शनिवार, 20 सितंबर 2025

👉 छिद्रान्वेषण की दुष्प्रवृत्ति

छिद्रान्वेषण की वृत्ति अपने अन्दर हो तो संसार के सभी मनुष्य दुष्ट दुराचारी दिखाई देंगे। ढूँढ़ने पर दोष तो भगवान में भी मिल सकते है, न हों तो थोपे जा सकते हैं। कोई हानि होने या आपत्ति आने पर लोग करने भी हैं। कई तो अपने ऊपर आई हुई आपत्ति का कारण तक पूजा को मान लेते हैं और उसी पर सारा दोष थोपकर छोड़कर अलग हो जाते हैं। मनुष्यों में दोष ढूँढ़ते रहने पर तो उनमें असंख्य दोष निकाले या सोचे जा सकते हैं। ऐसी छिद्रान्वेषी प्रकृति के लोगों को सारी दुनियाँ बुराइयों से भरी हुई दुष्ट दुराचारी और अपने प्रति शत्रुता रखने वाली दिखाई देती हैं। उन्हें अपने चारों ओर नारकीय वातावरण दृष्टिगोचर होता है। निन्दा और आलोचना के अतिरिक्त कभी किसी के प्रति अच्छे भाव वे प्रकट ही नहीं कर पाते किसी की प्रशंसा उनके मुख से निकलती ही नहीं। ऐसे लोग अपनी इस क्षुद्रता के कारण ही सब के बुरे बने रहते हैं। 

पीठ पीछे की हुई निन्दा नमक-मिर्च मिलकर उस आदमी के पास जा पहुँचती है जिसके बारे में बुरा अभिमत प्रकट किया गया था। आमतौर पर सुनने वाले लोग अपनी विशेषता प्रकट करने के लिए उस सुनी हुई बुराई को उस तक पहुँचा देते हैं जिसके संबंध में कटु अभिमत प्रकट किया गया था ऐसी दशा में वह भी प्रतिरोध की भावना में शत्रुता का ही रुख धारण करता है और धीरे−धीरे उसके विरोधी एवं शत्रुओं की संख्या बढ़ती जाती है। रूठे बैठे रहने वाले, मुँह फुलाकर बात करने वाले, भौहें बढ़ाये रहने वाले और कर्कश स्वर में बोलने वाले व्यक्ति किसी के मन में अपने लिए आदर भाव प्राप्त नहीं कर सकते उन्हें बदले में द्वेष, घृणा, विरोध ही उपलब्ध होते हैं। अपना मन हर घड़ी खिन्न, संतप्त और क्षुभित रहता है उसकी जलन से होने वाले शारीरिक एवं मानसिक दुष्परिणामों की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जून 1962 

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👉 ईश्वर को पाना है तो हम उसकी मर्जी पर चलें

🔷 ईश्वर की प्रप्ति के लिए ऐसा दृष्टिकोण एवं क्रिया- कलाप अपनाना पड़ता है, जिसे प्रभु समर्पित जीवन कहा जा सके ।। जीवन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आत्मिक प्रगति का मार्ग अपनाना पड़ता और वह यह है कि हम प्रभु से प्रेरणा की याचाना करें और उद्देश्य यही है कि मनुष्य अपने लक्ष्य को, इष्ट को समझें और उसे प्राप्त करने के  लिए प्रबल प्रयास करें। उपासना कोई क्रिया कृत्य नहीं है। उसे जादू नहीं समझा जाना चाहिए। आत्म परिष्कार और आत्म विकास का तत्वदर्शन ही अध्यात्म है।

🔶 उपासना उसी मार्ग पर जीवन प्रक्रिया को धकेलने वाली एक शास्त्रानुमोदित ओैर अनुभव प्रतिपादित पद्धति है। इतना समझने पर प्रकाश की ओर चल सकना बन पड़ता  है। जो ऐसा साहस जुटाते हैं, उन्हें निश्चत रूप से ईश्वर मिलता है। अपने को ईश्वर के हाथ बेच देने वाला व्यक्ति ही ईश्वर को खरीद सकने में समर्थ होता है। ईश्वर के संकेतों पर चलने वाले में ही इतनी सामर्थ्य उत्पन्न होती है कि ईश्वर को अपने संकेतों पर चला सके।

🔷 बुद्धिमत्ता इसी में है कि मनुष्य प्रकाश की ओर चले। ज्योति का अबलम्बन ग्रहण करे। ईश्वर की साझेदारी जिस जीवन में बन पड़ेगी, उसमें घटा पड़ने की कोई सम्भावना नहीं है। यह शांति और प्रगति का मार्ग है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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प्रकाश की आवश्यकता हमें ही पूरा करनी होगी


आज का संसार अन्धविश्वासों और मूढ़ मान्यताओं की जंजीरों में जकड़ा हुआ है। इन जंजीरों से जकड़े हुए लोगों की दयनीय स्थिति पर मुझे तरस आता है। एक विचार जो मुझे दिन में निकले सूरज की तरह स्पष्ट दिखाई दे रहा है, वह यह है कि- व्यक्ति तथा समाज के समस्त दुःख उनमें समाये हुए अज्ञान के कारण ही हैं। अज्ञान का अन्धकार मिटे बिना सब लोग ऐसे ही भटकते और ठोकरें खाते रहेंगे।

संसार में प्रकाश कहाँ से उत्पन्न हो? यह प्रक्रिया बलिदानों द्वारा सम्भव होती रही है। बलिदानी वीर अपना उदाहरण प्रस्तुत कर लोगों के सामने एक परम्परा उपस्थित करते हैं, फिर दूसरे उन पदचिन्हों पर चलने लगते हैं। प्रकाश उत्पन्न करने की यही परम्परा अनादि काल से चली आ रही है। इस धरती पर जो सच्चे शूरवीर अथवा उत्तम व्यक्ति उत्पन्न होते रहे हैं उन्होंने त्याग और बलिदान का मार्ग ही अपनाया है क्योंकि अपने सुख को बलिदान करने से ही दूसरे के सुख की सम्भावना उत्पन्न होती है। इस युग में शाश्वत प्रेम और अनन्त करुणा से भरे प्रबुद्ध हृदयों की जितनी अधिक आवश्यकता है, उतनी पहले कभी नहीं रही। साहसपूर्ण कदम उठाने की आज जितनी आवश्यकता है उतनी पहले कभी नहीं रही।

इसलिये ए, प्रबुद्ध आत्माओ! उठो, संसार दुःख दारिद्रय की ज्वाला में झुलस रहा है। क्या तुम्हें ऐसे समय में भी सोते रहना शोभा दे सकता है? प्रकाश आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है और वह तुम्हारे जागरण एवं बलिदान ये ही उत्पन्न होगा।

-स्वामी विवेकानन्द

👉 छिद्रान्वेषण की दुष्प्रवृत्ति

छिद्रान्वेषण की वृत्ति अपने अन्दर हो तो संसार के सभी मनुष्य दुष्ट दुराचारी दिखाई देंगे। ढूँढ़ने पर दोष तो भगवान में भी मिल सकते है, न हों तो...