गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 29 Feb 2024

🔹  मन और अन्त:करण की एकता में, दोनों के मिलन में ही सुख है। इसी को योगिक शब्दावली में आत्मा और परमात्मा का मिलन कह सकते हैं। इस मिलन का ही दूसरा नाम "योग' है। आत्मा और परमात्मा के मिलन से दोनों के योग से एक ऐसे आनन्द का अविर्भाव होता है, जिसकी तुलना संसार के अन्य किसी भी सुख से नहीं की जा सकती। इसी सुख को परमानन्द, जीवनमुक्ति, ब्रह्म-निर्वाह, आत्मोपलब्धि, प्रभु-दर्शन आदि नामों से पुकारा जाता है।
 
🔸  प्रेम ही सम्पूर्ण सुखों का आधार है। आज प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन के लिए तरह-तरह के साधन जुटाता है सुख के लिये हरचन्द प्रयत्न भी करता है किन्तु फिर भी अधिकांश लिग दु:खी एवं क्लान्त दिखाई देते हैं। इसका एकमात्र कारण है वे प्रेम को छोड़कर अन्यत्र सुख की खोज करते हैं जो बालू में तेल निकालने जैसा प्रयत्न है। सुख भोगने के लिए प्रेम को जीवन में उतारना होगा । इसी की साधना करनी होगी।
 
🔹   दूसरों की बुराइयाँ ढूंढ़ने में हमारी दृष्टि अलग तरीके से और अपनी बात आने पर और तरीके से काम करती है। यदि यह दोष हटा दिया जाय और दूसरों की भाँति अपनी बुराई भी देखने लग जायें, दूसरों को सुधारने की चिन्ता करने की भाँति यदि अपने को सुधारने की भी चिन्ता करने लगें तो इतना बडा काम हो सकता है जितना सारी दुनियाँ को सुधार लेने पर ही हो सकना संभव है।

🔸  चरित्र ही जीवन की आधार शिला है। मनुष्य संसार में जो कुछ सफलता, सौभाग्य, सुख प्राप्त करता है उसके मूल में उसके चरित्र की उच्चता ही रहती है। निर्बल चरित्र वाले अथवा चरित्रहीन व्यक्ति का जीवन निस्सार और महत्त्वशून्य है। चाहे वह सांसारिक दृष्टि से थोडा या अधिक धन प्राप्त करके आराम का जीवन व्यतीत करता हो पर अन्य लोगों की दृष्टि से वह कभी प्रतिष्ठा या सम्मान का पात्र नहीं हो सकता।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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बुधवार, 28 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 28 Feb 2024

🔸परिवार बसा लेना आसान है, लोग आये दिन बसाते ही रहते हैं, उसका पालन भी कोई विशेष कठिन नहीं। सभी उसका पालन करते हैं, किन्तु परिवार को समुन्नत एवं सुसंस्कृत बनाने के लिए उसका निर्माण करना एक श्रम साध्य कर्त्तव्य है। अधिकतर लोग परिजनों के लिए अधिकाधिक सुख-सुविधाएँ देने, उनके लिए अच्छा भोजन, वस्त्र तथा आराम की चीजें जुटाना ही पारिवारिक जीवन का उद्देश्य मान बैठे हैं। वे यह कभी नहीं सोच पाते कि भोजन, वस्त्र तथा शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ परिवार की एक सर्वोपरि आवश्यकता भी है और वह है उसे सद्गुणी बनाना।

🔹  आपके पास एक ऐसी प्रेम की रस्सी होनी चाहिए, आपके पास ऐसी मिठास की रस्सी होनी चाहिए, आपके पास अपने व्यक्तिगत जीवन का उदाहरण पेश करने की ऐसी रस्सी होनी चाहिए, जिससे प्रभावित करके आप आदमी के हाथ जकड़ सकें, पैर जकड़ सकें, काम जकड़ सकें। सारे के सारे को जकड़ करके जिंदगी भर अपने साथ बनाए रख सकें।

