शनिवार, 23 जुलाई 2016

🌞 शिष्य संजीवनी (भाग 63) 👉 व्यवहारशुद्धि, विचारशुद्धि, संस्कारशुद्धि


🔴 इस सम्बन्ध में गौर करने वाली विशेष बात यह है कि लोग व्यवहार शुद्धि को ही सब कुछ मान लेते हैं। सांसारिक प्रचलन भी इसका साथ देता है। जो व्यवहार में ठीक है उसे नैतिक एवं उत्कृष्ट माना जा सकता है। पर सत्य इतने तक ठीक नहीं है। नैतिकता की उपयोगिता केवल सामाजिक दायरे तक है। आध्यात्मिक प्रयोगों के लिए यह निरी अर्थहीन है। इसका मतलब यह नहीं है कि आध्यात्मिक व्यक्ति अनैतिक होते हैं। अरे नहीं, वे तो केवल अतिनैतिक होते हैं। वे नैतिकता की पहली कक्षा पास करके अन्य उच्च स्तरीय कक्षाओं को पास करने लगते हैं। ये उच्चस्तरीय कक्षाएँ विचार शुद्धि एवं संस्कार शुद्धि तक हैं। जो इन्हें कर सका वही अन्तरतम में छुपे हुए परम रहस्य को जानने का अधिकारी होती है।
     
🔵 शुद्धि व्यवहार की, यह केवल पहला कदम है, जो नैतिक नियमों को मानने से हो जाती है। शुद्धि विचारों की, यह किसी पवित्र विचार, भाव, सूत्र अथवा अपने आराध्य या परमवीतराग गुरुसत्ता का ध्यान व चिन्तन करने से हो जाती है। यदि कोई व्यक्ति किसी परम वीतराग व्यक्ति का ध्यान- चिन्तन करते रहे तो उसे विचार शुद्धि की कक्षा पास करने में कोई भी कठिनाई न होगी। इसके बाद संस्कार शुद्धि का क्रम है। यह प्रक्रिया काफी जटिल और दुरूह है। इसे ध्यान की दुर्गम राह पर चल कर ही पाया जा सकता है। इसमें वर्षों का समय लगता है। संक्षेप में इसकी कोई भी समय सीमा नहीं है। सब कुछ साधक के द्वारा किए जाने वाले आध्यात्मिक प्रयोगों की समर्थता व तीव्रता पर निर्भर करता है।
        
🔴 मां गायत्री का ध्यान व गायत्री मंत्र का जप इसके लिए एक सर्वमान्य उपाय है। जो इसे करते हैं उनका अनुभव है कि गायत्री सर्व पापनाशिनी है। इससे सभी संस्कारों का आसानी से क्षय हो जाता है। यदि कोई निरन्तर बारह वर्षों तक भी यह साधना निष्काम भाव से करता रहे तो उसे अन्तरतम में छुपे हुए रहस्य की पहली झलक मिलने की सम्भावना बढ़ जाती है। लेकिन इस प्रयोग में एक सावधानी भी है कि इन पूरे बारह वर्षों तक गायत्री साधना के विरोधी भाव को अंकुरित नहीं होना चाहिए। यदि इस साधना में भक्ति और अनुरक्ति का अभिसिंचन होता रहा तो सफलता सर्वथा निश्चित रहती है। इस सफलता से अदृश्य के दर्शन का द्वार खुलता है। इसकी प्रक्रिया क्या है इसे अगले सूत्र में पढ़ा जा सकेगा।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 डॉ. प्रणव पण्डया
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/Devo/vyav

👉 छिद्रान्वेषण की दुष्प्रवृत्ति

छिद्रान्वेषण की वृत्ति अपने अन्दर हो तो संसार के सभी मनुष्य दुष्ट दुराचारी दिखाई देंगे। ढूँढ़ने पर दोष तो भगवान में भी मिल सकते है, न हों तो...