शनिवार, 5 मार्च 2022

👉 आंतरिक उल्लास का विकास भाग ११

त्याग और सेवा द्वारा सच्चे प्रेम का प्रमाण दीजिए।

मैंने इतना प्यार दिया पर इसका बदला मुझे क्या मिला?'' ऐसे विचार करने में उतावली न कीजिए। बादलों को देखिए वे सारे संसार पर जल बरसाते फिरते हैं, किसने उसके अहसान का बदला चुका दिया? बडे-बडे भूमि खंडों का सिंचन करके उनमें हरियाली उपजाने वाली नदियों के परिश्रम की कीमत कौन देता है? हम पृथ्वी की छाती पर जन्म भर लदे रहते हैं और उसे मल-मूत्र  से गंदी करते रहते हैं किसने उसका मुआवजॉ अदा किया है। वृक्षों से फल, छाया, लकड़ी पाते हैं पर उन्हें क्या कीमत देते हैं? परोपकार स्वयं ही एक बदला है। त्याग करना आपको भले ही घाटे का सौदा प्रतीत होता हो पर जब आप उपकार करने का अनुभव स्वयं करेंगे तो देखेंगे कि ईश्वरीय वरदान की तरह यह दिव्य गुण स्वयं ही कितना शांतिदायक है, हृदय को कितनी महानता प्रदान करता  है। उपकारी जानता है कि मेरे कार्यों से जितना लाभ दूसरों का होता है उससे  कई गुना स्वयं मेरा होता है। ज्ञानवान पुरुष जो कमाते हैं वह दूसरों को बाँट देते हैं, वे सोचते हैं कि प्रकृति जब जीवन वस्तु मुफ्त दे रही है तो हम अपनी फालतू चीजें दूसरों को देने में कंजूसी क्यों करें ? आप बुरे दिनों और विपत्ति की घड़ियों में भी परोपकार के दिव्य गुण का परित्याग मत कीजिए। जब आप किसी को भौतिक पदार्थ देने में असमर्थ हो तो भी अपनी सद्भावनाएँ  और शुभकामनाएँ दूसरों को देते रहिए।

निःस्वार्थ भावना से जीवन व्यतीत करने वाले के लिए संसार में निरुत्साह, पश्चाताप और दुःख की कोई बात नहीं है। आप जरा सी बात के आवेश में आकर लडने-मरने पर उतारू मत हूजिये वरन अपने विरोधियों पर दया और प्रेम की वर्षा करते रहिए।
 
सद्भावना से दिव्य- दृष्टि मिलती है। जिसके हृदय में समस्त प्राणियों के प्रति सद्भावना भरी हुई है यथार्थ में वही दिव्य ज्ञान का अधिकारी है। मनुष्यों' में देवता वह है जो पवित्र है, निःस्वार्थ है, प्रेमी है, त्याग भावी है। अपन शारीरिक स्वार्थो को परित्याग करने के उपरांत जो संतोष प्राप्त होता है,वह चक्रवर्ती राजा हो जाने के सुख से भी हजारों गुना अधिक है। इसलिए आप स्वार्थ को त्यागने का अभ्यास आरम्भ कीजिए। ज्ञान के द्वारा अपनी पाशविक कंजूस वृत्ति को काबू में लाने का प्रयत्न करिए। तुच्छ स्वार्थों के गुलाम बनने से इंकार कर दीजिए। नम्रता, भलमनसाहत, क्षमा, दया, प्रेम और त्याग भावना को अंदर धारण करने से हृदय में शाश्वत शांति का आविर्भाव होता है। स्वार्थ रहित प्रेम के इस महान नियम में अपने को केंद्रस्थ करना मानो संतोष, शीतलता, विश्राम और ईश्वर को प्राप्त करने के मार्ग पर पदार्पण करना है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आंतरिक उल्लास का विकास पृष्ठ १७

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👉 भक्तिगाथा (भाग ११४)

