बुधवार, 26 अप्रैल 2023

👉 दोषों में भी गुण ढूँढ़ निकालिये (भाग 5)

दूसरों की अच्छाइयों को ढूंढ़ने, उन्हें देख-देखकर प्रसन्न होने एवं उनकी प्रशंसा करते रहने का स्वभाव यदि हम अपना बना लें तो यह सारी दुनिया हमें एक सुरम्य सुगंधित बगीचे की तरह मनोरम दिखाई देगी। हर व्यक्ति और हर वस्तु में कुछ न कुछ अच्छाई मौजूद है। हमारे लिये इतना ही पर्याप्त है। शहद की मक्खी के लिए, इतना ही पर्याप्त है कि फूल में मिठास के तनिक से कण मौजूद हों, जब एक नन्हीं-सी विद्या और बुद्धि से हीन मक्खी इतना कर सकती है कि फूल में से अपने काम की जरा सी चीज को निकालने मात्र का ध्यान रखे और अपना छत्ता मीठे शहद से भर ले तो क्या हम ऐसा नहीं कर सकते कि लोगों के अंदर उपस्थित अच्छाइयों को ही तलाश करें भले ही वे थोड़ी-सी ही मात्रा में क्यों न हों। यदि हमारी दृष्टि ऐसी रहे तो हमें अपने चारों और सज्जन एवं स्नेही ही दिखाई देंगे। हमारा मन घड़ी प्रसन्नता और संतोष से ही भरा रहेगा।

ताली एक हाथ से नहीं बजती। अन्य व्यक्ति दुर्जन भी हो तो हमारी सज्जनता उनके हथियारों को व्यर्थ बना देगी। सड़क टूट हुई हो, जगह-जगह गड्ढे हों तो मोटर में बैठने वाले को दचके लगने स्वाभाविक हैं, पर बहुत बढ़िया किस्म की मोटर जिसमें लचकदार कामनी या स्प्रिंगदार सीटें हों-उस टूटी सड़क पर भी किसी यात्री को सुविधा पूर्वक यात्रा करा सकती है। दुनिया में बुरे लोग हैं- ठीक है- पर यदि हम अपनी मनोभूमि को सहनशील, धैर्यवान, उदार और गुदगुदी बना लें तो बढ़िया मोटर में बैठने वाले यात्री की तरह इस टूटी सड़क वाली दुनिया में भी आनंद पूर्वक यात्रा कर सकते हैं।

जो उपलब्ध है उसे कम या घटिया मानकर अनेक लोग दुःखी रहते हैं और अपने भाग्य को कोसते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि अधिक ऊंची किस्म के सुख-साधन, सामग्री प्राप्त करने के लिए उतावले होकर लोग अनुचित रीति से भी उन्हें प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं और अन्याय और अत्याचार करने में भी नहीं चूकते। यह मार्ग समाज में अशान्ति और अपने लिये दुष्परिणाम उत्पन्न करने वाला ही है। ऐसे अनुचित कदम उठने में वह असन्तोष ही मुख्य कारण है जिससे, और अधिक मात्रा में, और अधिक बढ़िया किस्म की वस्तुएं प्राप्त करने की लालसा लगी रहती है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति दिसम्बर 1960 पृष्ठ 5


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👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 26 April 2023

बहुत लोग जिस गलत बात को कर रहे हैं, इसलिए हमको भी करना चाहिए, इस प्रकार की विचारधारा उन्हीं लोगों की होती है जिनके पास अपनी बुद्धि का सम्बल नहीं होता। पूरी दुनिया के एक ओर हो जाने पर भी असत्य एवं अहितकर के आगे सिर न झुकाना ही मनुष्यता का गौरव है। लोग बुरा न कहें, अंगुलि न उठायें, इसलिए हमें गलत बात को भी कर डालना चाहिए, यह कोई तर्क नहीं है। विवेक का तकाजा यही है कि उचित को स्वीकार करने में संकोच न करें और अनुचित को अस्वीकार कर दें।

हमें अपने बारे में अपनी राय आप निर्धारित करनी चाहिए और उसी को सही तथा वजनदार मानना चाहिए। यदि हम अच्छे हैं और सही राह पर चल रहे हैं तो फिर कोई कारण नहीं कि किसी अजनबी या दूरवर्ती की नासमझी से की हुई निन्दा का दुःख माना जाय। इसी प्रकार यदि हम बुरे हैं, ईमान गँवा चुके हैं, गलत रास्ते में चल रहे हैं तो उन चापलूस या गुमराह लोगों की क्या कीमत हो सकती है जो इतने पर भी प्रशंसा करते रहते हैं। ऐसे प्रशंसकों की कीमत धूलि की बराबर भी नहीं समझी जानी चाहिए।

प्रेरक स्वाध्याय वस्तुतः एक प्रकार की ईश्वर उपासना ही है। यों रूढ़िवादी लकीर पीटकर कूड़े करकट जैसी किन्हीं बूढ़ी, पुरानी, किस्से-कहानियों की किताबों को घोटते रहना भी आज स्वाध्याय के नाम से पुकारा जाता है, पर वास्तविक स्वाध्याय वह है जिसकी एक-एक पंक्ति हमें व्यावहारिक जीवन में आदर्शवादिता एवं उत्कृष्टता की दिशा में अग्रसर करने की प्रेरणा से ओतप्रोत हो।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...