शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

👉 हमेशा अच्छा करो

🔷 एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी..। वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था..।

🔶 एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता- "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा..।"

🔷 दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा.. वो कुबड़ा रोज रोटी लेके जाता रहा और इन्ही शब्दों को बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा.।"

🔶 वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी की-"कितना अजीब व्यक्ति है,एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या बड़बड़ाता रहता है, मतलब क्या है इसका.।"

🔷 एक दिन क्रोधित होकर उसने एक निर्णय लिया और बोली-"मैं इस कुबड़े से निजात पाकर रहूंगी।"

🔶 और उसने क्या किया कि उसने उस रोटी में ज़हर मिला दिया जो वो रोज़ उसके लिए बनाती थी, और जैसे ही उसने रोटी को को खिड़की पर रखने कि कोशिश की, कि अचानक उसके हाथ कांपने लगे और रुक गये और वह बोली- "हे भगवन, मैं ये क्या करने जा रही थी.?" और उसने तुरंत उस रोटी को चूल्हे कि आँच में जला दिया..। एक ताज़ा रोटी बनायीं और खिड़की के सहारे रख दी..।

🔷 हर रोज़ कि तरह वह कुबड़ा आया और रोटी ले के: "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा, और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा" बड़बड़ाता हुआ चला गया..। इस बात से बिलकुल बेख़बर कि उस महिला के दिमाग में क्या चल रहा है..।

🔶 हर रोज़ जब वह महिला खिड़की पर रोटी रखती थी तो वह भगवान से अपने पुत्र कि सलामती और अच्छी सेहत और घर वापसी के लिए प्रार्थना करती थी, जो कि अपने सुन्दर भविष्य के निर्माण के लिए कहीं बाहर गया हुआ था..। महीनों से उसकी कोई ख़बर नहीं थी..।

🔷 ठीक उसी शाम को उसके दरवाज़े पर एक दस्तक होती है.. वह दरवाजा खोलती है और भोंचक्की रह जाती है.. अपने बेटे को अपने सामने खड़ा देखती है..। वह पतला और दुबला हो गया था.. उसके कपडे फटे हुए थे और वह भूखा भी था, भूख से वह कमज़ोर हो गया था..।

🔶 जैसे ही उसने अपनी माँ को देखा, उसने कहा- "माँ, यह एक चमत्कार है कि मैं यहाँ हूँ.. आज जब मैं घर से एक मील दूर था, मैं इतना भूखा था कि मैं गिर गया.. मैं मर गया होता..।

🔷 लेकिन तभी एक कुबड़ा वहां से गुज़र रहा था.. उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया.. भूख के मरे मेरे प्राण निकल रहे थे.. मैंने उससे खाने को कुछ माँगा.. उसने नि:संकोच अपनी रोटी मुझे यह कह कर दे दी कि- "मैं हर रोज़ यही खाता हूँ, लेकिन आज मुझसे ज़्यादा जरुरत इसकी तुम्हें है.. सो ये लो और अपनी भूख को तृप्त करो.।"

🔶 जैसे ही माँ ने उसकी बात सुनी, माँ का चेहरा पीला पड़ गया और अपने आप को सँभालने के लिए उसने दरवाज़े का सहारा लीया..। उसके मस्तिष्क में वह बात घुमने लगी कि कैसे उसने सुबह रोटी में जहर मिलाया था, अगर उसने वह रोटी आग में जला के नष्ट नहीं की होती तो उसका बेटा उस रोटी को खा लेता और अंजाम होता उसकी मौत..?