🔸 अपने उद्धार के लिए नारी को स्वयं भी जागरूक होना पड़ेगा। अपने आपको आत्मा, वह आत्मा जो पुरुषों में भी है समझना होगा। मातृत्व के महान् पद की प्रतिष्ठा को पुनर्जीवित रखने के लिए उसे सीता, गौरी, मदालसा, देवी, दुर्गा, काली की सी शक्ति, क्षमता और कर्त्तव्य का उत्तरदायित्व ग्रहरण करना होगा। कामिनी, विलास की सामग्री  न बनकर अपने आपको आदर्श, पूजनीय गुणों का आधार बनाना होगा, तभी वह गिरी हुई अवस्था से उठ सकती है।

🔹   नारी का उत्तरदायित्व बहुत बड़ा है। पुरुष से भी अधिक कह दिया जाय तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। वह गृहिणी है, नियत्री है, अन्नपूर्णा है। नारी में ममतामयी माँ का अस्तित्व निहित है, तो नारी पुरुष की प्रगति, विकास की प्रेरणा स्रोत जाह्नवी है। नारी अनेकों परिवारों का संगम स्थल है। नारी मनुष्य की आदि गुरु है, निर्मात्री है, इसमें कोई संदेह नहीं कि मानव समाज में नारी का बहुत बड़ा स्थान है और नारी की उन्नत अथवा पतित स्थिति पर ही समाज का भी उत्थान-पतन निर्भर करता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 27 Feb 2024

🔸 साधु-ब्राह्मणों का यह एक परम पवित्र कर्त्तव्य है कि इस समय जिस धर्म के आश्रय में वे अपनी आजीविका चलाते हैं और पूजा-सम्मान प्राप्त करते हैं उस धर्म रक्षा के लिए उन्हें कुछ काम भी करना चाहिए-कष्ट भी उठाना चाहिए। आज जबकि धर्म संकट में है, देश की सुरक्षा एवं प्रगति का प्रश्र है तब तो उन्हें उन आदर्शों को परिपुष्ट करने के लिए अपना समय लगाना ही चाहिए। ऐसी विषम परिस्थितियों में भी दक्षिणा बटोरने और पैर पुजाने का ही धंधा करते रहे, कर्त्तव्य की तिलांजलि दिये बैठे रहे तो आगामी पीढ़ियँ उन्हें क्षमा न करेंगी।   

🔹 आज दहेज का असुर भाषण-लेखों और प्रस्तावों की मार खाकर भी दहेज का असुर मरता नहीं। रक्तबीज की तरह वह चोट खाकर और भी अधिक विकराल बनता चला जा रहा है। इसका अंत ऐसे होगा कि युग निर्माण योजना के सदस्य बच्चे यह प्रतिज्ञा करेंगे कि वे विचारशील साथी से ही विवह करेंगे। दहेज और विवाहोन्माद में होने वाले भारी अपव्यय को हटाकर बिना खर्च की विधि से विवाह करेंगे। यदि अभिभावक इस निश्चय को मान्यता न देंगे तो वे आजीवन कुमार या कुमारी ही रहकर पवित्र जीवन व्यतीत करेंगे। 

🔸 आज भड़कीला शृंगार फैशन कहा जाता है और उसे कला, सुरुचि एवं सभ्यता का चिह्न कहकर पुकारा जाता है। कहा और माना जो कुछ भी जाय वास्तविकता ज्यों की त्यों रहेगी। हमारे उठती उम्र के बच्चे और बच्ची इस पतन पथ पर कदम न बढ़ाएँ इसका ख्याल रखा जाना चाहिए। उत्तेजक शृंगार की जड़ में वासना का विकार स्पष्ट है इससे देखने वालों के मन में विक्षोभ उत्पन्न होता है। इसलिए हम सफाई से रहें, स्वच्छता पसंद करें, सादगी से रहें और सभ्य वेशभूषा धारण करें। 

