गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 12 Oct 2023

“चकमक पत्थर चाहे सौ वर्ष तक जल में पड़ा रहे तो भी उसकी अग्नि नष्ट नहीं होती। उस जल से निकाल कर लोहे पर मारते ही चिनगारी निकलने लगती है। इसी प्रकार ईश्वर पर विश्वास रखने वाले व्यक्ति चाहे हजारों अपवित्र-संसारी लोगों के बीच में पड़े रहें तो भी उनकी श्रद्धा और भक्ति बनी रहेंगी।”  

जिनका मनोबल इस योग्य नहीं होता कि चिन्तन और मनन के सहारे आत्म सुधार और आत्म विकास का प्रयोजन कर सके। उनके लिए वस्तुपरक एवं क्रियापरक कर्मकाण्डों का आश्रय लेना ही उपयुक्त पड़ता है। अपने दोष दुर्गुणों को ढूँढ़ निकालना और उन्हें सुधारने तक आत्म-शोधन तक की साधना में निरत रहना होता है। विचारों से विचारों को काटने की प्रणाली अपनानी पड़ती है। पर इस सबके लिए बलिष्ठ मनोबल चाहिए। उसमें कमी पड़ती हो तो वस्तुओं से, वातावरण से, सहयोग से एवं क्रियाओं में सुधार कार्य को अग्रगामी बनाना पड़ता है।
                                                     
दुर्जन बनना इसलिए बुरा है कि उससे आत्मा का पतन होता है। व्यक्तित्व का स्तर गिरता है और अप्रामाणिक समझे जाने पर स्नेह सहयोग का रास्ता बन्द होता है। सज्जनता के अनेक गुण हैं। उनके कारण मनुष्य देवोपम एवं श्रद्धा का पात्र बनता है। उसमें बुराई का समावेश तब होता है जब अतिशय भावुकता प्रदर्शित की जाती है और वह सतर्कता चली जाती है जिसकी कसौटी पर कसकर वस्तुस्थिति समझी जाती है।    

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 निंदा रस से बच कर रहें

हमारा प्रिय शगल है दूसरों की निंदा करना। सदैव दूसरों में दोष ढूंढते रहना मानवीय स्वभाव का एक बड़ा अवगुण है। दूसरों में दोष निकालना और खुद को श्रेष्ठ बताना कुछ लोगों का स्वभाव होता है। इस तरह के लोग हमें कहीं भी आसानी से मिल जाएंगे।

परनिंदा में प्रारंभ में काफी आनंद मिलता है लेकिन बाद में निंदा करने से मन में अशांति व्याप्त होती है और हम हमारा जीवन दुःखों से भर लेते हैं। प्रत्येक मनुष्य का अपना अलग दृष्टिकोण एवं स्वभाव होता है। दूसरों के विषय में कोई अपनी कुछ भी धारणा बना सकता है। हर मनुष्य का अपनी जीभ पर अधिकार है और निंदा करने से किसी को रोकना संभव नहीं है।

लोग अलग-अलग कारणों से निंदा रस का पान करते हैं। कुछ सिर्फ अपना समय काटने के लिए किसी की निंदा में लगे रहते हैं तो कुछ खुद को किसी से बेहतर साबित करने के लिए निंदा को अपना नित्य का नियम बना लेते हैं। निंदकों को संतुष्ट करना संभव नहीं है।

जिनका स्वभाव है निंदा करना, वे किसी भी परिस्थिति में निंदा प्रवृत्ति का त्याग नहीं कर सकते हैं। इसलिए समझदार इंसान वही है जो उथले लोगों द्वारा की गई विपरीत टिप्पणियों की उपेक्षा कर अपने काम में तल्लीन रहता है। किस-किस के मुंह पर अंकुश लगाया जाए, कितनों का समाधान किया जाए!

प्रतिवाद में व्यर्थ समय गंवाने से बेहतर है अपने मनोबल को और भी अधिक बढ़ाकर जीवन में प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते रहें। ऐसा करने से एक दिन आपकी स्थिति काफी मजबूत हो जाएगी और आपके निंदकों को सिवाय निराशा के कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।

संसार में प्रत्येक जीव की रचना ईश्वर ने किसी उद्देश्य से की है। हमें ईश्वर की किसी भी रचना का मखौल उड़ाने का अधिकार नहीं है। इसलिए किसी की निंदा करना साक्षात परमात्मा की निंदा करने के समान है। किसी की आलोचना से आप खुद के अहंकार को कुछ समय के लिए तो संतुष्ट कर सकते हैं किन्तु किसी की काबिलियत, नेकी, अच्छाई और सच्चाई की संपदा को नष्ट नहीं कर सकते। जो सूर्य की तरह प्रखर है, उस पर निंदा के कितने ही काले बादल छा जाएं किन्तु उसकी प्रखरता, तेजस्विता और ऊष्णता में कमी नहीं आ सकती।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...