शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

👉 आज का सद्चिंतन 19 Sep 2025


`Shantikunj Rishi Chintan` Youtube Channel

This is the official YouTube channel of  Shantikunj Rishi Chintan Gayatri Pariwar
`Shantikunj Rishi Chintan` चैनल को Subscribe करके Bell 🔔 बटन को जरूर दबाएं और अपडेट रहें
➖➖➖➖➖➖➖➖



👉 आत्मनिर्माण की दूसरी साधना - भावनाओं पर विजय

गंदी वासनाएँ दग्ध की जाएं तथा दैवी संपदाओं का विकास किया जाए तो उत्तरोत्तर आत्मविकास हो सकता है। कुत्सित भावनाओं में क्रोध, घृणा, द्वेष, लोभ और अभिमान, निर्दयता, निराशा अनिष्ट भाव प्रमुख हैं, धीरे-धीरे इनका मूलोच्छेदन कर देना चाहिए। इनसे मुक्ति पाने का एक यह भी उपाय है कि इनके विपरीत गुणों, धैर्य, उत्साह, प्रेम, उदारता, दानशीलता, उपकार, नम्रता, न्याय, सत्य-वचन, दिव्य भावों का विकास किया जाए। ज्यों-ज्यों दैवी गुण विकसित होंगे दुर्गुण स्वयं दग्ध होते जाएंगे, दुर्गुणों से मुक्ति पाने का यही एक मार्ग है।

आप प्रेम का द्वार खोल दीजिए, प्राणिमात्र को अपना समझिए, समस्त कीट-पतंग, पशु-पक्षियों को अपना समझा कीजिए। संसार से प्रेम कीजिए। आपके शत्रु स्वयं दब जाएँगे, मित्रता की अभिवृद्धि होगी। इसी प्रकार धैर्य, उदारता, उपकार इत्यादि गुणों का विकास प्रारंभ कीजिए। इन गुणों की ज्योति से आपके शरीर में कोई कुत्सित भावना शेष न रह जाएगी।

✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आत्मज्ञान और आत्मकल्याण पृष्ठ 9


Shantikunj Rishi Chintan Youtube Channel
This is the official YouTube channel of  Shantikunj Rishi Chintan Gayatri Pariwar 
➖➖➖➖➖➖➖➖
Shantikunj Rishi Chintan चैनल को Subscribe करके Bell 🔔 बटन को जरूर दबाएं और अपडेट रहें
➖➖➖➖➖➖➖➖

👉 मौन : मन और वाणी का संयम

🔷 मनुष्य जो कुछ सोचता और विचार करता है, उसे वाणी के माध्यम से व्यक्त करता है।  मनुष्य ने अपने विचारों और भावों को सर्वप्रथम वाणी के माध्यम से व्यक्त करना सीखा। वाणी और मस्तिष्क का सीधा सम्बन्ध है, विशेषत: अभिव्यक्ति के लिए तो सबके लिए वही सर्वाधिक सुलभ है। इसलिए मानसिक शक्तियों का बहिर्गमन मुख्यत: वाणी के द्वारा होता है। अहंता, मोह-तृष्णा, वासना आदि के द्वारा तो मानसिक शक्तियाँ अन्दर-अन्दर ही जलती रहती हैं। वाणी के माध्यम से उनकी ज्वालाएँ बाहर भी धधकने लगती हैं। इसलिए वाणी के संयम को मानसिक संयम के साथ भी जोड़े रखा गया है।
  
🔶 विचारों पर संयम कर लिया जाय और वाणी को असंयमित ही रहने दिया जाय तो विचार संयम का आधार भी लडख़ड़ा उठता है। हमेशा कुछ न कुछ कहते रहने की आदत व्यक्ति को कोई विषय ढूँढऩे के लिए भी बाध्य करती है। इसलिए विचार संयम के साथ-साथ वाणी का संयम भी अनिवार्य है। वरन्ï वाणी का संयम-मानसिक संयम का ही अंग है। मानसिक संयम के साथ वाणी के संयम की महत्ता को भी समझना चाहिए और उसे हल्के रूप में नहीं इतना अधिक महत्व नहीं देते। उसकी मान्यता होती है बोलने में क्या लगता है? बोलने में बड़ी शक्ति खर्च होती है। एक घण्टे लगातार बोलने पर व्यक्ति इतना अधिक थक जाता है कि आठ घण्टे तक शारीरिक श्रम किया जाता तो थकान नहीं आती। कारण वाणी का सीधा सम्बन्ध मस्तिष्क से है और काम तो हाथ पैर से भी किए जा सकते हैं, उन्हें करते समय ध्यान कहीं और भी रह सकता है, पर बोलते समय सारा ध्यान बोलने पर ही रखना पड़ता है।
    