🔹 मातृत्व पर-नारीत्व पर सर्वाधिक लानत फेंकने का काम दहेज के राक्षस ने किया है। इसे समझा भी गया तथा उसके निवारण के प्रयास भी बहुत हुए,सामाजिक भर्त्सनाएँ की गई, कानून भी बना। दहेज के प्रतिरोध में सैकड़ों विचारशील व्यक्तियों ने लिखा, भाषण किया, पर पुरानी पीढ़ी अपने स्थान से तिल भर हटने की तैयारी नहीं। दहेज के दानव ने हर किसी का अहित किया है, पर अपनी बाजी से कोई नहीं चूकता। जब कोई साहसपूर्वक प्रतिरोध, संघर्ष एवं आदर्श उपस्थित करने को तैयार होगा, तभी कुछ समस्या हल होगी। यह आशा अब नये रक्त से हीस शेष है। 

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 26 Feb 2024

🔹 चाहे व्यक्तिगत समृद्धि की बात हो, चाहे समूहगत सम्पन्नता का विषय हो, उपाय एक ही है, लोगों का वर्तमान दृष्टिकोण बदला जाय। मन को प्रफु ल्लित करने के लिए इस सृष्टि में इतना विस्तृत आधार मौजूद है कि हर घड़ी हर्षाेल्लास भरी अनुभूति का आस्वादन करते हुए प्रमुदित- पुलकित रहा जा सके। मन को सुविकसित- संस्कारित बनाने के लिए परिवार में अच्छे विचारण न मिलें, तो भूखी आत्मा वाले ऊँची बात सोच न सकते।

🔸 हमारा व्यक्तित्त्व और राष्ट्रीय भविष्य इस बात पर निर्भर है कि भावी पीढ़ियाँ सुसंस्कृत हों। स्कूली शिक्षा से आजीविका उपार्जन करने तथा विविध क्षेत्रों की साधारण जानकारी मिलने की बात पूरी हो सकती है, पर वे सद्गुण जो मानव की प्रधान सम्पत्ति है और जिनके ऊपर व्यक्ति तथा राष्ट्र की श्रेष्ठता निर्भर करती है, स्कूलों में नहीं सीखे जा सकते, उनके शिक्षण का सही स्थान है- घर का वातावरण और उसका निर्माण करती है गृहिणी।

🔹 शिक्षा का उद्देश्य नौकरी करना और पैसा कमाना ही नहीं, सर्वतोन्मुखी प्रगति के लिए बौद्घिक आधार तैयार करना होता है। शिक्षित नारी अपने बच्चों की व्यवस्था, गृह सज्जा तथा पति की सच्ची सहायिका के रूप में कहीं अधिक सुरुचिपूर्ण ढंग से भाग ले सकती है।

🔸 न केवल घर में, अपितु घर के बाहर भी स्त्रियाँ समाज निर्माण में डाँक्टर, नर्स, इंजीनियर, शिक्षिका आदि अनेकों रूपों में सामाजिक प्रगति में सहयोग दे सकती है। महिला डाक्टर अधिक सेवा तथा कर्तव्य की भावना से प्रेरित होकर कार्य करें, तो समाज का अधिक विकास होगा। शिक्षिका के रूप में नारी अपनी सादगी, सज्जनता, सहनशीलता, सत्यनिष्ठा, सद्व्यवहार आदि से छात्रों को उत्कृष्ठता की ओर चरित्र निर्माण की ओर सतत रूप से बढने की प्रेरणा दे सकती है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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रविवार, 25 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 25 Feb 2024

👉अपने माता-पिता गुरुजनों आदि के साथ मीठी भाषा बोलें, सभ्यता पूर्ण व्यवहार करें।

प्रायः लोग अपने आपको बहुत पठित एवं सभ्य व्यक्ति मानते हैं। परंतु जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती जाती है, उनमें सामर्थ्य बुद्धि बल विद्या शक्ति सत्ता अधिकार बढ़ता जाता है, वैसे वैसे यह देखने को मिलता है, कि उनमें इन सब चीजो का अभिमान भी बढ़ता जाता है। और बढ़ते बढ़ते यह अभिमान इतना बढ़ जाता है कि लोग सभ्यता से बोलना ही भूल जाते हैं। वे यह भी भूल जाते हैं कि हमारी इस संपूर्ण उन्नति का मुख्य आधार, हमारे माता पिता और गुरुजन हैं।

