सोमवार, 3 अप्रैल 2023

👉 शत्रु बनाने का परीक्षित मार्ग (भाग 2)

दीपक लेकर ढूँढ़ने पर भी सम्भवतः अभी तक कोई भी व्यक्ति प्राप्य नहीं हो सकता जो सर्वांग पूर्ण हो। जिसमें कोई कमी न हो। ऐसा व्यक्ति अभी तक उत्पन्न ही नहीं हुआ वह तो भविष्य में कभी होना है। तब तक किसी को गलत बनाना, काट छाँट करना कहाँ तक उचित है? डाक्टर जौन्सन कहा करते थे “श्रीमान! स्वयं परमात्मा भी, आदमी के अन्तिम दिन से पूर्व उसके सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं देता। फिर हम और आप ही किसी को गलत कैसे कह दें?” हमारे हृदय में भी वही भाव होने चाहिये कि अपने परिचितों, प्रियजनों, मित्रों तथा अन्य लोगों की नग्नता और बुराइयों को व्यर्थ में ही न देखते फिरें। गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में हमारा स्वभाव कपास के समान निर्मल होना चाहिए:—

साधु चरित शुभ सरिस कपासू। सरस विसद गुनमय फल जासू॥
जो सहि दुख पर छिद्र दुरावा। बन्दनीय जेहि जग जसु पावा॥

स्वयं कष्ट सहन करले किन्तु दूसरों के दोष छिपावे यह सज्जनों का गुण माना गया है। मुस्लिम धर्म ग्रन्थ की एक कथा है कि हजरत नूह एक दिन शराब पीकर उन्मत्त हो गये। उनके वस्त्र अस्त व्यस्त हो गये और अन्ततः वे नंगे हो गये। उनके पुत्र शाम और जैपेथ उलटे पैरों उन तक गये और उन्हें एक कपड़े से ढक दिया। उन्होंने अपने प्रिय पिता का नंगापन नहीं देखा। हमारे हृदय में भी यही भाव होना चाहिये कि अपने प्रियजनों की नग्नता अर्थात् उनकी बुराइयाँ व्यर्थ में ही न देखते फिरा करें।

 कष्ट सह कर भी दूसरों के दोष छिपाने और उनकी आलोचना न करने का महत्व बहुत पहले ही जान लिया गया था। ईसा मसीह से भी 2200 वर्ष पूर्व मिश्र के प्राचीन राजा अख्तुई ने कहा था “दूसरों की भूल मत पकड़ और यदि नजर पड़ ही जाय तो कह मत” क्राइस्ट ने भी यही कहा था कि “यदि तू चाहता है कि तेरे दोषों पर विचार न किया जाय, तो तू भी दूसरों के दोषों पर विचार न कर”।

.... क्रमशः जारी
📖 अखण्ड ज्योति, अप्रैल 1955 पृष्ठ 24


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👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 3 April 2023

◆  जिज्ञासा सबसे बड़ा गुण है। महत्त्वाकाँक्षी होना अच्छा है, परन्तु सही मार्ग खोजने के लिए, न कि बुराइयों को प्रोत्साहन देने के लिए। ज्ञान की भूख पूरी करने और सही दिशा की  ओर ले जाने से मनुष्य विद्वान् बन जाता है।

◆ जीवन में सफलता पाने के लिए आत्म- विश्वास उतना ही जरूरी है, जितना जीने के लिए भोजन। कोई भी सफलता बिना आत्म- विश्वास के मिलना असंभव है। आत्म-विश्वास वह शक्ति है, जो तूफानों को मोड़ सकती है, संघर्षों से जूझ सकती और पानी में भी अपना मार्ग खोज लेती है।

◆ यह विचार सही नहीं है कि सम्पत्ति बढ़ जाने से मनुष्य का स्तर ऊँचा उठता है और प्रगतिशील परिस्थितियाँ बनती चली जाती हैं। यह तथ्य आंशिक रूप से ही सत्य है। भौतिक जीवन में अधिक सुविधा साधन मिलें यह बहुत अच्छी बात है, उससे विकास क्रम में सहायता मिलती है, पर यह यथार्थता भी भुला देने योग्य नहीं है कि घटिया व्यक्तित्व एक तो प्रगति कर ही नहीं सकेंगे, यदि कर भी लेंगे तो उपलब्ध साधनों का दुरुपयोग करके उलटे और विपत्ति के दलदल में फँसेंगे।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...