयालु परमपिता प्यार के नाते विकास के अवसर सभी को देता है। विकास के अवसरों का लोभ उठाकर जो व्यक्ति योग्यता बढ़ा लेते हैं, उन्हें वह महत्वपूर्ण कार्य योग्यताओं के आधार पर सौंपता है। विकास के अवसर और सौंपे गए कार्य, इन दोनों में अंतर न कर पाने से मनुष्य समझता है कि भगवान किसी को अधिक अवसर देता है किसी को कम।

🔶 मार्गों के लक्ष्य निश्चित हैं; पर मनुष्य चुनते समय मार्ग के लक्ष्य की अपेक्षा मार्गों की सुविधाओं को रुचि अनुसार चुन लेता है। जो मार्ग पकड़ लिया, उसी के गंतव्य पर पहुँचना पड़ता है; फिर यह चाह महत्व नहीं रखती कि कहाँ पहुँचना चाहते थे।

🔷 जो स्वार्थ तक ही सीमित हैं, वे नर- पशु हैं। पशु अपने शरीर निर्वाह, अपनी रक्षा और अपने वंश विस्तार से अधिक सोच नहीं पाते। मनुष्य सोचने की क्षमता रखता तो है; पर स्वार्थवश पशुओं की सीमा से आगे बढ़ता नहीं, इसलिए नर पशु कहलाता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 आत्म साधना मानव संस्कृति का उच्चतम शिखर

वन्य पशुओं और जंगली झाड़ियों की तरह मनुष्य की सत्ता भी अनगढ़ होती है। उसे प्रयत्नपूर्वक सुगठित एवं परिष्कृत करने के लिए तत्त्वदर्शियों न जिस प्रक्रिया को अपनाया, उसे संस्कृति कहा जाता है। क्रमशः सभ्यता की लम्बी मंजिल पर चलते हुए ही मनुष्य उस स्तर पर पहुँचता है, जिससे मानवता गौरवान्वित होती है। यह सुन्दर संसार, व्यवस्थित समाज और व्यक्तित्वों के सुविकसित साधन सम्पन्न होने जैसे सभी वरदान इस संस्कृति साधना की देन हैं।

मनुष्य का व्यक्तित्व भी अपने आप में एक छोटा विश्व है। उसकी भीतरी और बाहरी सत्ता में इतना कुछ विद्यमान है जिसके सहारे आज का दयनीय दुर्दशाग्रस्त जीव कल सर्व समर्थ ब्रह्म बन सके। पर वह दिव्य वैभव प्रसुप्त पड़ा है। उसे कैसे जगाया और कैसे प्रयोग किया जाय, यह ऐसा विज्ञान है जिसे जानने पर विश्व की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियाँ करतलगत होती हैं।

आत्म-साधना, संस्कृति के उच्च सोपान पर पहुँचने का उच्च शिखर है, उस पर खड़ा होने वाला जो देखता, अनुभव करता और देता है, उसे निस्संकोच अनुपम और अद्भुत कहा जा सकता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1976 पृष्ठ 1

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1976/January/v1.2

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...