शुक्रवार, 8 सितंबर 2023

👉 क्षणिक अस्तित्व पर इतना अभिमान

अमावस की रात में दीप ने देखा-न चाँद और न कोई ग्रह नक्षत्र न कोई तारा-केवल वह एक अकेला संसार को प्रकाश दे रहा है। अपने इस महत्व को देख कर उसे अभिमान हो गया।

संसार को सम्बोधित करता हुआ अहंकारपूर्वक बोला-मेरी महिमा देखो, मेरी ज्योति-किरणों की पूजा करो, मेरी दया-दयालुता का गुणगान करो मैं तुम सबको राह दिखाता हूँ, प्रकाश देता हूँ इस प्रगाढ़ अन्धकार में तुम सब मेरी कृपा से ही देख पर रहे हो। मुझे मस्तक नवाओ, प्रणाम करो।

दीप के इस अहंकारोक्ति का उत्तर और किसी ने तो दिया नहीं, पर जुगनू से न रहा गया बोला-ऐ दीप! क्षणिक अधिकार पाकर इतना अभिमान, एक रात के अस्तित्व पर यह अहंकार केवल इस रात ठहरे रहो। प्रभात में तुमसे मिलूँगा तब तुम अपनी वास्तविकता से अवगत हो चुके होगे!

📖 अखण्ड ज्योति अप्रैल 1967 पृष्ठ 22

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1967/April/v1.22

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 पात्रता की परीक्षा

एक महात्मा के पास तीन मित्र गुरु-दीक्षा लेने गये। तीनों ने बड़े नम्र भाव से प्रणाम करके अपनी जिज्ञासा प्रकट की। महात्मा ने उनको शिष्य बनाने से पूर्व पात्रता की परीक्षा कर लेने के मन्तव्य से पूछा-”बताओ कान और आँख में कितना अन्तर है?”

एक ने उत्तर दिया- केवल पाँच अंगुल का, भगवन् महात्मा ने उसे एक ओर खड़ा करके दूसरे से उत्तर के लिये कहा। दूसरे ने उत्तर दिया-महाराज आँख देखती है और कान सुनते हैं, इसलिये किसी बात की प्रामाणिकता के विषय में आँख का महत्व अधिक है। महात्मा ने उसको भी एक ओर खड़ा करके तीसरे से उत्तर देने के लिये कहा। तीसरे ने निवेदन किया -भगवन् कान का महत्व आँख से अधिक है।

आँख केवल लौकिक एवं दृश्यमान जगत् को ही देख पाती है किन्तु कान को पारलौकिक एवं पारमार्थिक विषय का पान करने का सौभाग्य प्राप्त है। महात्मा ने तीसरे को अपने पास रोक लिया। पहले दोनों को कर्म एवं उपासना का उपदेश देकर अपनी विचारणा शक्ति बढ़ाने के लिये विदा कर दिया। क्योंकि उनके सोचने की सीमा बाह्यतत्व की परिधि में अभी प्रवेश कर सकने योग्य, सूक्ष्म बनी न थी।

📖 अखण्ड ज्योति अप्रैल 1967 पृष्ठ 10


✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य


👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...