मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

👉 आसक्ति

प्रभु को यदि पाना है तो सब आसक्तियों को छोड़कर निर्वैर हो जाओ।

भक्ति रसामृत सिंधु में आता है कि कामना ही राक्षसी है, ये जानता हुआ भक्त भगवान् या  भगवान् की भक्ति के अलावा और कोई भी कामना नहीं करता।  प्रभु को यदि पाना है तो सब आसक्तियों व कामनाओं को छोड़कर निर्वैर हो जाओ, प्रभु शीघ्र मिल जायेंगे। 

जिसे एक गिलास पानी की भी आवश्यकता न हो, और न ही किसी से बात करने या बोलने की अपेक्षा हो, वो भक्त शान्त और निर्भय हो जाता है।  जैसे वर्षा पड़ने पर घास स्वतः उत्पन्न हो जाती है, उसी तरह आसक्तियों व कामनाओं को छोड़ने पर चारों ओर फिर प्रभु ही दिखाई देंगे। बिना आसक्ति छोड़े भगवद् भजन नहीं होता। 

आसक्ति की रस्सी दिखाई नहीं देती है, परन्तु वह इतनी लम्बी होती है कि उसकी कोई सीमा नहीं है। आप अमेरिका में बैठे हैं, और आसक्ति की रस्सी वहीं से बाँधकर आपको ले आयेगी।  साधक को अपनी वृत्तियों को बचाकर रखना चाहिए।  यदि वृत्तियाँ  बँट गयीं तो साधक लुट जायेगा।  वृत्तियों के बँटने के बाद कुछ भी जप, तप व पाठ आदि करते रहो, कुछ नहीं मिलने वाला।  अपनी वृत्तियों को सब जगह से हटाकर एक श्री कृष्ण में लगा दो। जब तक कहीं भी आसक्ति है, चाहे थोड़ी ही क्यों न हो, तब तक वहाँ श्री कृष्ण प्रेम नहीं होता है।  

प्रेम की उत्पत्ति तब ही होती है, जब जीव सब आसक्तियों को छोड़ देता है। इसलिए गोपियों ने श्री कृष्ण से कहा था कि हम सब कुछ छोड़कर तुम्हारे पास आयीं हैं। अपनी सब आसक्तियों को छोड़कर आयीं हैं। क्यों छोड़कर आयीं हैं ? तुम्हारी उपासना की आशा से। 

मैवं विभो अहर्ति.....   भजते मुमुक्षून्||  श्रीमद्भागवत 10-29-31
देवहूति जी ने कहा-

संगो  य:  संसृते..... .... कल्पते||   श्रीमद्भागवत 03-23-55

आसक्ति बहुत ख़राब है, परन्तु आसक्ति से अच्छी वस्तु भी कोई नहीं। यदि आसक्ति महापुरुषों में हो जाय तो निश्चित कल्याण हो जाता है। यदि ये आसक्ति संसार से नहीं छूटती है तो इसको महापुरुषों से बाँध दो। तुम्हारा अवश्य कल्याण हो जायेगा। 

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👉 आपत्तिकाल का अध्यात्म

नए युग का जन्म होने जा रहा है। दो बातें होनी हैं— एक युग-निर्माण की, दूसरा निर्माण से पहले ध्वंस होना है। ध्वंस भी होना है। इमारत जब बनाई जाती है, तब जमीन की खुदाई करनी पड़ती है। पीछे मिटटी डालकर कुटाई-पिटाई भी करते हैं और गड्ढे को ठीक करके तब दीवार की चिनाई की जाती है।

भगवान के जब अवतार होते हैं, तब एक ही कार्य नहीं करते, मात्र धर्म की स्थापना करते हुए नहीं आते, वरन अनीति, बुराई का ध्वंस करते हुए भी आते हैं। वे शांति लेकर आयेंगे तो सही, पर यह भी ध्यान में रखिये की वे लाखों-करोड़ों के लिए रोना-पीटना और हाहाकार भी लेकर आयेंगे। वे दया बरसाएंगे. तो क्रोध भी बरसाएंगे।

परिवर्तन की इस संधिबेला में आपको न तो कोई विशेष समय की मांग दिखाई दिखाई पड़ती है, न कर्तव्यों की पुकार सुनाई पड़ती है। चारों ओर क्या हो रहा है, आपको दिखाई पड़ना चाहिए। अगर आप विमूढ़ ही बने रहे, रोटी खाने और पैसा कमाने से लेकर बच्चे पैदा करने तक के चक्र में पड़े रहे तो फिर मैं क्या कह सकता हूँ!

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...