गुरुवार, 27 सितंबर 2018

👉 आज का सद्चिंतन 27 September 2018


👉 उपहास व आलोचना

🔶 एक दिन स्कूल टीचर ने बोर्ड पर लिखा :
9×1=7
9×2=18
9×3=27
9×4=36
9×5=45
9×6=54
9×7=63
9×8=72
9×9=81
9×10=90

🔷 जब उन्होने पूरा लिख लिया, उन्होने विद्यार्थियों की तरफ देखा और पाया कि सभी विद्यार्थी उन पर हँस रहे हैं, क्योंकि प्रथम गुणांक गलत था!

🔶 फिर टीचर ने कहा कि,

🔷 "मैने पहला वाला जान बूझ कर गलत लिखा, क्योंकि मै चाहती थी कि आप आज बहुत महत्वूर्ण बात सीखें।

🔶 मैं चाहती थी कि आप जानें कि संसार में आप के साथ कैसा व्यवहार होगा आपने देखा, कि मैने नौ बार सही लिखा, पर किसी ने मुझे इसके लिये बधाई नही दी; अपितु मेरी एक गलती पर आप सभी हँसे, और मेरा उपहास किया. यही सीख है...:

🔷 यह संसार आपकी हजार बार अच्छाई की तारीफ नही करेगा, परन्तु आपके द्वरा की गयी गलती की आलोचना (उपहास) अवश्य करेगा...

🔶 परन्तु इससे आपको हताश व निराश होने की आवश्यकता नही है, सदैव उपहास व आलोचना से ऊपर उठें मजबूत बनें।

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 27 September 2018


👉 दुष्प्रवृत्ति निरोध आन्दोलन (अन्तिम भाग)

🔶 इस समस्या का हल करने के लिए यह आवश्यक प्रतीत हुआ है कि विवाहोन्माद प्रतिरोध आन्दोलन के साथ-साथ एक छोटा सहायक आन्दोलन और भी चालू रखा जाय। जिससे जो लोग आदर्श विवाहों की पद्धति अपनाने के लिए तैयार न हो सकें उन्हें उस सहायक आन्दोलन के किसी अंश के साथ सहमत करने का प्रयत्न किया जाय। किसी न किसी बात पर यदि व्यक्ति को सहमत कर लिया जाय तो विदाई के समय मधुरता बनी रहती है और आगे के प्रेम सम्बन्धों में अन्तर नहीं आता। आज की थोड़ी सहमति आगे चलकर बड़ी सहमतियों के रूप में परिणत हो सकती है। अतएव एक सरल आन्दोलन भी साथ-साथ चलते रहने की आवश्यकता अनुभव की गई है।

🔷 इस सहायक आन्दोलन का नाम है—"दुष्प्रवृत्ति निरोध आन्दोलन" यों इसकी उपयोगिता, आवश्यकता एवं महत्ता भी किसी प्रकार कम नहीं। समाज निर्माण एवं सुधार के लिए दूसरा सहायक आन्दोलन के अंतर्गत आने वाले काम भी कम महत्व के नहीं हैं। चरित्र निर्माण, व्यक्ति निर्माण एवं समाज निर्माण में इनका भी भारी योगदान रहेगा। पर सहायक आन्दोलन उसे इसलिए कहा गया है कि उसमें बताये हुये दस कार्यों में से किसी न किसी के लिये कोई भी व्यक्ति आसानी से सहमत किया जा सकता है और बिना अधिक कठिनाई के आन्दोलन में सम्मिलित होने वाला, कोई एक प्रतिज्ञा लेने वाला बन सकता है।
दुष्प्रवृत्ति निरोध आन्दोलन के अंतर्गत दस कार्यक्रम रखे गये हैं—

माँसाहार— माँस, मछली, अण्डे एवं काटे हुए पशुओं के चमड़े का उपयोग।
नशेबाजी— तम्बाकू, भाँग, गाँजा, अफीम, शराब आदि नशों का सेवन।
पशुबलि— देवी देवताओं के नाम पर निरीह पशु-पक्षियों की हत्या।
मृत्यु भोज— मृतक के नाम पर धूमधाम भरी दावतों का अपव्यय।
ऊँच-नीच— गुणों की अपेक्षा पद, वंश, जाति के कारण किसी को ऊँचा या नीच मानना।
नारी तिरस्कार— पुरुष की तुलना में नारी का गौरव, महत्व, सम्मान या अधिकार कम मानना।
बेईमानी— चोरी, छल, जुआ, समर्थ होते हुए भी अपने लिये भिक्षा याचना अनीति एवं बिना परिश्रम की कमाई।
अपव्यय— फैशन, जेवर, आडम्बर, विलासिता एवं व्यसनों की फिजूलखर्ची।
अन्ध विश्वास— भूत-पलीत, टोना, टोटके शकुन-अपशकुन जैसी मूढ़ मान्यतायें।
असभ्यता— गाली-गलौज, गन्दगी, आलस-अशिष्टता, कृतघ्नता, आवेश जैसे दुर्गुण।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जुलाई 1965 पृष्ठ 47

http://literature.awgp.org/hindi/akhandjyoti/1965/July/v1.47

👉 Living The Simple Life (Last Part)