भक्ति की श्रेष्ठतम अवस्था

भक्त विमलतीर्थ की गाथा कहते हुए महात्मा सत्यधृति अपनी बीती यादों में लीन होने लगे। अन्तर्चेतना के झरोखे से उन्हें अपना अतीत याद आने लगा। वह पुरातन अतीत जब वे भारत की धरती पर सम्राट थे। महावैभवशाली साम्राज्य के प्रतापी सम्राट। वह सतयुग और त्रेतायुग की सन्धि बेला थी। कालचक्र सतयुग को विदाई दे रहा था और त्रेतायुग की अगवानी करने के लिए तत्पर था।

युगसन्धि के इसी अवसर पर महाराज सत्यधृति ने शासन सूत्र की बागडोर अपने हाथ में ली। उनके पिता शीलधृति भी तेजस्वी सम्राट थे। राजा होते हुए भी उनका आचरण ऋषियों की भाँति था। भूमण्डल के अन्य सभी नरेश उन्हें अपना संरक्षक मानने में गौरव अनुभव करते थे। ऋषि-महर्षियों के समुदाय में भी उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। वे सभी मानते और अनुभव करते थे कि सम्राट शीलधृति ज्ञान-शिरोमणि हैं।

ऐसे महान् राजर्षि शीलधृति ने राज्य शासन का सूत्र-संचालन अपने प्रिय पुत्र को सौंपते हुए कहा- ‘‘वत्स! अब तक मैंने भगवान नारायण की कृपा और अपने विवेक से अपने दायित्व का यथाशक्ति निर्वहन किया है, अब बारी तुम्हारी है। पद, प्रतिष्ठा व प्रभुता पाकर सहज ही व्यक्तित्व में अहंता, वासना, तृष्णा के नाग फुंकारने लगते हैं। इनके महाविष से व्यक्तित्व को विषैला होते देर नहीं लगती। इस विषय से छुटकारा आसान नहीं है। केवल भगवद्भक्तों का सान्निध्य, भक्त और भगवान के चरणों में अविरल भक्ति के अमृत रस से ही इस विष का शमन सम्भव है।’’ इतना कहने के बाद सम्राट शीलधृति ने पुत्र सत्यधृति के सिर पर स्नेह भरा हाथ रखते हुए कहा- ‘‘वत्स! श्रेष्ठ सम्राट वही है जो शक्ति व सत्ता को केवल सेवा का साधन माने। ज्ञान और ज्ञानियों का समादर करे, किन्तु भक्त, भक्ति व भगवान को सर्वथा एक मान उन्हें अपना सर्वस्व मानना।’’

.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 भक्तिगाथा नारद भक्तिसूत्र का कथा भाष्य पृष्ठ २२७

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समय नहीं मिलता” कहना छोडें

दुनिया में ऐसा कोई नही जो अपने जीवन में कुछ अच्छा करने की ना सोचता हो या फिर महान बनना ना चाहता हो. लेकिन विडंबना यह है कि हमें उसके लिए वक्त ही नही मिलता. हर दिन हम अपने लिए एक अच्छी रूटीन बनाते है – कि हम आज ऐसा करेंगे, आज उससे मिलेंगे, कुछ नया सीखेंगे या अपने लक्ष्य की तरफ थोड़ा आगे बढ़ने का प्रयास करेंगे. लेकिन वास्तविकता से आप भी परिचित है, ऐसा कुछ ना कर पाने का हम एक ही बहाना देते है कि ”हमारे पास अभी टाइम ही नही है, फिर कभी कोशिश करेंगे.” यह बात भी हम भली भाती जानते है – हम चाहें आगे बढ़े या ना बढ़े लेकिन समय किसी के लिए नही रुकता. इसलिए सदैव समय का सदुपयोग करें, यह आपके ही हाथ में है.

समय नही मिलता, आपकी इस धारणा को आज हम ऐसे रियल लाइफ कुछ रोचक उदाहरण से दूर करने की कोशिश करेंगे. जिसे पढ़कर आप सच में Inspire होंगे. ये उदाहरण हमें समय की कीमत तो समझाते ही है, साथ में यह भी बताते है कि व्यक्ति चाहें कितना भी व्यस्त क्यों ना हो वह अपने मनपसंद कार्य या लक्ष्य की ओर कैसे आगे बढ़ें.

