शनिवार, 30 सितंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 30 Sep 2023

🔷 बातों से नहीं काम से ही किसी की निष्ठा परखी जाती है और जो निष्ठावान् हैं उनको दूसरों का हृदय जीतने में सफलता मिलती है। हमारे लिए भी हमारे निष्ठावान् परिजन ही प्राणप्रिय हो सकते हैं। लोक सेवा की कसौटी पर जो खरे उतर सकें, ऐसे ही लोगों को परमार्थी माना जा सकता है। आध्यात्मिक पात्रता इसी कसौटी पर परखी जाती है।

🔶 सच्चा तप निर्बल को सबल, निर्धन को धनी, प्रजा को राजा, शूद्र को ब्राह्मण, दैत्य को देवता, दास को स्वामी और भिक्षुक को दाता बना देता है। सच्चे तप का भाव उस देश-भक्त में है जो अपने देश एवं अपनी जाति के गौरव और प्रतिष्ठा, कीर्ति और मान, सम्पत्ति और ऐश्वर्य की वृद्धि और उन्नति के लिए दृढ़ इच्छा रखता है। अनेक प्रकार के दुःखों, कष्टों और संकटों को सहन करने, कठिन से कठिन मेहनत और श्रम को उठाने और विघ्नों से मुकाबला करने के लिए उद्यत रहता है।        
                                                
🔷 कर्मफल को और अपने कर्म को ईश्वरीय सत्ता पर छोड़ देना जीवन का एक बहुत बड़ा समाधान है। अपने कर्म और उसके अच्छे, बुरे, अनुकूल, प्रतिकूल परिणामों का बोझा उठाये रखने वाला आदमी चैन, सुख, शान्ति, सन्तोष अनुभव नहीं कर सकता। उसकी स्थिति समुद्री लहर में पड़े उस दुर्बल मनुष्य जैसी हो जाती है जो कभी इधर कभी उधर थपेड़े खाता रहता है और हाँफता रहता है। कर्म और कर्मफल का ईश्वर को समर्पण कर देने पर मनुष्य एक बहुत बड़े बोझ से मुक्त हो जाता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 पतन नहीं उत्थान का मार्ग अपनायें

पालतू पशुओं के बंधन में बँधकर रहना पड़ता है, पर मनुष्य को यह सुविधा प्राप्त है कि स्वतन्त्र जीवन जियें और इच्छित परिस्थितियों का वरण करें। 

उत्थान और पतन के परस्पर विरोधी दो मार्गों में से हम जिसको भी चाहें अपना सकते हैं। पतन के गर्त में गिरने की छूट है। यहाँ तक कि आत्महत्या पर उतारू व्यक्ति को  भी बलपूर्वक बहुत दिन तक रोके नहीं रखा जा सकता। 

यही बात उत्थान के सम्बन्ध में भी है। वह जितना चाहे उतना ऊँ चा उठ सकता है। पक्षी उन्मुक्त आकाश में विचरण करते, लम्बी दूरी पार करते, सृष्टि के सैन्दर्य का दर्शन करते हैं। पतंग भी हवा के सहारे आकाश चूमती है। आँधी के सम्पर्क में धूलिकण और तिनके तक ऊँची उड़ानें भरते हैं। फिर मनुष्य को उत्कर्ष की दिशाधारा अपनाने से कौन रोक सकता है?

आश्चर्य है कि लोग अपनी क्षमता और बुद्धिमत्ता का उपयोग पतन के गर्त में गिरने लिए करते हैं। यह तो अनायास भी हो सकता है। ढेला फेंकने पर नीचे गिरता है और बहाया हुआ पानी नीचे की दिशा में बहाव पकड़ लेता है।

दूरदर्शिता इसमें है कि ऊँचा उठने की बात सोची और वैसी योजना बनाई जाय। जिनके कदम इस दिशा में बढ़ते हैं, वे नर पशु न रहकर महामानव बनते हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...