🔶 After a wonderful sojourn in the wilderness, I remember walking along the streets of a city which had been my home for a while. It was 1 p.m. Hundreds of neatly dressed human beings with pale or painted faces hurried in rather orderly lines to and from their places of employment. I, in my faded shirt and well-worn slacks, walked among them. The rubber soles of my soft canvas shoes moved noiselessly along beside the clatter of trim, tight shoes with stilt-like heels. In the poorer section I was tolerated. In the wealthier section some glances seemed a bit startled and some were disdainful.

🔷 On both sides of us as we walked were displayed the things we can buy if we are willing to stay in the orderly lines day after day, year after year. Some of the things are more or less useful, many are utter trash. Some have a claim to beauty, many are garishly ugly. Thousands of things are displayed - and yet, my friends, the most valuable are missing.
Freedom is not displayed, nor health, nor happiness, nor peace of mind. To obtain these things, my friends, you too may need to escape from the orderly lines and risk being looked upon disdainfully.

🔶 To the world I may seem very poor, walking penniless and wearing or carrying in my pockets my only material possessions, but I am really very rich in blessings which no amount of money could buy - health and happiness and inner peace.

The simplified life is a sanctified life,
Much more calm, much less strife.
Oh, what wondrous truths are unveiled -
Projects succeed which had previously failed.
Oh, how beautiful life can be, Beautiful simplicity.

***END***

👉 परिवर्तन के महान् क्षण (भाग 15)

👉 लेखक का निजी अनुभव
 
🔶 मन्त्र विज्ञान के सम्बन्ध में जितना कुछ पढ़ा, सुना और गुना था, उसके आधार पर प्रारम्भिक दिनों में ही यह विश्वास जम गया था कि आदि शक्ति के नाम से जानी जाने वाली गायत्री की श्रेष्ठता-वरिष्ठता असंदिग्ध है। संचित संस्कार और संबद्ध वातावरण भी इसी की पुष्टि करते रहे। उपासना क्रम सरल भी लगा और उत्साहवर्धक भी। गाड़ी चली सो अपनी पटरी पर आगे बढ़ती और लुढ़कती ही चली गई। तब से अब तक न उसमें विराम लिया और न कोई अवरोध ही आड़े आया। अस्सी वर्ष की आयु होने तक वह मान्यता, भावना-श्रद्धा आगे ही आगे बढ़ती चली आई है।
  
🔷 मानवी गरिमा के अनुरूप जीवन यापन कैसे किया जा सकता है? उसके साथ जुड़ी हुई मर्यादाओं का परिपूर्ण निर्वाह कैसे हो सकता है और वर्जनाओं से कैसे बचा जा सकता है? यह समझ अन्तराल की गहराई से निरन्तर उठती रही और उसका परिपालन भी स्वभाव का अंग बन जाने पर बिना किसी कठिनाई के होता रहा। गुण, कर्म, स्वभाव, चिन्तन, चरित्र, व्यवहार में जो तथ्य गहराई तक उतरकर परिपक्व हो जाते हैं, वे छोटे-मोटे आघातों से डगमगाते नहीं। देखा गया कि सघन संकल्प के साथ जुड़ी हुई व्रतशीलता अनायास ही निभती रहती है। सो सचमुच बिना किसी दाग-धब्बे के निभ भी गई।
  
🔶 ईश्वर के प्रति सुनिश्चित आत्मीयता की अनुभूति उपासना, जीवन में शालीनता की अविच्छिन्नता अर्थात् ‘‘साधना’’ तथा करुणा और उदारता से ओतप्रोत अन्तराल में निरन्तर निर्झर की तरह उद्भूत होती रहने वाली ‘‘आराधना’’, यही है वह त्रिवेणी जो मनुष्य को सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाती है। उस संगम तक पहुँचने पर कल्मष कषायों, दोष-दुर्गुणों के प्रवेश कर सकने जितनी गुंजायश भी शेष नहीं रहती। त्रिपदा कही जाने वाली गायत्री, प्रज्ञा, मेधा, और श्रद्धा बनकर इस स्तर तक आत्मसात हो गई कि लगने लगा कि सचमुच ही वैसा मनुष्य जीवन उपलब्ध हुआ है। जिसे सुर दुर्लभ कहा और देवत्व के अवतरण जैसे शब्दों से जिसका परिचय दिया जाता रहा है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 परिवर्तन के महान् क्षण पृष्ठ 18

