रविवार, 29 अक्तूबर 2017

👉 अपने ब्राह्मण एवं संत को जिन्दा कीजिए (भाग 7 )

🔶 हमारे मरने के बाद आप देखेंगे कि गुरुजी के मरने के बाद उनका समय, धन, श्रम किस काम में खर्च हुआ है। हमारी शक्ति एवं सामर्थ्य बच्चों को खिलाने में, अस्पताल खोलकर मरीजों की सेवा में खर्च हुई हैं। हमने अभी तक समाज को चालीस प्रतिशत दिया है और लोगों को, दुखियारे को पाँच प्रतिशत दिया है। अब हमारा मन है कि इसका हिस्सा बढ़ाया जा सके। जब हम मौन धारण कर लेंगे तो हमारा ब्राह्मण और जाग जाएगा, उस समय हम व्यक्तियों की भी ज्यादा सेवा कर सकेंगे। ठोस सेवा कर सकेंगे। अभी तक हमारी सहानुभूति का अंश ज्यादा रहा है, सेवा का हिस्सा कम रहा है। हमने सहानुभूति दी है तथा पायी है।
      
🔷 अगर हमने किसी की एक किलोग्राम सेवा की है तो उसमें पाँच सौ ग्राम सहानुभूति भी है। उस समय हम साधन सम्पन्न एवं समर्थ थे। पर अगले दिनों जब जीवात्मा को हम और ऊपर उठा लेंगे तब हम अधिक सेवा कर सकेंगे। आपके लिए हमने कुछ किया है या नहीं? इसका सबूत देखना हो तो दृष्टि पसारकर देखिये कि कुछ हुआ है, तो आप पायेंगे कि इसी कारण से यह पचास लाख आदमी हमसे जुड़े हैं, अन्यथा इतने आदमी कहाँ से आते? यह हम कहाँ कहते हैं कि कुछ नहीं हुआ। ५० लाख आदमी हमारे एक इशारे पर खड़े हो सकते हैं। इतने शक्तिपीठ कहाँ से बन गये? ५० लाख मुट्ठियाँ ५० लाख लोगों का एक घण्टे का समयदान कुछ मायने रखता है।

🔶 हम अपने ब्राह्मण को फिर जिन्दा करेंगे। सन्त दानी होता है। आदमी को दानी बनने के लिए सन्त बनना होगा। हम ब्राह्मण और सन्त को पुनः जिन्दा करेंगे। ब्राह्मण जमा करता है, सन्त उसे खर्च कर देता है। हमने निश्चय किया है, विचार किया है कि जिन्दगी के इन आखिरी क्षणों में अपने ब्राह्मण एवं सन्त को साधकर सबके लिए एक मिसाल स्थापित कर दूँ।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य (अमृतवाणी)

👉 आज का सद्चिंतन 28 Oct 2017


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 29 Oct 2017


👉 महिमा गुणों की ही है

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