यह कोई सभ्यता नहीं है। जिन माता पिता आदि बड़े बुजुर्गों ने इतना तप करके आपको योग्य बनाया, सभी क्षेत्रों में आप की उन्नति करवाई, जिन के आर्थिक सामाजिक मार्गदर्शन विद्या आदि आदि सब प्रकार के सहयोग से आपने इतनी उन्नति की; कम से कम उनका उपकार भूलना नहीं चाहिए। उनके साथ असभ्यता से बात नहीं करनी चाहिए, सम्मान पूर्वक ही बोलना चाहिए।

हो सकता है माता पिता की आयु बड़ी हो जाने पर अर्थात वृद्धावस्था आ जाने पर कभी कभी उनकी कुछ बातें आपको पसंद न भी आएं। तब भी उनके साथ असभ्यता तो नहीं करनी चाहिए। क्योंकि यही घटना कल आपके साथ भी होने वाली है। आपके बच्चे भी आपको रोज देखते हैं, और आपसे ही सीखते हैं। जो व्यवहार आप अपने माता-पिता के साथ आज कर रहे हैं, कुछ समय बाद यही व्यवहार आपके बच्चे आपके साथ करेंगे। यह सोचकर ही अपने माता-पिता के साथ सभ्यतापूर्ण उत्तम व्यवहार करें।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 आत्मचिंतन के क्षण 25 Feb 2024

 🔹संसार में बहुत से प्राणी हैं। बड़े विचित्र विचित्र प्राणी हैं, मछलियां, चमगादड़, गिरगिट इत्यादि। इनमें से जो गिरगिट है, परमात्मा ने उसको ऐसी शक्ति और कला दी  है, कि जब उसे कहीं पर अपनी जान का खतरा दिखता है, तो वह अपने आसपास की रंगीली वस्तुओं के समान ही, अपने रंग भी बना लेता है। अर्थात खतरे की स्थिति में वह रंग बदलता है। जो परमात्मा ने उसको एक अच्छी कला दी है। इसका वह अपनी रक्षा के लिए उपयोग करता है।

परंतु एक छली कपटी बेईमान धूर्त मनुष्य तो अपनी रक्षा के लिए रंग नहीं बदलता। वह तो जब भी अवसर लगे, लूट झपट चालाकी धोखाधड़ी बेईमानी ठगी कुछ भी करना हो, दूसरे को कमजोर, मजबूर या अज्ञानी देखकर तुरंत रंग बदलता है। वह अपने स्वार्थ एवं मूर्खता के कारण रंग बदलता है, अपनी रक्षा के लिए नहीं। जब कि ईश्वर ने उसे वेदो में सावधान भी कर रखा है कि तुम लूटपाट चोरी चालाकी ठगी बेईमानी आदि पाप कर्म मत करना, ईमानदारी से जीना।

फिर भी मनुष्य कितना विचित्र प्राणी है कि पशु-पक्षियों, कीड़े मकोड़े आदि प्राणियों से भी गया गुजरा है। वह अपने स्वार्थ और मूर्खता के कारण कदम कदम पर रंग बदलता है। ऐसे मनुष्यों को ही ईश्वर अगले जन्मों में दंड देता है, और शेर भेड़िया मछली साँप बिच्छू गिरगिट चमगादड़ आदि विचित्र योनियों  में जन्म देकर दुख देता है।

ये कीड़े मकोड़े पशु पक्षी तो बेचारे अपने पिछले पापों का दंड भोग ही रहे हैं। बुद्धि कम होने से ये बेचारे समझ नहीं पा रहे, कि हम अपने पिछले पापों का दंड भोग रहे हैं।  परंतु मनुष्य में इतनी तो बुद्धि है कि वह इन प्राणियों को देखकर ही सीख जाए, कि मैं पाप न करूँ, अन्यथा मुझे भी इन कीड़े मकोड़े आदि प्राणियों की तरह से विभिन्न योनियों में दुख भोगने पड़ेंगे। ईश्वर सबको सद्बुध्दि देवे। सब लोग अच्छे काम करें, तथा अपने वर्तमान एवं भविष्य का सुधार करें।

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शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 23 Feb 2024