तो आइये, आपको ऐसे कुछ वास्तविक उदाहरण से रूबरू कराते है –

1. ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जब कॉलेज जाते थे तो रास्ते के दुकानदार अपनी घड़ियाँ उन्हें देखकर ठीक करते थे. क्योंकि वे जानते थे कि विद्यासागर समय के बहुत पाबंद थे, वे कभी एक मिनट भी आगे-पीछे नहीं चलते थे।

2. USA के famous Mathematician Charles F ने रोजाना केवल एक घंटा Maths सीखने का नियम बनाया था और उस नियम पर अंत तक डटे रहकर ही उन्होंने Maths में महारथ हासिल कि थी।

3. Gallileo के medical shop होते हुए भी उन्हेंने थोडा-थोडा वक्त बचाकर विज्ञानं के महत्वपूर्ण आविष्कार कर डाले।

4. महात्मा गाँधी दातुन करने से पूर्व शीशे पर गीता का श्लोक चिपका लिया करते थे और दातुन करते समय याद कर लिया करते थे. इस तरह से समय का सदुपयोग करते हुए उन्होंने गीता के 13 अध्याय याद कर लिए।

5. Napolean ऑस्ट्रिया को इसलिए हरा पाया, क्योंकि वहां के सैनिक उसका सामना करने के लिए पाँच मिनट देरी से आये थे।

6. Henry Kirak ने घर से ऑफीस तक पैदल आने-जाने के दौरान समय का सदुपयोग करके Greek सीख ली थी. फौजी डॉक्टर बनने के बाद उनका अधिकांश समय घोड़े की पीठ पर बीतता था. उन्होंने उस समय भी Italian और French भाषा का ज्ञान भी प्राप्त किया।

7. रोज चाय बनाने में जितना समय लगता है, उस दौरान उसमे व्यर्थ न बैठकर लान्गफैले ने इन्फरल ग्रन्थ का अनुवाद कर लिया था।

8. हर घडी उपयोगी कार्य में लगे रहना मोजार्ट ने अपने जीवन का आदर्श बना लिया था. अपने इसी आदर्श पर डटे रहकर उन्होंने रैक्युम नामक फेमस ग्रन्थ को मौत से लड़ते-लड़ते पूरा किया।

आपको यह बहुत ही काल्पनिक लगता होगा पर यह बिल्कुल चौका देने वाले सच है. कोई रोज एक घंटे मात्र पढ़कर एक्सपर्ट बन गया, तो किसी ने पैदल चलने के समय का भी सदुपयोग किया, तो किसी ने चाय बनने के समय का भी उपयोग किया, कोई पाँच मिनट की देरी से हार जाता है, तो कोई ऐसे है कि लोग अपनी घड़ी से ज्यादा उनके समय की पाबंदी पर भरोसा करते थे और कोई ऐसे भी है जो मौत से लड़ते-लड़ते भी ग्रंथ लिख दिया.

जब यह लोग उसी 24 घंटे के समय में इतना कुछ कर सकते हैं तो अब यह प्रश्न उठता है कि आखिर हमारा समय बर्बाद कहां हो रहा है?
 
यकीन मानिए, हमें हमारे लक्ष्य को हासिल करने के लिए जीतने समय कि आवश्यकता है, उससे कहीं ज्यादा समय हमारे पास होता है. बस जरुरत है उस अमूल्य समय को बर्बाद होने से बचाने की. हमेशा इस बात का स्मरण रखे ”समय का सदुपयोग आपके ही हाथ में है!”

यह प्रचलित कहावत तो आपने कई बार सुनी होगी – ”काल करै सो आज कर, आज करै सो अब, पल में परले होइगी, बहुरि करेगा कब।”

अब समय है उपरोक्त कथन को जीवन में उतारने का.

