सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

👉 बहुमूल्य वर्तमान का सदुपयोग कीजिए

मृत्यु और निर्माण के बीच में हम ठहरे हुए हैं। वर्तमान बड़ी तेजी से भूत की ओर दौड़ता है। भूत और मृत्यु एक ही बात है। कहते हैं कि मरने के बाद मनुष्य भूत बनता है। मनुष्य ही नहीं हर चीज मरती है और वह भूत बन जाती है। जब किसी वस्तु की सत्ता पूर्णत: समाप्त हो जाती है तो उसकी पूर्ण मृत्यु कही जाती है, पर आंशिक मृत्यु जन्म के साथ ही आरंभ हो जाती है। बालक जन्म के बाद बढ़ता है, विकास करता है, उसकी यह यात्रा मृत्यु की ओर ही है।

संसार की हर वस्तु का, मनुष्य शरीर का भी निर्माण उन्हीं तत्त्वों से हुआ है, जो हर क्षण बदलते हैं। उनका चक्र भूत को पीछे छोड़ता हुआ, भविष्य को पकड़ता हुआ प्रतिक्षण तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है। विश्व एक पल के लिए भी स्थिर नहीं रहता। अणु-परमाणु से लेकर विशालकाय ग्रह-पिंड तक अपनी यात्रा विश्रांत गति से कर रहे हैं।

हमारा जीवन भी हर घड़ी थोड़ा-थोड़ा करके मर रहा है। इस दीपक का तेल शनै: शनै चुकता चला जा रहा है। भविष्य की ओर हम चल रहे हैं और वर्तमान को भूत की गोदी में पटकते जाते हैं। यह सब देखते हुए भी हम नहीं सोचते कि क्या वर्तमान का कोई सदुपयोग हो सकता है। जो बीत गया सो गया, जो आने वाला है, वह भविष्य के गर्भ में है। वर्तमान हमारे हाथ में है। यदि हम चाहे तो उसका सदुपयोग करके इस नश्वर जीवन में से कुछ अनश्वर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति-जनू-1947 पृष्ठ 1

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1947/June/v1



All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 अपनी दुनिया अपनी दृष्टि में

अपने आप में, अपने अंत:करण में एक जबरदस्त लोक मौजूद है। उस लोक की स्थिति इतनी महत्त्वपूर्ण है कि उसके सामने भूगोल और भुव: लोक तुच्छ हैं। नि:संदेह बाहर की परिस्थितियाँ मनुष्य को आंदोलित, तरंगित तथा विचलित करती हैं, परंतु संसार के समस्त पदार्थों द्वारा जितना भला या बुरा प्रभाव होता है, उससे अनेक गुना प्रभाव अपने निजि के विचारों तथा विश्वासों द्वारा होता है।

गीता में कहा गया है कि मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र और स्वयं ही अपना शत्रु है। कोई मित्र इतनी सहायता नहीं कर सकता, जितनी कि मनुष्य स्वयं अपनी सहायता कर सकता है। इसी प्रकार कोई दूसरा उतनी शत्रुता नहीं कर सकता, जितनी कि मनुष्य खुद अपने आप अपने से शत्रुता करता है। अपनी कल्पना शक्ति, विचार और विश्वास के आधार पर मनुष्य अपनी एक दुनिया निर्माण करता है। वही दुनिया उसे वास्तविक सुख-दु:ख दिलाया करती है।

मनुष्य के मन में प्रचंड शक्ति भरी हुई है। वह इस शक्ति द्वारा अपने लिए अत्यंत अनिष्टकर अथवा अत्यंत उपयोगी तथ्य निर्मित कर सकता है। हर मनुष्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। भीतरी मन की दुनिया जैसी होती है, बाहर की दुनिया भी उसी के अनुरूप दिखाई देने लगती है। अंदर की दुनिया सुन्दर बनाओ।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति-सितं. 1947 पृष्ठ 5

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1947/September/v1.5


All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...