👉 चित्रों का भला और बुरा प्रभाव (भाग 2)

🔶 शान्त गम्भीर मुद्रा में महान् तत्व के चिंतन में लीन किसी महापुरुष का चित्र देखकर उससे मनुष्य को गम्भीरता शान्ति की प्रेरणा मिलती है। किसी वीर योद्धा का चित्र देख कर हृदय में शौर्य और साहस के भाव उत्पन्न होते हैं। किसी जनसेवी, परमार्थ परायण शहीद की प्रतिमा देख कर समाज के लिए मर मिटने की भावना जागृत होती है। किसी देवी-देवता या अवतार की प्रतिमा देखकर, किसी मन्दिर, मस्जिद, गिर्जाघर में जाने पर, परमात्मा और उसके दिव्य गुणों का स्मरण होता है। ठीक इसी तरह भद्दे अश्लील कहे जाने वाले, अर्द्धनग्न, असामाजिक, हाव भाव मुद्रा तथा शारीरिक अंगों के भड़कीले प्रदर्शन वाले चित्र मनुष्य में कई नैतिक बुराइयां पैदा करते हैं। उसकी पाशविक वृत्तियों को जगाकर बुराइयों की ओर प्रेरित करते हैं। कोई भी गन्दा या अश्लील चित्र-दृश्य देखने पर मनुष्य के मन में भी गन्दगी, अश्लीलता भड़क उठती है।

🔷 किसी भी चित्र को बार-बार देखने पर उसमें निहित विचार, आदर्शों की छाप मनुष्य में गहरी होती जाती है। ऐसी स्थिति में कोई दृश्य विशेष उसके सामने न हो तब भी उसकी कल्पना मानस पटल पर पूरा चित्र अंकित कर लेती है, पूर्व स्मृति के आधार पर और वैसी ही प्रेरणा मनुष्य को देती है, जब भी मनुष्य का मन विश्राम में होता है तो पूर्व में देखे गए चित्रों, दृश्यों की कल्पना जागृत होकर उस समय उन्हें प्रत्यक्ष देखने जैसी अनुभूति होती है। इसलिए चित्रों को देख लेने से ही बात समाप्त हो जाती हो ऐसा नहीं है। वे धीरे-धीरे मानव प्रकृति के अंग बन जाते हैं और उसे समय-समय पर वैसी ही प्रेरणा देते रहते हैं। अन्तर में छिपी पड़ी इन प्रेरणाओं के अनुसार बहुधा मनुष्य काम भी करने लगता है।

🔶 इसमें कोई सन्देह नहीं कि हम जो कुछ भी देखते हैं उसका हमारी प्रकृति, व्यवहार-आचरण आदि पर भारी प्रभाव पड़ता है। अच्छे चित्र देखने पर जीवन में अच्छाइयां पैदा होती हैं। बुरे चित्र देखने पर बुराइयां। आवश्यकता इस बात की है कि बुरे चित्र, बुरे दृश्य देखने के बजाय उधर से आंख मींच लेना, बुराइयों को न देखना ही श्रेयस्कर होता है। गांधीजी के आंख मीचने वाले बन्दर से हमें यही प्रेरणा मिलती है।

🔷 अच्छे या बुरे चित्रों का चुनाव करना हमारी अपनी इच्छा पर निर्भर करता है। यदि हमें अपने जीवन में अच्छे आदर्श, उच्च प्रेरणा, दिव्य गुणों को प्रतिष्ठापित करना हो तो इस सम्बन्ध में अच्छे चित्रों का चुनाव बहुत ही महत्वपूर्ण होगा। महापुरुषों के, शहीदों के, तपस्वी त्यागी सन्त महात्माओं के चित्र ढूंढ़ने पर सफलता से मिल जाते हैं। इसी तरह की कोई उत्कृष्ट ऐतिहासिक घटनाओं, त्याग बलिदान का दृश्य जिनमें अंकित हों ऐसे चित्र भी मिल जाते हैं। प्रेरणा-प्रद आदर्श वाक्यों का चुनाव भी अच्छे चित्रों का काम दे सकता है। इस तरह हम उत्कृष्ट चित्रों का संग्रह करके अपनी जीवन शिक्षा की महत्वपूर्ण सामग्री जुटा सकते हैं इनसे हमें उठते-बैठते सोते जागते उत्कृष्ट प्रेरणा, महान शिक्षा मिल सकती है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 भारतीय संस्कृति की रक्षा कीजिए पृष्ठ 137

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...