🔷 और इसके बाद उसे उन शब्दों का मतलब बिलकुल स्पष्ट हो चूका था-
जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा,और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।।

" निष्कर्ष "
🔶 हमेशा अच्छा करो और अच्छा करने से अपने आप को कभी मत रोको, फिर चाहे उसके लिए उस समय आपकी सराहना या प्रशंसा हो या ना हो..।

👉 आज का सद्चिंतन 20 April 2018


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 20 April 2018


👉 सृजन के लिए साहस

🔷 मित्रो ! इमारतों का सृजन सीधा-सादा सा होता है। पुल, सड़कों बाँधों का निर्माण निर्धारित नक्शे के आधार पर चलता रहता है। पर युगों के नव सृजन में अनेकानेक पेचीदगियाँ और कठिनाइयाँ आ उड़ेली हैं। कार्य का स्वरूप ही ऐसा है, जिसमें प्रवाह के उलटने के प्रयास, जूझने की विद्या ही प्रमुख बन जाती है। विचारक्रांति, युग परिवर्तन, जनमानस का परिष्कार ऐसे संकल्प हैं, जिनकी पूर्ति में प्राय:उन सभी से टकराना पड़ता है, जो अब तक स्वजन, संबंधी, हितैषी, निकटर्वी एवं अपने प्रभाव क्षेत्र के अंतर्गत माने जाते थे। इसमें मार-काट न होने पर भी इसे भूतकाल में संपन्न हुए महाभारत के समतुल्य माना जा सकता है, भले ही उस टकराहट को दृश्य रूप में न देखा जा सकता हो।
  
🔶 आज अभिमन्यु जैसा साहस उन्हें भी अर्जित करना पड़ेगा, जो अवांछनीयता, मूढ़-मान्यता, लोभ-लिप्सा, संकीर्ण स्वार्थपरता और निकृष्ठता के व्यामोह को चीरकर नवसृजन का मार्ग बनाना चाहें।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 Trained camel

🔷 There was a well trained camel. At the time of a festival, the camelman used to load the kettledrum on camel’s back and moved forward playing it. On becoming older and thus worthless, the camel was left free. Since he belonged to king, nobody used to beat him.   

🔶 One day the camel started eating the drying grains of an old who tried to dispel him by the sound of a winnowing basket. The camel said, “For the whole life I have been hearing the clatter of a kettledrum. I can not be horrified by a winnowing basket.”

🔷 The values learnt in ones life don’t fade away in old  age too. A changeover can be attained only by thinking of rising beyond these.

📖 From Akhand Jyoti

👉 हमारी भुजा बन जाओ

🔷 मित्रो ! हमारी एक ही महत्त्वाकांक्षा है कि हम सहस्रभुजा वाले सहस्रशीर्षा पुरुष बनना चाहते हैं। तुम सब हमारी भुजा बन जाओ, हमारे अंग बन जाओ, यह हमारी मन की बात है। गुरु- शिष्य एक- दूसरे से अपने मन की बात कहकर हल्के हो जाते हैं। हमने अपने मन की बात तुमसे कह दी। अब तुम पर निर्भर है कि तुम कितना हमारे बनते हो? पति- पत्नी की तरह, गुरु व शिष्य की आत्मा में भी परस्पर ब्याह होता है, दोनों एक- दूसरे से घुल- मिलकर एक हो जाते हैं। समर्पण का अर्थ है- दो का अस्तित्व मिटाकर एक हो जाना।

🔶 तुम भी अपना अस्तित्व मिटाकर हमारे साथ मिला दो व अपनी क्षुद्र महत्त्वाकांक्षाओं को हमारी अनन्त आध्यात्मिक महत्त्वाकांक्षाओं  में विलीन कर दो। जिसका अहं जिन्दा है, वह वेश्या है। जिसका अहं मिट गया, वह पवित्रता है। देखना है कि हमारी भुजा, आँख, मस्तिष्क बनने के लिए तुम कितना अपने अहं को गला पाते हो? इसके लिए निरहंकारी बनो। स्वाभिमानी तो होना चाहिए, पर निरहंकारी बनकर। निरहंकारी का प्रथम चिह्न है वाणी की मिठास।

