🔴 संसार की सारी सफलताओं का मूलमंत्र है-प्रबल इच्छा शक्ति। इसी के बल पर विद्या, सम्पत्ति और साधनों का उपार्जन होता है। यही वह आधार है जिस पर आध्यात्मिक तपस्याएँ और साधनाएँ निर्भर रहती हैं। यही वह दिव्य संबल है, जिसे पाकर संसार में खाली हाथ आया मनुष्य वैभवशाली बनकर संसार को चकित कर देता है। यही वह मोहक और वशीकरण मंत्र है, जिसके बल पर एक अकेला पुरुष कोटि-कोटि जनगण को अपना अनुयायी बना लेता है।
🔵 हमारा प्रत्येक विचार हमारे पथ में काँटे या पुष्प बिखेरता है। हम जैसा चाहें अपने विचारों की शक्ति द्वारा बन सकते हैं। कोई भी विस्फोटक पदार्थ मनुष्य के प्रचण्ड विचारों से बढ़कर शक्ति नहीं रखता। कोई भी संबंधी, देवी, देवता हमारी इतनी सहायता नहीं कर सकता, जितने हमारे विचार। विचारों द्वारा ही हम शक्ति का केन्द्र मन से निकालते हैं और अपने सबसे बड़े मित्र बन सकते है। अतः जब तक हम अपने विचारों को निम्न, निकृष्ट, खोटी वस्तुओं से हटाकर ऊँचे विषयों में नहीं लगाते, तब तक हमारे विचार परमात्मा की निःसीम शक्ति में सामंजस्य प्राप्त नहीं करते।
🔴 हमारी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हम शुभ विचारों को क्रियात्मक स्वरूप प्रदान नहीं करते। उनको जीवन व्यतीत करने का मौका नहीं देते। पुस्तकों में वर्णित स्वर्ण सूत्रों को कार्य रूप में परिवर्तित करने के लिए प्रयत्नशील नहीं होते। उनके अनुसार जीवन को नहीं मोड़ते। शिक्षाओं पर दत्तचित्त, एकाग्र, दृढ़तापूर्वक अमल नहीं करते। शास्त्रीय विधियों का पूर्ण दिल लगाकर अभ्यास नहीं करते, अपने आचरण को उनके अनुसार नहीं बनाते। केवल पढ़कर या जानकर ही संतुष्ट हो जाते हैं। यही बुजदिली आलस्य, कर्महीनता हमें अग्रसर नहीं होने देती।
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🔵 हमारा प्रत्येक विचार हमारे पथ में काँटे या पुष्प बिखेरता है। हम जैसा चाहें अपने विचारों की शक्ति द्वारा बन सकते हैं। कोई भी विस्फोटक पदार्थ मनुष्य के प्रचण्ड विचारों से बढ़कर शक्ति नहीं रखता। कोई भी संबंधी, देवी, देवता हमारी इतनी सहायता नहीं कर सकता, जितने हमारे विचार। विचारों द्वारा ही हम शक्ति का केन्द्र मन से निकालते हैं और अपने सबसे बड़े मित्र बन सकते है। अतः जब तक हम अपने विचारों को निम्न, निकृष्ट, खोटी वस्तुओं से हटाकर ऊँचे विषयों में नहीं लगाते, तब तक हमारे विचार परमात्मा की निःसीम शक्ति में सामंजस्य प्राप्त नहीं करते।
🔴 हमारी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हम शुभ विचारों को क्रियात्मक स्वरूप प्रदान नहीं करते। उनको जीवन व्यतीत करने का मौका नहीं देते। पुस्तकों में वर्णित स्वर्ण सूत्रों को कार्य रूप में परिवर्तित करने के लिए प्रयत्नशील नहीं होते। उनके अनुसार जीवन को नहीं मोड़ते। शिक्षाओं पर दत्तचित्त, एकाग्र, दृढ़तापूर्वक अमल नहीं करते। शास्त्रीय विधियों का पूर्ण दिल लगाकर अभ्यास नहीं करते, अपने आचरण को उनके अनुसार नहीं बनाते। केवल पढ़कर या जानकर ही संतुष्ट हो जाते हैं। यही बुजदिली आलस्य, कर्महीनता हमें अग्रसर नहीं होने देती।
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य