🔸 बुद्धि जीवन यापन के लिए साधन एकत्रित कर सकती है,गुत्थियों को सुलझा सकती है, किन्तु जीवन की उच्चतम भूमिका में नहीं पहुँचा सकती। चेतना की उच्चस्तरीय परतों तक पहुँच सकता, तो हृदय की महानता द्वारा ही सम्भव है। बुद्धि प्रधान किन्तु हृदय शून्य व्यक्ति भौतिक जीवन में कितना भी सफल क्यों न हो, किन्तु  भव- सागर की चेतन परतों तक पहुँच सकने में वह असमर्थ होता है।

🔹  मनुष्य जहाँ महापुरुषों को देखता है, वहाँ उसे अपने बड़े होने का ज्ञान आ जाता है और जितना ही सच्चा इस महानता का दर्शन होता है, उतना ही निश्चित उसका महान् बन जाना होता है। महान् मन वाले लोग विचारों पर विवाद करते है, मध्यम मन वाले वस्तुओं पर तथा शुद्ध मन वाले व्यक्तियों पर बहस करते हैं। 

🔸 समय ही जीवन की परिभाषा है। भक्ति- साधना द्वारा परमात्मा का साक्षात्कार कई बार किया जा सकता है, लेकिन गुजरा हुआ समय पुनः नहीं मिलता। अपना समस्त जीवन- क्रम एक सुनिर्धारित समय विभाजन- चक्र के अनुसार चलावें। उठने, नहाने, घूमने, जाने, कार्य करने, अध्ययन, मनन, चिन्तन, गृहकार्य आदि का एक बँधा हुआ समय हो और ठीक समय पर अपने काम में लग जाना चाहिए। पत्रों का उत्तर तत्काल दें। दिए हुए समय पर लोगों से मिलने जायें, अपने दैनिक जीवन में छोटे- छोटे कार्यों में भी नियमितता बरते, समय के पाबन्द बनें।
 
🔹  जीवनी शक्ति को दृढ़ता पूर्वक स्वीकार करना एवं उसका दैनंदिन जीवन में अभ्यास करना स्वस्थ रहने के लिए बहुत आवश्यक है। ईश्वर की स्वास्थ्य दायक शक्ति हर समय हर व्यक्ति- जीवधारी के शरीर, मन व आत्मा को अनुप्राणित करती रहती है। जितने, भी व्यक्ति दीर्घकाल तक जिये हैं जीवन जीने की विधा के कारण ही स्वस्थ रह पाये हैं। यदि इस सूत्र का अनुसरण किया जा सके, तो हर क्षण, हर पल उल्लास पूर्ण रीति से जिया जा सकता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 22 Feb 2024

🔹 कठिनाइयाँ एक ऐसी खराद की तरह है, जो मनुष्य के व्यक्तित्व को तराश कर चमका दिया करती है। कठिनाइयों से लड़ने और उन पर विजय प्राप्त करने से मनुष्य में जिस आत्म बल का विकास होता है, वह एक अमूल्य सम्पत्ति होती है ,जिसको पाकर मनुष्य को अपार सन्तोष होता है। कठिनाइयों से संघर्ष पाकर जीवन मे ऐसी तेजी उत्पन्न हो जाती है, जो पथ के समस्त झाड़- झंखाड़ों को काट कर दूर कर देती है।

🔸 अनन्य भाव से परमात्मा की उपासना शरणागति का मुख्य आधार है। ईश्वर के समीप बैठने से वैसे ही दिव्यता उपासक को भी प्राप्त होती है साथ ही उसके पाप- सन्ताप गलकर नष्ट होने लगते हैं। नित्य- निरन्तर यह अभ्यास चलाने से ही जीवन में वह शुद्धता आ पाती है, जो पूर्ण शरणागति के लिये आवश्यक होती है।

🔹 संगठन, सामूहिकता, एकता, कौटुम्बिकता और मिल- जुलकर रहने की अभिरुचि जितनी अधिक विकसित होगी, समाज की समर्थता, सभ्यता उसी क्रम में बढ़ती जायेगी। आज इन स्वस्थ परम्पराओं का भारी अभाव है। हमें समाज का नया निर्माण करने के लिये प्रचलित अवांछनीय प्रथाओं के विरुद्ध विरोध, संघर्ष का झंडा खड़ा करना पड़ेगा और स्वस्थ परम्पराओं को प्रतिष्ठापित करने का भागीरथी प्रयत्न करना पड़ेगा, तभी हम अपने समाज को देवोपम और सुख- शान्ति का केन्द्र- बिेन्दु बना सकने में समर्थ हो सकेंगे।
 
