मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

👉 मदद और दया सबसे बड़ा धर्म

कहा जाता है दूसरों की मदद करना ही सबसे बड़ा धर्म है। मदद एक ऐसी चीज़ है जिसकी जरुरत हर इंसान को पड़ती है, चाहे आप बूढ़े हों, बच्चे हों या जवान; सभी के जीवन में एक समय ऐसा जरूर आता है जब हमें दूसरों की मदद की जरुरत पड़ती है। आज हर इंसान ये बोलता है कि कोई किसी की मदद नहीं करता, पर आप खुद से पूछिये- क्या आपने कभी किसी की मदद की है? अगर नहीं तो आप दूसरों से मदद की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

किशोर नाम का एक लड़का था जो बहुत गरीब था। दिन भर कड़ी मेहनत के बाद जंगल से लकड़ियाँ काट के लाता और उन्हें जंगल में बेचा करता। एक दिन किशोर सर पे लकड़ियों का गट्ठर लिए जंगल से गुजर रहा था। अचानक उसने रास्ते में एक बूढ़े इंसान को देखा जो बहुत दुर्बल था उसको देखकर लगा कि जैसे उसने काफी दिनों खाना नहीं खाया है। किशोर का दिल पिघल गया, लेकिन वो क्या करता उसके पास खुद खाने को नहीं था वो उस बूढ़े व्यक्ति का पेट कैसे भरता? यही सोचकर दुःखी मन से किशोर आगे बढ़ गया।

आगे कुछ दूर चलने के बाद किशोर को एक औरत दिखाई दी जिसका बच्चा प्यास से रो रहा था क्यूंकि जंगल में कहीं पानी नहीं था। बच्चे की हालत देखकर किशोर से रहा नहीं गया लेकिन क्या करता बेचारा उसके खुद के पास जंगल में पानी नहीं था। दुःखी मन से वो फिर आगे चल दिया। कुछ दूर जाकर किशोर को एक व्यक्ति दिखाई दिया जो तम्बू लगाने के लिए लकड़ियों की तलाश में था। किशोर ने उसे लकड़ियाँ बेच दीं और बदले में उसने किशोर को कुछ खाना और पानी दिया। किशोर के मन में कुछ ख्याल आया और वो खाना, पानी लेकर वापस जंगल की ओर दौड़ा। और जाकर बूढ़े व्यक्ति को खाना खिलाया और उस औरत के बच्चे को भी पानी पीने को दिया। ऐसा करके किशोर बहुत अच्छा महसूस कर रहा था।

इसके कुछ दिन बाद किशोर एक दिन एक पहाड़ी पर चढ़कर लकड़ियाँ काट रहा था अचानक उसका पैर फिसला और वो नीचे आ गिरा। उसके पैर में बुरी तरह चोट लग गयी और वो दर्द से चिल्लाने लगा। तभी वही बूढ़ा व्यक्ति भागा हुआ आया और उसने किशोर को उठाया। जब उस औरत को पता चला तो वो भी आई और उसने अपनी साड़ी का चीर फाड़ कर उसके पैर पे पट्टी कर दी। किशोर अब बहुत अच्छा महसूस कर रहा था।

मित्रों दूसरों की मदद करके भी हम असल में खुद की ही मदद कर रहे होते हैं। जब हम दूसरों की मदद करेंगे तभी जरुरत पढ़ने पर कोई दूसरा हमारी भी मदद करेगा।

तो आज इस कहानी को पढ़ते हुए एक वादा करिये की रोज किसी की मदद जरूर करेंगे, रोज नहीं तो कम से कम सप्ताह एक बार, नहीं तो महीने में एक बार। जरुरी नहीं कि मदद पैसे से ही की जाये, आप किसी वृद्ध व्यक्ति को सड़क पार करा सकते हैं या किसी प्यासे को पानी पिला सकते हैं या किसी हताश इंसान को सलाह दे सकते हैं या किसी को खाना खिला सकते हैं। यकीन मानिये ऐसा करते हुए आपको बहुत ख़ुशी मिलेगी और लोग भी आपकी मदद जरूर करेंगे।

👉 Introspect

Whatever happens, let it happen. Whatever is said about you, let it be said. You should consider these things as illusory as a mirage. If you have really detached yourself from the world, then why should such things affect you? Focus on inspecting yourself thoroughly for weaknesses. Only then can you begin the process of growth.

Take advantage of every moment and every opportunity. Your path is very long, and time is very short. Concentrate your inner strength on reaching your goal.