🔷 वाणी व्यक्तित्व का हथियार है। सामने वाले पर वार करना हो तो तलवार नहीं, कलाई नहीं, हिम्मत की पूछ होती है। हिम्मत न हो तो हाथ में तलवार भी हो, तो बेकार है। यदि वाणी सही है तो तुम्हारा व्यक्तित्व जीवन्त हो जाएगा, बोलने लगेगा व सामने वाले को अपना बना लेगा। अपनी विनम्रता, दूसरों का सम्मान व बोलने में मिठास, यही व्यक्तित्व के प्रमुख हथियार हैं। इनका सही उपयोग करोगे तो व्यक्तित्व वजनदार बनेगा।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 वाङमय- नं 68 पेज 1.14

👉 गुरुगीता (भाग 90)

👉 सत् चित् आनन्दमयी सद्गुरु की सत्ता

🔶 गुरुगीता के महामंत्रों की साधना से सद्गुरु की चेतना शिष्य में अवतरित होती है। इस आध्यात्मिक अवतरण से शिष्य का जीवन परिष्कृत, परिमार्जित, परिवर्तित एवं रूपान्तरित हो जाता है। यह कुछ ऐसा है, जिसे महान् चमत्कार से कम न तो कुछ कहा जा सकता है और न आँका जा सकता है; लेकिन इसके लिए जरूरी है उस प्रक्रिया से गुजरना, जिसे गुरुगीता के महामंत्र कहते हैं, बताते हैं। जो उपदेश, जो भाव, जो सत्य और जो क्रियाएँ इन महिमामय मंत्रों में निहित हैं, शिष्य को ऐसा ही करना चाहिए। जो शिष्य अपने अंतस् को सद्गुरु के चरणों में समर्पित करता है, उसे अपने आप ही सभी आध्यात्मिक तत्त्वों की उपलब्धि हो जाती है। गुरुदेव ही जड़-पदार्थ हैं और वही परात्पर चेतना। यह उन सभी को अनुभव होता है, जो उन्हें ध्याते हैं।
  
🔷 गुरुगीता की पिछली पंक्तियों में इस सच्चाई के कई सूक्ष्म आयाम प्रकट किये जा चुके हैं। इसमें भगवान् भोलेनाथ बताते हैं कि ब्रह्मा से लेकर सामान्य तिनके तक सभी जड़-चेतन में परमात्मा-व्याप्त है। सद्गुरु परमात्मामय होने के कारण ‘सर्वव्यापी’ हैं। शिष्य को चाहिए कि वह अपने सद्गुरु को सत्-चित्-आनन्दमय जाने। इस अनुभूति के रूप में वह नित्य, पूर्ण, निराकार, निर्गुण व आत्मस्थित गुरुतत्त्व की वन्दना करे। श्री गुरुदेव के शुद्ध स्वरूप का हृदयाकाश के मध्य में ध्यान करे।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ प्रणव पंड्या
📖 गुरुगीता पृष्ठ 136

👉 Good nature doesn’t cost anything

🔶 Selfless and generous individuals are often tricked by cunning people and as a result, they may usually seem to be at disadvantage. On the other hand, many people—influenced by their generosity—offer them so much help and support that the disadvantage of being tricked by cunning people more or less gets eclipsed by the advantage of reaping help and support from many people. All in all, selfless and generous individuals are always at advantage.

🔷 In the same way, selfish people may not bother to help others and in doing so, they may avoid losing anything. However, their selfish nature discourages other people from offering help, thus depriving them of that crucial advantage. To put in a nutshell, mean and selfish individuals would generally suffer greater loss than generous and good-natured individuals.

🔶 Corrupt traders who follow double-standards are never seen prospering. Selfish, egoistical and bad-mannered people who expect others to be good to them and help them are actually behaving in the same way as the corrupt traders having double-standards. Such behavior can never ever lead to progress and happiness in life.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya
📖 Yug Nirman Yojana: Darshan, swaroop va karyakram 66:5.17

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...