🔸 जीवात्मा सत्य है- शिव है और सुन्दरता से युक्त भी। उसी के शक्ति एवं प्रकाश की छाया से बहिर्जगत् यथार्थ लगता है। सत्य और शिव से, सुन्दरता से युक्त जीवात्मा की प्रतिच्छाया मात्र से यह संसार इतना यथार्थ सुन्दर एवं आनंद दायक लगता है, फिर उसका शाश्वत स्वरूप कितना सुन्दर, चिरन्तन आनन्द देने वाला होगा, इसकी कल्पना मात्र से मन एक अनिवर्चनीय आन्द से पुलकित हो उठता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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बुधवार, 21 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 21 Feb 2024

🔹 जहाँ मन और आत्मा का एकीकरण होता है, जहाँ जीव का इच्छा रुचि एवं कार्य प्रणाली विश्वात्मा की इच्छा रुचि प्रणाली के अनुसार होती है, वहाँ अपार आनन्द का स्त्रोत उमडता रहता है, पर जहाँ दोनों में विरोध होता है, जहाँ नाना प्रकार के अन्तर्द्वन्द चलते रहते हैं, वहाँ आत्मिक शान्ति के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं ।
 
🔸 मन और अन्त:करण के मेल अथवा एकता से ही आनन्द प्राप्त हो सकता है । इस मेल अथवा एकता को एवं उसकी कार्य-पद्धति को योग-साधना प्रत्येक उच्च प्रवृत्तियों वाले साधक के जीवन का नित्य कर्म होना चाहिए । भारतीय संस्कृति के अनुसार सच्ची सुख-शान्ति का आधार योग-साधना ही है । योग द्वारा सांसारिक संघर्षों से  व्यथित मनुष्य अन्तर्मुखी होकर आत्मा के निकट बैठता है, तो उसे अमित शान्ति का अनुभव होता है।
 
🔹 मनुष्य के मन का वस्तुत: कोई अस्तित्व नहीं है । वह आत्मा का ही एक उपकरण औजार या यन्त्र है । आत्मा की कार्य-पद्धति को सुसंचालित करके चरितार्थ कर स्थूल रुप देने के लिए मन का अस्तित्व है। इसका वास्तविक कार्य है कि आत्मा की इच्छा एवं रुचि के अनुसार विचारधारा एवं कार्यप्रणाली को अपनावे । इस उचित एवं स्वाभाविक मार्ग पर यदि मन की यात्रा चलती रहे, तो मानव प्राणी जीवन सच्चे सुख का रसास्वादन करता है।

🔸 जो व्यक्ति केवल बाह्य कर्मकाण्ड कर लेने, माला फेरने, पूजा-पाठ करने से पुण्य मान लेते है और सद्गति की आशा करते हैं वे स्वयं अपने को धोखा देते हैं । इन ऊपरी क्रियाओं से तभी कुछ फल प्राप्त हो सकता है जबकि कुछ मानसिक परिवर्तन हो और हमारा मन खोटे काम से श्रेष्ठ कर्मों की ओर जुड़ गया हो । ऐसा होने से पाप-कर्म स्वयं ही बन्द हो जायेंगे । और मनुष्य सदाचारी बनकर शुभकर्मों की ओर प्रेरित हो जायगा ।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 20 Feb 2024

🔸  सेवक कभी अपने मन में ऐसा भाव नहीं लाता कि वह सेवक है। वह अपने स्वामी अथवा सेव्य का आभार मानता है कि उन्होंने अपार कृपा करके उसे सेवा का अवसर प्रदान कि या अर्थात् वह सेवा नहीं कर रहा, अपितु उसके स्वमी उससे सेवा ग्रहण कर रहे हैं। वह उसे जब जिस सेवा के योग्य समझते हैं अथवा जब जैसी इच्छा होती है, वह सेवा ग्रहण करते हैं।

