गुरुवार, 6 जुलाई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 6 July 2023

यदि हम दूसरे तथाकथित समाजसेवियों की तरह बाहरी दौड़-धूप तो बहुत करें, पर आत्म-चिंतन, आत्म-सुधार, आत्म-निर्माण और आत्म-विकास की आवश्यकता पूरी न करें तो हमारी सामर्थ्य स्वल्प रहेगी और कुछ कहने लायक परिणाम न निकलेगा। लोक-निर्माण व्यक्ति पर अवलम्बित है और व्यक्ति निर्माण का पहला कदम हमें अपने निर्माणों के रूप में ही उठाना होगा।

युग परिवर्तन की अग्रिम पंक्ति में जिन्हें घसीटा या धकेला गया है उन्हें अपने को आत्मा का, परमात्मा का प्रिय भक्त ही अनुभव करना चाहिए और शान्त चित्त से धैर्यपूर्वक उस पथ पर चलने की सुनिश्चित तैयारी करनी चाहिए। यदि आत्मा की पुकार अनसुनी करके वे लोभ-मोह के पुराने ढर्रे पर चलते रहें तो आत्म-धिक्कार की इतनी विकट मार पड़ेगी कि झंझट से बच निकलने और लोभ-मोह को न छोड़ने की चतुरता बहुत मँहगी पड़ेगी।

अपनी यह आस्था चट्टान की तरह अडिग होनी चाहिए कि युग बदल रहा है, पुराने सड़े-गले मूल्याँकन नष्ट होने जा रहे हैं। दुनिया आज जिस लोभ-मोह और स्वार्थ, अनाचार से सर्वनाशी पथ पर दौड़ रही है, उसे वापिस लौटना पड़ेगा। अंध-परम्पराओं और मूढ़ मान्यताओं का अंत होकर रहेगा। अगले दिनों न्याय, सत्य और विवेक की ही विजय-वैजयन्ती फहरायेगी।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 सहयोग और सहिष्णुता (भाग 1)

गोप्याः स्वायाँ मनोवृत्तीर्नासहिष्णुर्नरो भवेत्।
स्थिति मज्यस्य वै वीक्ष्य तदनुरुप माचरेत्॥

अर्थ— अपने मनोभावों को छिपाना नहीं चाहिए। मनुष्य को असहिष्णु नहीं होना चाहिए। दूसरों की परिस्थिति का भी ध्यान रखना चाहिए।

अपने मनोभाव और मनोवृत्ति को छिपाना ही छल, कपट और पाप है। जैसा भाव भीतर है वैसा ही बाहर प्रकट कर दिया जाय तो वह पाप निवृत्ति का सबसे बड़ा राजमार्ग है। स्पष्ट और खरी कहने वाले, पेट में जैसा है वैसा ही मुँह से कह देने वाले लोग चाहे किसी को कितने ही बुरे लगें पर वे ईश्वर और आत्मा के आगे अपराधी नहीं ठहरते।

जो आत्मा पर असत्य का आवरण चढ़ाते रहते हैं, वे एक प्रकार के आत्म हत्यारे हैं। कोई व्यक्ति यदि अधिक रहस्यवादी हो, अधिक अपराधी कार्य करता हो तो भी उसके अपने कुछ ऐसे विश्वासी मित्र अवश्य होने चाहिए जिसके आगे अपने सब रहस्य प्रकट करके मन को हलका कर लिया करे। और उनकी सलाह से अपनी बुराइयों का निवारण कर सके।

प्रत्येक मनुष्य का दृष्टिकोण, विचार, अनुभव अभ्यास, ज्ञान, स्वार्थ, रुचि एवं संस्कार अलग-अलग होते हैं। इसलिए सबका सोचना एक प्रकार से नहीं हो सकता। इस तथ्य को समझते हुए हर व्यक्ति को दूसरों के प्रति सहिष्णु एवं उदार होना चाहिए। अपने से किसी भी अंश में मतभेद रखने वाले को मूर्ख, अज्ञानी, दुराग्रही, दुष्ट या विरोधी मान लेना उचित नहीं। ऐसी असहिष्णुता ही बहुधा झगड़ों की जड़ होती है। एक दूसरे के दृष्टिकोण के अन्तर को समझते हुए यथासंभव समझौते का मार्ग निकालना चाहिए। फिर जो मतभेद रह जायँ, उन्हें पीछे धीरे-धीरे सुलझाते रहने के लिए छोड़ देना चाहिए।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति- दिसम्बर 1952 पृष्ठ 2


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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...