Do not despair in any situation. Have faith not in the capacity of man, but in the capacity of God. God will show you the right path.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Aacharya

👉 आत्मचिंतन के क्षण 19 Dec 2018

धन कमाने, पद प्राप्त करने या चातुर्य दिखाने में कोई व्यक्ति सफल हो जाय तो भी यदि वह भावना और कर्तृत्व की दृष्टि से गिरा हुआ है तो उसे सामाजिक दृष्टि से अवांछनीय व्यक्ति ही माना जायेगा। उसकी सफलताएँ उसके निज के लिए सुविधाजनक हो सकती हैं, पर उनसे देश, धर्म, समाज एवं संस्कृति का कुछ भला नहीं हो सकता।

अमीरी का सम्मान यह हमारा एक ऐसा दूषित सामाजिक दृष्टिकोण है जिसके कारण लोग अनुचित रीति से भी धन कमाने में संकोच नहीं करते। धनी लोग अपने धन के द्वारा सुख भोगें, इसमें हर्ज नहीं, पर उन्हें इसी कारण सम्मान मिले कि वे धनी हैं, तो यह अनुचित है। सम्मान केवल परमार्थी और सदाचारी लोगों के लिए सुरक्षित रहना चाहिए।

हमें अपने काम से काम, अपने मतलब से मतलब कहने मात्र से काम नहीं चल सकता। ऐसा करने से बुरों का विरोध न हो सकेगा और वे मनमानी करके अपनी दुष्टता बढ़ाते हुए दूसरे लोगों के लिए दिन-दिन अधिक भयंकर होते चलेंगे। उसी प्रकार सज्जनों के कार्यों में प्रोत्साहन या सहयोग न दिया जाय तो वे भी निराश होकर चुप बैठे रहेंगे और उनके कार्यों से अनेकों को जो लाभ हो सकते थे वे न हो सकेंगे।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 आत्मोत्कर्ष के चार अनिवार्य चरण (भाग 3)

इन दोनों को आत्म-साधना का अविच्छिन्न अंग माना गया है। प्रातः काल उठते समय अथवा अन्य किसी निश्चिंत, शान्त, एकान्त स्थिति में न्यूनतम आधा घण्टे का समय इस प्रयोजन के लिए निकाला जाना चाहिए। मनन को प्रथम और चिंतन को द्वितीय चरण माना जाना चाहिए। दर्जी पहले कपड़ा काटता है, पीछे उसे सीता है। डाक्टर पहले नश्तर लगाता है। पीछे मरहम पट्टी करता है। यों यह दोनों ही कार्य मिले जुले हैं और तनिक से अन्तर से साथ प्रायः साथ साथ ही चलते हैं, फिर भी यदि प्रथम द्वितीय का प्रश्न हो तो मनन को पहला और चिन्तन को दूसरा चरण कहा जाएगा इस प्रक्रिया के लिए पूजा उपचार की तरह कोई विशेष शारीरिक, मानसिक स्थिति बनाने की या पूजा उपचार जैसी कोई साधन सामग्री एकत्रित करने की आवश्यकता नहीं है।

चित का शान्त और स्थान का कोलाहल रहित होना ही इसके लिए पर्याप्त नहीं हैं। प्रातः सायं का समय खाली न हो तो सुविधा का कोई अन्य समय निर्धारित किया जा सकता है। आधा घण्टा की सीमा भी अनिवार्य नहीं है। यह काम चलाऊ मापदण्ड हैं। इसे आवश्यकतानुसार कम या अधिक भी किया जा सकता है, पर अच्छा यही है कि उसमें कम समय का निर्धारण रहे। नियम समय पर नियमित रूप से अपनाई गई कार्यपद्धति अस्त व्यस्त एवं अव्यवस्थित क्रिया प्रक्रिया से कितनी अधिक फलदायक होती है इसे हर कोई जानता है। आत्म चिन्तन अपने आपकी समीक्षा है।

अपने दोष दुर्गुणों को ढूँढ़ निकालने का प्रयास भी इसे कहा जा सकता है। प्रयोगशालाओं में पदार्थों का विश्लेषण वर्गीकरण होता है और देखा जाता है कि इस संरचना में कौन-कौन तत्त्व मिले हुए हैं? शवच्छेद की प्रक्रिया में देखा जाता है कि भीतर के किस अवयव की क्या स्थिति थी, उनमें कहीं चोट या विषाक्तता के लक्षण तो नहीं थे। रोगी की स्थिति जानने के लिए उसके मल, मूत्र, ताप, रक्त, धड़कन आदि की जाँच पड़ताल की जाती है। निदान के उपरान्त ही सही उपचार बन पड़ता है। ठीक यही बात आत्म-समीक्षा का यही उद्देश्य है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी पृष्ठ 8

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1977/January/v1.8

👉 आज का सद्चिंतन 19 Dec 2018



👉 प्रेरणादायक प्रसंग 19 Dec 2018



👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...