शनिवार, 23 सितंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 23 Sep 2023

🔷 आपको कोई काम निरुत्साह से, लापरवाही से, बेमन से नहीं करना चाहिए यदि मन की ऐसी वृत्ति रखोगे तो जल्दी उन्नति नहीं कर सकते। सम्पूर्ण चित्त, मन, बुद्धि आत्मा उस काम में लगा होना चाहिये। तभी आप उसे योग या ईश्वर पन कह सकते हो। कुछ मनुष्य हाथों से काम करते हैं और उनका मन कलकत्ते के बाजार में होता है, बुद्धि दफ्तर में होती है और आत्मा स्त्री या पुत्र में संलग्न रहती है। यह बुरी आदत है। आपको कोई भी काम हो उसे योग्य सन्तोषप्रद ढंग से करना चाहिये। आपका आदर्श यह होना चाहिये कि एक समय में एक ही काम अच्छे ढंग से किया जाये।

🔶 लगातार असफलता होने से आपको साहस नहीं छोड़ना चाहिए असफलता के द्वारा आपको अनुभव मिलता है। आपको वे कारण मालूम होंगे जिनसे असफलता हुई है और भविष्य में उनसे बचने के लिये सचेत रहोगे। आपको बड़ी-बड़ी होशियारी से उन कारणों से रक्षा करनी होगी। इन्हीं असफलताओं की कमजोरी में से आपको शक्ति मिलेगी। असफल होते हुए भी आपको अपने सिद्धान्त, लक्ष्य, निश्चय और साधन का दृढ़ मति होकर पालन और अनुसरण करना होगा। आप कहिये “कुछ भी हो मैं अवश्य पूरी सफलता प्राप्त करूंगा, मैं इसी जीवन में- नहीं नहीं, इसी क्षण आत्म साक्षात्कार करूंगा। कोई असफलता मेरे मार्ग में रुकावट नहीं डाल सकती।”

🔷 प्रयत्न और कोशिश आपकी ओर से होनी चाहिये भूखे मनुष्य हो आप ही खाना पड़ेगा। प्यासे को पानी पीना ही पड़ेगा। आध्यात्मिक सीढ़ी पर आपको हर एक कदम अपने अपने आप ही रखना होगा। इस बात को भली प्रकार स्मरण रखिये। साहसी बनो। यद्यपि बेरोजगार हो कुछ खाने को नहीं हो, तन पर वस्त्र भी न होवे तब भी सदा प्रसन्न रहो। आपका यथार्थ स्वभाव सच्चिदानन्द है। यह बाह्य नाशवान स्थूल शरीर तो माया का ही कार्य हैं मुस्कुराओ, सीटी बजाओ, हँसो कूदो और आनन्द में मग्न होकर नाचो।
                                        
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 परिशोधन प्रगति का प्रथम चरण

पत्थर का कोयला एक विशेष स्तर पर पहुँचकर हीरे की उपमा पा लेता है। यों उसका अनगढ़ प्रयोग करने वाले अँगीठी में जलाकर भी कमरे में रख लेते हैं और भोर होने से पूर्व ही विषैली गैस के कारण मर चुके होते हैैं। जबकि हीरा उपलब्ध करने वाले सुसम्पन्न भाग्यवान बनते हैं। लोहा, रांगा, सीसा, अभ्रक जैसे सामान्य खनिजों काबजारू मूल्य तुच्छ होता है, पर उन्हें जब भस्म रासायन बनाकर ग्रहण किया जाता है, तो वे संजीवनी बूटी का काम करते और मंहगे मूल्य पर बिकते हैं। पीने का पानी भाप बनाकर जब डिस्टिल्ड वाटर बना लिया जाता है, तब उसकी गणना औषधियों में होती है, उसे कई रासायनिक क्रियाओं एवं सम्मिश्रणों में प्रयुक्त किया जाता है। 

मानव समुदाय पर भी यही बात लागू होती है। वे भी यों तो गलीकूचों में भीड़ लगाते और गंदगी फैलाते देखे जाते हैं, पर उन्हें सुसंस्कारिता की साधना द्वारा महान् बना लिया जाता है, तो फिर वे ऋषि- देवता कहाते और अपनी नाव पर चढ़ाकर असंख्यों को पार करते हैं। यह स्तर को निखारने और ऊँचा उठाने की महत्ता है कि निरुपयोगी धूलि भी इस विशेष प्रक्रिया से गुजरने के उपरान्त अणु शक्ति बनती और अपनी प्रचण्ड क्षमता का परिचय देती है। हर व्यक्ति जन्मता तो साधारण मनुष्य के रूप में ही है।

कालान्तर में उसकी जीवन साधना ही उसे वह श्रेय दिलाती है, जिसे मानवी गरिमा के अनुरूप माना जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जन्म- जन्मान्तरों के संस्कारों की  अपनी महत्ता है। वे प्रसुप्त बीजांकुरों के रूप में विद्यमान तो रहते हैं,पर जो उन्हें कुरेदता- उभारता है, वह निश्चित ही अपनी स्थिति से ऊंचा उठते हुए महामानव का पद पाता है।

अपना परिशोधन, तप- प्रक्रिया द्वारा संस्कारीकरण तथा साधना उत्पादनों के माध्यम से भाव संस्थान का उदात्तीकरण ही वे सोपान हैं, जिन्हें पार करते हुए यह पद प्राप्त होता है। किसी समझौते की इसमें कोई गुंजायश नहीं। 

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...