सोमवार, 4 दिसंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 4 Dec 2023

जो मनुष्य जितनी अधिक कामना रखता है, वह उतना ही अधिक दरिद्र रखता है। उसकी व्यग्रता उतनी बढ़ जाती है और उसका मन विविध तृष्णाओं की और दौड़ता रहता है। मनुष्य की विषय विविधता ही उसको पतन की ओर ले जाती है और पतनोन्मुख मनुष्य से किसी सदाशयता की आशा नहीं की जा सकती। उसका सन्तोष नष्ट हो जाता है और इस प्रकार उसे संसार में सभी प्राणी अपने से अधिक सुखी दिखाई देते हैं, जिससे उसे औरों से ईर्ष्या और अपने से खीझ होने लगती है। वह हर समय हर बात पर असंतुष्ट रहता है, जिससे उसमें क्रोध का बाहुल्य हो जाता है। क्रोध से विवेक नष्ट हो जाता है और विवेक के विनाश से वह सर्वनाश की ओर बड़ी तीव्र गति से अग्रसर हो पड़ता है।

क्षणिक सुख के लिए अपने जीवन लक्ष्य को भूल जाना बुद्धिमानी नहीं मान सकते। साँसारिक कामनायें अमृत तत्व की प्राप्ति नहीं करा सकतीं। उनका प्राप्त कर लेना किसी प्रकार श्रेयस्कर नहीं हो सकता। मनुष्य अपनी मूल सत्ता से बिछुड़ जाने के कारण दुःखी है। चिरन्तन शान्ति के लिए उसी परमात्मा की ही शरण लेनी होगी।

कर्म करते हुए मनुष्य से अज्ञान-वश त्रुटियाँ हो सकती हैं, किन्तु निष्काम भावना के कारण उसके सात्विक लक्ष्य पर किसी तरह का आक्षेप नहीं आता। लक्ष्य की स्थिरता ईश्वर के प्रति अनन्य भाव रखने से आती है। दोषों, त्रुटियों और भूलों से बचाव करना भी ईश्वरीय-ज्ञान के प्रकाश में ही संभव है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार सभी प्राणियों में एक ही चेतना का अस्तित्व विद्यमान है। शरीर की दृष्टि से वे भले ही अलग-अलग हों, पर वस्तुतः आत्मिक दृष्टि से सभी एक हैं। इस संदर्भ में परामनोविज्ञान की मान्यता है विश्व-मानस एक अथाह और असीम जल राशि की तरह है। व्यक्तिगत चेतना उसी विचार महासागर (यूनीवर्सल माइण्ड) की एक नगण्य -सी तरंग है, इसी के माध्यम से व्यक्ति अनेक विविध चेतनाएँ उपलब्ध करता है और अपनी विशेषताएँ सम्मिलित करके फिर उसे वापस उसी समुद्र को समर्पित कर देता है।

इच्छा शक्ति द्वारा वस्तुओं को प्रभावित करना अब एक स्वतंत्र विज्ञान बन गया है, जिसे ‘साइकोकिनस्रिस’ कहते हैं। इस विज्ञान पक्ष का प्रतिपादन है कि ठोस दिखने वाले पदार्थों के भीतर भी विद्युत् अणुओं की तीव्रगामी हलचलें जारी रहती है। इन अणुओं के अंतर्गत जो चेतना तत्त्व विद्यमान है, उन्हें मनोबल की शक्ति-तरंगों द्वारा प्रभावित, नियंत्रित और परिवर्तित किया जा सकता है। इस प्रकार मौलिक जगत पर मनःशक्ति के नियंत्रण को एक तथ्य माना जा सकता है।

भारत ही नहीं, अपितु अन्य देशों में भी अभ्यास द्वारा इच्छाशक्ति बढ़ाने और उसे प्रखर बना लेने के रूप में ऐसी कई विचित्रताएँ देखने को मिल जाती हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य कुछ विशेष परिस्थतियों में ही शान्त, सन्तुलित, सुखी और संतुष्ट भले ही  रहता हो, परन्तु इच्छाशक्ति को बढ़ाया जाय तथा अभ्यास किया जाय, तो वह अपने को चाहे जिस रूप में बदल  सकता है। इच्छा और संकल्पशक्ति के आधार पर असंभव लगने वाले दुष्कर कार्य भी किए जा सकते हैं।

कुछ वर्ष पूर्व मैक्सिको (अमेरिका) में डॉ. राल्फ एलेक्जेंडर ने इच्छाशक्ति की प्रचण्ड क्षमता का सार्वजनिक प्रदर्शन किया। प्रदर्शन यह था कि आकाश में छाये बादलों को किसी भी स्थान से किसी भी दिशा में हटाया जा सकता है और उसे कैसी भी शक्ल दी जा सकती है। इतना ही नहीं, बादलों को बुलाया और भगाया जा सकता है। एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ऐलेन एप्रागेट ने साइकोलॉजी पत्रिका में उपरोक्त  प्रदर्शन पर टिप्पणी करते हुए बताया कि मनुष्य की इच्छा शक्ति अपने ढंग की एक सामर्थ्यवान विद्युत् धारा है और उसके आधार पर प्रकृति की हलचलों को प्रभावित कर सकना पूर्णतया संभव है। अमेरिका के ही ओरीलिया शहर में डॉ. एलेग्जेंडर ने एक शोध संस्थान खोल रखा है, जहाँ वस्तुओं पर मनः शक्ति के प्रभावों का वैज्ञानिक अध्ययन विधिवत् किया जा रहा है। तद्नुसार एक व्यक्ति के विचार दूरवर्ती दूसरे व्यक्ति तक भी पहुँच सकते हैं और वस्तुओं को ही नहीं, व्यक्तियों को भी प्रभावित कर सकते हैं। यह तथ्य अब असंदिग्ध हो चला है। अनायास घटने वाली घटनाएँ ही इसकी साक्षी नहीं है, वरन् प्रयोग करके यह भी संभव बनाया जा सकता है कि यदि इच्छा शक्ति आवश्यक परिमाण में विद्यमान हो या दो व्यक्तियों के बीच पर्याप्त घनिष्ठता हो तो विचारों के वायरलैस द्वारा एक दूसरे से सम्पर्क संबंध स्थापित किया जा सकता है और अपने मन की बात कही-सुनी जा सकती है।

अभी तक ऐसी अनेक घटनाएँ घटी है और ऐसे कई प्रामाणिक तथ्य मिले हैं, जिसके आधार पर यह प्रतिपादित किया गया है कि मनुष्य अपनी बढ़ी हुई इच्छाशक्ति को और बढ़ाकर इस संसार के सिरजनहार की तरह समर्थ और शक्तिमान बन सकता है, क्योंकि अलग-अलग एकाकी इकाई दिखाई पड़ने पर भी वह है तो उसी का अंश।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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