गुरुवार, 28 मार्च 2019

👉 आज मानवता रो रही है। (अन्तिम भाग)

जातिवाद

हिन्दू समाज का जातिवाद शोषण का एक और कारण है। इसका प्रारम्भ वर्ण व्यवस्था से किया गया था। वर्ण व्यवस्था पेशों को दृष्टि में रखकर सुविधा के कारण हुई थी। उसमें ऊँच नीच, छूतछात, ऊँचाई निचाई की संकुलित भावनाएँ न थीं। धीरे-धीरे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र जन्मजात वर्ण बन गए और प्रत्येक वर्ण की अनेक उपजातियाँ बन गई। धीरे धीरे एक जाति के लोगों ने दूसरी जाति के खानपान, रोटी बेटी के व्यवहार बन्द किए। एक दूसरे के प्रति घृणा, वैर, ऊँच नीच के विचार आ गए। ऊँची कहलाने वाली जातियाँ नीची कहलाने वाली जातियों पर अत्याचार, आर्थिक शोषण और छूतछात के विचार रखने लगीं। जाति वाद के अत्याचारों, संकुचिता, शोषण, बहिष्कार के कारण हमारा देश हजारों वर्ष तक गुलाम रहा। एक जाति और वर्ण के व्यक्ति दूसरी जाति या वर्ण के लोगों को नीचा दिखाने में ही शान समझते रहे। जातिवाद के अत्याचारों के कारण हिंदू समाज का छोटा, नीच, दबा, पिसा और शोषित हिंदू शूद्र हिंदू तिरस्कार छूतछात, हीनत्व तथा हेटेपन का जीवन व्यतीत कर रहा है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि मानव समूहों में हो रहे कठोर तम शोषण और संघर्षों के प्रधान कारण तीन रहे हैं। (1) अर्थनीतिक, (2) वर्ग या जातिगत और (3) मत या धर्म गत। प्रथम महायुद्ध में अर्थनीतिक कारण था, दूसरे में अर्थनीतिक के साथ साथ मत सम्बन्धी भी कारण संयुक्त हो रहे थे। यदि भविष्य में तृतीय महायुद्ध हुआ तो उसमें अर्थनीतिक, जाति तथा मत वैषस्य-ये तीनों ही कारण मौजूद होंगे।

आज विश्व की विचित्र दशा है। शैतानी, आसुरी, पैशाचिक शक्तियों ने मनुष्य को उसके दैवी स्वभाव तथा जन्म सिद्ध पवित्र अधिकारों से वंचित कर दिया है। अज्ञान, अविवेक, प्रलोभन, स्वार्थ, नैराश्य, संकीर्णता, ने उसकी दिव्य दृष्टि का अपहरण करके उसे क्रूर, कुकर्मी, हिंसक, हत्यारा, धूर्त, मूर्ख, पाखण्डी, एवं मोहग्रस्त बना दिया है। सृष्टि का मुकुटमणि, धर्म को धारण करने वाला महा मानव-आज निरीह एवं असहाय की तरह दुख दारिद्र की शैतानी षड़यंत्र की चक्की में पिस रहा है। हा, हन्त!

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1953 पृष्ठ 6
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1953/January/v1.6

👉 आज का सद्चिंतन 28 March 2019

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 28 March 2019


👉 Amrit Chintan

■ When one’s Soul attain oneness with super-consciousness or God, it means that beastile behavior (selflessness) gets change into divinity, the beggar becomes a donor and so on. This type of change in human nature is known as unity with God – vilay, visarjan and sharnagati or total surrender to God. At that level the devotee and God become one or adwait i.e. oneness (no two).
 
□ The Omnipresent God - is a law, a system, which controls the entire creation, Existence of all – animates and in-animates are under that system. Any one who does not follow – gets destroyed. If we can assure our-self to this law and follow we are true devotee to God.

◆ Love is a great force of attraction which moves a man towards God. Then he will love every creature of the universe. It means now he truly believe presence of invisible God visible in every body. God is always with him. Love is God and God is love, that is all you know and you need to know. This practice of love for all is easiest and blissful worship of God.

◇ Science of Spirituality is the way to achieve the true wisdom of life. It is that path which leads to make the proper use of this finest gift of the creator. If God’s worship does not take care of his own life – it is a waste of time in – worship.

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya

👉 प्रज्ञा पुराण (भाग 1) श्लोक 69 से 71


धर्मस्य चेतनां भूयो जीवितां कर्तुमद्य तु।
अधिष्ठात्रीं युगस्यास्य महाप्रज्ञामृतम्भराम्॥६९॥
गायत्रीं लोकचित्ते तां कुरु पूर्णाप्रतिष्ठिताम् ।
पराक्रमं च प्रखरं कर्तुं सर्वत्र नारद ॥७०॥
पवित्रतोदारतां तु यज्ञजां च प्रचण्डताम्।
प्रखरां कर्तुमेवाद्यानिवार्यं मन्यतां त्वया ॥७१॥

टीका- आज धर्मचेतना को पुनर्जीवित करने के लिए इस युग की अधिष्ठात्री महाप्रज्ञा ऋतम्भरा गायत्री को लोकमानस में प्रतिष्ठित किया जाय। हे नारद! पराक्रम की प्रखरता के लिए सर्वत्र यज्ञीय पवित्रतार उदारता एवं प्रचंडता को प्रखर करने की आवश्यकता है॥६९-७१॥

व्याख्या- महाप्रज्ञा को अध्यात्म की भाषा में गायत्री कहते हैं, इसके दो पथ हैं-एक दर्शन अर्थात् तत्वचिंतन-अध्यात्म, दूसरा व्यवहार अर्थात् शालीनता युक्त आचरण-धर्म। महाप्रज्ञा की परिणति अन्त:क्षेत्र में प्रतिष्ठित होने पर साधक के व्यक्तित्व में आमूल-चूल परिवर्तन ला देती है। आत्मिक विभूतियाँ-ऋद्धियाँ तथा लोक व्यवहार में प्राप्त सम्पदा-सिद्धियाँ इसी के तत्व चिन्तन का प्रतिफल हैं।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 प्रज्ञा पुराण (भाग १) पृष्ठ 26-27

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...