🔷 बेहोश होने अथवा मरने से पूर्व अन्य अंग बाद में निष्क्रिय होते हैं, सबसे पहले वाणी ही अवरुद्ध होती है, क्योंकि मस्तिष्क जैसे-जैसे शिथिल या अचेत होता जाता है। वाक्ï इन्द्रिय वैसे-वैसे असमर्थ होती जाती है। उस समय न शरीर में इतनी शक्ति रह जाती है और न मन मस्तिष्क में ही इतनी चेतना रहती है कि कुछ शब्द भी कहे जा सकें। शरीर में जो शक्ति और मस्तिष्क में जो चेतना बची रहती है वह इतनी अपर्याप्त रहती है कि उससे कुछ शब्द भी नहीं बोले जा सकते। यद्यपि वह शक्ति अन्य अंगों को हिलाने डुलाने के लिए पर्याप्त रहती है। मरते हुए कोई बात सुनकर उसका उत्तर सिर हिलाकर ही दे पाते हैं-कुछ कह पाना अधिकांश लोगों के लिए कठिन ही होता है। शारीरिक क्रिया-कलापों में जिन कार्यों में सर्वाधिक मानसिक शक्ति खर्च होती है वह वाणी ही है। इसीलिए मौन की गणना मानसिक तप से की गई है।
  
🔶 सामान्य जीवन में भी कार्य करते समय बोलने और मौन रहने का अन्तर समझा जा सकता है। किसी को करते समय यदि बात भी करते रहा जाय तो मनोयोग उस कार्य में पूरी तरह जुट नहीं पाता। कारण कि बात करते रहने से वह एकाग्रता और दक्षता नहीं आ पाती जिसके द्वारा अधिक व्याकुलता तथा दक्षता से कार्य किया जा सके। बातूनी व्यक्ति का काम भली-भाँति सम्पन्न नहीं हो पाता। अधिक बातें करने वाले व्यक्ति तुरन्त उत्तेजित हो उठते हैं, क्योंकि वाचालता के कारण मनुष्य की प्राण-शक्ति नष्ट होती रहती है और तज्जनित मानसिक दुर्बलता व्यक्ति को असहिष्णु बना देती है। व्यक्ति को जिस प्रकार जल्दी क्रोध आ जाता है उस प्रकार वाचालता के कारण मानसिक दृष्टि से दुर्बल भी शीघ्र उत्तेजित हो उठता है।

✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 भावनाएं

काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, प्रेम, अहंकार आदि सभी भावनाएं एक साथ एक द्वीप पर रहतीे थी। एक दिन समुद्र में एक तूफान आया और द्वीप डूबने लगा हर भावना डर ​​गई और अपने अपने बचाव का  रास्ता ढूंढने लगी।

लेकिन प्रेम ने सभी को बचाने के लिए एक नाव बनायी सभी भावनाओं ने प्रेम का आभार जताते हुए शीघ्रातिशीघ्र नाव में बैठने का प्रयास किया प्रेम ने अपनी मीठी नज़र से सभी को देखा कोई छूट न जाये।

सभी भावनाएँ तो नाव मे सवार थी लेकिन अहंकार कहीं नज़र नहीं आया प्रेम ने खोजा तो पाया कि, अहंकार  नीचे ही था... नीचे जाकर प्रेम ने अहंकार को ऊपर लाने की  बहुत कोशिश की, लेकिन अहंकार नहीं माना।

ऊपर सभी भावनाएं प्रेम को पुकार रहीं थी,"जल्दी आओ प्रेम तूफान तेज़ हो रहा है, यह द्वीप तो निश्चय ही डूबेगा और इसके साथ साथ हम सभी की भी यंही जल समाधि बन जाएगी। प्लीज़ जल्दी करो"
          
"अरे अहंकार को लाने की कोशिश कर रहा हूँ यदि तूफान तेज़ हो जाय तो तुम सभी निकल लेना। मैं तो अहंकार को लेकर ही निकलूँगा" प्रेम ने नीचे से ही जवाब दिया और फिर से अहंकार को मनाने की कोशिश करने लगा लेकिन अहंकार कब मानने वाला था यहां तक कि वह अपनी जगह से हिला ही नहीं।

अब सभी भावनाओं ने एक बार फिर प्रेम को समझाया कि अहंकार को जाने दो क्योंकि वह सदा से जिद्दी रहा है लेकिन प्रेम ने आशा जताई,बोला, "मैं अहंकार को समझाकर राजी कर लूंगा तभी आऊगा......."