🔹   पाठको! जिस प्रकार आपको प्रशंसा प्रिय है, वैसे ही दूसरों को भी। आप दूसरों से सहयोग और सहानुभूति चाहते हैं, वैसे ही आपके मित्र- बन्धु पड़ौसी भी आपसे ऐसी ही अपेक्षा रखते हैं। दूसरों की इच्छा के लिए यदि अपनी अभिरुचि का दमन कर देते हैं ,तो प्रत्याशी पर आपकी इस सद्भावना का असर जरूर पड़ेगा। आत्मीयता, उदारता, साहस् नैतिकता, श्रमशीलता जैसे सदाचारों में से कोई न कोई सम्पत्ति हर किसी के पास मिलेगी। इन्हें ढूँढ़ने का प्रयास करें।

🔸   सहृदयता मानवीय गरिमा का मेरुदण्ड है। जिसका सम्बल पाकर ही व्यक्ति एवं समाज ऊँचे उठते, मानवी गुणों से भरे- पूरे बनते हैं। इसका अभाव निष्ठुरता, कठोरता, असहिष्णुता जैसी प्रवृत्तियों के रूप में प्रकट होता है। मानवी गरिमा के टूटते हुए इस मेरुदण्ड को हर कीमत पर बचाया जाना चाहिए।
 
🔹   कर्म तथा शक्ति जहाँ एक- दूसरे पर निर्भर है, वहाँ परस्पर पूरक भी है ।। शक्ति के बिना कर्म नहीं और कर्म रहित शक्ति का ह्रास हो जाता है। अतएव शक्तिशाली बने रहने के लिये मनुष्य को निरन्तर कर्म करते रहना चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 19 Feb 2024

🔸 तुम्हीं हमारे इहकाल हो और तुम्हीं परकाल हो, तुम्हीं परित्राण हो और तुम्हीं स्वर्गधाम हो, शास्त्रविधि और कल्पतरू गुरु भी तुम्हीं हो; तुम्हीं हमारे अनन्त सुख के आधार हो। हमारे उपाय, हमारे उद्देश्य तुम्ही हो, तुम्हीं स्त्राष्टा, पालनकर्ता और उपास्य हो, दण्डदाता पिता, स्नेहमयी माता और भवार्णव के कर्णधार भी तुम्हीं हो।"

🔹 जो यथार्थ त्यागी हैं वे सर्वदा ईश्वर पर मन रख सकते हैं; वे मधुमक्खी की तरह केवल फूल पर बैठते है; मधु ही पीते हैं। जो लोग संसार में कामिनी-कांचन के भीतर है उनका मन ईश्वर में लगता तो है, पर कभी कभी कामिनी-कांचन पर भी चला जाता है; जैसे साधारण मक्खियाँ बर्फि पर भी बैठती हैं और सडे़ घाव पर भी बैठती हैं, विष्ठा पर भी बैठती हैं।

🔸  ईश्वर की बात कोई कहता है, तो लोगों को विश्वास नहीं होता। यदि कोई महापुरुष कहे, मैंने ईश्वर को देखा है, तो कोई उस महापुरुष की बात ग्रहण नहीं करता। लोग सोचते हैं, इसने अगर ईश्वर को देखा है तो हमें भी दिखाये तो जाने। परन्तु नाडी़ देखना कोई एक दिन में थोडे़ ही सीख लेता है! वैद्य के पीछे महीनों घूमना पड़ता है। तभी वह कह सकता है, कौन कफ की नाडी़ है, कौन पित्त की है और कौन वात की है। नाडी़ देखना जिनका पेशा है, उनका संग करना चीहिए।
 
🔹 "माँ, आनन्दमयी होकर मुझे निरानन्द न करना। मेरा मन तुम्हारे उन दोनो चरणों के सिवा और कुछ नहीं जानता। मैं नहीं जानता, धर्मराज मुझे किस दोष से दोषी बतला रहे हैं। मेरे मन में यह वासना थी कि तुम्हारा नाम लेता हुआ मैं भवसागर से तर जाऊँगा। मुझे स्वप्न में भी नहीं मालूम था कि तुम मुझे असीम सागर में डुबा दोगी। दिनरात मैं दुर्गानाम जप रहा हूँ, किन्तु फिर भी मेरी दुःखराशि दूर न हुई। परन्तु हे हरसुन्दरी माता, यदि इस बार भी मैं मरा तो यह निश्चय है कि संसार में फिर तुम्हारा नाम कोई न लेगा।"

