गुरुवार, 25 मई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 25 May 2023

आत्म-विश्वास अनियंत्रित भावुकता का नाम नहीं है, वरन् उस दूरदर्शिता का नाम है, जिसके साथ संकल्प और साहस जुड़ा रहता है। ऐसे आत्म-विश्वासी जो भी काम करते हैं उसमें न तो ढील-पोल होती है, न उपेक्षा और न गैर जिम्मेदारी। वे जो काम करते हैं उसे पूरी भावना, विचारणा और तत्परता के साथ करते हैं। अंततः वे अपने ध्येय में कामयाब हो ही जाते हैं।

प्रायश्चित का अर्थ है- स्वेच्छापूर्वक दण्ड भुगतना। इसके लिए तैयार हो जाने से यह सिद्ध होता है कि अपराधी को सच्ची सद्बुद्धि उपजी है, उसे वस्तुतः अपनी भूल पर दुःख है। जो किया है, उसका दण्ड बहादुरी से भुगतने की तैयारी है। ऐसा बहादुर ही भविष्य में वैसा न करने की प्रतिज्ञा को निभा सकता है। जिसमें इतना साहस नहीं है, मात्र शब्दाडम्बर से ही अपना बचाव करना चाहता है, उसकी सच्चाई सर्वथा संदिग्ध है।

पाप एवं पतन के सामने कभी भी आत्म समर्पण नहीं करना चाहिए। उसके प्रति घृणा और प्रतिरोध का भाव सदा जारी रहे। कोई बुराई अपने में हो और छूट नहीं पा रही हो तो भी उसे अपनी कमजोरी या भूल समझकर पश्चाताप ही करें और उससे छुटकारा पाने के लिए यथाशक्ति प्रयत्न जारी रखें। बुराई को भलाई के रूप में स्वीकार करना, उसका समर्थन करना, उसका विरोध छोड़ देना और उसमें रस लेना यह पशुता का चिह्न है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 समर्थ और प्रसन्न जीवन की कुँजी (अन्तिम भाग)

शारीरिक रोगों के मूल्य में भी इन दो को गिना जा सकता है। डरपोक आदमी अपनी भीरुता और कुकल्पना के कारण ही बेमौत मरते है। एक बार ब्रह्माजी ने मौत को दो हजार आदमी मार लाने का आदेश दिया। जब वह वापस लौटी तो चार हजार साथ थे। जवाब तलब किया गया तो मौत ने सफाई दी कि उसने तो दो हजार ही मारे। शेष तो मरने के डर से भयभीत होकर अपने आप मर गये और उसके साथ साथ चल दिये। आवेश ग्रस्तों के बारे में यह बात और भी बढ़ा चढ़ा कर सही जा सकती है।

ठंडक लगने से जितने समय में मौत होती है आग में झुलसने पर उससे कहीं जल्दी प्राण निकल जाते है। क्रोधी अपने रक्तमांस को ही नहीं जीवनी शक्ति को भी निरन्तर जलता है और अपने को खोखला बनाता रहता है। फिर कोई नाम मात्र का बनाहा मिलने पर बीमारियों से ग्रसित होकर स्वेच्छापूर्वक मौत के मुँह में घुस पड़ता है। ऐसे लोग निश्चित रूप से अकाल मृत्यु मरते हैं। अपने आपको निरंतर जलाते रहने का और क्या परिणाम हो सकता है?

क्रोधी आदमी समझता है कि वह सत्य का पक्षपाती है। जो लोग गलती करते है, उन पर गुस्सा आता है। यह शब्द कहने सुनने से निर्दोष मालूम पड़ते है, पर है तथ्यों से विपरीत। गलती करने वाले को क्रोध करने से कैसे दंडित किया जा सकता है या सुधारा जा सकता है। सह समझ से परे ही उसके विरोधी बन जाते है। इस प्रकार वह अनायास ही जीती बाजी हारता है।

जिस कारण क्रोध किया गया था। उसका निराकरण हुआ या नहीं, यह बहुत पीछे की बात है। इससे पहले ही अपने स्वभाव की बदनामी, जीवनी शक्ति की घटोत्तरी और समस्या को सुझा सकने की मानसिक दक्षता में कमी आदि अनेकों हानियाँ पहले ही हो लेती है। इसी प्रकार संकोची, डरपोक व्यक्ति भी अपनी बात स्पष्ट न कर पाने के कारण निर्दोष होते हुए भी दोषी बनते रहते है।

शरीर की स्थिरता, आर्थिक सुव्यवस्था, परिवार की सुख शान्ति, गुत्थियों का समाधार, प्रगति का सुनियोजन आदि कितनी ही बातें जीवन की सफलता के लिए आवश्यक मानी जाती है। उन सब के मूल में मानसिक संतुलन की आवश्यकता है। हंसती हंसाती आदतें बनाकर ही हम जीवन रथ को प्रगति पथ पर सही रीति से अग्रगामी कर सकते हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति मार्च 1988 पृष्ठ 57

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