आपको इन Examples में से जो भी प्रेरणादायक लगे उन्हें चुनकर एक स्लिप पर लिख लें और ऐसी जगह पर चिपका दें, जहाँ आपकी नजर बड़ी आसानी से जा सके, जिससे आप रोज इन्हे पढ़कर Inspire हो सकें. आप चाहें कितने भी Time Management टिप्स पढ़ लें. लेकिन आपको सबसे पहले स्वयं की आदत में बदलाव लाना होगा और वो है किसी काम को टालने की आदत. याद रखिये, किसी काम को समय पर करना उतना तकलीफ नहीं देता जितना उसको टालना. बस इस Tip को फॉलो करते ही आप बन जायेंगे एक Smart Time Manager।

हम मानते है, आप पहले भी समय का सही सदुपयोग करने का अथक प्रयास कर चुके होंगे और सफल भी हुए होंगे. लेकिन जो सफल नही हुए उनके पास हमेशा एक और मौका होता है. इस लिए सुबह उठते ही 10 से 15 मिनट में आप पुरे दिन का एक Time-Table बना लीजिए. अक्सर हम उत्साह में आकर Time-Table को बहुत ही कठिन बना लेते हैं. जिसे हम बहुत लंबे समय तक फॉलो नही कर पाते और अपने लक्ष्य से भटक जाते है. इसलिए हमेशा Time-Table साधारण ही बनाना चाहिए, ताकि आप इसमें Successful होकर खुद को Self-Motivate कर सकें।

दोस्तों, ब्रूस ली ने समय की कीमत को समझते हुए कहा है – ”अगर आप अपनी ज़िन्दगी से प्यार करते हैं तो वक़्त बर्वाद ना करें, क्योंकि वो वक़्त ही है जिससे ज़िन्दगी बनी होती है।”

तो चलिए, एक बार फिर समय के महत्त्व को महत्त्व देते हैं, और ”समय नही मिलता” कहना छोड़ कर उन चीजों के लिए वक़्त निकाले जो सचमुच में ज़रूरी है।

हम हर पल यह प्रयास करते है कि कुछ ऐसे लेख आपको दे जिससे आपको भी अपने जीवन में प्रेरणा मिलें और आप भी आगे बढ़े. आप अपने विचार कॉमेंट के द्वारा शेयर करें. आशा करते है यह लेख आपकी ज़रूर मदद करेगा. आपको यह लेख कैसा लगा? ज़रूर बताएं. आपकी प्रतिक्रिया हमारा उत्साह बढ़ाती है, हमें और भी बेहतर होने में मदद व प्रेरणा देती है।

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👉 हारिय न हिम्मत दिनांक :: ५

हँसते रहो, मुस्कराते रहो

उठो! जागो! रूको मत!!! जब तक की लक्ष्य न प्राप्त हो जाए। कोई दूसरा हमारे प्रति बुराई करे या निंदा करे, उद्वेगजनक बात कहे तो उसको सहन करने और उसे उत्तर न देने से बैर आगे नहीं बढ़ता। अपने ही मन में कह लेना चाहिए कि इसका सबसे अच्छा उत्तर है मौन। जो अपने कर्तव्य कार्य में जुटा रहता है और दूसरों के अवगुणों की खोज में नहीं रहता है उसे आंतरिक प्रसन्नता रहती है।

जीवन में उतार- चढ़ाव आते ही रहते हैं।

हँसते रहो, मुस्कुराते रहो।

ऐसा मुख किस काम का जो हँसे नहीं ,, मुस्कराए नहीं।

जो व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति स्थिर रखना चाहते हैं उनको दूसरों की आलोचनाओं से चिढऩानहीं चाहिए।

~ पं श्रीराम शर्मा आचार्य


👉 Lose Not Your Heart Day 5
Keep Smiling, Keep Laughing

Wake up! Do not rest until you have achieved your goal. If you regard gossip and ill-will as trivial and refuse to acknowledge them, hostility will not increase. For such things, silence is the best response. True happiness comes from focusing on one's duty rather than on shortcomings in others.

Life is full of ups and downs, but we must always remain cheerful. What good is a face that cannot smile or laugh? Do not be irritated by, criticism from others, and you will retain your mental equilibrium.

~ Pt. Shriram Sharma Acharya


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👉 आज का सद्चिंतन Aaj Ka Sadchintan 5 March 2022


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👉 प्रेरणादायक प्रसंग Prernadayak Prasang 5 March 2022



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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...