बुधवार, 5 अप्रैल 2023

👉 कुबेर का विवेक युक्त पुरुषार्थ

जो प्रस्तुत सौभाग्य का सदुपयोग करते हैं वे क्रमश: अधिक ऊँचे उठते और पूर्णता के लक्ष्य तक जा पहुँचते हैं

सामने आया समय बार- बार नहीं आता। मानव जीवन एक सौभाग्य है जो बार- बार नहीं मिलता। विडम्बना यही है कि इसका सदुपयोग करने वाले कम ही होते हैं। जो जीवन का समुचित उपयोग करना जानते हैं वे क्रमिक गति से ऊँचे उठते हुए परम ध्येय को अन्तत: प्राप्त करके ही रहते हैं।

पुलस्ति के विश्रवा के यहाँ एक कुरूप सन्तान ने जन्म लिया। बेडौल आकार का होने के कारण सभी उसकी हँसी उड़ाते। उसे लोगों की मूर्खता पर बड़ा क्षोभ हुआ। 'कुबेर' नामक इस पुरुषार्थी ने अपनी हँसी घर में उड़ते देख ठान ली कि वह मानव समुदाय को यह बताकर रहेगा कि सभी को मनुष्य जीवन रूपी प्राप्त सम्पदा का सदुपयोग कर महान से महान बना जा सकता है। शरीर गत सुन्दरता से नहीं अपितु गुण रूपी सम्पदा महत्वपूर्ण है एवं उसे ही अर्जित किया जाना चाहिए। यह सोचकर उसने अपनी योग्यता बढ़ाने के लिए कठोर तप किया। अपनी लगन से उसने पिता व बाबा को भी इस साधना में सम्मिलित कर लिया। देवताओं ने उन्हें अपना धनाधीश- लोकपाल बनाया और वे अलकापुरी में राज करने लगे।

📖 प्रज्ञा पुराण से
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 5 April 2023

महामानव ही किसी युग के समाज की वास्तविक सम्पदा होते हैं। उनकी उदारता एवं चरित्र निष्ठा से प्रभावित होकर लोग अनुकरण के लिए तैयार होते हैं। श्रेष्ठता का संतुलन उन्हीं के प्रयासों से बना रहता है। उत्कृष्ट एवं उदात्त संवेदनाओं को अपनाकर ही कोई महामानव बन पाता है। इसके बिना कितनी ही बुद्धिमत्ता एवं सम्पदा रहने पर भी मनुष्य स्वार्थ परायण ही बना रहता है। उसकी क्षमता निज के छोटे दायरे में ही अवरुद्ध बनी पड़ी रहती है और रुके हुए जोहड़ के सड़े पानी की तरह दुर्गन्ध फैलाती है।

प्रमादी अधिक घाटे में रहते हैं। शरीर कोल्हू के बैल की तरह चलता रहता है, पर वह सब बेगार भुगतने एवं भार ढोने की तरह होता है। फलतः कर्म कौशल के उत्साह भरे आलोक की झाँकी नहीं मिलती। किसी कार्य को पूरे मनोयोग के-उमंग और उत्साह के साथ न किया जाय तो उसमें विद्रूप, अधूरापन ही परिलक्षित होता रहेगा। ऐसे कर्मों को कुकर्म तो नहीं, पर अकर्म अवश्य ही कहा जाएगा। वे काने, कुबड़े, लँगड़े, लूले और कुरूप होते हैं, उनसे कर्त्ता को श्रेय प्राप्त होना तो दूर, उलटे उपहासास्पद बनना पड़ता है।

जिस भी कार्य में, जिस भी दिशा में प्रवीणता प्राप्त करनी हो  उसका उत्साह एवं तत्परतापूर्वक दैनिक अभ्यास करना नितान्त आवश्यक है। किसी बात को सुन-समझ भर लेने से कोई काम नहीं बनता। प्रवीणता तब आती है, जब उन कार्यों को दैनिक अभ्यास में प्रमुखता दी जाय और उन्हें लम्बे समय तक लगातार जारी रखा जाय।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...