रामकृष्ण परमहंस

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रविवार, 18 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 18 Feb 2024

🔹किसी बात से तुम उत्साहहीन न होओ; जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना। सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो।
 
🔸 हे सखे, तुम क्यों रो रहे हो? सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं। हे भगवन्, अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। जड की कोई शक्ति नहीं प्रबल शक्ति आत्मा की हैं। हे विद्वन! डरो मत्; तुम्हारा नाश नहीं हैं, संसार-सागर से पार उतरने का उपाय हैं। जिस पथ के अवलम्बन से यती लोग संसार-सागर के पार उतरे हैं, वही श्रेष्ठ पथ मै तुम्हे दिखाता हूँ!
 
🔹लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग मे, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो।

🔸 अपना काम करते जाओ किसी की बात का जवाब देने से क्या काम? सत्यमेव जयते नानृतं, सत्येनैव पन्था विततो देवयानः (सत्य की ही विजय होती है, मिथ्या की नहीं; सत्य के ही बल से देवयानमार्ग की गति मिलती है।) ...धीरे - धीरे सब होगा। वीरता से आगे बढो। एक दिन या एक साल में सिध्दि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो। स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। आज्ञा-पालन करो। सत्य, मनुष्य जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं।

✍🏻 स्वामी विवेकानन्द

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शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

👉 आत्मचिंतन के क्षण 17 Feb 2024

🔸 दु:ख और क्लेशों की आग में जलने से बचने की जिन्हें इच्छा है उन्हें पहला काम यह करना चाहिए कि अपनी आकांक्षाओं को सीमित रखें। अपनी वर्तमान परिस्थिति में प्रसन्न और सन्तुष्ट रहने की आदत डालें। गीता के अनासक्त कर्मयोग का तात्पर्य यही है कि महत्वकांक्षायें वस्तुओं की न करके केवल कर्त्तव्य पालन की करें।
 
🔹 देवत्व वह आलोक है, जिसके हटते ही तमिस्ना और निस्तब्धता छाने लगती है। नरक क्या है ? देवत्व के आभाव में फैली हुई अव्यवस्था और उसकी सड़न-दुर्गंध। दैत्य क्या है? देवत्व के दुर्बल बनने पर परिपुष्ट हुआ औद्धत्य-अनौचित्य। देवमाता ही इस संसार में सत्यम् शिवम् सुन्दरम की अनुभूति एवं आभा बनकर प्रकट होती है। उसकी अवहेलना से ही पतन और पराभव का वातावरण बनता और विनाश का सरंजाम खडा होता है।
 
🔸 सद्ज्ञान की मानव जाति को भारी आवश्यकता है, उसका भविष्य सद्विचारों पर ही निर्भर है। संसार को सुखी बनाने के लिए गायत्री परिवार ज्ञान की मशाल जलाये रखने का संकल्प किया है। परिवार के हर सदस्य को इस दिशा में कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए और भारत भूमि को प्रकाशित कर देने के संकल्प की पूर्ति में अपना हिस्सा आगे बढ़कर बढाना चाहिए।

🔹 वर्तमान काल में मनुष्य जाति पर जो विपत्तियाँ आई है, उनके तत्कालिक कारण अलग-अलग दिखाई पड़ते हैं, परन्तु इन सबके मूल में एक ही कारण काम कर रहा है वह यह है "धर्म के प्रति उपेक्षा" आत्मा का स्वाभाविक धर्म यह है कि सेवा बुद्धि से लोक कल्याणार्थ कर्तव्य करें। सब भूतों में ईश्वर की भावना रखकर उनकी क्रियात्मक पूजा करना, प्रेम, सहायता, सहयोग, करना सच्चा धर्म है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...