सोमवार, 9 अक्तूबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 9 Oct 2023

एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं। जब तक हृदय मन्दिर में बुरी वासनाओं, पाप और कल्मषों की पूजा हो रही है तब तक धर्म और ईश्वर भक्ति को वहाँ स्थान नहीं मिल सकता है। जब हृदयासन पर परमात्मा को बिठाया जाता है तो दुष्वृत्तियां नहीं ठहर सकतीं।

किसी की निन्दा मत करो। याद रखो इससे तुम्हारी जबान गंदी होगी, तुम्हारी वासना मलिन होगी। जिसकी निंदा करते हो उससे वैर होने की संभावना रहेगी और चित्त में कुसंस्कारों के चित्र अंकित होंगे।

ईश्वर नहीं चाहता कि आदमी शैतानी ताकत के बल पर असुरों जैसा अभिमानी बने। उस महाशक्ति की इच्छा है दुनिया में सत्य, प्रेम और पवित्रता का साम्राज्य रहे। बीसवीं शताब्दी का वैज्ञानिक मनुष्य आसुरी संपदा के अभिमान में डूब गया है फलतः उसके कदम नाश की ओर उठते हुए चले जा रहे हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 दोष तो अपने ही ढूँढ़ें Dosh Darshan

दोष दृष्टि रखने से हमें हर वस्तु दोषयुक्त दीख पड़ती है। उससे डर लगता है, घृणा होती है। जिससे घृणा होती है, उसके प्रति मन सदा शंकाशील रहता है, साथ ही अनुदारता के भाव भी पैदा होते हैं। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति या वस्तु से न तो प्रेम रह सकता है और न उसके गुणों के प्रति आकर्षण उत्पन्न होना ही सम्भव रहता है।

दोष दृष्टि रखने वाले व्यक्ति को धीरे-धीरे हर वस्तु बुरी, हानिकारक और त्रासदायक दीखने लगती है। उसकी दुनियाँ में सभी विराने, सभी शत्रु और सभी दुष्ट होते है। ऐसे व्यक्ति को कहीं शान्ति नहीं मिलती।

दूसरों की बुराइयों को ढूँढ़ने में, चर्चा करने में जिन्हें प्रसन्नता होती है वे वही लोग होते हैं जिन्हें अपने दोषों का पता नहीं है। अपनी ओर दृष्टिपात किया जाय तो हम स्वयं उनसे अधिक बुरे सिद्ध होंगे, जिनकी बुराइयों की चर्चा करते हुये हमें प्रसन्नता होती है। दूसरों के दोषों को जिस पैनी दृष्टि से देखा जाता है। यदि अपने दोषों का उसी बारीकी से पता लगाया जाय तो लज्जा से अपना सिर झुके बिना न रहेगा और किसी दूसरे का छिद्रान्वेषण करने की हिम्मत न पड़ेगी।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति 1961 मई Page 19

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...