तभी अचानक तूफान तेज हो गया और नाव आगे बढ़ गई अन्य सभी भावनाएं तो जीवित रह गईं, लेकिन........

अन्त में उस अहंकार के कारण प्रेम मर गया अहंकार के चलते हमेशा प्रेम का ही अंत होता है।

आईये अहंकार का त्याग करते हुए प्रेम को अपने से जुदा न होने दें।

Shantikunj Rishi Chintan Youtube Channel
This is the official YouTube channel of  Shantikunj Rishi Chintan Gayatri Pariwar 
➖➖➖➖➖➖➖➖
Shantikunj Rishi Chintan चैनल को Subscribe करके Bell 🔔 बटन को जरूर दबाएं और अपडेट रहें
➖➖➖➖➖➖➖➖

👉 आत्मचिंतन के क्षण 19 Sep 2025

◾  गुणों का चिंतन न करें, केवल अवगुणों पर ही दृष्टिपात करें तो अपना प्रत्येक प्रियजन भी अनेकों बुराइयों, दोषों में ही ग्रस्त दिखाई देगा। अतः स्नेह, आत्मीयता, सौजन्यता तथा प्रेमपूर्ण व्यवहार में कमी आयेगी, जिससे जीवन के सुखों का अभाव हो जायेगा। अपने बच्चों के छोटे-मोटे दोष भूल जाने की पिता की दृष्टि ही सच्ची होती है। माँ यदि बेटों की गलतियाँ ढूँढा करे तो उसे दण्ड देने से ही फुरसत न मिले। अवगुणों को उपेक्षा की दृष्टि से ही देखना उचित है।

◾  खोयी हुई दौलत फिर कमाई जा सकती है। भूली हुई विद्या फिर याद की जा सकती है। खोया हुआ स्वास्थ्य चिकित्सा द्वारा लौटाया जा सकता है, पर खोया हुआ समय किसी प्रकार लौट नहीं सकता। उसके लिए केवल पश्चाताप ही शेष रह जाता है।

◾  यह कहना उचित नहीं कि इस कलियुग में सज्जन घाटे और दुर्जन लाभ में रहते हैं। सनातन नियमों में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। सत्य और तथ्य देश-काल, पात्र का अंतर किये बिना सदा सुस्थिर और अक्षुण्ण ही रहते हैं। सन्मार्ग पर चलने वाले की सद्गति और कुमार्ग पर चलने वाले की दुर्गति होने की सचाई में कभी भी किसी प्रकार का अंतर नहीं आ सकता। कलियुग-सतयुग की कोई बाधा इस सत्य को झुठला नहीं सकती।

◾  अपनी बातों को ठीक मानने का अर्थ तो यही होता है कि दूसरे सब झूठे हैं- गलत हैं। इस प्रकार का अहंकार अज्ञान का द्योतक है। इस असहिष्णुता से घृणा और विरोध बढ़ता है। सत्य की प्राप्ति नहीं होती। सत्य की प्राप्ति तभी संभव है, जब हम अपनी भूलों, त्रुटियों और कमियों को निष्पक्ष भाव से देखें। हमें अपने विश्वासों का निरीक्षण और परीक्षण भी करना चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

Shantikunj Rishi Chintan Youtube Channel
This is the official YouTube channel of  Shantikunj Rishi Chintan Gayatri Pariwar 
➖➖➖➖➖➖➖➖
Shantikunj Rishi Chintan चैनल को Subscribe करके Bell 🔔 बटन को जरूर दबाएं और अपडेट रहें
➖➖➖➖➖➖➖➖

👉 छिद्रान्वेषण की दुष्प्रवृत्ति

छिद्रान्वेषण की वृत्ति अपने अन्दर हो तो संसार के सभी मनुष्य दुष्ट दुराचारी दिखाई देंगे। ढूँढ़ने पर दोष तो भगवान में भी मिल सकते है, न हों तो...